Episode 28
बस , झट से मैं पेटीकोट के अंदर घुसी ,
ब्लाउज अपनी देह पर टांगा , साडी बस जैसे तैसे लपेटी
( अब ये पास हों तो ब्रा पैंटी पहनने का कोई फायदा नहीं था )
उन्हें एक चुम्मी की घूस दी , वायदा किया , अभी गयी अभी आयी , और बोला की बस वो थोड़ी देर लेट जायँ
और सीढ़ी पर से झटझट चलकर नीचे किचेन में
गैस पर चाय का पानी चढ़ा था और जेठानी जी
फ्रिज में कुछ झांक रही थी , मैं समझ शायद जल्दी में फ्रिज मैं ठीक से बंद करना , .
पर वो उस बाउल में झाँक रही थीं , जिसमें रबड़ी थी और रात को मैंने उनके देवर को खिला दी ,.
बाउल एकदम खाली था ,
मुस्कराते हुए फ्रिज बंद करते बोलीं ,
" रात में मैंने किचेन में खटपट सुनी थी , तो लगा ,. . अब पता चला , बिल्ली ने पूरी रबड़ी सफाचट कर ली। "
" बिल्ली ने नहीं , . बिल्ले ने "
हँसते हुए मैं बोली।
अब उनकी निगाह मेरे गाल पर उनके देवर के दांतो के निशान पर पड़ी ,
एक झटके में उन्होंने मेरा आँचल खींच के नीचे कर दिया , फिर तो ब्लाउज से झांकते उभारों पर
ढेर सारे नाख़ून के , दांतों के निशान ,
" लग रहा है। बिल्ले ने कस के काटा खरोंचा है। "
फिर उन्हें कुछ याद आया और वो एकदम उछल पड़ीं
" हे लेकिन बिल्ले ने , . रबड़ी ,. वो , . वो तो रबड़ी छूता भी नहीं था , पूरा बाउल चट्ट ,. कैसे "
उन्हें विश्वास नहीं हो रहा था , उनके देवर ने , रबड़ी ,. जो उन्हें सख्त नापसंद थी , कैसे , वो भी , सब पूरा ,.
" दीदी , चटाने वाला होना चाहिए , फिर तो चाटने वाला सब कुछ चाट जाता है , . "
मुस्कराते हुए मैं बोली।
बस उन्होंने मुझे कस के गले लगा लिया , बोलीं
" सच में एकदम सही देवरानी लायी हूँ मैं। "
सच में बिना मेरी जेठानी की हेल्प के हम दोनों की शादी , . बहुत लोग थे बिघन डालने वाले ,.
गाँव की लड़की से , वो भी गाँव में जाकर , .
एक से एक पढ़ी लिखी वाली , .
पर इन्होने अपनी भाभी से साफ़ बोल दिया था
और जब जेठानी जी ने मुझे पहली बार देखा था , तभी कह दिया था ,
" आओगी तो तुम मेरे यहाँ ही , बस बात ये है की खूब जल्दी से आ जाओ। "
लगन शुरू होते ही पहली लग्न वाले दिन ही उन्होंने हम दोनों की तारीख तय करवा दी और तीन दिन की शादी की , गाँव में बारात की बात भी , .
मैंने उन्हें सब बताया की कैसे उनके देवर कल सुबह नाश्ता करने के बाद कुछ भी नहीं खाया है उन्होंने ,
इसलिए मैं सोच रही हूँ , की कुछ नाश्ता , .
लेकिन तब तक चाय उबलने लगी थी , चाय दो ग्लासों ढाल के वो बोलीं ,
" तू चाय पी। "
नाश्ता
मैंने उन्हें सब बताया की कैसे उनके देवर कल सुबह से नाश्ता करने के बाद कुछ भी नहीं खाया है उन्होंने ,
इसलिए मैं सोच रही हूँ , की कुछ नाश्ता , .
लेकिन तब तक चाय उबलने लगी थी , चाय दो ग्लासों ढाल के वो बोलीं ,
" तू चाय पी। "
और खुद अपने मोबाइल लेकर , .
सासू जी , सुबह सुबह उनकी कोई मण्डली थी , उसमें जाती थीं , साढ़े आठ बजे के आसपास आती थीं ,
जाना कब है उसे ,
सीरियस होकर जेठानी जी ने बोला और मैंने बता दिया , साढ़े बारह बजे और पूरा प्रोग्राम ,फ्लाइट का डिटेल सब , .
जब तक हम लोगों की चाय ख़तम हुयी दरवाजे पर घंटी बजी , . कोई ऑन लाइन वाला , .
मोबाइल का कमाल ,
खस्ता कचौड़ी , समोसे ,
जलेबी ,.
जेठानी ने सब मेरे हाथ में पकड़ा दिया और बोली ,
"जा नाश्ता करा देना उस भूखे को , . असली भूख तो उसे किसी और चीज की लगी होगी , और तुम यहाँ बैठ कर नाश्ता बनाती ,.
फिर सासु जी आ जाती उन्हें भी बेटे की , फिर तो ,. तुम दोनों का , .
खाने का प्लान मैं कर ले रही हूँ , . ग्यारह सवा ग्यारह तक बना लुंगी और तुम दोनों ,.
खबरदार जो साढ़े ग्यारह से पहले नीचे आये ,. अब जाओ न मुंह क्या देख रही हो "
खदेड़ कर उन्होंने मुझे सीढ़ी पर चढ़ा दिया , मैंने सीढ़ी पर से बरामदे में लगी घड़ी देखी।
आठ बजे नहीं थे , बस बजने वाले थे , साढ़े ग्यारह ,. आधा घंटा उनके तैयार होने में , यानी ग्यारह , .
जेठानी जी के देवर के पास तीन घंटे थे , .
तीन घंटे बहुत होते हैं ,
तब तक तो वो कम से कम दो बार मेरा नाश्ता कर लेगा , जेठानी का देवर ,
कर ले न , .
मैं सोच कर मुस्करायी , और कमरे में घुस गयी ,
वो लड़का बस एक कम्बल ओढ़े बेचैन बार बार घडी देख रहा था , मेरे बिन एक पल उसके लिए मुश्किल हो जाता था।
मैं उसे देख मुस्करायी नाश्ते की ट्रे टेबल पर रखी , मुड़कर दरवाजे को बंद किया ,
और उन्हें दिखाते ललचाते , साडी उतार कर पास के सोफे पर फेंकी और उन्हें दिखाते ललचाते ब्लाउज फाड़ते अपने जोबन उभार के , बुलाया ,
और वो लड़का कंबल फेंक कर , . अभी भी वो सिर्फ तौलिया लपेटे , .
" पहले नाश्ता , . " मैं बोलती रही , लेकिन वो बदमाश उसे तो सिर्फ एक चीज चाहिए थी ,
मैं , . कोमल।
वहीँ फर्श पर बैठ कर , . उसने मुझे अपने ओर खींचा , बोला ,
" यहीं कर लेते हैं न ,. "
मैं समझ गयी उसे समझाने से कोई फायदा नहीं ,
मैंने नाश्ते की ट्रे वहीँ फर्श पर बगल में रख ली और उसने अपनी नाश्ते को , मुझे गोद में , .
" अरे यार कल से भूखे हो , पहले कुछ खा लो न , एक बार गाडी में पेट्रोल पड़ जाए न तो फिर ,. "
मैंने समझाने की कोशिश की पर खुद समझ गयी।
नाश्ता ,. मेरा ,. उनका
" पहले नाश्ता , . "
मैं बोलती रही , लेकिन वो बदमाश उसे तो सिर्फ एक चीज चाहिए थी ,
मैं , . कोमल।
वहीँ फर्श पर बैठ कर , . उसने मुझे अपने ओर खींचा , बोला ,
" यहीं कर लेते हैं न ,. "
मैं समझ गयी उसे समझाने से कोई फायदा नहीं , मैंने नाश्ते की ट्रे वहीँ फर्श पर बगल में रख ली और उसने अपनी नाश्ते को , मुझे होनी गोद में , .
" अरे यार कल से भूखे हो , पहले कुछ खा लो न , एक बार गाडी में पेट्रोल पड़ जाए न तो फिर ,. "
मैंने समझाने की कोशिश की पर खुद समझ गयी।
उनके हाथ तो किसी और चीज में बिजी रहने वाले थे , मेरे हाथों को ही उसे भूखे को खिलाना था ,
मैंने एक समोसे को प्लेट से उठाया , उसकी नोक को अपने होंठों के बीच दबाया , और चिढ़ाते हुए पूछने लगी , .
" बोल न चाहिए ,. "
जवाब उसने कस के मेरी दोनों गोलाइयों को दबा के दिया , .
" समझ गयी , तुझे छोटे छोटे समोसे वाली याद आ रही है , लोगे उसके समोसे ,. चल यार दिलवा दूंगी , अभी तो ,. "
" तू उसके पीछे क्यों पड़ी रहती है ? "
कचकचा के मेरे जोबन काटते वो बोले।
" किसके ? " मैं इतनी आसानी से क्यों उन्हें छोड़ देती ,
जहाँ उन्होंने काटा था वहीँ चूसते चाटते बोले , . "
" गुड्डी के "
मैं जोर से खिलखिला पड़ी , यही तो मैं चाहती थी उनके मुंह से अपनी छुटकी ननदिया का नाम बुलवाना चाहती थी।
" देख यार मैंने तो नहीं बोला , तू खुद ही बोल रहा है उसे छोटे समोसे वाली , . लेकिन सच में यार उस के छोटे समोसे एकदम जानमारु हैं , चल अबकी नहीं तो अगली बार , आओगे न तो पक्का उसके छोटे छोटे समोसे चखाउंगी ,. एक बार चख के देख तो ले न ,. "
हँसते हुए मैं बोली और आधा समोसा मैं खुद गड़प कर लिया ,
" मुझे तो उसके भाभी के खाने यहीं , बड़े वाले समोसे , . "
एक बार में ही उन्होंने मेरे उभार गप कर लिए।
उनका एक हाथ साथ साथ मेरे दूसरे जोबन के निप , अंगूठे और तर्जनी के बीच मसल रहा था , मेरी गुलबिया में आग लग रही थी।
उनके होंठ और ऊँगली दोनों का दुहरा हमला एक साथ , . . मैं एकदम पिघल रही थी।
लेकिन मैं उन्हें चिढ़ाने का कोई मौका छोड़ने वाली नहीं थी ,
" अरे यार मैं मना कहाँ कर रही हूँ , मैं तो सिर्फ एक के साथ एक फ्री वाला ऑफर दे रही हूँ , . भाभी के साथ ननदिया फ्री , . बड़े समोसे के साथ छोटे समोसे फ्री , . अब बड़े समोसे तूने चख लिए न तो अगली बार छोटे समोसे , .
बुला लुंगी उस समोसे वाली को , जानते हो एक हफते में तीन बार आयी , और हर बार पूछती थी , भइया कब आएंगे ,.
हाँ जिस तरह से अंगूठे और तर्जनी के बीच मेरे निप्स रगड़ रहे हो न , बस एलवल वाली के भी वैसे ही , .
अरे यार , न हो तो उसके कॉलेज के टॉप के ऊपर से ही ,
देखना खुद खोल देगी , . "
और छेड़ने का असर उनके ऊपर भी हो रहा था , तौलिये में बांस , .
उनकी ममेरी बहन का नाम ले ले कर छेड़ने के साथ मेरे नितम्ब भी साथ साथ कस कर उस बांस को रगड़ रहे थे तो तम्बू में बम्बू लगना ही था।
खिलाना उन्हें था , खा मैं रही थी , पर जैसे ही उनके मुंह ने मेरे निप्स को छोड़ा , उनका सर पकड़ के कस के एक डीप फ्रेंच किस , मेरी जीभ उनके मुंह में और साथ में वो अधखाया , कुचा कुचाया , समोसा भी ,. उनके मुंह में , .
जबतक उन्होंने ख़तम नहीं किया , मेरी जीभ उनके मुंह से नहीं निकली।
दोनो समोसे ख़तम होने तक उनकी टॉवेल फिसल कर दूर पड़ी थी और मेरा पेटीकोट छल्ला सा मेरी कमर के चारों ओर ,
मेरी गुलबीया उनके खूंटे को रगड़ मसल रही थी , सुपाड़ा तो उनका मैंने बाथरूम में ही खोल दिया था ,.
जरा मैंने चूतड़ उठाये , जरा सा उन्होने धक्का दिया ,
गप्पाक , मेरे नीचे वाले मुंह में उनका सुपाड़ा धंस गया।
एकदम से फट गयी मेरी , स्साला इनका सुपाड़ा था ही इतना मोटा ,. लगता था किसी ने मुट्ठी पेल दी है मेरी बुर में ,
दर्द के मारे बुरा हाल , और उससे भी ज्यादा बुरा हाल बुरिया का ,.
मजे से ,
सिर्फ सुपाड़ा घुसा था , . लेकिन उतने में ही बस जान नहीं निकली ,. सब कुछ हो गया ,
लेकिन मैं भी क्यों मौका छोड़ती , आखिर इनकी सलहज की ननद थी , मैंने भी अपने हाथ में बचे आधे समोसे को इनके मुंह में ठेल दिया , ये गों गों करते रहे पर मैंने अपने रसीले गुलाबी होंठों से इनके होंठ सील कर दिए , अब मेरी बारी थी ,
अपने साजन की गोद में बैठी , साजन का खूंटा मेरे अंदर धंसा , मेरी दोनों बांहे उन्हें बांधे और उनकी दोनों बाहें मुझे दबोचे , .
मेरे होंठ उनक होंठों पर , . .
बस सोच रही थी
ऐसी गुड मॉर्निंग रोज हो ,
फर्श पर
मेरी भी और मेरे पाठक पाठिकाओं की भी ,
गुड मॉर्निंग
बस सोच रही थी
ऐसी गुड मॉर्निंग रोज हो ,
फर्श पर
मेरी भी और मेरे पाठक पाठिकाओं की भी , . .
लेकिन सिर्फ सोचने से क्या होता है , .
मैंने अपने दोनों किशोर कड़े कड़े गदराये उभार उनकी छाती पर रगड़ने शुरू कर दिए , पहले हलके हलके फिर जोर जोर से , मेरे नाख़ून इनकी पीठ कंधो पर गड़ रहे थे ,
और मेरी गुलाबो उस ने भी अपने प्यारे मूसलचंद से छेड़खानी शुरू कर दी ,
हलके हलके अंदर धंसे घुसे सुपाड़े को पहले हलके हलके दबोच कर , फिर कस के निचोड़ कर , .
ये पहली बार नहीं था की मैं अपने साजन की गोद में बैठ कर उनके मोटे बांस का मजा ले रही थी ,
हाँ फर्श पर पहली बार , .
मैंने अपनी देह का पूरा जोर लगा के , साथ में मेरी उँगलियाँ इनकी पीठ पर सरक रही थीं , एक हाथ की कोमल का दूसरा कोमल कोमल हाथ , इनके मोटे दुष्ट लंड के बेस पर ;
स्साला बहुत मोटा ,.
लेकिन मेरे जोर का असर , .
सूत सूत , धीरे धीरे , रगड़ता ,दरेरते , घिसटते , फाड़ते , बहुत धीमे धीमे ही सही लेकिन अंदर घुस रहा था
उन्होंने साथ देने की कोशिश की पर मैंने आँखों से बरज दिया , इशारा किया पहले मुंह का समोसा ख़तम करो ,. .
उसके बाद ,
दो ढाई इंच घुसने में ही लगता है था जनम गुजर गया , जनवरी की सुबह भी पसीने निकल गयी , .
पर सुपाड़े के बाद ढाई इंच , करीब आधे से थोड़ा ज्यादा ,
और अब मैंने फर्श का फायदा उठाया , दोनों हाथों को फर्श पर लगा के , पूरी जोर से अपनी बॉडी को ऊपर पुश किया ,
लग रहा था कोई खूब मोटा काक एक बहुत पतली गरदन वाली बोतल में अड़स गया है , निकाले निकल नहीं पा रहा , .
मैं पूरी ताकत से अपने को ऊपर पुल कर रही थी , और फिर धीरे धीरे ,. बहुत ज़रा ज़रा सा , . और जब सुपाड़ा बचा तो मैं रुक गयी ,
और एक बार फिर मैं अपनी पूरी ताकत से अंदर घोंट रही थी उसे ,.
दूनी ताकत लगा रही थी मैं , . और आधा करीब घुसा होगा तो मैं रुक गयी ,
इससे ज्यादा मेरे बस का नहीं था ,
लेकिन मेरी शैतानी रुकी नहीं , मेरी कोमल उँगलियाँ कभी उनके बॉल्स को रगड़ देती तो कभी उस मोटे बांस के बेस पर कस के दबा देतीं ,
और मेरे जोबन भी अब गोल गोल उनके सीने पर रगड़ रही थीं ,
मेरे होंठ कभी उनके गालों पर , कभी कस के चूम लेती तो कभी हलके से उनके गाल को काट लेती और
उनके कान में उनकी बहिन का हाल
और कौन वही एलवल वाली उनकी ममेरी बहन ,.
उसकी कच्ची अमिया का जिक्र ही इनके लिए शिलाजीत और वियाग्रा के मिक्सचर से भी दूना काम करता था ,.
और आज मैंने एक और लाइन डाक ली ,
" स्साले , . वो स्साली गुड्डी छिनार ,.
ऐसे ही बैठेगी तेरे खूंटे पर , उसे पकड़ के बिठाने की जिम्मेदारी मेरी , . सटाने की जिम्मेदारी मेरी , उसकी गोरी गोरी जाँघे फैलवाने की जिम्मेदारी मेरी , .
हाँ हचक के उसे चोदने , उस दर्जा आठ वाली की कुँवारी चूत फाड़ने की जिम्मेदारी तेरी ,. बोल चोदेगा न ,. "
जवाब उनके धक्के ने दिया , नीचे से उन्होंने इतनी जोर से झटका दिया , ऑलमोस्ट बचा खुचा लंड मेरी चूत में ,
दो तीन धक्के और ऐसे , फिर सुपाड़े का धक्का सीधे मेरी बच्चेदानी पर ,. मैं जोर से चीखी , . उन्होंने नाख़ून मेरे जोबन पर गड़ा दिए थे ,
साथ में बोले भी ,
" स्साली , . उस का नंबर जब आएगा तब आएगा , अभी तो उसकी भौजी की चोद लूँ , . "
यही तो मैं चाहती थी , हचक के वो पेलें , खुल के वो बोलें , . गाली दे दे कर ,.
" अरे उसकी भाभी तो आयी है तुझ से चुदवाने , तुम नहीं चोदोगे तो वो चढ़ कर चोद देगी , पर मान गए न आएगा नंबर उस मेरी ननद छिनार का , . और जब नहीं जल्द ही ,. "
और अब वो नीचे से धक्का दे रहे थे , ऊपर से मैं पुश कर रही थी ,
साथ में उनका तिहरा हमला , ऊँगली मेरी क्लिट पर होंठ निप्स पर ,.
वही हुआ जो होना था ,.
छह सात मिनट के अंदर मैं डिस्चार्ज हो गयी , .
पर वो लड़का आधे घंटे के पहले कभी ,. हाँ जब मैं झड़ने लगी तो वो रुक गए ,खूंटा पूरा अंदर धंसा पर मैं नहीं रुकी , जैसे ही मेरा झड़ना रुका , . आखिर गाड़ी में डीज़ल पेट्रोल डालना भी तो जरुरी था , . मैंने दूसरा समोसा उठाया और सीधे इनके मुंह में , आधा मेरे मुंह में भी , .
फिर शुरुआत भी मैंने की , खूंटा तो उनका जड़ तक घुसा ही था मेरे अंदर।
और अब तक मैं समझ गयी थी , कसी बिल के अंदर मूसल डाल के अंदर बाहर करना इतना आसान भी नहीं , .
लेकिन आगे पीछे करने से भी मज़ा कम नहीं आता था , बस मैंने वही शुरू किया। और थोड़ी देर बाद गोल गोल अपनी कमर उनकी गोद में बैठे बैठे , उनका खूंटा पूरा घोंटे , . साथ में मेरे जोबन एक बार फिर से सीने से रगड़ रहे थे ,
वो चुपचाप बैठे थे , कमान अभी पूरी तरह मेरे हाथ में थी वो सिर्फ मज़ा ले रहे थे ,
गोल गोल कमर घुमाने के साथ मेरी गुलाबो अपने मोटे यार को कस के भींच रही थी , निचोड़ रही थी , दबोच रही थी।
मुंह उनका पूरा समोसे से भरा था , लेकिन मैंने अपने मुंह का भी उनका सर पकड़ के सीधे उनके मुंह में ठेल दिया अपनी जीभ साथ में ,
मेरा अधखाया , मेरे थूक में लिथड़ा , कुचा कुचाया , मेरा जूठा ,.
मेरा जूठा तो वो पहले दिन से खा रहे थे , सबसे पहले कोहबर में , .
मैंने जो उन्हें पान खिलाया था ,
उसके अंदर एक छोटा सा पान था जो मैंने कई घण्टे अपने मुंह में रख कर चबाया कुचला चुभलाया था ,
माना ये जाता है की दुल्हन का जूठ खाने से दुलहा हरदम के लिए जोरू का गुलाम हो जाता है , मैंने कुछ मुंह बनाया , ( कुछ इसलिए भी सोच के , की वो तो ऐसे ही जब से उसने मुझे पहली बार देखा है तब से मेरा गुलाम हो गया है ) पर बुआ ने जोर से हड़काया , बोलीं
" आज कल क लड़की , . अरे हम लोगन क जमाने मे इ पान क सुपाड़ी दुलहिन को ऊपर वाले मुंह में नहीं ,
नीचे वाले मुंह में घोंटना पड़ता था , . और ज़रा भी छिनारपना किया तो उसकी भौजाई कुल पकड़ के जबरदस्ती , पूरा अंदर ठेल देती थीं ".
पान तो चलिए गनीमत था उन्होंने देखा नहीं था ,
लेकिन कोहबर में सबके सामने , हम दोनों लोग गाँठ जोड़ के बैठे थे , और इनकी सलहज ने ,
पानी पहले मुझे पिलाया , फिर वही पानी , .
देखा उन्होंने भी था ,. पर बिना ना नुकुर किये , मेरा जूठा पानी गटक गए।
वो तो खैर उनकी ससुराल थी ,
मेरी ससुराल में भी ,. विदाई के बाद , हम दोनों गाँठ जोड़े कोहबर में बैठे थे ,
मेरी जेठानी ने पहले पानी मुझे पिला के वही ग्लास इनकी ओर बढ़ाया ,
एक चंट ननद ,. और कौन ,. वही गुड्डी रानी , एलवल वाली अपने भइया को वार्न करने लगी ,
" नहीं भैया , भाभी का जूठा है ,. "
पर वो उसकी अनसुनी कर के पूरा ग्लास पानी पी गए , .
और उसकी याद आते ही , मैंने उनके कान में बोला ,
बस इतना कहना , और
मेरी कमर पकड़ कर उन्होंने मुझे ऊपर उठाया , खूंटा थोड़ा सा बाहर निकला ,
फिर तो बैठे बैठे नीचे से क्या धक्के मारने शूरु किये उन्होंने
और अब मैं भी पूरी तरह से उनका साथ दे रही थी , फर्श पर अपने दोनों हाथ रख के उनके साथ पुश कर रही थी ,
वो चोद रहे थे , मैं चुदवा रही थी दिन दहाड़े ,
फर्श पर बैठी अपने साजन की गोद में , .
टाइम का न उन्हें ख्याल था न मुझे ,
बस इतना मजा आ रहा था बता नहीं सकती , . और अबकी जब मैं झड़ी तो साथ में वो भी ,
ढेर सारी मलाई मेरे अंदर ,. और जब मैं उठी तो बस दो इंच अपने को ऊपर उठा के , .
अपनी बुर सिकोड़ के , निचोड़ के ,. उनके खूंटे की सारी मलाई
उसी खूंटे पर , पहले ढेर सारी
फिर बूँद बूँद , .
वो मूसलचंद रबड़ी मलाई से ढक गया , फिर हट कर , उनके बगल में बैठ कर , . .
अपनी ऊँगली का चम्मच बना कर , सीधे खूंटे पर से उठा के उन्हें दिखाते सब चाट गयी , और जो मेरे होंठों पर लगा था , .
वो सब सीधे उनके होंठों पर , .
देर तक हम दोनों एक दूसरे से चिपके , चूमते कस के पकडे , दबोचे ,.
फिर अचानक मुझे छोड़ कर वो उठे और बोले ,
मैं भी न कितना बुद्धू हूँ। और बाथरूम में भागे , जहाँ उनके कपडे मैंने टाँगे थे