Episode 18
गुड्डी , एलवल वाली , . .
मेरी छुटकी ननदिया
गनीमत थी जैसे वो अलग हुए उसी समय सीढ़ी पर से नंदों के आने की आहट सुनाई पड़ी और मैंने जल्दी से साडी ,. मैं बाथरूम में घुस गयी
और निकली तो गुड्डो और मेरी एक ननद इनके साथ गप्प मार रही थीं , ये भी सिर्फ शार्ट और टी में
गेस करिये , कौन सी ननद होगी ?
नहीं गेस कर पाए न , चलिए बता देती हूँ , .
और कौन ,.
वही अपनी एलवल वाली दर्जा आठ वाली कच्ची कली ,
जिसकी नाम ले ले के मैंने रात भर इन्हे छेड़ा था।
इनकी ममेरी बहन गुड्डी ,
असली बात गुड्डो की थी ,
हम दोनों में परफेक्ट दोस्ती हो गयी थी , एकदम असली वाली अंडरस्टैंडिंग , जिसमें बिना कहे पार्टनर दुसरे की बात समझ लेता है ,
बस वही।
कल रात में गाने में न उसने ढोलक बजाने में साथ दिया , ननदों को चुन चुन कर गारी सुनाने में मेरा साथ दिया था ,
बल्कि वह समझ गयी थी की बूझ कर ' अच्छी वाली ' गारियाँ सब गुड्डी को सेंटर कर सुना रही हूँ , बस वो समझ गयी।
और आज सुबह , मुझे लेने के लिए बूझ कर उस कच्चे टिकोरे वाले को ले के आयी।
सच में गुड्डी ने एक छोटा सा टॉप पहन रखा था और उसके छोटे छोटे कच्चे टिकोरे एकदम उभर कर छलक रहे थे ,
उसके भइया की निगाह भी वहीँ बार बार पड़ रही थी , मैं निकली तो गुड्डी मेरी ननद उनके बगल में बैठी थी ,
और चहक चहक कर उनसे बात कर रही थी।
गुड्डो पलंग पर बैठी थी। और मुझे देख कर मुस्करायी।
और मुझे भी गुड्डी को देख के जोर से शरारत सूझी ,
और कौन सी भौजाई होगी जो , ननद को देख कर , .
गुड्डी मुझे देख कर खड़ी हो गयी , और मैं जहाँ वो बैठी थी , वहां बैठ गयी।
गुड्डी की जगह
जब तक मेरी ननद रानी समझें , मैंने खींच के उसे , सीधे साजन की गोद में बैठा दिया , और हलके से उसकी स्कर्ट भी ऊपर की ओर ,.
बस अब चड्ढी , सीधे इनके शार्ट के ऊपर , बस उनके खूंटे और उनकी ममेरी बहन की गुलाबो के बीच में इनका शार्ट और उसकी चड्ढी ,
उस बिचारी की हालत खराब थी , कुनमुना रही थी , उठने की कोशिश कर रही थी , मेरी पकड़ पर ,.
" अरे क्या हुआ कभी अपनी भइया के गोद में बैठी नहीं हो क्या , बैठ न ठीक से , कुछ गड़ रहा है क्या नीचे ?"
मैंने छेड़ा और उसे दबाकर
वो बिचारे शरम से बीर बहुटी हो रहे थे , लेकिन मुझे तो सही मौक़ा मिल गया , मैंने उनका हाथ खींच कर ,
मैंने कोशिश तो बहुत की उस के नए आते उभारों पर सीधे रख दूँ , पर वो भी न ,
लेकिन तब भी उन दोनों टिकोरों के ठीक बेस पर मैंने पकड़ा दिया ,
और बोला
" अरे ज़रा ठीक से पकड़ो न , कहीं बिचारी गिर विर न पड़े। "
उनको सुनाते हुए मैंने गुड्डी के कान में बोला ,
" मुझसे पूछ रही थी न ,. भैया ने रात भर किया , कैसे किया , अब पूछ लो , बल्कि करवा के देख भी लो। "
तब तक मैंने देखा की वो फोटो वाली किताब जिसमे तरह तरह के आसन थे , उन्होंने मुझे डॉगी पोज दिखाया था , .
वही ,.
और उसमें एक लड़की एक मरद के खूंटे के ऊपर चढ़ी गोद में बैठी , उसका आधा लंड घोंटे ,
पलंग के नीचे गिरी पड़ी थी ,
बस वो उठा के मैंने गुड्डी को पकड़ा दिया , और बोली ,
चल थ्योरी प्रैक्टिस दोनों कर ले ,.
गुड्डो खिलखिला रही थी।
और हम दोनों कमरे के बाहर ,
गुड्डो ने बाहर दरवाजे की कुण्डी बंद कर दी , और मैंने वहीं से आवाज दी ,
" वैसलीन की शीशी तकिया के नीचे है , और नया नया माल है ज़रा आराम से , . और हाँ कुण्डी अब एक घंटे के बाद ही खुलेगी। "
" गुड्डी यार घबड़ाना नहीं , आराम से , . और हाँ कोई पूछेगा तो मैं बहाना बना दूंगी , कोई चिंता मत करना। "
गुड्डो ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया , गुड्डी को चिढ़ाने का।
हम लोग छत पार कर सीढ़ी वाले कमरे में पहुंचे , तो मैंने गुड्डो का गाल जोर से पिंच करते हुए बोला
" यार ये तूने बहुत सही किया इसको ले आयी , स्साली बहुत उचकती थी। "
" एकदम , मैं भी यही सोच रही थी आप के पास ले चलूंगी तो आप कुछ न कुछ इसका , . "
वो भी खिलखिलाती बोली।
तभी मुझे कुछ याद आया ,
" और ये गुड्डी का भाई मेरा देवर , . उसके साथ आज गुड मॉर्निंग हुयी की नहीं ,. . या तुम सोती रह गयी और बेचारा ,. "
गुड्डो
मुझे कुछ याद आया ,
" और ये गुड्डी का भाई मेरा देवर , . उसके साथ आज गुड मॉर्निंग हुयी की नहीं ,. . या तुम सोती रह गयी और बेचारा ,. "
मेरी बात काट के गुड्डो ने जोर का मुंह बिचकाया ,
" बेचारा ,. "
और अपना मोबाइल मेरी ओर बढ़ा दिया ,
रात भर तीन बजे रात तक हर दस मिनट पर मेसेज , एक से एक ,.
" तीन बजे के बाद मेसेज नहीं है इसका मतलब ,. . "
" इसका मतलब तीन बजे आपके देवर की दिल की बात हो गयी। "
हँसते हुए वो बोली और पूरी बात बतायी
तीन बजे गुड्डो जहाँ सब लड़कियां औरतें सो रही थी , वहां से बाहर निकली ,
तो अनुज वही दरवाजे के पास दीवाल से चिपका सटा ,
लाइट भी चली गयी थी थोड़ी देर के लिए , जाड़े की रात का तीसरा पहर , सब लोग रजाई में मुंह ढंके , .
और अनुज ने पीछे से गुड्डो को दबोच लिया।
अनुज का एक हाथ गुड्डो के जोबन पर और दूसरा गुड्डो के मुंह पर , कहीं वह चीख न दे और बना बनाया खेल बिगड़ जाय ,
पर गुड्डो इस हाथ की पकड़ को सपने में भी पहचान लेती , उसने छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी ,
और एक तो वो ऐसे ही गरमाई हुयी थी , . .
वो जैसे ही आज रजाई में घुसी ,
पहले से मौक़ा ताक रही मेरी मंझली ननद
और दुलारी ,
उसकी रजाई में घुस गयी।
और गारी गाने में जो माहौल गरमाया था , सिर्फ मैंने ही नहीं ,
ननदों ने भी खुलकर हम भौजाइयों को जम के गारियाँ सुनाई थीं , नाम ले ले के ,
और गुड्डो चूँकि हम भौजाइयों के साथ थी , बिना उसकी ढोलक की टनक के गारियों का मजा आधा रह जाता ,.
बस इसीलिए उसी समय , मंझली ननद और दुलारी ने तय किया था की आज रात को उसकी क्लास जम के ली जायेगी।
और वैसे भी , आज काफी रिश्तेदार चले गए थे ,
इसलिए उस कमरे में भी भीड़ थोड़ी कम थी , बाकी काफी कल जाने वाले थे ,
इसलिए भौजाइयों को भी आज की रात आखिरी मौक़ा था
नयी नयी जवान हो रही कच्ची कलियों , ननदों का रस लेने का , .
और दस बजे कमरे की बत्ती किसी भौजाई ने बंद कर दी , दरवाजा भी ,
बस ,.
अब अंदर सिर्फ खेली खायी भौजाइयां थी , शादी शुदा और कच्ची कलियों की कबड्डी आज बिना किसी भूमिका के शुरू हो गयी थी ,
गुड्डो
मंझली ननद और दुलारी
अब अंदर सिर्फ खेली खायी भौजाइयां थी , शादी शुदा और कच्ची कलियों की कबड्डी आज बिना किसी भूमिका के शुरू हो गयी थी ,
लेकिन दुलारी और मंझली ननद ने कुछ और प्लान बनाया था गुड्डो के लिए ,.
मंझली ननद पीछे लेटी थीं बस उन्होंने जैसा तय था पहले से , पहले तो गुदगुदी लगाई , फिर पीछे से गुड्डो के दोनों हाथ कस के दबोच लिए।
अब दुलारो ने अपना काम किया ,
आराम से उसकी कुर्ती के बटन खोले और दोनों कबूतरों को आजाद कर दिया।
स्ट्रैपलेस फ्रंट ओपन ब्रा ने दुलारी का काम आसान कर दिया था ,
और अब वही ब्रा जो लौंडो की निगाहों से गुड्डो रानी के हाईकॉलेज वाले छोटे छोटे जुबना को बचाती थी , .
मंझली ननद ने उसका इस्तेमाल आराम से धीमे धीमे गुड्डो के दोनों हाथ पीछे बाँधने में कर दिए।
गुड्डो के दोनों हाथ बंध गए थे और मंझली ननद के दोनों हाथ आजाद हो गए थे ,
बस , उन्होंने और दुलारी ने उस हाईकॉलेज वाली की कच्ची अमिया बाँट ली ,
एक मेरी मंझली ननद के हिस्से में दूसरी दुलारी के ,
लेकिन दुलारी का एक हाथ खाली था ,
और वो हाथ काफी था गुड्डो के शलवार के नाड़े को खोलने के लिए ,
आज उन दोनों को जरा भी जल्दी नहीं थी , आज तो धीमी आंच पर ,
पहले शलवार उतरी फिर शलवार के अंदर की चड्ढी ,
और तबतक मंझली ननद के होंठो ने गुड्डो के होंठों को कैद कर रखा था बल्कि कचकचा कर काट रही थीं वो खा रही थीं
और उनके दोनों हाथ गुड्डो के उभारों को कभी बस हलके हलके सहलाते तो कभी कस के रगड़ मसल देते ,
कभी अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निपल को रगड़ देतीं।
और गुड्डो अकेली नहीं थी जिसकी ऐसी रगड़ाई हो रही थी ,
गीता , मीता ,मिली , सब को भौजाइयों ने रजाई के अंदर ,.
और नाइट कॉलेज चल रहा था
और एक बार गुड्डो की गुलाबो रानी खुल गयीं फिर तो ,
दुलारी ने सीधे वहीँ सेंध लगा दी ,
बड़ी देर तक ऊपर ऊपर से गुड्डो की कसी चूत वो रगड़ती मसलती रही , दोनों पुत्तियाँ फ्लिक करती रही ,
फिर कचकचा के एक ऊँगली पेल दी उसने , .
गुड्डो ने हलके से चीखने की कोशिश की तो एक जोरदार थप्पड़ उसके चूतड़ पर ,
" छिनार , लौंडन क मोट मोट लौंड़ा घोंटबू एही बुरिया में , और हमार एक ऊँगली में जान निकरत हो , तोहार सारे ख़ानदान के गदहन से चुदवाऊ"
दुलारी चालू हो गयी थी।
मंझली ननद ने ऊपर का मोर्चा कस के सम्हाल रखा था , अब उनके होंठ गुड्डो के निपल पर ,
और दूसरा उनकी उँगलियों के बीच ,. .
और कुछ देर में उनका हाथ गुड्डो की सहेली पर
और दुलारी चूँची की रगड़ाई मलाई करने में लगी थी।
लेकिन मेरी दोनों छिनार ननदों ने एक काम और तय किया था , गुड्डो को वो दोनों मिल कर झाड़ने तक तो ले जाएंगी लेकिन झाड़ेंगी नहीं , तड़पने देंगी , गुड्डो खुद रिरयायेगी , और उससे अपनी सब शर्ते वो मनवाएंगी , उसके बाद ,.
तीन बार वो दोनों गुड्डो को झाड़ने के करीब ले गयीं , और हर बार ,
मंझली ननद की तो पांच दिन वाली छुट्टी चल रही थी लेकिन दुलारी अभी कुछ दिन पहले ही गौने गयी थी , इस शादी के लिए ससुराल से लौट कर आयी थी , मरद के लिए छुनछीया रही थी ,
बस उसने गुड्डो की उँगलियों को खींच कर अपनी झांटो भरी बुर पर ,.
और साथ में उससे गारियाँ दिलवाई गयीं ,
और किसको उसके मायकेवालों को , उसके भाइयों बहनों को , लेकिन सबसे ज्यादा मुझे ,
" बहुत नयकी भौजी का साथ दे दे के हम लोगन क गरियात रहु न , चला ,. . नहीं नहीं नाम ले ले के कोमल ,. "
दुलारी और मंझली ननद दोनों
और जब गुड्डो थोड़ा हिचकिचाई तो मंझली ननद ने दुलारी को ग्रीन सिंग्नल दे दिया ,
" सुन दुलरिया , यह छिनार क आज सच में फाड़ के , एक उँगरी में एकर परपरात बा ,. . तो आज तीन उँगरी पेल दे एक साथ , . . "
मंझली ननद बोली और अपनी बात को जैसे सिद्ध करते हुए अपनी भी एक ऊँगली उन्होंने दुलारी की ऊँगली के साथ पेल दी ,
अब दोनों की एक एक उँगलियाँ चूत के अंदर
गुड्डो जोर से चीखी पर दुलारी उसे चूमती हुयी बोली ,
" अबहीं बहुत चीखबू , . "
और मंझली ननद से बोली
" यह छिनार क चूतड़ भी , सब लौंडन के आगे गांड मटकाय मटकाय के चलत है , आज इसकी गांड भी फाड़ दूंगी , खाली तीन उँगरी से कुछ नहीं होगा इसकी बुरिया में , तीन बुर में तीन गांड में "
" एकदम सही बोल रही हो तू , नाही तो कोमल क नाम ले ले के दस गारी सुनाव ,.
मंझली ननद बोलीं और जैसे अपनी बात पर जोर देने के लिए उन्होंने अपना अंगूठा गुड्डो की गांड की दरार में रगड़ना शुरू कर दिया।
कोई खायी खेली होती तो वो भी हथियार डाल देती ,
ये बेचारी तो सोलह साल वाली , हाईकॉलेज वाली , . नयी नवेली ,. कच्ची कली।
मैं समझ गयी की गुड्डो ने , पर उसकी हिम्मत बढ़ाते मैं बोली ,
" अरे तो ठीक तो है , गारी में कउनो रिश्तेदारी नहीं देखी जाती , अब देखो कल मैंने सास जी का नाम ले ले के , गधा , घोडा कुछ नहीं छोड़ा ,. "
मेरे दिमाग में अपने मायके की बातें याद आ रही थी ,
गाँव में कउनो नयी भौजी आवें , अगले दिन हम सब ननद मिल कर ,.
एक तो इस्तेमाल के बाद नीचे वाले मुंह की मुंह दिखाई , .
कोई शादी शुदा ननदे एक दो मिल के नयी दुल्हन का हाथ पीछे से कस के पकड़ लेती थीं फिर धीरे धीरे हौले हौले , लहंगा , पेटीकोट ऊपर सरकाने की जिम्मेदारी हम कुँवारी ननदों की होती थी ,
और साथ नयी भौजी से , उनके मायके वालों का नाम ले ले कर गारी गवाने , कोई मायके वाला बचता नहीं था।
सबसे मजा तो तब आता था , जब चौथी आती थी , भौजी के कुंवारे छोटे भाई लेकर आते थे ,.
हम सब तो उन की खिंचाई करते ही थे , . खाने के समय , .
गारियाँ परदे में ही होती थी , बगल के कमरे में बैठ कर ,
लेकिन पहली गारी नयकी भौजी को गानी पड़ती थी , अपने सब भाइयों का नाम ले ले कर , .
और तब होता था की दुलहन अब मायके से ससुराल की हो गयी।
" तुझे झाड़ा की नहीं , . "मैंने बात बदलते पूछा।
मेरी छुटकी ननदिया
गनीमत थी जैसे वो अलग हुए उसी समय सीढ़ी पर से नंदों के आने की आहट सुनाई पड़ी और मैंने जल्दी से साडी ,. मैं बाथरूम में घुस गयी
और निकली तो गुड्डो और मेरी एक ननद इनके साथ गप्प मार रही थीं , ये भी सिर्फ शार्ट और टी में
गेस करिये , कौन सी ननद होगी ?
नहीं गेस कर पाए न , चलिए बता देती हूँ , .
और कौन ,.
वही अपनी एलवल वाली दर्जा आठ वाली कच्ची कली ,
जिसकी नाम ले ले के मैंने रात भर इन्हे छेड़ा था।
इनकी ममेरी बहन गुड्डी ,
असली बात गुड्डो की थी ,
हम दोनों में परफेक्ट दोस्ती हो गयी थी , एकदम असली वाली अंडरस्टैंडिंग , जिसमें बिना कहे पार्टनर दुसरे की बात समझ लेता है ,
बस वही।
कल रात में गाने में न उसने ढोलक बजाने में साथ दिया , ननदों को चुन चुन कर गारी सुनाने में मेरा साथ दिया था ,
बल्कि वह समझ गयी थी की बूझ कर ' अच्छी वाली ' गारियाँ सब गुड्डी को सेंटर कर सुना रही हूँ , बस वो समझ गयी।
और आज सुबह , मुझे लेने के लिए बूझ कर उस कच्चे टिकोरे वाले को ले के आयी।
सच में गुड्डी ने एक छोटा सा टॉप पहन रखा था और उसके छोटे छोटे कच्चे टिकोरे एकदम उभर कर छलक रहे थे ,
उसके भइया की निगाह भी वहीँ बार बार पड़ रही थी , मैं निकली तो गुड्डी मेरी ननद उनके बगल में बैठी थी ,
और चहक चहक कर उनसे बात कर रही थी।
गुड्डो पलंग पर बैठी थी। और मुझे देख कर मुस्करायी।
और मुझे भी गुड्डी को देख के जोर से शरारत सूझी ,
और कौन सी भौजाई होगी जो , ननद को देख कर , .
गुड्डी मुझे देख कर खड़ी हो गयी , और मैं जहाँ वो बैठी थी , वहां बैठ गयी।
गुड्डी की जगह
जब तक मेरी ननद रानी समझें , मैंने खींच के उसे , सीधे साजन की गोद में बैठा दिया , और हलके से उसकी स्कर्ट भी ऊपर की ओर ,.
बस अब चड्ढी , सीधे इनके शार्ट के ऊपर , बस उनके खूंटे और उनकी ममेरी बहन की गुलाबो के बीच में इनका शार्ट और उसकी चड्ढी ,
उस बिचारी की हालत खराब थी , कुनमुना रही थी , उठने की कोशिश कर रही थी , मेरी पकड़ पर ,.
" अरे क्या हुआ कभी अपनी भइया के गोद में बैठी नहीं हो क्या , बैठ न ठीक से , कुछ गड़ रहा है क्या नीचे ?"
मैंने छेड़ा और उसे दबाकर
वो बिचारे शरम से बीर बहुटी हो रहे थे , लेकिन मुझे तो सही मौक़ा मिल गया , मैंने उनका हाथ खींच कर ,
मैंने कोशिश तो बहुत की उस के नए आते उभारों पर सीधे रख दूँ , पर वो भी न ,
लेकिन तब भी उन दोनों टिकोरों के ठीक बेस पर मैंने पकड़ा दिया ,
और बोला
" अरे ज़रा ठीक से पकड़ो न , कहीं बिचारी गिर विर न पड़े। "
उनको सुनाते हुए मैंने गुड्डी के कान में बोला ,
" मुझसे पूछ रही थी न ,. भैया ने रात भर किया , कैसे किया , अब पूछ लो , बल्कि करवा के देख भी लो। "
तब तक मैंने देखा की वो फोटो वाली किताब जिसमे तरह तरह के आसन थे , उन्होंने मुझे डॉगी पोज दिखाया था , .
वही ,.
और उसमें एक लड़की एक मरद के खूंटे के ऊपर चढ़ी गोद में बैठी , उसका आधा लंड घोंटे ,
पलंग के नीचे गिरी पड़ी थी ,
बस वो उठा के मैंने गुड्डी को पकड़ा दिया , और बोली ,
चल थ्योरी प्रैक्टिस दोनों कर ले ,.
गुड्डो खिलखिला रही थी।
और हम दोनों कमरे के बाहर ,
गुड्डो ने बाहर दरवाजे की कुण्डी बंद कर दी , और मैंने वहीं से आवाज दी ,
" वैसलीन की शीशी तकिया के नीचे है , और नया नया माल है ज़रा आराम से , . और हाँ कुण्डी अब एक घंटे के बाद ही खुलेगी। "
" गुड्डी यार घबड़ाना नहीं , आराम से , . और हाँ कोई पूछेगा तो मैं बहाना बना दूंगी , कोई चिंता मत करना। "
गुड्डो ने भी मौके का पूरा फायदा उठाया , गुड्डी को चिढ़ाने का।
हम लोग छत पार कर सीढ़ी वाले कमरे में पहुंचे , तो मैंने गुड्डो का गाल जोर से पिंच करते हुए बोला
" यार ये तूने बहुत सही किया इसको ले आयी , स्साली बहुत उचकती थी। "
" एकदम , मैं भी यही सोच रही थी आप के पास ले चलूंगी तो आप कुछ न कुछ इसका , . "
वो भी खिलखिलाती बोली।
तभी मुझे कुछ याद आया ,
" और ये गुड्डी का भाई मेरा देवर , . उसके साथ आज गुड मॉर्निंग हुयी की नहीं ,. . या तुम सोती रह गयी और बेचारा ,. "
गुड्डो
मुझे कुछ याद आया ,
" और ये गुड्डी का भाई मेरा देवर , . उसके साथ आज गुड मॉर्निंग हुयी की नहीं ,. . या तुम सोती रह गयी और बेचारा ,. "
मेरी बात काट के गुड्डो ने जोर का मुंह बिचकाया ,
" बेचारा ,. "
और अपना मोबाइल मेरी ओर बढ़ा दिया ,
रात भर तीन बजे रात तक हर दस मिनट पर मेसेज , एक से एक ,.
" तीन बजे के बाद मेसेज नहीं है इसका मतलब ,. . "
" इसका मतलब तीन बजे आपके देवर की दिल की बात हो गयी। "
हँसते हुए वो बोली और पूरी बात बतायी
तीन बजे गुड्डो जहाँ सब लड़कियां औरतें सो रही थी , वहां से बाहर निकली ,
तो अनुज वही दरवाजे के पास दीवाल से चिपका सटा ,
लाइट भी चली गयी थी थोड़ी देर के लिए , जाड़े की रात का तीसरा पहर , सब लोग रजाई में मुंह ढंके , .
और अनुज ने पीछे से गुड्डो को दबोच लिया।
अनुज का एक हाथ गुड्डो के जोबन पर और दूसरा गुड्डो के मुंह पर , कहीं वह चीख न दे और बना बनाया खेल बिगड़ जाय ,
पर गुड्डो इस हाथ की पकड़ को सपने में भी पहचान लेती , उसने छुड़ाने की कोशिश बंद कर दी ,
और एक तो वो ऐसे ही गरमाई हुयी थी , . .
वो जैसे ही आज रजाई में घुसी ,
पहले से मौक़ा ताक रही मेरी मंझली ननद
और दुलारी ,
उसकी रजाई में घुस गयी।
और गारी गाने में जो माहौल गरमाया था , सिर्फ मैंने ही नहीं ,
ननदों ने भी खुलकर हम भौजाइयों को जम के गारियाँ सुनाई थीं , नाम ले ले के ,
और गुड्डो चूँकि हम भौजाइयों के साथ थी , बिना उसकी ढोलक की टनक के गारियों का मजा आधा रह जाता ,.
बस इसीलिए उसी समय , मंझली ननद और दुलारी ने तय किया था की आज रात को उसकी क्लास जम के ली जायेगी।
और वैसे भी , आज काफी रिश्तेदार चले गए थे ,
इसलिए उस कमरे में भी भीड़ थोड़ी कम थी , बाकी काफी कल जाने वाले थे ,
इसलिए भौजाइयों को भी आज की रात आखिरी मौक़ा था
नयी नयी जवान हो रही कच्ची कलियों , ननदों का रस लेने का , .
और दस बजे कमरे की बत्ती किसी भौजाई ने बंद कर दी , दरवाजा भी ,
बस ,.
अब अंदर सिर्फ खेली खायी भौजाइयां थी , शादी शुदा और कच्ची कलियों की कबड्डी आज बिना किसी भूमिका के शुरू हो गयी थी ,
गुड्डो
मंझली ननद और दुलारी
अब अंदर सिर्फ खेली खायी भौजाइयां थी , शादी शुदा और कच्ची कलियों की कबड्डी आज बिना किसी भूमिका के शुरू हो गयी थी ,
लेकिन दुलारी और मंझली ननद ने कुछ और प्लान बनाया था गुड्डो के लिए ,.
मंझली ननद पीछे लेटी थीं बस उन्होंने जैसा तय था पहले से , पहले तो गुदगुदी लगाई , फिर पीछे से गुड्डो के दोनों हाथ कस के दबोच लिए।
अब दुलारो ने अपना काम किया ,
आराम से उसकी कुर्ती के बटन खोले और दोनों कबूतरों को आजाद कर दिया।
स्ट्रैपलेस फ्रंट ओपन ब्रा ने दुलारी का काम आसान कर दिया था ,
और अब वही ब्रा जो लौंडो की निगाहों से गुड्डो रानी के हाईकॉलेज वाले छोटे छोटे जुबना को बचाती थी , .
मंझली ननद ने उसका इस्तेमाल आराम से धीमे धीमे गुड्डो के दोनों हाथ पीछे बाँधने में कर दिए।
गुड्डो के दोनों हाथ बंध गए थे और मंझली ननद के दोनों हाथ आजाद हो गए थे ,
बस , उन्होंने और दुलारी ने उस हाईकॉलेज वाली की कच्ची अमिया बाँट ली ,
एक मेरी मंझली ननद के हिस्से में दूसरी दुलारी के ,
लेकिन दुलारी का एक हाथ खाली था ,
और वो हाथ काफी था गुड्डो के शलवार के नाड़े को खोलने के लिए ,
आज उन दोनों को जरा भी जल्दी नहीं थी , आज तो धीमी आंच पर ,
पहले शलवार उतरी फिर शलवार के अंदर की चड्ढी ,
और तबतक मंझली ननद के होंठो ने गुड्डो के होंठों को कैद कर रखा था बल्कि कचकचा कर काट रही थीं वो खा रही थीं
और उनके दोनों हाथ गुड्डो के उभारों को कभी बस हलके हलके सहलाते तो कभी कस के रगड़ मसल देते ,
कभी अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निपल को रगड़ देतीं।
और गुड्डो अकेली नहीं थी जिसकी ऐसी रगड़ाई हो रही थी ,
गीता , मीता ,मिली , सब को भौजाइयों ने रजाई के अंदर ,.
और नाइट कॉलेज चल रहा था
और एक बार गुड्डो की गुलाबो रानी खुल गयीं फिर तो ,
दुलारी ने सीधे वहीँ सेंध लगा दी ,
बड़ी देर तक ऊपर ऊपर से गुड्डो की कसी चूत वो रगड़ती मसलती रही , दोनों पुत्तियाँ फ्लिक करती रही ,
फिर कचकचा के एक ऊँगली पेल दी उसने , .
गुड्डो ने हलके से चीखने की कोशिश की तो एक जोरदार थप्पड़ उसके चूतड़ पर ,
" छिनार , लौंडन क मोट मोट लौंड़ा घोंटबू एही बुरिया में , और हमार एक ऊँगली में जान निकरत हो , तोहार सारे ख़ानदान के गदहन से चुदवाऊ"
दुलारी चालू हो गयी थी।
मंझली ननद ने ऊपर का मोर्चा कस के सम्हाल रखा था , अब उनके होंठ गुड्डो के निपल पर ,
और दूसरा उनकी उँगलियों के बीच ,. .
और कुछ देर में उनका हाथ गुड्डो की सहेली पर
और दुलारी चूँची की रगड़ाई मलाई करने में लगी थी।
लेकिन मेरी दोनों छिनार ननदों ने एक काम और तय किया था , गुड्डो को वो दोनों मिल कर झाड़ने तक तो ले जाएंगी लेकिन झाड़ेंगी नहीं , तड़पने देंगी , गुड्डो खुद रिरयायेगी , और उससे अपनी सब शर्ते वो मनवाएंगी , उसके बाद ,.
तीन बार वो दोनों गुड्डो को झाड़ने के करीब ले गयीं , और हर बार ,
मंझली ननद की तो पांच दिन वाली छुट्टी चल रही थी लेकिन दुलारी अभी कुछ दिन पहले ही गौने गयी थी , इस शादी के लिए ससुराल से लौट कर आयी थी , मरद के लिए छुनछीया रही थी ,
बस उसने गुड्डो की उँगलियों को खींच कर अपनी झांटो भरी बुर पर ,.
और साथ में उससे गारियाँ दिलवाई गयीं ,
और किसको उसके मायकेवालों को , उसके भाइयों बहनों को , लेकिन सबसे ज्यादा मुझे ,
" बहुत नयकी भौजी का साथ दे दे के हम लोगन क गरियात रहु न , चला ,. . नहीं नहीं नाम ले ले के कोमल ,. "
दुलारी और मंझली ननद दोनों
और जब गुड्डो थोड़ा हिचकिचाई तो मंझली ननद ने दुलारी को ग्रीन सिंग्नल दे दिया ,
" सुन दुलरिया , यह छिनार क आज सच में फाड़ के , एक उँगरी में एकर परपरात बा ,. . तो आज तीन उँगरी पेल दे एक साथ , . . "
मंझली ननद बोली और अपनी बात को जैसे सिद्ध करते हुए अपनी भी एक ऊँगली उन्होंने दुलारी की ऊँगली के साथ पेल दी ,
अब दोनों की एक एक उँगलियाँ चूत के अंदर
गुड्डो जोर से चीखी पर दुलारी उसे चूमती हुयी बोली ,
" अबहीं बहुत चीखबू , . "
और मंझली ननद से बोली
" यह छिनार क चूतड़ भी , सब लौंडन के आगे गांड मटकाय मटकाय के चलत है , आज इसकी गांड भी फाड़ दूंगी , खाली तीन उँगरी से कुछ नहीं होगा इसकी बुरिया में , तीन बुर में तीन गांड में "
" एकदम सही बोल रही हो तू , नाही तो कोमल क नाम ले ले के दस गारी सुनाव ,.
मंझली ननद बोलीं और जैसे अपनी बात पर जोर देने के लिए उन्होंने अपना अंगूठा गुड्डो की गांड की दरार में रगड़ना शुरू कर दिया।
कोई खायी खेली होती तो वो भी हथियार डाल देती ,
ये बेचारी तो सोलह साल वाली , हाईकॉलेज वाली , . नयी नवेली ,. कच्ची कली।
मैं समझ गयी की गुड्डो ने , पर उसकी हिम्मत बढ़ाते मैं बोली ,
" अरे तो ठीक तो है , गारी में कउनो रिश्तेदारी नहीं देखी जाती , अब देखो कल मैंने सास जी का नाम ले ले के , गधा , घोडा कुछ नहीं छोड़ा ,. "
मेरे दिमाग में अपने मायके की बातें याद आ रही थी ,
गाँव में कउनो नयी भौजी आवें , अगले दिन हम सब ननद मिल कर ,.
एक तो इस्तेमाल के बाद नीचे वाले मुंह की मुंह दिखाई , .
कोई शादी शुदा ननदे एक दो मिल के नयी दुल्हन का हाथ पीछे से कस के पकड़ लेती थीं फिर धीरे धीरे हौले हौले , लहंगा , पेटीकोट ऊपर सरकाने की जिम्मेदारी हम कुँवारी ननदों की होती थी ,
और साथ नयी भौजी से , उनके मायके वालों का नाम ले ले कर गारी गवाने , कोई मायके वाला बचता नहीं था।
सबसे मजा तो तब आता था , जब चौथी आती थी , भौजी के कुंवारे छोटे भाई लेकर आते थे ,.
हम सब तो उन की खिंचाई करते ही थे , . खाने के समय , .
गारियाँ परदे में ही होती थी , बगल के कमरे में बैठ कर ,
लेकिन पहली गारी नयकी भौजी को गानी पड़ती थी , अपने सब भाइयों का नाम ले ले कर , .
और तब होता था की दुलहन अब मायके से ससुराल की हो गयी।
" तुझे झाड़ा की नहीं , . "मैंने बात बदलते पूछा।