Episode 25


मैं समझ गयी आज ये मुझे बुलवा के छोड़ेगा , और ऐसी आग लगी थी ,

कुछ देर पहले जो नीचे बैठ कर कस कस के जो उसने चूसा था और अब जिस तरह से वो रगड़ रहा था , अपना सुपाड़ा ,

मैं हिचकचायी पर हलके से बोली ,

" यही ,. ये ,. अपना लंड ,. "

एक हाथ से उसने कस के मेरे जोबन दबोच लिए , और दूसरे हाथ में तो मोटा मूसल वो पकड़ के रगड़ रहा था ,. सीधे मेरी बिल पे ,

" कहाँ " . उसने फिर पूछा।

मेरे तो मन में आये उसकी माँ बहन को दस दस मोटी मोटी गाली सुनाऊँ , पर जिस तरह से एक बार उसने कस के रगड़ा , मैं बोल पड़ी ,

" मेरी चूत में "

बस , क्या मस्त धक्का मारा उसने , इतनी जोर की चीखी निकली मेरी जरूर घर में नीचे तक पहुंची होगी , आधे से ज्यादा मूसल अंदर था ,

दरेरते , रगड़ते , फाड़ते

मन भी करता था , दर्द से जान भी निकलती थी , .

मैं खड़ी तो रही पर अपना एक घुटना मोड़ कर मैंने अब पलग पर रख लिया ,

और मेरी जाँघे थोड़ी और खुल गयीं , बस उसने एक करारा धक्का और मारा , साथ में मेरे जोबन की रगड़ाई मसलाई चालू हो गयी ,

तीसरे धक्के के साथ उसका मोटा सुपाड़ा सीधे मेरी बच्चेदानी पर , क्या जोर का धक्का मारा था , खूब जोर की चीख निकली मेरी

उईईई उईईईईई उईईई नहीं नहीं ओह्ह्ह जान निकल गयी ,

पर उस पर कुछ भी फर्क नहीं पड़ा , पड़ता भी कैसे , मैंने तो खुद ही अपनी कसम उसे धरायी थी , पहली रात में ही

" चाहे मैं चिल्लाऊं , रोऊँ , खून खच्चर हो जाऊं , भले ही मरे दर्द के मैं बेहोश हो जाऊं , . तुम्हे मेरी कसम , मुझे ये पूरा चाहिए , चाहिए तो चाहिए , एकदम यहाँ तक , "

और मैंने उस मोटे मूसल के बेस तक हाथ से बता दिया और तीन तिरबाचा भरवाया , अपनी तीन बार कसम खिलवाई थी ,

और अब तो उसे ये मेरा राज मालूम हो गया था की मुझे जितना दर्द होता है , उतना ही ज्यादा मज्जा आता है ,

पहली बार मैं खड़ी खड़ी चुदवा रही थी , लेकिन उसने जिस तरह से मुझे पकड़ रखा था , मेरा सारा बोझ उसके हाथों में , उसकी देह पर ,

खड़ी खड़ी

पहली बार मैं खड़ी खड़ी चुदवा रही थी , लेकिन उसने जिस तरह से मुझे पकड़ रखा था , मेरा सारा बोझ उसके हाथों में , उसकी देह पर ,

जिस पर मैंने अपनी पूरी जिंदगी का बोझ डाल दिया था ,

और अब जब लंड पूरी तरह अंदर घुस गया था ,

उनका एक हाथ मेरे जोबन पर और दूसरा मेरी कमर पर , जहाँ से उनकी ऊँगली सरक कर मेरी गुलाबो का हालचाल ले लेता था ,

मेरी गुलाबो खुद सिकुड़ कर उनके खूंटे को दबोच रही थी , जैसे अब बाहर नहीं निकलने देगी ,

मैंने पीछे मुड़ कर उन्हें चूम लिया ,

थोड़ी देर में जिस तरह उन का मूसल मेरे अंदर घुसा था , उनकी जीभ मेरे मुंह में , और मैं कस कस के चूस रही थी ,

इसी स्वाद के लिए तो मैं तरस रही थी हफ्ते भर से ,

ऊपर वाले होंठ में ,

नीचे वाले होंठ में

उन्होंने दोनों हाथों से कस के मुझे पकड़ लिया था और अब हलके हलके धक्के मार रहे थे ,

सच में खड़े खड़े चुदवाने का मजा ही अलग था ,

उनकी तरह मुझे भी डॉगी पोज में मजा बहुत आता था , इसलिए इन्हे चिढ़ाकर , उकसा कर , उनकी बहनों का नाम ले ले कर , .

पर जब वो कुतिया बना के मुझे लेते थे तो बस , मैं उन्हें देख नहीं पाती थी ,

अभी तो मैं मुड़ के न सिर्फ उन्हें देख रही थी बल्कि कस के के उन्हें चूम रही थी ,

अपने मुंह में घुसी उनकी जीभ कस के चूस रही थी ,

मेरा एक हाथ भी , गुलाबो पर , . और उसमें अंदर बाहर हो रहे मूसल को छू देता था ,

में अपनी देह उनकी देह पर रगड़ रही थी

मैं पलंग के सिरहाने खड़ी थी , एक हाथ से सिरहाना पकड़े , उसका सपोर्ट लिए ,

मैंने एक पैर मोड़ कर , घुटने के बल , पलंग पर रख दिया था ,

और एक हाथ उस लड़के की गर्दन पर , . . जो बहुत बहुत बदमाश था , . और उतना ही प्यारा भी ,.

धक्के लगाने का काम अगर उसका था

तो मुड़ कर चुम्मा लेने का मेरा , कभी उसकी जीभ मेरे मुंह में , तो कभी मेरी जीभ उसके मुंह में , कभी मैं उसके होंठों को जीभ को चूसती ,

तो कभी वो ,

इस चुम्मा चाटी के साथ जो उसकी फेवरिट चीज़ थी , और जो मेरी देह में भी आग लगा देती थी ,

वो काम उसका एक हाथ कर रहा था ,

जोबन मर्दन ,

कभी वो हलके हलके सहलाते तो कभी अचानक पूरी ताकत से रगड़ने मसलने लगते , तो कभी अंगूठे से निपल फ्लिक करते ,

और हाँ , धक्के रुकने का नाम नहीं ले रहे थे ,

पहली बार मैं खड़े हो कर चुदवा रही थी

पहली बार वो खड़े हो कर चोद रहे थे ,

एक नया मजा ,

लेकिन साथ में वो दुष्ट मुझे आज झड़ने नहीं दे रहा था , . एक बार तो मैं पहले ही झड़ गयी थी ,

मुझे याद है मायके में एक बड़ी उम्र की भाभी थीं , वो , . उन्होंने एक बात बतायी थी , .

१०० में दो चार लड़कियां ही होंगी , जिनका मर्द उन्हें झाड़ने के बाद ही झड़ता होगा , वरना तो ,.

तो लड़की को झूठ मूठ का बहाना बनना पड़ता है , वरना मरद को बुरा लगता है , और अगर कभी मरद ने पहले औरत को झाड़ दिया ,.

तो समझो वो औरत बहुत सौभाग्यशाली है ,

यहाँ तो पहली रात से ही कम से कम तीन बार मैं झड़ जाती तो कहीं उनका नंबर आता और वो भी हर बार हम दोनों साथ

मेरी देह बार बार गिनगीना जाती , १५ मिनट से ऊपर हो गए थे उन्हें खड़े खड़े मुझे चोदते , साथ में मस्त जोबन मर्दन , .

पर जब उन्हें अहसास होता है मैं डिस्चार्ज होने वाली हूँ , वो धक्के और तेज कर देते , पर आखिरी मिनट ,

जब मेरी आँखे मूंदने लगती , देह ढीली पड़ने लगती

वो बदमाश कचकचा के वो कभी मेरी चूँची कचकचा के काट लेते तो कभी गालों पे दांत गड़ा देते , हफ्ते भर तो ये निशान छूटने वाली नहीं थे ,

लेकिन उस समय दर्द के मारे मेरा झड़ना रुक जाता , . ओर

वो जहाँ काटते वही चूम चूम के जैसे मरहम लगा देते , तो कभी चाट के , . पर थोड़ी देर में अगली बार फिर , ठीक उसी जगह दुगुनी जोर से काट लेते ,

फिर तो उस निशान के मिटने का सवाल ही नहीं था ,

और मैं चाहती भी नहीं थी , की ये मीठे मीठे निशान मिटे उनके अगले बार आने तक इन्ही निशानों को देख के ये पल रोज रोज याद आएंगे ,

सासु जी और जेठानी की तो कोई बात नहीं , वो देखेंगी , मुस्कराएंगी , . और मैं शर्म से अपनी निगाहें नीचे कर लूंगी ,

हाँ छेड़ने वाली तो सिर्फ ननदें होती हैं , . और यहाँ सिर्फ वही गुड्डी थी , एलवल वाली।

कुछ देर बाद उन्होंने मुझे पलंग पर ही निहुरा दिया और पीछे से घच्चाघच , सटासट

लेकिन एक पोज में न उनका मन भरता न मेरा , कुछ देर में हम दोनों पलंग पर थे ,

वो मेरे ऊपर , मुझे दुहरा कर ,

क्या क्यों धुनिया धुनाई करेगा , हर बार पूरा खूंटा बाहर निकलता , हर बार उस मोटे सुपाड़े का धक्का मेरी बच्चेदानी पर ,

थोड़ी देर में मैं झड़ने लगेगी , और कस के मैंने उन्हें अपनी बांहों में बाँध लिया ,

साथ में वो भी ,

बड़ी देर तक वो झड़ते , . रुकते , फिर झड़ने लगते , और फिर

हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे चिपके , सटे न वो अलग होना चाहते थे न मैं ,.

और मैं अपने नितम्बों को पूरी ताकत से ऊपर उठाये , जाँघों को फैलाये, उनकी हर बूँद रोप रही थी , जिससे एक बूँद भी बाहर न छलके ,

छलकने का सवाल भी नहीं था ,

उनका मोटा लौंड़ा , किसी सकरी बोतल में घुसे मोटे कॉक की तरह , अंदर धंसा ठूंसा , घुसा, सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से चिपका ,

मैं साजन की , साजन मेरा

थोड़ी देर में मैं झड़ने लगी , और कस के मैंने उन्हें अपनी बांहों में बाँध लिया ,

साथ में वो भी ,

बड़ी देर तक वो झड़ते , . रुकते , फिर झड़ने लगते , और फिर

हम दोनों एक दूसरे की बाँहों में बंधे चिपके , सटे न वो अलग होना चाहते थे न मैं ,.

और मैं अपने नितम्बों को पूरी ताकत से ऊपर उठाये , जाँघों को फैलाये, उनकी हर बूँद रोप रही थी ,

जिससे एक बूँद भी बाहर न छलके ,

छलकने का सवाल भी नहीं था ,

उनका मोटा लौंड़ा , किसी सकरी बोतल में घुसे मोटे कॉक की तरह , अंदर धंसा ठूंसा , घुसा, सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से चिपका , .

और जब धीरे धीरे उन्होंने अपने मूसल को बाहर निकाला , मैंने अपनी चूत को एकदम भींच लिया , जाँघों को भी कस के सिकोड़ लिया ,

जिससे कैसे भी , एक भी बूँद छलक कर बाहर न जाय ,

और फिर , . अब एक बार फिर मैं उनके ऊपर थी ,

सीधे उनके सर के पास , कस के मेरी जांघों ने सँड़सी की तरह उनके सर को दबोच लिया ,

मेरी उँगलियों ने उनके गालों को दबा कर , . गौरेया की तरह उन्होंने चोंच खोल दी ,

और मेरे निचले होंठ , उनके ऊपर के होंठों के बीच ,

और मैंने धीरे धीरे अपने निचले होंठों को ढीला कर दिया ,

बूँद बूँद कर मलाई ,. . बल्कि रबड़ी मलाई ,.

थोड़ी देर पहले ही तो मैंने अंदर बाहर सब रबड़ी वहां लिथड़ी थी और सपड़ सपड़ सब उन्होंने चाटा था ,

और अब जो भी बची खुची थी , उन्ही की मलाई से मिलकर रबड़ी मलाई ,

"मलाई तो तुम्हे कई बार खिलाया है , रबड़ी भी अभी चटवाया है , अब ज़रा ये रबड़ी मलाई का स्पेशल स्वाद भी चख लो , "

मैंने उन्हें चिढ़ाया ,

और जैसे कई मेच्योर मर्द नयी लौंडिया के मुंह में कस कस मोटा लंड पेलता है , बस उसी तरह पूरी ताकत से झुक कर उनके सर को दोनों हाथों से पकड़ कर , मैं जोर जोर से धक्के मार रही थी ,

और उन्होंने भी कस के अपनी जीभ मेरी बुर के अंदर पेल दी , फिर तो अंदर भी जो बचा था , एक एक बूँद ,

और जो जीभ निकली , तो बाहर मेरी गुलाबो के दोनों फांकों पर सपड़ सपड़ सारी रबड़ी मलाई उन्होंने चाट ली।

मैंने भी जोर जोर से अपनी बुर उनके होंठों पर रगड़ना शुरू किया और साथ में छेड़ना भी ,

" मजा आ रहा है न चाटने में मेरी ननद के ,

गुड्डी रानी के यार , .

अरे सोच उसकी भी ऐसे ही चटवाउंगी ,

अभी तो उसकी कच्ची नयी नयी चूत पे झांटे भी नहीं ठीक से आयी हैं ,

एकदम माखन मलाई है गुड्डी छिनार की ,

बस ऐसे ही सपड़ सपड़ उसकी भी चाटना , फाड़ने से पहले , कच्ची अमिया और कच्ची चूत दोनों का मजा , है न ,. "

जैसे उन्हें करेंट लग गया हो चूसने चाटने की रफ्तार दस गुना बढ़ गयी ,

अपने दोनों होंठों के बीच मेरी चूत के दोनों होंठों को दबा दबा के कस कस के वो चूसने लगे ,

मैं समझ रही थी , . ये असर मेरी चूत का नहीं , मेरी उस कच्ची उम्र वाली ननद का है , . और कन्फर्म करने के लिए मैंने सर मुड़ा के देखा तो

१०० % मेरा शक सही था , . झंडा एकदम खड़ा , तन्नाया ,

तो इसका मतलब इस लड़के के मन में कच्चे टिकोरों को कुतरने का शौक है ,.

मैंने हाथ बढ़ाकर उनके मोटे तन्नाए खूंटे को पकड़ लिया और लगी कस कस के रगड़ने मसलने , और जोर जोर से चिढ़ाने लगी

"एकदम इसी तरह से पहले चूसना चाटना , और जब गरमा जाए तो बस हचक के फाड़ देना एक ही धक्के में , दिलवाऊंगी मैं पक्का ,

मेरी सबसे छोटी ननद जो है। "

वो अब जिस तरह से चाट रहे थे उसी ताकत से मैं भी अपनी चूत उनके मुंह पर रगड़ रही थी ,

लेकिन मुझे लगा की अब बस थोड़ी देर में मेरी हालत खराब हो जायेगी , और इस लिए ,.

उसी समय खिड़की बंद थी लेकिन पर्दा खुला था शरद की चांदनी एकदम छलक कर कमरे में फैली हुयी थी , लगता है हवा का जोर , .

कोई खिड़की हलके से खुल गयी , और जनवरी की रात की ठंडी हवा

अब मैं एकदम उनके पास सटी चिपटी लेटी थी और हम दोनों एक ही रजाई ओढ़े , दुबके

शादी के पहले लड़कियों को ज्ञान देने वालों की कमी नहीं रहती।

सहेलियां , भाभियाँ, चाची, मौसी , बुआ ,. कईयों ने बताया ,

अरे मर्दों को , बस बोलते बहुत हैं बस दो चार मिनट में फुस्स , और फिर औरत की ओर पीठ कर के ऐसे सो जाएंगे जैसे जानते ही न हों ,

मैं मुंह बंद किये सुनती रहती थी ,

दोनों बातों में ये एकदम अलग , जबतक मेरी चूल ढीली न हो जाए ,

एकदम चुद चुद के मैं थेथर न हो जाऊं , आधे पौन घंटे तक उसके बाद ही ,.

और पीठ तो आज तक उन्होंने नहीं की ,

हाँ मैं जरूर उनकी ओर पीठ कर लेती थी ,

और ये उनको लिए भी , .

बस पीछे से कस के वो मुझे दबोच लेते थे , बल्कि मेरेजोबन को , उनका एक हाथ सोते समय भी हमेशा मेरे उभारो पर ही रहता था ,

और वो दुष्ट बदमाश मूसलचंद , मेरे पिछवाड़े धंसा रहता ,

सोते हुए भी एकदम चिपका रहता , . पहली रात से साथ सोते जागते लेटते, .

और रात में क्या दिन में भी , बिस्तर पर पहुँचते ही , . कोई कपडे की दीवार हम दोनों के बीच नहीं रहती , .

और आज भी वही ,

सच बोलूं , तो जित्ता मजा उनसे चुदवाने में आता था , उससे कम मजा उनसे चिपक के , उनके सीने में दुबक के सोने में नहीं आता था ,

बात उन्होंने शुरू की , और बात क्या वही बात जो मैं पहले दिन से वो बात करते थे , .

" मुझे ये लड़की चाहिए ,. . "

मैं उनसे कह कह के थक गयी थी , . मिल तो गयी ,.

लेकिन जो प्यास भूख उनके मन में मैंने पहले दिन देखी थी ,

अपनी सहेली की शादी में ,. जब मैं छत पर सहेलियों के साथ खड़ी थी , और ये बरात के लड़कों के साथ , .

जो , जैसे उन्होंने देखा था ,. और ऊपर से मेरा बीड़ा सीधे उनके ऊपर लगा था ,. .

सारी बारात , सभी लोग जयमाला के लिए चले गए , वहां पर सन्नाटा , लेकिन , ये लड़का एकदम जैसे जमींन से चिपका , . सिर्फ मुझे देख रहा था ,.

और मैं उन्हें ही क्यों कहूं , मैं भी , छत से मेरी सारी सहेलियां उतर गयी थीं , पर मैं वहीँ खड़ी की खड़ी इन्हे देखती ,. वापस लौट के मेरी एक कजिन आयी मुझे बुलाने

वही प्यास आज तक , .

उनकी उँगलियाँ मेरे निपल्स पर थीं ,

मैंने खींच कर बस उन्हें चूम लिया , .

और जैसे उन्हें मेरा जवाब मिल गया , फिर मैं उनकी ओर मुड़ गयी ,

उनसे उनकी ट्रेनिंग के बारे में पूछने ,

रात बाकी . बात बाकी

फिर मैं उनकी ओर मुड़ गयी ,

उनसे उनकी ट्रेनिंग के बारे में पूछने ,

पांच हफ्ते की ट्रेनिंग थी , . मैं गाँव वाली , मुझे इतना अंदाज था , फागुन शुरू होने के १५ -२० दिन पहले ख़तम हो जायेगी।

और हर हफ्ते ये अगर इसी तरह आते रहे तो किसी तरह टाइम कट जायेगा।

लेकिन उन्होंने जोर का झटका जोर से दिया ,

" ट्रेनिंग हो सकता है , एकाध हफ्ता बढ़ जाए , असल में तीन दिन के लिए जेनेवा का एक प्रोग्राम बन गया है , सीनियर मैनेजमेन्ट से मिलने के लिए , . लेकिन घबड़ा मत , वो भी होगा तो वीक के बीच में ही , . इसलिए वीकेंड में वो आ ही जाएंगे , . "

फिर उन्होंने कई बातें बतायीं लेकिन ये भी जोड़ दिया की कुछ अभी पक्का नहीं है , ट्रेनिंग के तीसरे हफ्ते तक पक्का होगा , .

एक तो पोस्टिंग कब से और कहाँ होगी ,

दूसरी बात ये अच्छी थी की ट्रेनिंग ख़तम होने और पोस्टिंग के बीच एक से डेढ़ महीने का टाइम मिलेगा।

ट्रेनिंग में उन लोगों की बहुत रगड़ाई होती है , रोज रात में भी करने के लिए काम और वीकेंड में भी कम से कम सात आठ घण्टे का काम ,
रिपोर्ट , .

मैं चौक उठी , लेकिन लेकिन आप तो यहाँ , तो क्या कल दिन में , कैसे ,.

उन्होंने मुझे दबोच लिया और कस के चूमते बोले , यहाँ तो बस यही एक काम है , फिर मुझे दबोच कर समझाया ,

" यार तू भी न , कल रस्ते में , बनारस पहुँचने में ढाई घंटा लगेगा , फिर ढाई घण्टा की फ्लाइट , एयरपोर्ट से ट्रेनिंग सेंटर दो घंटे , बस सात घंटे हो गए न , वहां पहुँच के आधे घंटे में मेल कर दूंगा , सिंपल "

ये लड़का भी न कितना लालची है , मेरे लिए ,. मैंने सोचा ,

और उनके चुम्मे के जवाब में मैंने भी चुम्मा दिया

और कुछ अपना हाल चाल सुनाती उस के पहले उन के दिल की बात उन्होंने कह दी।

" यार दिन का टाइम तो किसी तरह निकल जाता है , पर रात में बहुत मुश्किल होती है , ये ट्रेनिंग भी न ,. "

और मैंने भी ताकीद की , और अपनी हाल चाल बतानी शुरू कर दी ,

सब लोग बहुत ख्याल करते हैं , जेठानी जी , सासु जी , दिन में , . दिन में मैं नीचे ही रहती हूँ , . पिछले हफ्ते दो बार तो गुड्डी भी आयी साथ में उसी दोनों सहेलियां भी , एक दिन मेरा देवर अनुज भी आया था , खूब गप्पें मारी हम लोगों ने , दिन तो किसी तरह कट जाता है , लेकिन रात में , बहुत मुश्किल होती है ,

वो लड़का जो एक जमाने में इतना शर्मीला था , उसे २४ घण्टे लग गए थे सिर्फ , मुझसे मेरा नाम पूछने में , . . और आज मौका देख के , वो एकदम , पूछने लगा, मेरे उभार कस के पकड़ के दबा के ,

" क्यों रात में क्या होता है , किसकी याद आती है "

बेशर्म उससे ज्यादा मैं थी , . और फिर पकड़ने वाली चीज सिर्फ मेरे ही पास थी क्या , मैंने सोते खूंटे को पकड़ लिया , और बोली ,

" इसकी "

सुपाड़ा ढंक गया था , मैंने एक झटके से खोल दिया , और अंगूठे से उसे रगड़ते हुए बोली।
पर दिल की बात मुंह पे आ ही गयी ,

" यार ये ट्रेनिंग किस बात की होती है , तेरी बहुत याद आती है , मैं कह देती हूँ , एकदम नहीं रहा जाता , एक मिनट भी नहीं , बस इसके बाद जहाँ तुम रहोगे वहीँ मैं रहूंगी , अकेले एकदम मन नहीं लगता , "

और कस के उन्हें दबोच के मैं उनके सीने में दुबक गयी ,

उन्होंने कस के मुझे भींच लिया , और बहुत देर तक हम दोनों ऐसे ही लेटे रहे ,

पर वो मुस्टंडा मेरी मुट्ठी में ही फूलने लगा , और उनके हाथ भी मेरे जोबन पर ,.

मैं समझ गयी इस लड़के का मन क्या कर रहा है , . और मन तो मेरा भी कर रहा था , फिर हर बार वही क्यों पहल करे , . बस मैं सरक कर , .

और थोड़ी देर पहले जो मेरी मुट्ठी में था , अब मेरे होंठों के बीच , पहले तो सिर्फ सुपाड़ा , मजे लेके चूसती चुभलाती रही

सच में बहुत मजा आने लगा था मुझे उसे चूसने में , . दोनों होंठो से दबा के , जब जीभ फिराती थी न कड़े कड़े मांसल बड़े से सुपाड़े पर

और तंग करने के तरीके क्या उन्हें ही आते थे , . जीभ की टिप जब मैं पेशाब वाले छेद पर रगड़ देती थी , घुसेड़ने की कोशिश करती थी , एकदम से वो गिनगीना जाते थे

आज भी मैं बस उसी तरह से सिर्फ सुपाड़ा मुंह में लेकर चूस चुभला रही थी ,

लंड एकदम तन गया था , लेकिन मैं कौन अब उससे डरने वाली थी , दो दो बार अभी घोंट भी चुकी थी , एकदम जड़ तक और निचोड़ कर एक एक बूँद रस भी अपने अंदर ले चुकी थी ,

अंगूठे और तर्जनी से लंड के बेस को भी मैं रगड़ने लगी , और धीरे धीरे मेरे होंठ के बीच आधे से ज्यादा खूंटा मैंने घोंट लिया ,.

आज उस लड़के ने सरेंडर कर दिया था , जो कर रही थी मैं कर रही थी , . उसके बेस को रगड़ते दबाते , मेरी ऊँगली उसके बॉल्स पे छू गयी ,

और मेरे दिमाग में एक शरारत आ गयी , .

जब से ये गए दिन , दोपहर तो इनकी भौजी के साथ बीतती थी , . और नीली पीली फिल्मों की वो बहुत शौक़ीन , पांच दिन में १०-१२ तो हम लोगों ने साथ साथ देख ही ली थी , और ब्लो जॉब तो हर में होता था , उसी में से एक में देखा

और मेरी जेठानी ने हंस के बोला था , उन्होंने न सिर्फ ट्राई किया है बल्कि जेठ जी को पसंद भी बहुत है ,

बस मेरे होंठों ने सुपाड़े को छोड़ , बॉल्स ( रीतू भाभी होतीं तो डाँट पड़ती , पेल्हड़ नहीं बोल सकती ) को पहले तो सिर्फ लिक किया , .

सच में इन रसगुल्लों को चूसने का मेरा बहुत मन करता था , बस आज मौका मिल गया ,

और मैं कस कस के पहले तो सिर्फ जीभ से लिक करती रही , फिर बॉल्स सक करने लगी , पहले एक फिर दूसरी फिर दोनों ,

बेचारा खूंटा तन्नाया भूखा , बौराया , .

पर मेरा पक्का दोस्त था वो , इन्हे मेरी याद दिलाया करता था ,

बस कोमल के कोमल कोमल हाथों में , सैंया का मोटा खूंटा , और मैं बॉल्स चूसने के साथ हलके हलके मुठियाने भी लगी ,

जिस तरह से वो फनफना रहे थे , गिनगीना रहे थे , . मुझे अगर पहले पता चलता इस लड़के को बॉल्स चुसवाने में इतना मज़ा मिलता है तो मैं कब का ,

मैं जोर जोर से चूस रही थी , और अब जितनी जोर से चूस रही थी उनके रसगुल्लों को उतने ही कस के उनका खड़ा पागल लंड भी मुठिया रही थी ,

और चूसते चूसते मेरी जीभ , उनके पिछवाड़े , . . छेद पर नहीं , छेद के पास , बस छू गयी और अबकी मैं गिनगीना गयी

मुझे इनकी सलहज की बात याद गयी ,

सलहज की बात

मुझे इनकी सलहज की बात याद गयी ,

कितनी बार तो मुझे हड़काया था ,

पाहुन से पिछवाड़ा चटवाया था की नहीं ,

गांड चटवायी

और आज एक बार नहीं दो बार , .

पहले तो खड़े खड़े ,

और उन्होंने ही खुद ही , मैंने रबड़ी वहां भी तो लथेड़ भी दी थी ,

और अभी उनके ऊपर चढ़ कर , बुर तो कितनी बार चटवायी थी ,

लेकिन आज सरक कर , . और इस लड़के ने ,

उसके बस का भी नहीं था ना नुकुर करना , मैं इस तरह ऊपर चढ़ी थी ,

लेकिन मजे ले लेकर उन्होंने चाटा

मैं कौन पीछे रहने वाली थी , अगर वो अपनी रीतू सलहज के नन्दोई थे ,

तो मैं अभी अपनी रीतू भाभी की ननद थी , .

बस मेरी जीभ , . . एक पल के लिए सोच बोलूं , . मैं हिचकिचाई , . . पर , अभी जो उन्होंने किया था ,

हलके हलके , गोल छेद पर नहीं उसके आस पास , . जीभ वहां पहुँच भी नहीं पा रही थी ,

मैंने फिर उन्ही की ट्रिक अपनायी , .

बिस्तर पर के जितने तकिये , कुशन थे सब उनके कमर के नीचे ,

एक दो उनके चूतड़ के भी , बस उसे उठा के , और अब जीभ वहां आराम से पहुँच रही थी ,

पर थोड़ी देर उस गोलकुंडा के दरवाजे के चारों ओर मेरी जीभ ने चक्कर काटे , जैसे नई जवान होती लौंडिया के घर के बाहर मोहल्ले के लौंडे चक्कर काटने लगते हैं ,

बस फिर हिम्मत कर के सीधे छेद पर , .

जिस तरह से वो गिनगिनाये , खूंटा उनका फनफनाया , . मैं समझ गयी मुझे उनकी एक जादू की बटन मिल गयी , . फिर तो , जीभ सीधे छेद पर

लपड़ लपड़ , सपड़ सपड़

मेरे मन ने खुद से कहा ,
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