Episode 24
रबड़ी
रबड़ी उनको पसंद नहीं थी।
सिर्फ नापंसद नहीं थी , बल्कि सख्त नापसंद , मैंने देखा था रिसेप्शन वाले दिन , उनकी इमरती की प्लेट में किसी ने जरा सा एक आधी चमच रबड़ी डाल दी ,
बस प्लेट उन्होंने जस की तस छोड़ दी।
मैं फ्रिज के सामने खड़ी देख रही थी , एक बड़े से बाउल में रबड़ी रखी थी , एक पाँव से ज्यादा ही थी।
पांच सौ ग्राम आयी थी , सासू जी ने थोड़ी सी ही खायी थी बाकी सब बची थी।
क्या करूँ , कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
फिर मैंने तय कर लिया ,
कोमल. अब ये लड़का क्या पसंद करता है क्या नापसंद , उसको नहीं तय करना है , ये कोमल तय करेगी।
मैं मुस्करायी ,
उनकी नो नो वाली पूरी लिस्ट मेरे दिमाग में घूम गयी।
बस मैंने ड्राई फ्रूट वाले डिब्बे खोले , और कतरे हुए काजू , बादाम , पिस्ता, केसर ,.
और तभी मुझे एक और डिब्बा दिख गया बड़ा छोटा सा और मेरे चेहरे पर हंसी दौड़ गयी , मंझली ननद ने उस डिब्बे का राज बताया था ,
जो रोज रात को सुहाग रात के पहले दिन से हमारे कमरे में दूध रखा जाता था , उसमें ये ,.
पता नहीं क्या क्या हर्ब्स थीं , . शिलाजीत , अस्तावर , .
मंझली ननद ने बताया तो हम दोनों हँसते हुए लोट पोट हो गए
' शक्तिवर्धक , वीर्यवर्धक , कामोत्तेजक , मदन चूर्ण '
मैंने एक मिटटी का बड़ा सा सकोरा उठाया और पहले सबसे नीचे वही उसी डिब्बे से ,
ढेर सारी , और फिर बाउल से रबड़ी , और उसके ऊपर कतरे काजू बादाम , केसर , पिस्ता
और फिर उसी हर्ब वाले डिब्बे से और ढेर सारा छिड़क दिया , .
मैंने बस एक सावधानी बरती , एक अल्युमिनियम फ्वायल से उसे कवर कर लिया ,
फिर वो दूध वाला ग्लास और मिटटी का रबड़ी से भरा सकोरा लेकर दबे पांव ऊपर कमरे में ,.
कमरे में घुसते ही पहले मैंने ट्रे अंदर मेज पर रखा और दरवाजा बंद कर लिया।
बेताब , बेसबरा , उनका चेहरा एकदम , . . भुकरा बोले , पूरे आठ मिनट हो गए हैं।
बस अब मैं नहीं कहीं जाउंगी पक्का ,
और दूध का ग्लास उनके मुंह पर लगा दिया ,
लेकिन वो भी , . तुम भी पियो ,.
आधा ग्लास दूध , उसमें भी , . मैंने पीया थोड़ा सा और फिर सीधे चुम्मी से उनके मुंह में और बाकी ग्लास भी।
" सकोरे में क्या है "
लगता है उनकी छठी इन्द्रिय जग गयी थी।
" कुछ भी हो तुमसे मतलब , . मेरे उसके लिए है , तुम चुप रहो ,. और सीधे से लेट जाओ , आँखे बंद। "
अच्छे बच्चे की तरह वो लेट गए , और मुंह भी खोल दिया , आँख बंद
नाइटी तो मेरी उनको दूध पिलाते ही निकल गयी थी ,
बस मैंने एक निप अपना उनके खुले मुंह में डाल दिया ,
यही तो वो चाहते थे , .
' न हिलना न आँख खोलना "
मैंने उन्हें चेताया , वरना
सर हिला के उन्होंने एकदम मेरी शर्त मानने की हामी भरी ,
बस , . मैंने सकोरे में से रबड़ी , खूब गाढ़ी थी , . अपने दूसरे उभार पर अच्छी तरह , निपल से लेकर ऊपर तक ,. .
" लो अब ये वाला लो ,'
और एक निप निकाल के रबड़ी से लिपडा लिथड़ा अपना उभार सीधे उनके मुंह में
और अबकी मैंने पूरी ताकत से , सिर्फ निप्स ही नहीं आधे से ज्यादा बूब्स भी उनके मुंह में, अब वो सपड़ सपड़ चाट रहे थे ,
आधे से ज्यादा मेरा मस्त उभार उनके मुंह में ठूंसा हुआ था ,
एकदम उसी तरह जिस तरह से वो अपने मूसलचंद को मेरी गुलाबो में पूरी ताकत से ठेलते थे , उसी तरह पूरी ताकत से मैंने भी ठेल रखा था।
खूब गाढ़ी थक्केदार रबड़ी मेरे जोबन से लिपटी , अब मेरी चूँची से सीधे उनके मुंह में ,
उनका मुंह तो बंद था , पर मेरा मुंह तो खुला था , बस मैंने सीधे उनके कान के पास ले जाकर ,
जिस दिन छत पर मैंने खुल कर गारी गायी थी
खास तौर से उनकी ममेरी बहन , एलवल वाली , गुड्डी का नाम लेकर ,
उन गारी गानों का असर मैं देख चुकी थी , बस , मैं चालू हो गयी।
गुड्डी --- गारी
खास तौर से उनकी ममेरी बहन , एलवल वाली , गुड्डी का नाम लेकर , उन गारी गानों का असर मैं देख चुकी थी , बस , मैं चालू हो गयी।
चलो देख आयीं , आजमगढ़ का जीजी आई सी , चलो देख आयीं आजमगढ़ का जी जी आई सी ,
जहाँ पढ़े हमारे सैयां की बहना , जहाँ पढ़ें हमारी ननदी छिनार , . अरे गुड्डी छिनार
अरे गुड्डी स्साली , न पढ़ें में तेज , न पढ़ावे में तेज ,
अरे गुड्डी स्साली , न पढ़ें में तेज , न पढ़ावे में तेज ,
अरे गुड्डी छिनार , नौ नौ लौंडे फँसावे में तेज ,
हमरे सैयां से चुदवावे में तेज ,
चलो देख आयीं , आजमगढ़ का जीजी आई सी , चलो देख आयीं आजमगढ़ का जी जी आई सी ,
जहाँ पढ़े हमारे सैयां की बहना , जहाँ पढ़ें हमारी ननदी छिनार , . अरे गुड्डी छिनार
अरे गुड्डी छिनार, हमरे सैंया क लौंड़ा घोंटे में तेज ,
अपने भैया से चोदवावे में तेज ,
जब तक वो मेरे एक जोबन से रबड़ी सपड़ सपड़ चाट रहे थे , मैंने बाकी रबड़ी अपने दूसरे उभार पर अच्छी तरह , .
और कुछ देर बाद मैंने एक निकाल कर दूसरा उभार उनके मुंह में ठेल दिया और साथ में छेड़ा भी ,
" अरे नन्दोई खाएं वो भी बिना गाली के , कैसे होता ,. . "
" मैं नन्दोई , कैसे "
उनके मुंह से निकला पर आगे कुछ बोलने के पहले , मैंने अपना दूसरा जोबन उनके मुंह में ठेल दिया ,
और एक बार फिर वो रबड़ी सपड़ सपड़ मेरे जोबन पर और उनकी बात का मैंने जवाब दिया
" आखिर मेरी छुटकी ननदिया पर चढ़ोगे तो नन्दोई ही होंगे , . "
और अपनी बात की ताकीद के लिए उनके मोटे खूंटे को मुठियाने लगी ,
और जैसे मूसलचंद से पूछ रही हूँ , बोली ,
" बोल फाड़ोगे न मेरी ननद की कोरी कच्ची बुरिया , बहुत चुदवासी हो रही है वो , . "
उन्होंने जवाब अपने अंदाज में दिया , कस कस के अब वो मेरे जोबन को चूस रहे थे चाट रहे थे ,
मूसलचंद मेरी मुट्ठी में एकदम कड़क , . जैसे मौका मिलते ही मेरी नन्द को , गुड्डी रानी को चोद देंगे ,
और मैं चालू हो गयी
चंदा छिप जाय बीच बदरियन में , चंदा छिप जाय बीच बदरियन में , चंदा छिप जाय
हमारे सैंया क बहिनी घूमे बाजार , अरे गुड्डी छिनारिया घूमे बाजार , करे सोलह सिंगार
अरे गुड्डी छिनारिया घूमे बाजार करे सोलह भतार , छिनरो कहे एको नहीं
चंदा छिप जाय बीच बदरियन में , चंदा छिप जाय बीच बदरियन में ,
अरे गुड्डी छिनारिया घूमे बाजार करे सोलह भतार , छिनरो कहे एको नहीं
दस आगे लगावें , दस पीछे भतार , दस खड़े मुठियावें उनके भतार ,
दस रहरियों में , दस गन्ने के खेत में उनके भतार ,
गारी का असर और वो भी गुड्डी के नाम का जबरदस्त पड़ा , दूने जोश से अब वो रबड़ी चाट रहे थे , मेरे निप्स चूस रहे थे ,
मैं हलके हलके मुठिया रही थी , कभी चूम कभी इयर लोब्स हलके से काट लेती ,
साथ में उनके निप्स भी स्क्रैच कर देती , हलके हलके मैं उनके कान में फुसफुसा रही थी ,
"ऐसे ही मेरी ननदिया की कच्ची अमिया भी चूसना मजे ले ले कर , अरे आराम से चुसवायेगी वो और नहीं तो मैं हूँ न उसका हाथ पैर पकड़ने को। बड़ा मजा आएगा तुझे उन कच्चे टिकोरों को कुतरने में ,
अरे इस उम्र में उसकी जो कस के मिजोगे मसलोगे , मजे ले ले के चुसोगे न उसकी , देखना जबरदस्त जोबन आएगा उसका
वो भी बहुत जल्द, अरे चूँचिया उठान का मजा ही अलग है ,
हाँ हाँ और कस के चाटो , बोला न दिलवाऊंगी उसकी , सिर्फ छोटी छोटी चूँचियाँ ही नहीं उसकी कच्ची गुलाबी चूत भी , . "
लंड उनका बस पागल नहीं हुआ , एकदम कड़क , सुपाड़ा पूरा फूला , एकदम मोटा कड़क , .
और मैंने उनकी ममेरी बहन का नाम लेकर एक और गारी चालू कर दी ,
अरे हमारे वीर बलिया ,
अरे लीपी पोती ओखरिया , अरे लीपी पोती ओखरिया ,
अरे उसपे राखी पेटरिया , अरे उसपे राखी पेटरिया ,
पेटरी उतारे गयीं हमरे सैयां जी क बहिनी , अरे
पेटरी उतारे गयीं गुड्डी छीनरिया , भोंसड़ी में गड़ गयी लकडिया
अरे हमारे वीर बलिया ,
अरे लीपी पोती ओखरिया , अरे लीपी पोती ओखरिया ,
अरे उसपे राखी पेटरिया , अरे उसपे राखी पेटरिया ,
पेटरी उतारे गयीं हमरे सैयां जी क बहिनी , अरे
पेटरी उतारे गयीं गुड्डी स्साली , गंडिया में गड़ गयी लकडिया
दौड़ा दौड़ा हो हमरे आनंद भैया , हमरे छोटे भैया ,
भोंसड़ी से खींचा लकडिया , अरे मुंहवा से खींचा लकडिया ,
अरे गांडियो से खींचा लकडिया ,
दो दो बार मेरे दोनों उभारों से , सकोरे की आधी से ज्यादा रबड़ी मेरे साजन के पेट में चली गयी थी।
मैंने अपनी ब्रा उनके आँखों पर कस के बांध रखी थी , लेकिन स्वाद तो ,.
मैं अब बिस्तर पर लेटी थी , वो मेरे ऊपर , जब तक वो एक जो,
बन से रबड़ी सपड़ सपड़ चाट कर साफ करते मैं दूसरे उभार पर ,. और खुद उनका मुंह खींच कर उसके ऊपर ,.
अब कसोरे में बस थोड़ी सी रबड़ी बची थी लेकिन तब भी एक कटोरी से ज्यादा ही होगी।
मुझे एक शरारत सूझी , अभी थोड़ी देर पहले ही तो उन्होंने मेरी कटोरी से होनी मलाई सफाचट की थी , और वो भी एक कटोरी से कम क्या रही होगी , बस
मैंने बची खुची रबड़ी अब अपनी खूब फैली , खुली जांघों के बीच , सीधे मेरी चुनमुनिया पर , .
और हाथ से अच्छी तरह लथेड़ भी दिया , गुलाबो के दोनों होंठ फैला कर , कुछ उसके अंदर भी
और उन्हें जबरदस्ती ठेल कर , सीधे उनके होंठ मेरी सहेली के ऊपर , . और हाँ अब मैंने उनकी आँखों के ऊपर बंधी अपनी ब्रा खोल दी , . . मैं सरक कर एकदम पलंग के किनारे पर थी और वो फर्श पर बैठे , . उनके होंठ मेरी चिकनी चमेली पर से रबड़ी ,
चूत चटोरे तो वो जबरदस्त थे ही , अब थोड़ी देर में मेरी हालत खराब , चूतड़ पटक रही थी सिसक रही थी
हाँ अब उनकी आँखे भी खुली थीं , कमरे में रौशनी भी थी , खिड़कियां बंद भले ही थी पर , परदे सारे खुले और उस दिन पूनम की रात थी , .
और वो खुली आँखों से देखते , मेरी चूत पर लिथड़ी चुपड़ी रबड़ी चाट रहे थे , और मैं चूतड़ उचका उचका के , चटवा रही थी , कस के मैंने उनके सर को पकड़ आकर अपनी बुर पर दबा रखा था , जीभ से उन्होंने मेरी दोनों फांको को खोला और उसके अंदर की भी रबड़ी , जीभ अंदर घुसेड़ कर
" हाँ ऐसे ही चाटो न मेरे राजा , जल्द ही अपनी ननद की भी इसी बिस्तर पर दिलवाऊंगी , . बोल न चोदेगा न गुड्डी को हचक हचक के , . "
बस मेरा इतना कहना काफी था , उन्होंने मेरी दोनों टांगों को उठा के अपने कंधे पर रखा , सारी तकिया कुशन मेरे चूतड़ के नीचे , मैं पलंग के किनारे लेटी और वो फर्श पर खड़े , . मेरी जाँघे खूब फैली ,
उईईईईई ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह उईईईईई नहीं , . . पहले धक्के में ही मेरी जोर की चीख निकल गयी।
" हाँ ऐसे ही चाटो न मेरे राजा , जल्द ही अपनी ननद की भी इसी बिस्तर पर दिलवाऊंगी , . बोल न चोदेगा न गुड्डी को हचक हचक के , . "
बस मेरा इतना कहना काफी था , उन्होंने मेरी दोनों टांगों को उठा के अपने कंधे पर रखा , सारी तकिया कुशन मेरे चूतड़ के नीचे , मैं पलंग के किनारे लेटी और वो फर्श पर खड़े , . मेरी जाँघे खूब फैली ,
उईईईईई ओह्ह्ह्हह्ह्ह्ह उईईईईई नहीं , . . पहले धक्के में ही मेरी जोर की चीख निकल गयी।
अगले धक्के में उनका सुपाड़ा सीधे मेरी बच्चेदानी पर , और मैं चीख रही थी सिसक रही थी , दोनों हाथों से चादर को कस के पकडे थी ,
और इस समय सब कुछ भूल कर वो सिर्फ मुझे चोद रहे थे , न उनके हाथ मेरे जोबन पर , न कुछ चुम्मा बस सिर्फ धकापेल चुदाई ,
कुछ देर में मैं भी उनका साथ दे रही नीचे से अपने नितम्बो को उचका उचका के ,
कभी चीख रही थी कभी सिसक रही थी , और पंद्रह बीस मिनट तक लगातार ,
मैं अब तक समझ गयी थी दूसरी बार ये बहुत अधिक टाइम लेते हैं ,
और उस तूफ़ान मेल चुदाई का असर हुआ की मैं झड़ने के कगार पर पहुँच गयी ,
पर बजाय धक्के धीमे करने के धक्का उनका , सुपाड़ा सीधे मेरी बच्चेदानी पर
और फिर आलमोस्ट पूरा निकाल कर के , एक तो वो मोटा भी कितना , . बीयर कैन सा मोटा ,
मेरी कलाई से भी ज्यादा मोटा , रगड़ता दरेरता फाड़ता चूत में घुसता तो जान निकल जाती और लम्बा भी पूरा बांस .
थोड़ी देर में मैं झड़ रही थी और उसके बाद भी उनका सुपाड़ा बच्चेदानी पर बार बार
मैं रुकती फिर झड़ना शुरू कर देती।
जब मैं झड़ झड़ के थेथर हो गयी तो वो रुके , और उन्होंने अपना खूंटा बाहर निकाल लिया ,
( ये कोई पहली बार नहीं था की एक राउंड में ही वो मेरी पोज़ बदल बदल कर चुदाई करें ) ,
और मैं उन्हें पकड़ कर खड़ी हुयी , उनकी ओर पीठ कर के , .
मेरी निगाह एक बार फिर रबड़ी वाले सकोरे पर पड़ी , अभी भी उसमें थोड़ी सी रबड़ी दीवालों से लगी बची थी ,
मुझे एक शरारत सूझी , . उन्हें दिखाते हुए सब रबड़ी मैंने अपनी उँगलियों में लपेटी , और एक बार फिर से अपनी गुलाबो पर , .
यही नहीं , रबड़ी में लिथड़ी एक ऊँगली मैंने अपनी कसी चूत में पूरी ताकत से ठेल दी कर चार पांच बार पूरी तरह अंदर बाहर करने के बाद , गोल घुमाते , उन्हें दिखाते ललचाते निकाला , और सीधे उनके होंठों के पास , .
खुद मुंह खोल कर के मेरी चूत से निकली , रबड़ी से लिथड़ी , अपने मुंह में ले कर मस्ती से चूसने लगे , .
और जब उन्होंने ऊँगली बाहर निकाली , तो एकदम साफ़ चिक्क्न , .
मैंने मुस्कराते हुए उनका कंधा दबा दिया और इशारा वो अच्छी तरह समझ गए ,
बस घुटनों के बल बैठ कर , एक बार फिर उनके होंठ मेरे निचले होंठों से चपक गए ,
सच में क्या मस्त चूसते चाटते थे वो , मेरी दोनों फांको को अपने होंठों के बीच दबोच कर जब वो चूसते थे तो बस जान नहीं निकलती थी , . और ऊपर से उनकी जीभ भी न , कभी मेरी प्रेम गली के अंदर घुस कर अंदर का हाल लेती , जैसे उनका खूंटा जब अंदर घुसता था , देह एक गिनगीना जाती थी , .
एकदम उसी तरह ,. उनकी जीभ भी लंड से कम किसी तरह नहीं थी , और ऊपर से जब वो क्लिट पर फ्लिक करते थे , .
और अभी सब वो एक साथ कर रहे थे , .
मेरी उँगलियों में अभी कुछ रबड़ी बची थी , बस मैंने ,.
अपने पिछवाड़े वाले छेद के चारो ओर और कुछ सीधे उस गोल छेद पर भी , अच्छी तरह लपेट दिया ,
मेरे कुछ कहने की जरुरत नहीं थी , आज ये लड़का एकदम पागल था ,
बस लम्बे छेद से उनकी जीभ सरक कर गोल छेद के चारो ओर , जितनी रबड़ी मेरे पिछवाड़े लगी थी सब चाट चाट कर , .
और उसके बाद जीभ की टिप गोल छेद के अंदर ,
और साथ में दो ऊँगली मेरी गुलाबो के अंदर , खचाखच , खचाखच , सटासट , सटासट ,
अगवाड़े पिछवाड़े दोनों ओर , .
एक ओर जीभ
और दूसरी ओर उनकी दो उँगलियाँ , .
और जैसे इतनी मस्ती काफी नहीं थी , उनका अंगूठा मेरे क्लिट के ऊपर कस कस के रगड़ने लगा ,
मेरा बस मन कर रहा था , ये लड़का अब , .
अब बस अपना मोटा लंड मेरी चूत के अंदर पेल दे , हचक हचक के चोदे , .
और वो लड़का उसे बिना मेरे कुछ कहे मेरे दिल की हर बात मालूम पड़ जाती थी , आखिर मेरा दिल उसी के पास तो था ,. .
और वो मूसलचंद झड़ा भी तो नहीं था एकदम बौराया , उन्होंने अपनी मुट्ठी में उसे पकड़ा ( वो मोटा मेरी मुट्ठी में तो आता नहीं था ) और म
मुझे लगा अब पेलेंगे , कस कर ठेलेंगे ,. . लेकिन वो बदमाश आज मुझे सिर्फ तंग करने के मूड में था , .
बस वो मोटा सुपाड़ा मेरी योनि के मुहाने पर रगड़ रहा था ,
मेरी चूत में आग लगी थी , पर, . . वो आज बजाय आग बुझाने के आग में घी डालने में तुला हुआ था ,
मेरी देह गिनगीना रही थी , मस्ती से आँखे बंद हो रही थीं , मैं खुद अपनी पीछे कर के अपनी गीली हो रही बिलिया उनके मोटे खूंटे पर रगड़ रही थी ,
बस मन कर रहा था ,. वो नालायक किसी तरह अंदर घुसेड़ दे , ,,,, मैंने खुद अपने हाथों से अपनी दोनों फांको को फैलाया पर ,
अबकी उस शैतान ने सुपाड़े को हलके से मेरे क्लिट पर रगड़ दिया ,.
मेरी पूरी देह में आग लग गयी , मुझसे नहीं रहा गया , मैंने अपनी गर्दन पीछे मोड़ी और बड़ी बड़ी आँखों से इसरार करते खुद बोली ,
" हे डालो न ,. . "
पर वो आज बदमाश , जितना मैंने उसे छेड़ा था सबका सूद सहित बदला लेने पर तुला था , हलके से मुस्कराकर उसने मुझे चूम लिया और पूछा ,
" क्या , . डालूं ".