Episode 21
मेरी मुस्कराहट ने हामी भरी , और जवाब मेरी ओर से जेठानी जी ने दिया ,
" अरे जिसने स्साले की बहन को नहीं छोड़ा , वो उसकी बीबी को , . यही कहेंगी न आप लेकिन यहाँ कोई डरने वाला नहीं है। "
" चलो अभी तो कल हम लोगों को जाना है लेकिन होली अब तीन महीने बची है , होली में बचोगी नहीं। "
" लेकिन दीदी आप होली में आयेगा जरूर और नन्दोई जी को भी , ये मत कहियेगा की वहां के देवरो को याद आ रही है , . "
मैंने बोला तो ननद जी से लेकिन निगाह मेरी नन्दोई जी की ओर थी
और हामी उन्होंने जोर से भरी , और बोला भी ,
" आऊंगा भी और डालूंगा भी , मना करोगी तो भी डालूंगा , पूरा , "
" मुझे मालूम है , ऐसे मना करने पर मानने वाले नन्दोई नहीं हैं आप , और अगर मना करने पर मान गए न तो सचमुच में सलहज से कुट्टी हो जायेगी और वो भी पक्की वाली "
मैंने भी इसरार करते हुए नन्दोई जी की ओर देखते हुए बोला।
" सोच लो , बुला तो रही हो , लेकिन इनकी पिचकारी ,. उस समय डर मत जाना । "
मंझली ननद भी मजा ले रही थीं।
" एकदम नहीं दीदी , बस आप का आइये तो होली में ,. अच्छा मौका रहेगा , चलिए अदला बदली कर लेंगे , आप के सैंया हमारे साथ , मेरे सैंया आप के साथ , बोलिये मंजूर। "
मैंने छेड़ा उन्हें।
एक पल के बाद चमकी उनकी ,
" बड़ी चालाक , मेरे भइया को मेरे ऊपर चढ़ाने पर तुली हो , . तेरे मायके में होता होगा ऐसा। "
वो चमक कर बोलीं।
लेकिन मेरी जेठानियाँ थी न जवाब देने को , एक बोली
" अरी बिन्नो , किससे छिपा रही हो बचपन में लुका छिपी खेलने के बहाने , खूब पकड़वाया भी होगा और पकड़ा भी होगा। "
अब मुझे भी ससुराल में आये तीन दिन हो गए थे और मैं भी खुल के मजाक , छेड़छाड़ में हिस्सा लेने लगी थी ,
मैं अपनी मंझली ननद से बोली
" अरे दीदी एक बार ट्राई कर के देख लीजिये न , अब बचपन वाली बात नहीं है , अरे होली में तो ,.
फिर देखिये मैंने आपके सैंया के साथ मना नहीं किया , अब आप ही डर रही हैं ,
आप सोचिये न मैं तो अपने ननदोई के साथ मजे करुँगी , आप के भइया का ही उपवास हो जाएगा , वो भी होली के दिन , "
" नहीं नहीं तुम्ही दोनों रखो , आगे से अपने सैयाँ को पीछे से मेरे सैंया को ,. अरे होली है , मेरी छोटी भाभी हो ,
एक साथ दोनों ओर का मजा ले लेना। "
मंझली ननद भी अब मूड में थी , लेकिन नन्दोई जी जो अब तक हम लोगों की छेड़छाड़ का मजा ले रहे थे , उन्होंने भी मुंह खोल दिया।
बड़े भोले बन कर बोले ,
" मुझे कोई ऐतराज नहीं , मैं पीछे वाले से ही काम चला लूंगा , . मैं छेद छेद में भेद नहीं करता। "
अब मैंने पाला पलट दिया , नन्दोई जी को छेड़ने में सारी ननदें , सलहजें एक साथ हो जाती थी तो मैं क्यों मौका छोड़ती , बोली
" सच में नन्दोई जी हमारे बहुत सीधे हैं , एकदम भेदभाव नहीं करते , न अपने साले की बहन में और अपनी बहन में , न मेरी ननद में न मेरी ननद की ननदों में , है न , क्यों दीदी। "
मैं अपनी मंझली ननद से हुंकारी से भरवा रही थी और वो भी ख़ुशी ख़ुशी अपनी ननदों की खिंचाई में मेरे साथ आ गयीं।
" एकदम सही कह रही है तू , . देखा हमारी दो दिन पहले आयी भौजाई को भी आपके सब लक्षण पता चल गए। " खिलखिलाते हुए बोलीं।
तबतक नाश्ता लग गया और सब लोग बाहर , हां मेरा नाश्ता रोज की तरह गुड्डो कमरे में ले आयी।
गुड्डो - अनुज
अगले दिन तक घर आलमोस्ट खाली हो गया , सब लोग चले गए . गुड्डो को छोड़कर।
अनुज मेरे पीछे पड़ा था , भाभी कुछ कर के बस हफ्ते भर , .
हफ्ते भर तो वो नहीं रुकी लेकिन मैंने जिद कर के पांच दिन उसे रोक लिया।
मन तो गुड्डो रानी का भी कर रहा था।
और पांच दिन में कोई दिन नागा नहीं गया।
और उसमें भी मेरा हाथ था ,
अनुज जिस तरह कहता था , भाभी कुछ जुगाड़ करवा दो ,
और मैं भी , . आखिर इस शहर में तो वही मेरा देवर था , .
और मेरी निगाह उसकी छुटकी बहिनिया पर भी थी ,
गुड्डी रानी पर।
बस अनुज को मैंने समझा दिया , अगर रोज रोज अकेले आने में मुश्किल है तो गुड्डी के साथ आओ न , .
एक दिन तो हद हो गयी . गुड्डी अपनी दो सहेलियों के साथ आ गयी , अनुज भी बहाना बना के अपनी बहना के साथ , एस्कॉर्ट ड्यूटी पर ,.
मैं गुड्डी की दोनों सहेलियों के साथ लूडो खेलने बैठ गयी , और अनुज को हड़काकर भगा दिया ,
" कहाँ हरदम लड़कियों में घुसे रहते हो ".
गुड्डो तो खेल में थी नहीं , बस देख रही थी , उसे भी , .
" गुड्डो यार इस जाड़े में ज़रा गरम गरम पकौड़ियाँ हो जाएँ "
बस वो भी मुंह बनाकर चली गयी , घंटे भर के बाद लौटी ,
और मैं समझ गयी , मौके का फायदा मेरे देवर ने भी उठाया और गुड्डो रानी ने भी।
और मेरी भी गुड्डी से दोस्ती अच्छी हो गयी और साथ में खुल कर छेड़छाड़ भी ,
और आगे ,
गुड्डो
हाँ तो मैं कह रही थी गुड्डो और अनुज वाली बात ,
असल में गुड्डो और अनुज की सेटिंग तो मैंने ही करवाई , आपने तो ,.
जिस दिन चाट पार्टी थी छत पर उस दिन , सब लोग ऊपर थे , और अनुज ने साफ़ साफ़ कहा था मुझसे गुड्डो के बारे में , .
बस , मेरा देवर कहे और ,. बहाना बना के , दोनों को नीचे कमरे में भेज दिया , शुरू तो उसी दिन हो गया था , लेकिन साइत नहीं थी गुड्डो रानी की उस दिन फटने की , कोई ऐन मौके पर ,.
पर अगली शाम को ही , मेरे यहां आये तीसरे दिन , .
अरे उस दिन जब खूब गाने वाने हुए थे , मैंने खुल के गारियाँ गायी थी और गुड्डो ने मेरा पूरा साथ दिया था ,
ढोलक बजा कर भी , और गाने में भी ,.
उसी दिन तो गाने के पहले ढोलक लाने के बहाने गुड्डो को मैंने एलवल भेजा और साथ में और कौन ,. अनुज मेरा देवर , . बिल्ली के पास छींके की रखवाली ,.
जब गुड्डो लौटी तभी मुझे लग गया , और गुड्डो ने कबूला भी ,. दो राउंड पूरे हचक के मेरे देवर ने ली थी उसकी।
उस शाम जब दोनों जा रहे थे , वैसलीन की शीशी भी मैंने गुड्डो को पकड़ा दी थी और रात में आई पिल भी , . अगले दिन भी सुबह बल्कि रात के तीन बजे अनुज ने उसकी दो बार , .
हाँ तो अनुज का मन बहुत था गुड्डो की ,. और गुड्डो मन तो,. उसका मेरे देवर से भी ज्यादा करता था ,
पर मैं थी न उसका मन समझने वाली , मैंने अपनी जेठानी को समझाया ,. अरे कौन दो चार दिन में , . .
सब लोग एक साथ चले गए हैं घर एकदम खाली हो गया है , ये रहेगी तो , . फिर तय हो गया की पांच दिन और
और पांचो दिन , . लेकिन फिर काम मैं ही आती थी।
मैं चाहती भी थी , इसी बहाने अनुज से भी मेरी अच्छी पटने लगी , लेकिन मेरा असली निशाना तो उसकी छोटी बहन थी , गुड्डी , अरे वही दर्जा आठ वाली , जिसे हम सब इनका माल कह के छेड़ते थे
अब सीधे उससे तो ,. फिर वो बड़ी , क्या कहते हैं चिकना घड़ा , या चिकनी घड़ी , . एकदम से भड़क जाती थी ,
ज़रा भी खुल के मज़ाक करो तो ,. पर मैं भी तो रीतू भाभी की ननद थी , .
हमारे यहाँ तो जब तक भाभी को ननद की कितनी झांटे हैं ये तक न मालुम हो तो ननद भाभी का रिश्ता क्या , .
हमारे यहां तो ननद भाभी का मज़ाक बोल कर नहीं खोल कर होता था ,
और यहाँ ऐसी ननद थी जो डबल मीनिंग वाले मज़ाक पर चिढ जाती थी।
पर बिचारी को क्या पता था उसे कोमल भौजी ऐसी भौजी मिली है , बनारस वाली।
अब अनुज गुड्डो से मिलने अकेले तो आ नहीं सकता था , इसलिए साथ में उसकी दर्जा आठ वाली वो बहन भी , गुड्डी रानी ,.
और अनुज तो गुड्डो के साथ कबड्डी में ,
और मैं गुड्डी के साथ ,
कभी अकेले तो कभी जेठानी के साथ ,.
धीरे धीरे उससे भी मेरी दोस्ती होने लगी , . जैसे गुड्डी का नाम ले कर रोज बिना नागा हर रात मैं इन्हे छेड़ती थी , उसी तरह इनका नाम लेकर दिन में गुड्डी को , एक दिन तो अकेले में मैं गुड्डी रानी की ब्रा भी खोल कर , .
बहाना मैंने बनाया की मुझे ब्रा लेनी है देखूं उसकी किस ब्रांड की है , . . मैं तो जा नहीं सकती हूँ , गुड्डी जा के एक दिन ,. बस पीछे से खोल के , .
मेरा गेस एकदम सही था २८ नंबर की , २८ सी , एकदम परफेक्ट कच्ची अमिया , .
रुई के फाहे जैसे मुलायम ,. छूने मसलने में एकदम परफेक्ट ,
मैंने बदले में उसे भी अपने ब्रा को खोलने दिया ,
ये भी बताया की मेरी सबसे छुटकी बहन जो उससे साल भर से कम बड़ी है , नौवें में पढ़ती है उसकी ब्रा की साइज ३० और जो मंझली हाईकॉलेज वाली , उसकी ३२ है , कप साइज उन दोनों की भी सी है।
मेरी ३४ सी।
सबका फायदा था , अनुज तो मेरा एकदम गुलाम , . गुड्डो के चक्कर में।
मेरी कोई भी बात टालने की वो सोच भी नहीं सकता था ,
और मैं भी उस के लिए ऐसी जुगत लगाती थी , जिस दिन गुड्डो को जाना था बनारस उसके एक दिन पहले , .
सुबह से दस बार अनुज का फोन आ चूका था , भाभी चिड़िया कल उड़ जायेगी आज कुछ ही करके ,
कम से कम एक बार ,. बस आखिर मैंने प्लान बना लिया , अनुज के साथ मैं और जेठानी जी पिक्चर गए ,
साथ में गुड्डी , और गुड्डो दोनों बस पिक्चर शुरू नहीं हुयी थी , की गुड्डो के पेट में दर्द होने लगा।
जेठानी जी ने बोला भी अरे पिक्चर हाल में टॉयलेट होते तो हैं ,
पर मैंने वीटो कर दिया , . एक तो गंदे बहुत होते हैं , फिर कहीं कैमरे वैमरे लगे हों तो ,
बस गुड्डो रानी वापस घर , और साथ में और कौन ,. मेरा देवर .
घर पर कोई था नहीं , ये एक दिन के लिए बाहर गए थे , रात में लौटने वाले थे , सासु जी के साथ बस।
अनुज ने कमरे में भी घुसने नहीं दिया , बरामदे में ही गुड्डो के शलवार का नाडा खुल गया ,
बनारस जाने के पहले मैंने गुड्डो को अच्छी तरह समझाया , शलवार के अंदर उसकी गुलाबो को पकड़ कर ,
" देख यार तूने मेरे देवर को अपनी बिल दिया है दिल नहीं। " मैं बोली
" एकदम सही कहा , अपने दिल मैंने सम्हाल के रखा है है। " हँसते हुए वो बोली।
" तो अब जो दरवाजा खुल गया है वो बंद नहीं होना चाहिए , ये बता बना. रस में यार कितने हैं तेरे , . " मैंने मसलते रगड़ते उसे उसकी गुलाबो की कसम धरा के पूछ लिया।
पहले तो वो लाख मना करती रही , उसने किसी को लिफ्ट नहीं दी ( ये बात सच भी लग रही थी , पहली बार दुलारी जब मुझे छेड़ रही थी , बुर लंड के नाम से ही कितना भड़की थी वो ) पर आखिर कबूल किया उसने , . उसने किसी को लिफ्ट नहीं दी ,
लेकिन आठ दस हैं जो उसके पीछे पड़े हैं।
दो तीन उसके मोहल्ले के हैं , चार लड़के कॉलेज से रोज उसका पीछा करते हैं , दो तीन बार उन सबों ने चिट्ठी भी दी मोबाइल नंबर भी माँगा , . पर सबसे ज्यादा उसकी दो सहेलियों के भाई है , एकदम से ,. और उसकी दोनों सहेलियां भी एकदम से पीछे पड़ी हैं उसके , . वो दोनों तो साल भर से करवा रही हैं , .
अपने भाइयों से नहीं लेकिन उसकी कुछ और सहेली हैं उन्ही के भाई से ,.
" बस शुरुआत उन्ही दोनो से करो न , . सहेलियों के यहाँ जाने में , उनके साथ पिक्चर जाने में घर वाले भी नहीं बोलेंगे , लेकिन पहले दिन ही टांग मत फैला देना , थोड़ा सा लालच , हाँ लेकिन बहुत तड़पाना भी मत , कितने दिन से वो दोनों चक्कर में पड़े हैं तेरे "
मैंने सलाह भी दी और पूछा ,
" एक तो , साल भर से ऊपर , . मेरी बर्थ डे पर गिफ्ट भी लाया था , वैलेंटाइन पर १५ गुलाब भी दिए थे , . . मेरी बहुत क्लोज फ्रेंड का एकलौता भाई है , उनके फादर बाहर काम करते हैं , मा भी काम करती हैं ,
इसलिए जब मैं उसके घर जाती हूँ तो तो वो दोनों भाई बहन ही , . बी ए में पढ़ता है सेकेण्ड ईयर , . एकबार तो अपनी बहन के सामने ही , . दबोच लिया था उसने ,
मैंने उसकी बहन से , अपनी सहेली से बोला तो वो बोली , दे दे न क्या करोगी बचाकर , . और दूसरा , वो सात आठ महीने तो हो ही गए होंगे , . वो गाँव की है , दोनों भाई बहन साथ ही पी जी में रहते हैं , . दो कमरे ले रखे हैं , . बनारस में मेडिकल की कोचिंग कर रहा है वो ,. "
गुड्डो ने पूरा डिटेल बता दिया।
" अरे यार तू भी न , . अब पहले तो व्हाटस ऐप , हाँ उन्ही लड़कों में से किसी से सिम ख़रीदवाना , ट्रू कॉलर से कोई चेक भी करेगा तो तेरा नाम नहीं मिलेगा उसे , और उस सिम का सिर्फ लौंडो से बात करने के लिए यूज करना , और एक दो दिन बाद पिक्चर , . लेकिन हफ्ते भर के अंदर तेरी गुलाबो के अंदर घुस जाना चहिये "
मैं बोली , और मेरी मझली ऊँगली की दो पोर गुलाबो के अंदर ,
" एकदम " खिलखिलाते वो बोली , और छुड़ाने की कोशिश करने लगी ,
" और साथ में जो बेचारे कॉलेज छोड़ने जाते हैं , कम से कम उनकी चिट्ठी तो ले लेना , मोबाइल नंबर दो चार बार के बाद , हाँ खुद चिट्ठी मत लिखना , और किसी लड़के को सेल्फी मत भेजना , बस बहुत हुआ तो अपनी फेसबुक की फोटो , या इंस्टाग्राम की , बहुत करे तो सेल्फी पहले इंस्टा पे , या फेसबुक पे पोस्ट करके तब देना , सात दिन के अंदर ख़ुशख़बरी देना , वरना बहुत पीटूँगी , इतना सिखाया पढ़ाया , डुबाना मत। "
"एकदम नहीं , ख़ुशख़बरी दूंगी और उस की फोटो भी भेजूंगी " हँसते हुए वो बोली ,
तबतक हल्ला हो रहा था , रिक्शा आ गया था , बस का टाइम हो रहा था , .
गुड्डो से मेरी रोज आधे घंटे चैट तो होती ही थी , और सात दिन नहीं नहीं पांच दिन में बनारस वाली का रस , उसकी सहेली के भाई ने , वही जो साल भर से वेट रहा था ले लिया , हफ्ते भर के अंदर तो दूसरा भी , . जो कॉलेज छोड़ने जाता था उस का भी नंबर लग गया
उनकी 'बदमाशियां '
पर गुड्डो के जाने के बाद , जो कहते हैं न शहजादे की नाफ़रमानियां परवान चढ़ती गयीं , बस वही हुआ ,
अब तो दिन भर , न मौक़ा देखते थे न जगह। अब दिन में किचेन मेरे जिम्मे था , तो किचेन में भी , और कुछ नहीं तो पकड़ा पकड़ी , चुम्मा तो कभी भी कहीं भी ,
और मौका देखकर ब्लाउज के ऊपर से ही मसलना रगड़ना , .
ऐसा नहीं की मैं मना नहीं करती थी पर वो भी जानते थे की ये मना करना कितना दिल से है ,
दिल तो मेरा भी वही करता था जो इनका करता था।
एक दिन तो हद कर दी इन्होने ,
मैं दिन में सास के साथ लेटी थी , हलकी सी नींद भी लग गयी थी , एक ओर जेठानी जी एक ओर मैं , बस पंचायत कर रही थीं हम तीनो मिल के , जाड़े की दुपहर , बड़ी सी रजाई , .
बस ये आ गए और मेरी ओर से घुस गए , मैंने इन्हे कोहनी भी मारी , इशारा भी किया क्या करते हो , सासु जी हैं ,
पर , ये नम्बरी असुधारणीय ,. पहले तो मेरी पीठ सहलाते रहे , फिर पीछे से ब्लाउज के अंदर हाथ डाल कर मेरी ब्रा का स्ट्रैप ,…
सासु जी उठ के चल दीं , जेठानी से कह कर उन्हें पड़ोस में जाना है कई दिन से कोई बुला रहा था।
और जैसे ही वो निकली , मेरी ब्रा का स्ट्रैप खुल गया।
जेठानी जी तो सब समझ ही रही थीं ,
बस एक स्वगत संवाद बोला उन्होने , जा रही हूँ ज़रा बाहर का दरवाजा बंद कर दूँ और मेरा सीरियल भी आ रहा होगा।
बाहर का दरवाजा तो पता नहीं उन्होंने बंद किया की नहीं ,
पर जिस कमरे में मैं थी , उस की कुण्डी बंद कर दी , बाहर से वो भी जोर से ,
एकदम अपने देवर का फायदा सोचती रहती थीं वो ,
मैं लाख कहती रही अंदर से तो दरवाजा बंद कर लो , पर ,.
बंद किया उन्होंने अंदर से दरवाजा लेकिन पूरे ४५ मिनट के बाद ,
पहले एक राउंड ,
उनकी क्विकी भी बाकियों के फुल राउंड से ज्यादा टाइम लेती थी। कम से कम आधा घंटा।
और उनकी उंगलिया , होंठ उनके मूसलचंद से कम बदमाश थोड़े ही थे ,जब तक मेरे जोबन की ऐसी तैसी नहीं कर लेते , मैं सिसकने नहीं लगती , खुद मुंह खोल कर नहीं कहती , उनके धक्के नहीं चालू होते थे।
और दरवाजा बंद करने के बाद उनकी फेवरिट डॉगी पोज़
वहीँ मुझे निहुराकर , और सेकंड राउंड में तो टाइम लगना ही था , दिन दहाड़े , मेरी सास के कमरे में , उनकी पलंग पर , .
लेकिन इन्हे कोई फर्क नहीं पड़ता था , मैं बस दिख जाऊं ,
और सच बोलूं , . मन तो मेरा इनसे भी ज्यादा करता था जिस तरह से ये रगड़ते कुचलते मसलते थे न ,
बस मन करता था ये करते ही रहें
दो ढाई घंटे बाद मैंने दरवाजा खोला , बाहर से जेठानी खटखट कर रही थीं , चाय लायी थीं।
लेकिन उनका मन बढ़ाने में मेरी सास और जेठानी का भी पूरा हाथ था ,
मेरी सास ट्रेडिशनल सास लोगों से एकदम अलग , .
मेरी रगड़ाई होती थी , लेकिन वो खुद नहीं , अपने बेटे से ,.
मेरे आने के बाद , रात का खाना साढ़े आठ बजे ख़तम हो जाता था , और मैं रुकना भी चाहूँ तो सास मेरी हाँक कर मुझे नौ बजे के पहले ,
मेरे कमरे में ऊपर छत पर खेद देती थीं , जहां भूखा शेर मिलता था।
और सुबह भी अगर मैं नौ बजे से पहले नीचे आयी तो सास एकदम चालू ,.
अरे अभी नयी बहू हो थोड़ा आराम करो , और बेड टी तो कमरे में ऊपर उनका लड़का अपने हाथ से बनाकर पिला ही देता था।
और दिन में भी , . .
तिझरिया में एक दो राउंड तो पहले दिन से ही , मेरी जेठानी खुद मुझे उनके कमरे में पहुंचा आयी थीं ,
लेकिन अब ,. कभी भी ,
बस वो ऊपर जाते और वहीँ से आवाज लगाते ,
" ज़रा एक ग्लास पानी पिला दो। "
मेरी जेठानी और सास दोनों मुस्कराने लगतीं , और मुझसे ज़रा भी देर होती तो ऊपर से फिर गुहार लग जाती।
जेठानी भी मेरी खिंचाई करने में ,
बोलतीं
" अरे पिला दे न , प्यासे की प्यास बुझाने से बड़ा पुण्य मिलता है। "
प्यासे की प्यास
जेठानी भी मेरी खिंचाई करने में , बोलतीं
" अरे पिला दे न , प्यासे की प्यास बुझाने से बड़ा पुण्य मिलता है। "
एक दिन बड़ा मजा आया , उनकी आवाज ऊपर से आई , पानी ,
और उसी समय उनकी ममेरी बहन गुड्डी आयी थी ,
उसका कॉलेज , घर के हमारे पास ही था ,
बस मैंने और जेठानी जी ने उसे ही पानी लेकर भेज दिया ,
और थोड़ी देर बाद वो नीचे आ गयी मुस्कराती , पानी का भरा ग्लास लिए ,
जैसे ही वो पहुंची , ये बिचारे बड़े निराश , बोले ,
" तुम्हारी भाभी नहीं हैं क्या ,. "
पर वो भी मौका क्यों छोड़ती , बोली ,
भइया आपको पानी चाहिए या भाभी। चलिए भाभी को भी भेज देती हूँ।
लेकिन मैं और जेठानी जी दोनों उसके पीछे पड़ गए ,
" अरे तो तुम्ही भैया की प्यास बुझा देती न। "
उसके कॉलेज की स्कर्ट उठा कर उसकी चड्ढी के ऊपर से उसकी गुलाबो को मसलती मैं बोली ,
" अरे ननद रानी , प्यास बुझानेवाली चीज तो तुम्हारे पास भी है ,
आखिर किसी न किसी की प्यास तो बुझाओगी ही अपने भइया की ही बुझा देती। "
पर वो गौरैया भी अब चहकने लगी थी , बोली
" अरे भाभी आप को लाने हम सब लोग किस लिए गए थे , तो जाइये प्यास बुझा दीजिये , और कोई जल्दी नहीं मैं रहूंगी दो तीन घंटे ,. "
उसके गालों पर पिंच करते मैं बोली ,
" चल यार तेरी बात मान लेती हूँ , लेकिन एकदिन तुझसे तेरा भइया की प्यास बुझवाऊँगी जरूर। "
दिन सोने के तार की तरह खिंच रहे थे , शादी के मेरे पंद्रह बीस दिन हो गए , हर रात सुहागरात लगती थी ,
और अब तो दिन में भी वो लड़का ,.
बिना नागा दो तीन बार , कहीं भी कभी भी ,
कभी निहुरा कर ,
कभी लेटा कर
तो कभी अपनी गोद में बिठाकर ,
थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी ,
पर वो चिट्ठी आ गयी जिसका सबको इन्तजार था और मुझे डर वो जो मेरे साजन को मुझे दूर खींच कर ले जाने वाली थी।
असल में शादी की मस्ती में वो भी और बाकी लोग भी उस आने वाली चिट्ठी के बारे में भूल ही गए थे ,
और मैं भी न ,. .
मैंने आप लोगों को इनकी पढ़ाई नौकरी के बारे में बताया भी नहीं न ,
असल में मैं भी कभी भी ध्यान दिया नहीं ,
मैंने तो उस दिन अपनी सहेली के यहां शादी में जब से बीड़ा मारा था और अगले दिन सुबह उन्होंने भोर भिन्सारे मेरा नाम पूछा था , .
मैं तो सोच भी नहीं सकती थी आज के जमाने में ऐसा कोई लड़का होगा ,
लेकिन मेरी बहने , खास तौर से छुटकी , रोज रात को देर तक अपने जीजा के साथ गुटरगूं करती ,
और सुबह सुबह , . उसे और कोई काम तो था नहीं , बस मुझे चिढ़ाती और अपने जीजा की तारीफ़ के पुल बांधती ,
और मैं उलटे उसकी खिंचाई करती पर मंझली और माँ भी एकदम उसी की तरफ ,
उसने ही बताया था की इंटर में बोर्ड में उनकी पोजीशन थी आठवें या दसवें नंबर पर ,
और उनका आई आईटी बंबई में एडमिशन हो गया था , इलेक्ट्रानिक्स या ऐसे ही कुछ में ,
एक दिन रीतू भाभी इनकी सलहज ने बताया की कैम्पस में उनका सेलेक्शन हो गया था , वो अमरीका जाने के लिए ,.
लेकिन मैंने सब काम गड़बड़ कर दिया
मैं उन्हें दिख गयी और वो समझ रहे थे की मेरा साथ ले जाना मुश्किल होगा ,
लेकिन उनको एक और ऑफर मिल गया , हिंद्स्तान में ही , उसी कम्पनी ने कोई अपनी नयी फैक्ट्री खोली थी वहां , उसी में , .
छुटकी को तो पल पल की अपने जीजू की खबर रहती थी , वो एकदम चमची अपने जीजा की
उसी ने बोला की शादी के बाद ,
उनकी कोई ट्रेनिंग है , . .
इसलिए वो शादी की जल्दी कर रहे हैं , जनवरी में ट्रेनिंग होगी महीने डेढ़ महीने की ,
उसमें पोस्टिंग का भी पता चल जाएगा कब से है
मैंने जोर से उसके कान खींचे ,
" तेरे जीजू तुझे बेवकूफ बना रहे हैं , मुझे मालूम है शादी की जल्दी उन्हें क्यों है। "
और उन्हें हो न हो मुझे तो थी उसी लिए ,
रोज मेरी शादी शुदा सहेलियां , उनकी सलहज ऐसी ऐसी बातें करती थी ,
शादी के बाद लड़के ऐसे करते हैं , वैसे करते हैं , रात में सोने नहीं देते ,.
मैंने भी तय कर लिया था , जो करना हो करे लेकिन मुझे तो ये लड़का पसंद है थोड़ा बुद्धू है पर चलेगा ,
मेरी दोनों बहने मानने को तय नहीं की उनके जीजा बुद्धू हैं ,
बस दोनों चमचियाँ लगी रहतीं , आपको मालूम नहीं बहुत इंटेलिजेंट हैं , उनकी कालेज में ये पॉजिशन आयी वो डिबेट मे,
और मैं बात काट कर के पूछती ,
" अच्छा जो सगाई में आये थे , जो तुम सब उन्हें चिढ़ाती थी , जो सवाल पूछती थी कोई जवाब दे पा रहे थे , . बोल "
और जवाब क्या वो देती , जवाब तो मुझे मालूम था , सगाई में एकदम नदीदों की तरह बस मुझे देखे जा रहे थे , जैसे कभी देखा नहीं हो , एकदम बोलती बंद।
और अकेले में रीतू भाभी , उनकी सलहज ने खींचा भी।
" अरे नन्दोई जी बहुत ललचा रहे हो , मिलेगी , मिलेगी। "
लेकिन उनके मुंह से निकल गया , " कब "
और मेरी चट मंगनी पट शादी कराने में सबसे ज्यादा उनकी सलहज का हाथ था , जोरू के गुलाम वो थे या नहीं ,
पता नहीं , लेकिन सलहज के तो पक्के गुलाम।
बिछोह
मैं भी न कहाँ की बात कहाँ ले आयी ,
हाँ तो हमारी शादी के पंद्रह बीस दिन बाद वो चिट्ठी आयी
ट्रेनिंग उनकी चार पांच दिन बाद शुरू होनी थी बंगलौर में , पांच हफ्ते की , फरवरी के दूसरे हफ्ते तक चलेगी,
उसके डेढ़ महीने बाद ज्वाइन करना होगा , अप्रेल की पहली तारीख को , एक कम्पनी की टाउनशिप बनी है , वहीँ ,
उसमें पैकट वैकेट और पता नहीं क्या क्या था पर मुझे तो बस ये लग रहा था ये पांच हफ्ते कैसे कटेंगे।
और पहली बार मैंने उनकी अपनी सास की बात काटी ,
सास मेरी कहने लगी , तुम तो पांच हफ्ते रहोगे नहीं , बहू चाहो तो तुम तब मायके चली जाओ , कुछ दिन ,.
वो भी न एकदम क्या कहूं उन्हें , . बोलने लगे , हाँ सच में चली जाओ , मेरे आने के पहले आ जाना ,
मैंने एकदम से मना कर दिया ,
" मैं कही नहीं जाने वाली , मैं दीदी के पास यही रहूंगी , . आप क्या सोचते हैं , आप नहीं रहेंगे यहाँ तो , . . "
और मैंने जेठानी के कंधे पर अपना हाथ रख दिया।
और उन्होंने मुझे दुबका लिया।
बस मुझे तो और हिम्मत मिल गयी , मैं बोलने लगी
हम लोग मिल के गप्पे मारेंगी , टीवी देखेंगी और ,.
मेरी जेठानी अपने देवर को छेड़ने का मौका क्यों छोड़तीं ,बोली
" और क्या रात भर सोयेगी , इतने दिनों की नींद पूरी करेगी , . . चैन से टाँगे फैला के "
और अब शर्माने की बारी मेरी थी।
मेरी सास भी मान गयीं , बोली
"चलो अच्छा है ,हम सब मिल के गप्प मारेंगे कार्ड्स खेलेंगे , . "
लेकिन वो दो तीन दिन , न वो मुझे छोड़ते थे न मैं उन्हें ,.
और मेरे मायके न जाने का फायदा भी मुझे मिल गया ,
असल में वो जिस दिन गए , बस उसके अगले दिन मेरी वो पांच दिन वाली छुट्टी चालू हो गयी ,
और जिस दिन ख़तम हुयी शनिवार था वो ,.
उनके गए एक हफ्ते के करीब होने वाले थे , घर में तो सब लोग नौ साढ़े नौ बजे सो जाते थे , मैं ऊपर अपने कमरे में ,.
दिन तो बीत जाता था , रात काटे नहीं कटती थी।
दिन में भी बस लगता था वो यहीं हैं , .
पर मेरी जेठानी सास , सब लोग , कभी ताश , कभी गाने , एक दो बार सिनेमा भी ,
लेकिन बीच बीच में , . . एकदम खाली खाली सा ,
ये नहीं की इनका फ़ोन नहीं आता था , सुबह सुबह जगाते यही थे ,
फिर कालेज जाने के पहले , लंच में , उस बीच भी मौका निकाल के एक दो बार ,
पर ट्रेनिंग उनकी टफ़्फ़ थी , एक्सरसाइज , और भी सेमीनार , रात में भी आठ दस बजे तक ,
कई बार सास ने सजेस्ट भी किया की मैं उनके साथ सो जाऊं ,
पर मैंने टाल दिया , आखिर रात में फोन पर उनसे जो ,.
जब तक फोन नहीं आता था मैं सिर्फ फोन को देखा करती थी ,
और उस समय अगर मंझली , छुटकी किसी मेरी बहन का फ़ोन आ गया तो इतना गुस्सा लगता था , इतना गुस्सा लगता था ,.
मैं बस झट से फोन काट देती थी।
पर उन्हें भी तो फिर कमरे में वो अकेले नहीं होते थे , कभी बाथरूम में जा के , एक रूम पार्टनर भी था ,.
जेठानी और सास मेरी दोनों , मुझे चिढ़ाती थीं ,
इतनी रात नहीं सोई होगी न सो ले जब तक वो नहीं है , एक बार आ गया न तो फिर ,.
उस समय जागने का ओवरटाइम और अब सोने का ओवरटाइम
पर नींद आये तब न , और मैं भी चाहती थी सोना ,
कम से कम सोने में , .
जैसे जिस दिन से मैं इस घर में आयी उन्होंने कोई दिन , रात नागा नहीं किया उसी तरह सपने में भी कोई दिन नहीं , .
सोते ही वो जैसे मौका देख रहे हों और फिर चालू
उनके जाते ही मेरी आंटी आ गयी , वो वही पांच दिन वाली ,
मैं यह भी कह के मन को दिलासा दिलाती , की वो होते तो भी तो बिचारे का उपवास ही होता ,
लेकिन साथ साथ बस मन करता की वो मुझे कस के दबोच लें , उनकी बाहों में भी भले घंटे आधे घंटे की सही नींद बहुत मस्त आती थी ,
और उस दिन शनिवार था , आंटी जी चली गयी ,
मैं बाल धोकर नहायी , कोई भी शादी शुदा ,
या जिसने भी एक बार भी मजा लिया है वो जानती है जिस दिन आंटी जी जाती है गुलाबो में कितनी जोर से खुजली मचती है ,
मन करता है , कुछ भी बस कुछ भी ,
लेकिन मैं दोनों जाँघों को कस के दबोचे , .
मेरी जेठानी मेरी हालत समझ रही थीं , हलके हलके मुस्करा रही थीं , पर
और मैंने तय किया था की उसकी खुजली अगर दूर होगी तो बस मूसलचंद से ,.
पर मूसलचंद तो हजार किलोमीटर दूर पता नहीं नहीं क्या क्या ट्रेनिंग कर रहे थे , और यहाँ ओखल की हालत खराब , .
और चिढ़ाने वाले ,
उस दिन गुड्डी भी दिन में आगयी थी वही उनकी ममेरी बहन , एलवल वाली , .
मुंडेर पर कोई कौवा मुआ पता नहीं कहाँ से ,
कांव कांव
और वो पीछे पड़ गयी ,
" भाभी , इस कौवे को दूध भात खिलाइये , कोई मेसेज ले आया है , लगता है कोई आने वाला है "
आने वाला तो हजार किलोमीटर दूर , . मैं बस मुस्करा के रह गयी।
कोई और दिन होता तो उसे दस सुनाती ,
लेकिन मन तो मेरा भी यही कर रहा था ,
पर
पर