Episode 43
वो सात दिन
बिछोह के
उनकी निगाहें उस किशोरी की लजाती मुस्कान पर चिपकी थी , और दोनों ने एक दूसरे को देखा जोर से दोनों मुस्करा उठे ,
सास और जेठानी दोनों बाहर बरामदे में थी , और हम लोग भी , .
कुछ देर में गुड्डी और वो टैक्सी पे ,. और चल दिए ,.
ढाई घंटे बाद उनका मेसेज आया बाबतपुर ( बनारस का एयरपोर्ट) पहुँच गए हैं।
सच में उनके जाते ही दिन पहाड़ से हो जाते हैं , एक एक पल , रहती कही हूँ मन वहीँ लगा रहता है ,
हालंकि दिन में कम से कम चार पांच बार बात होती है , व्हाट्सऐप और मेसेज की तो गिनती ही नहीं ,
पर मेरी सास , जेठानी , ननदें , देवर किसी से ये हाल मेरी छुपी नहीं रहती , कोई बोलता नहीं , .
लेकिन वो सब बस यही कोशिश करते रहते हैं , किसी तरह मेरा मन लगा रहे , . .
दुपहरिया तो अक्सर जेठानी के साथ ही बीतती , उन्ही के बिस्तर में , . कभी कोई सीरियल तो कभी ' अच्छी ' वाली फ़िल्में ,.
और कई कई बार तो मेरी सासू भी आ जाती
फिर तो हम जेठानी देवरानी मिल के उनसे 'उन दिनों 'की बातें , गाँव की ,
मैं तो उनके पीछे पड़ के रात में ससुर जी के साथ कैसे , कितनी बार ,
और वो भी खुल के गाँव के किस्से , मरद सब अलग सोते थे , बाहर ,
और औरतें अंदर या तो अंदर वाले आंगन में अपने कमरे में , रात में जब सब लोग सो जाते तो ससुर जी आते ,
और अगर कभी सासु जी को आंगन में सोना पड़ता , अपनी सास जेठानी के साथ , तो सोने के पहले अपनी पायल उतार लेतीं
और जैसे ही सब लोग सोते , वो दबे पाँव , सांस रोक के अपने कमरे में , बस ससुर जी का इन्तजार करतीं , .
हाँ हंस के उन्होंने कबूला ,
अलग अलग जगह सोने के बाद भी , कोई रात नागा नहीं जाता था ,
और उनकी सास कडुवा तेल की बोतल रोज चेक करती थीं , शाम को फिर वो बोतल भरी रहती थी।
और मैंने और जेठानी जी ने एक साथ हँसते हुए बोला और ये पारिवारिक परम्परा अभी तक कायम है ,
लेकिन मैं इतने आसानी से सासू जी को नहीं छोड़ती थी ,
सब कुछ , कितनी बार ,
और वो भी एकदम सहेलियों की तरह ,. सब कुछ एकदम खोल के
शाम की चाय जेठानी और मैं मिल के बनाते , .
हफ्ते में दो तीन दिन , रेनू, लीला और गुड्डी , . . कॉलेज से सीधे , ( बगल में ही तो था जी जी आई सी , छत से दिखता था )
सीधे मेरे कमरे में ,.
फिर तो वो धमाचौकड़ी मचती ,.
और अब गुड्डी भी की शरम धीमे धीमे खुलने लगती थी , .
और कहीं थोड़ा भी छिनारपना किया न
गुड्डी
और अब गुड्डी भी की शरम धीमे धीमे खुलने लगती थी , .
और कहीं थोड़ा भी छिनारपना किया न
तो बस रेनू और लीला थी न उसकी दोनों सहेलियां अब एकदम मेरी ओर हो गयी थीं , बस एक उसकी दोनों टाँगे पकड़ती और दूसरी दोनों हाथ ,
फिर तो मैं आराम से धीरे धीरे , शलवार , स्कर्ट कुछ भी ,.
फिर ब्रा पैंटी भी ,.
बिना किसी जल्दी के , चाहे वो जितना छुटपटाये ,
और एक बार उसकी सहेली खुल गयी तो फिर तो ननद की चिड़िया बिना उड़ाए ,.
और एक दो के बार बाद तो मैं उसी को फ़ोर्स करती , चल ऊँगली कर ,
वरना लम्बी मोटी मोमबत्ती डालूंगी अभी , भले झिल्ली फट जाये ,
असल में झिल्ली ही तो मैं नहीं फाड़ना चाहती थी उसकी , मैं ने चेक कर लिया था ,
पूरा खोल के , झिल्ली अभी एकदम इनटेक्ट थी ,
एकदम कच्ची थी वो ,
कभी ठीक से ऊँगली भी नहीं की थी उसने , . और झिल्ली भी एकदम इन्टैक्ट ,.
फाड़ने का काम तो बस उसे ही करना था जिसने मेरी फाड़ी थी , .
उसके भैया और मेरे सैंया को ,
और हचक के फाड़नी थी ,
और अब ये बात उसकी दोनों सहेलियों को भी मालुम हो गयी ,
और मैं समझ रही था थोड़ा थोड़ा मेरी ननद को भी अब अंदाज लग गया था , .
हाँ बस मैं उसकी दोनों सहेलियों के साथ मिल के बस उसका डर हिचक कम कर रही थी और उसके मन में आग लगा रही थी ,
और हर बार वो आती थी तो उसकी दो चार फोटुएं , . लेकिन इन एक्शन ,.
कभी अपनी हथेली से रगड़ती मसलती ,
तो कभी एक ऊँगली का एक पोर अंदर डालने की कोशिश करती ,
और मैं जानती थी इन पिक्स का उसके भाई और उसे बढ़ कर उस के खूंटे पर क्या असर पडेगा , .
वही हुआ ,.
अपनी ननदिया को मैंने ' होम वर्क ' भी दे रखा था , रोज रात को सोने के पहले कम से कम पांच मिनट अपनी चड्ढी खोल के , अपनी गुलाबो हथेली से रगड़े और ये सोचे की उसके भइया , अपने हाथ से रगड़ रहे हैं , अपनी जीभ से चूस रहे हैं और चाट रहे हैं , हाँ जब एक हाथ उसकी कच्ची चूत पर रहे तो दूसरा हाथ उसकी कच्ची अमिया , उसे हलके हलके दबाये सहलाये ,
सोचे उसके भैया मीज रहे हैं , मसल रहे हैं ,
और यही काम , सुबह उठने पर ,
दिन में एक बार कॉलेज में और के बार घर में भी कोई सामने हो तो भी , पढ़ते समय , बस अपनी पैंटी सरका के एक ऊँगली ; वहां रख के ' सोचे की भैया का ' खूंटा है और उसे हलके हलके रगड़े , .
" होम वर्क ' करने के बाद मुझे व्हाट्सऐप भी करना होता था , बस मैं चाहती थी , उस शर्मीली लजीली किशोरी के मन में खुद इतनी आग लगे , उसकी देह में इतनी खुजली मचे
और ये सब हो पाया रेनू की मदद से , . .
लेकिन रेनू भी , वो और उससे ज्यादा अनुज ,
भाभी , बस एक बार किसी तरह थोड़ी देर के लिए ,. करवा दो न जुगाड़
वो एक बार कभी नहीं होता , . जितनी बार रेनू अनुज से मिलती , दो बार से कम नहीं ,.
और चुसवाता भी वो जरूर ,.
और हफ्ते में दो बार तो होना ही था , कभी तीन बार भी ,. .
एकाध बार तो कोई जुगाड़ नहीं लगा तो मेरे कमरे में , मैं उन दोनों को अपने कमरे में कर के ,. खुद छत पर खड़ी होकर , .
और जब अनुज चला जाता था तो जाकर , अपनी ननद का , गुड्डी की सहेली , रेनू का हाल चाल चेक करती , और सोचती भी
अगर रेनू न होती तो गुड्डी अभी भी वैसे ही बात बात पर उचकनेवाली , हाथ न धरने वाली ही बनी रहती , .
पर अब सच्च में उनकी मलाई से गीली ब्रा उसने सात दिन पूरी तरह पहनी ,
और जब वो आये न , जिस दिन आने वाले थे , गुड्डी पहले से , .
उनसे मिल के ही गयी और अगले दिन भी ,
गुड्डी
और जब वो आये न , जिस दिन आने वाले थे , गुड्डी पहले से , .
उनसे मिल के ही गयी और अगले दिन भी ,
गुड्डी भी अब धीरे धीरे मेरे और मेरी जेठानी के लेवल पर आ रही थी , पहले तो उनके आने के लिए चिढ़ाना होता तो बस बोलती ,
भाभी आज कौवा बोल रहा है कोई आएगा , पहले से खीर वीर बना के रखीये कौए को खिलाने के लिए , तभी उसकी बात सच होगी
तो
मजाक में मैं उसके छोटे छोटे उभारों को , कच्ची अमिया को कस के मसलती चिकोटी चिढ़ाती ,
इस कौए को खीर नहीं चाहिए , इसे तो ये दूंगी मैं अपनी ननदिया की और फिर हम और जेठानी जी दोनों मिल के उसे गा गा के चिढ़ाते ,
नकबेसर कागा ले भागा , मेरा सैंया अभागा ना जागा ,
ना जागा , अरे ना जागा , नकबेसर कागा ले भागा ,
अरे वही कागा उनकी बहिनी की चोलिया पे बैठा , अरे चोलिया पे बैठा ,
अरे वही कागा , उनकी बहिनी की , हमारी ननदी की , गुड्डी रानी की चोलिया पे बैठा ,
अरे जुबना का सब रस ले भागा , मेरा सैंया अभागा ना जागा ,
और कई बार जब सिर्फ मैं और जेठानी जी होते तो गाना थोड़ा और आगे बढ़ जाता ,
ना जागा , अरे ना जागा , नकबेसर कागा ले भागा ,
अरे वही कागा उनकी बहिनी की शलवरिया पे बैठा , अरे स्कर्ट पे बैठा ,
अरे वही कागा , उनकी बहिनी की , हमारी ननदी की , गुड्डी रानी की शलवार पे बैठा ,
अरे बुरिया का सब रस ले भागा , मेरा सैंया अभागा ना जागा ,
लेकिन अब तो गुड्डी के साथ मामला एकदम खुला हो गया खासतौर से जिस तरह मेरी जेठानी ने उन्हें ' दिन वाली देवरानी ' की टायटिल दे दी थी , .
और गुड्डी भी.
अब एकदम उसे भी मालुम था की उसके भैया उसके अंग प्रत्यंग की तस्वीर देख चुके हैं
और वो भी उनके मोटे खूंटे की स्टिल वीडियो सब देख चुकी थी ,
उनकी जींस के ऊपर से कस कस के दबा चुकी थी
और उसके भैया भी उसकी कच्ची अमिया उसके टॉप के ऊपर से , . .
तो उस दिन सब के सामने मुझसे बोली ,
" भाभी वो , वीटस , आपने सब साफ़ सूफ कर लिया हैं न , मेरा मतलब , . "
मैं क्यों मौका चुकती , मैं बस उसके पीछे पड़ गयी , .
" हाँ यार तूने सही याद दिलाया , ननद न हों तो ये सब जरूरी चीजें , . अरे यार मुझसे खुद से एकदम अच्छी तरह नहीं , . तो तू है न चल तू मेरी कर दे ीार मैं तेरी , क्या पता अबकी उनके जाने के पहले तेरी वाली भी का नंबर लग जाये ,. "
अब वो फंस गयी , लेकिन भाभी , वो भी बनारस की हो तो कोई ननद बच सकी है क्या , . बस खींच के मैं उसे अपने कमरे में ले गयी
और ननद से वो भी एक टीनेजर और जो अपने सैंया का माल हो उससे झांटे साफ़ करवाने का सुख ,
असल में साफ़ सूफ तो थी लेकिन गुड्डी रानी ने बोल दिया था इस लिए और ,
और फिर मैंने उसकी चिक्क्न मुक्कन कर दी और उसकी ताज़ी ताज़ी फोटो उसके भैया को उसी के मोबाइल से ,
आते ही वो मिली , .
और उसके जाने के पहले सास की नजर बचाकर , मैंने उनके हाथ से उसकी कच्ची अमिया को ,.
हाँ रात में वो सब हुआ जो होता है , .
और अगले दिन सुबह भी लेकिन अब उनका फॉरेन का पक्का हो गया था , इसलिए उसके लिए कागज़ पत्तर , और भी कुछ काम धाम
उस के भइया ने गिफ्ट अगले दिन ही दी , . दो ब्रा उसने बोली थी , दो ब्रा वो लाये लेकिन साथ में मैचिंग पैंटी भी
गिफ्ट
उस के भइया ने गिफ्ट अगले दिन ही दी , . दो ब्रा उसने बोली थी , दो ब्रा वो लाये लेकिन साथ में मैचिंग पैंटी भी
एकदम लेसी , ब्रा दोनों पुश अप , २८ सी देखने में उन्हें पहनने के बाद तीस लगती।
एक तो हाफ कप भी थी , आधे बूब्स बाहर छलकते रहते , .
और साथ में जींस ,. . एकदम स्किनी , लो कट , रिप्ड ,. उस समय तो वहां मिलती भी नहीं थी , दो चार दुकानों में ही लड़कियों के लिए जींस मिलती , पर वो भी पुरानी डिजाइन की
मैं उनके पीछे पड़ी रही छेड़ती रही ,
लाये हो तो पहनाओ भी न ,
गुड्डी में ज्यादा हिम्मत थी , वो खुद अपना टॉप सरका के खड़ी हो गयी , पर वही हिम्मत नहीं जुटा पाए अपनी बहिनिया की ब्रा खोलने की ,
तब भी जबरदस्ती उनका हाथ पकड़ा के मैंने उसकी ब्रा का स्ट्रैप तो उनसे खुलवा ही लिया ,
फिर मैंने गुड्डी को चैलेन्ज किया , अच्छा चल तेरे भैया तो हार गए अब तू अगर इनकी बचपन का माल है तो चल हम लोगों के सामने जींस पहन के दिखा ,
" एकदम भाभी , एनीथिंग फार माई स्वीट भैया , . "
और उस दुष्ट ने अपनी सैंडल उतारी और स्कर्ट के नीचे , जींस पहननी शुरू कर दी ,
मैं जोर चिल्लाई फाउल , फाउल , भैया की पैंटी भी पहन ,
क्यों भैया , बड़े भोलेपन से उनकी ओर देख कर वो बोली , . उनकी निगाहें अपने माल पर चिपकी थीं , मुश्किल से उनके मुंह से हाँ निकली , बस झट से गुडडी ने स्कर्ट के ऊपर से हाथ डालकर अपनी चड्ढी सरका दी और स्कर्ट के नीचे से हाथ डाल के खींच लिया , और फिर उनकी लाइ पैंटी
और फिर जींस
उसके बाद उसने स्कर्ट उतार दी ,
वास्तव में बहुत हॉट जींस थी , गुड्डी के ब्वाइश लौंडा मार्का चूतड़ एकदम कसे कसे , छलकते , .
जींस रियल अल्ट्रा लो थी , गुड्डी की थांग बाहर दिख रही थी
मैंने उसे बोला भी ,
" गनीमत है ननद रानी इसे पहन के तुम बनारस में नहीं चलोगी , लहुराबीर से गोदौलिया तक नहीं पहुंच पाओगी उस के पहले बनारस वाले तेरी गांड मार लेंगे , . "
लेकिन मेरी ननद न अब मेरी संगत का असर , मेरी बात का भी जवाब देने लगी थी , बोली
" अरे बनारस वाली भेजे तो हैं अपनी बहिन को , रोज रोज बिना नागा , . "
उनके सामने मटक मटक के अपने कसे कसे चूतड़ दिखाए उसने ,
असल में जींस टाइट तो थी ही लेकिन मेयर ननद की फिगर भी जानमारु थी , .
चलने के पहले उसने अपने भइया को दबोच के कस के चुम्मी ले ली , जो कतई भाई बहन टाइप नहीं थी
असल में उस दिन उनको भी बहुत जल्दी थी ,
उनका पासपोर्ट कहीं रखा था वो चाहिए था , कागज पे कहीं कहीं मेरे साइन
फ्लाइट भी थोड़ी जल्दी थी , और गुड्डी का भी कोई टेस्ट था , .
इसलिए ज्यादा कुछ पर छेड़खानी कौन रोक सकता है ,
बात चीत में मैं और जेठानी उसे चिढ़ाने में लगे रहते थे
बिदेसिया
बात चीत में मैं और जेठानी उसे चिढ़ाने में लगे रहते थे , बनारस और आजमगढ़ के मुकाबले ,
गुड्डी को हम लोग बोलते , असल में गाँव की ही तरह खाली कहने को शहर है ,
तो उस के पास एक पक्का जवाब था , . लेकिन आप दोनों लोग आयी तो यही हमारे भैया के पास , अपने माँ बाप का घर छोड़ के ,
ये बात तो उस छोरी की एकदम सही थी , .
सच्च में यार उस लड़के के लिए तो मैं कहीं चली जाती , .
माना थोड़ा , थोड़ा नहीं काफी बुद्धू था , . . कुछ ज्यादा ही सीधा , और शर्मिला कितना ,. आजकल तो लड़कियां भी उतनी नहीं शर्माती , और लापरवाह भी एकदम , .
उसे अपना जरा भी नहीं ख्याल , . अगर मैं उसे कपडे न निकाल के दूँ न तो बस , .
दोनों पैरों में अलग रंग के मोज़े पहन के चला जाय , .
लेकिन वो लड़का बैंगलोर , .
पांच दिन इत्ती मुश्किल से कटते थे और जब वो आता था , फुर्र से समय उड़ जाता था ,.
मैं जानती थी इस लड़के के साथ यही होना है , एक दिन पूरी जिंदगी इसी तरह , हफ्ते महीनो में बदलेंगे , महीनो सालों में और एक दिन पूरी जिंदगी ,.
लेकिन बस ये सोच के ढांढ़स बंधाती थी , बच्चू बच के कहाँ जायेंगे , .
पूरे सात जन्म के लिए लिखवा के लायी हूँ उसे ,. अगले जन्म में फिर करुँगी रगड़ाई उसकी , बच के कहाँ जायेगा ,.
मम्मी जब से मेरी शादी तय हुयी , शादी के गाने और उन में से कुछ तो ऐसे मैं मना भी करती , लेकिन ,. एकदम
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
होतें बिहान चिरैया उड़ जाहिएँ , होय जाहिंएं निमिया अकेल र ललनवा ,
होतें बिहान बेटी चल जाहिएँ , हो जाहिएँ मम्मी अकेल रे ललनावा
निमिया के पेड़ जिन कटाया मोरे बाबा , निमिया चिरैया क बसेर र ललनवा।
बेटी बिदेसिया के साथ रे ललनवा , होते बिहान बेटी चल जाहिए , हो जाहिए मम्मी अकेल रे ललनवा
मम्मी रोटी बनाती जाती थी , आंसू रुकते नहीं थे ,
और कहीं मैं पूछती थी तो बोलती थी नहीं कुछ नहीं , बस जरा धुंवा लग गया था , .
पर मैं जानती नहीं थी क्या , . . जब तक बुआ भाभियाँ , चाचियां रहतीं , छेड़छाड़ , काम काज की बातें , लेकिन जैसे वो अकेले बैठती ,
बस सूनी आँखों से दरवाजे को निहारती रहतीं , .
जैसे इसी दरवाजे से कुछ दिन बाद मैं चली जाउंगी , फिर तो कभी काम काज कभी परब त्योहार , . .
सबसे बड़ी तीनो बहनों में मैं थी ,
आज मैं. कल मंझली , फिर छुटकी , . तीनो चिरैया , बारी बारी से फुर्र ,. और मम्मी दरवाजे के पास बैठी , अकेली
मैं समझती नहीं थी क्या , . मैं भी आ के , उनके बगल में ,. उनकी गोद में अपना सर रख कर ,
कैसे छोटी बच्ची की तरह , मेरे रिबन बांधती , बाल संवारती , नाक छिदी तो कितना दर्द हुआ था , लेकिन बस मम्मी ने ऐसे ही गोदी में , .
देर तक बस हम माँ बेटी ऐसे ही बिना बोले , वो बस मेरा बाल सहलाती रहतीं , और जब मैं सर ऊपर कर के देखती तो
उनकी दियली सी आँखों में , . मुझे देखते ही वो आँख बंद कर लेती , झूठमूठ का आँख रगड़ने लगतीं , बोलती कुछ नहीं कुछ पड़ गया था ,
पर शादी ब्याह का घर , गांव का माहोल ,. कोई न कोई कुछ काम ले के , . और वो उठ के , . मुझे अभी भी याद है , उनके आँचल में सारी चाभियाँ बंधी रहती थी , और थोड़ा सा फुटकर पैसा भी , .
सोच के ,
कन्यादान के समय के गाने , .
पाँव पूजी चलती रहती थी और आँख में आंसू भी , .
जब हम जनतीं , धिया कोखिये होइए
प्रभु जी से रहतीं उछास
अरे लागल सेजिया उढ़स देतीं ,
कटती अंगनवा सारी रात ,
धिया के जनमते माहुरवा हम चटावती,
बेटी होली घर क सिंगार ,
गइया , भैंसिया भले दान करिया पापा , बेटी हो दूर जिन भेजिया बिदेस ,
कटोरवा कटोरवा दुधवा पियालुं और खियवली दूध भात ,
हो धियवा चलली सुन्दर बर के साथ ,.
होत भिनसरवा जाइबों हो पापा बड़ी हो दूर ,
होत भिन्सारवा जाइबो हो चाचा बड़ी हो दूर
जब हम जनती कन्यादान करतीं पापा जी ,
खातीं जहर मर जातीं हो पापा जी
सोने के पिंजड़ा बना देती पापा जी ,
सुन्दर धियवा छुपा देतीं पापा जी
काठ के करेजवा पापा करैला बाटा हो हमरो के करैले बाटा हो
घूंघट के अंदर मैं बार बार अपनी आँखे बंद कर लेती , जोर जोर से भींच लेती , .
सहेलियां , भाभियाँ , नाउन , नाउन की बेटी मुझे सुना सुना के इन्हे छेड़ती ,
पर मैं जानती थी ये सब मेरा मन रखने को , .
आखिर वो सब भी तो उसी रास्ते से गुजर के आयीं है , या जानेवाली हैं सब को उस का दर्द मालूम है , .
कालेज से आती थी कहीं अपना बस्ता फेंका ,
कभी मंझली से झगड़ा करने बैठ गयी तो कभी मम्मी से दस ओरहन , .
पर अब जब जाउंगी तो कोई बोलेगा , सामान यहाँ रखवा दो ,
मुझे बार बार उनकी एक ही बात याद आती थी , गुड़िया खेलने वाली , गुड़ियों की शादी रचाने वाली बेटियाँ जब कब खुद डोली पर चढ़ कर चली जाती हैं पता नहीं चलता ,
किसी तरह से झटक के मैंने उन यादों को अलग किया , जैसे पुराने अल्बम कहीं बक्से के कोने में , . पर , .
सच में , . वो तो मेरी सास , इतनी अच्छी इतनी अच्छी , सास कम सहेली ज्यादा , मुझसे ज्यादा मेरा ख्याल रखने वाली
नहीं तो पहले दिन से ही मजाक में सही , सोहर की तैयारी शुरू ,
और अगर साल दो साल हो गए , . तो फिर झाड़ फूंक , डाकटर बैद सब ,.
मैंने तो इन्ही से बोल दिया था , साफ़ साफ , और सासु से भी , . पहले पांच साल कुछ नहीं , उसके बाद , . एकदम ,.
दिन कटते नहीं थे , लेकिन चारा भी क्या था , . बस वीकेंड के इंतजार में और आखिरी के हफ्ते में तो वो भी
उनको फॉरेन जाना पड़ा , .
मेरे तो कुछ समझ में नहीं आता था
पता नहीं क्या क्या , . बिग डाटा , आर्टिफिशयल इंटेलिजंस , डार्क वेब ,.
मुझे सिर्फ गुस्सा लगता था , इस के चक्कर में दस दिन और ,
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,. "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,
बिदेस
हाँ जब पहली बार जेनेवा से उनका फोन आया तो मैं एकदम उछल पड़ी ,
' बिदेस से बोल रहे हैं ,. "
मैं गाँव की लड़की , मेरे लिए कोई बनारस से लखनऊ चला जाए तो ,. .
हम लोग जो ईस्टर्न यूपी वाले बिहार वाले हैं तो बिदेस तो जैसे उनकी किस्मत में , . .
आज से नहीं सैकड़ों साल से , एक दिन मैं मम्मी के साथ बी एच यू में मंन्दिर में , और कुछ वेस्टइंडीज की औरतें , वैसे तो फ्रेंच या पता नहीं क्या बोल रही थी पर गाना गाने लगीं तो एकदम भोजपुरी ,
सच में , फिजी , गुयाना , मारसिश और पता नहीं कितने कितने देस , ईस्ट इण्डिया कम्पनी के सिपाही बनकर चीन , बर्मा , मलाया , .
मेरी सास बताती थीं , .
उनकी सास ने बताया था , तब यहाँ बड़ी लाइन नहीं थी , सब लोग गाँव के , शाहगंज जाते थे गाँव से कोई जाता था कलकत्ता , उसे छोड़ने , चटकल की मिल में काम करें ,
इसी इलाके से , भोजपुरी इलाके से ही , भिखारी ठाकुर हो सकते थे , और बिदेसिया भी ,.
मैंने देखा तो नहीं लेकिन अपने गाँव में भी पुरानी औरतों से सुना था , .
गौना हो के दुल्हिन आती थी , पहली रात को ही सब औरतें सीखा पढ़ा के
अपनी आँखी की पुतरी में बंद कर लेना , पलक अच्छी तरह , .
आठ दिन , हद से हद दस दिन , फिर वो कमाने ,. और उसके बाद बस कभी चिट्ठी का इन्तजार कभी छुट्टी का ,
और अभी भी , एक दिन मैं लखनऊ गयी थी , स्टेशन पर , कोई ट्रेन थी , हाँ पुष्पक , ठूंस ठूंस कर , जनरल डिब्बे में , . सब लोग बंम्बई ,
बमबई , सूरत , पंजाब , और कुछ जुगाड़ लग गया , गहना गुरिया गिरवी रख के हाथ पैर जोड़ के कभी दुबई कभी कत्तर , कभी ,.
एक गाना मैं बहुत गाती थी , कॉलेज में किसी कम्पटीशन में ,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे,
रेलिया बैरन पिया को लिए जाए रे ।
जौन टिकसवा से बलम मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
पानी बरसे टिकस गल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौने सहरिया को बलमा मोरे जैहें, रे सजना मोरे जैहें,
आगी लागै सहर जल जाए रे, रेलिया बैरन ।।
जौन सवतिया पे बलमा मोरे रीझे, रे सजना मोरे रीझें,
खाए धतूरा सवत बौराए रे, रेलिया बैरन
लेकिन उसका मतलब अब समझ में आया , गाने का असली मतलब उसकी आखिरी लाइन में
ना रेलिया बैरन , न जहाजिया बैरन , इसे पइसवा बैरन हो ,. .
देह की आग , मन की आग बहुत कठिन होती है लेकिन पेट की आग उससे भी ज्यादा , .
गाँव में सुने एक गाने की लाइन अक्सर कान में गूँजती रहती है ,
भुखिया के मारे बिरहा बिसरिगै , बिसरैगे कजरी कबीर ,
अब देख देख गोरी क जोबना
न उठै करेजवा में पीर ,. .
आप भी कहेंगे न कहाँ की बातें लेकर बैठ गयी मैं आज , पर मन में जो उमड़ता घुमड़ता रहता है न कभी वो वो आँख से फिसल पड़ता है तो कभी शब्द बनकर
एम्स्टर्डम में भी बजाय तीन दिन के दस दिन रहना पड़ा उन्हें , .
मुझे सब से बड़ी चिंता यही लगी रहती थी खाएंगे क्या , वहां दाल चावल मिलेगा की नहीं ,
इनके नखड़े भी तो बहुत नहीं मिलेगा नहीं खाएंगे , कौन समझाये इन्हे
लेकिन एक अच्छी बात थी ,
ज्यादा तो नहीं लेकिन बताया था इन्होने, एक लड़की मिल गयी थी , पंजाब की , काफी दिनों से एम्स्टर्डम में रहती है ,
वो भी इन्ही सबी चीजों में ,.
उसका कुछ बनारस से कभी का ,.
दूबे भाभी को अच्छी तरह जानती है , अरे वही औरंगाबाद वाली ,.
कुछ नाम बताया तो था उन्होंने , अच्छा सा नाम है , इनका ख्याल रखती है , .
नाम उसका , . हाँ याद आ गया ,
रीत।
साजन घर आया
जिस दिन वो लौटे , . पूरे पांच हफ्ते बाद ( वीकेंड मैं नहीं काउंट कर रही ) अपनी वो ट्रेनिंग वेनिंग खतम करके , .
उस रात , ' कुछ नहीं ' हुआ , .
लौटे भी वो आधी रात के बाद थे , मैं तो हर दस मिनट के बाद उन्हें कभी व्हाट्सऐप पर पूछ रही थी , कहाँ पहुंचे ,. और जब उनकी टैक्सी गवर्मेंट गर्ल्स इंटर कालेज ( अरे वहीँ , जहाँ उनका माल और उसकी सहेलियां पढ़ती थीं , ना )
मैं बस दौड़कर नीचे पहुंची , और जब दरवाजा खोला तो बस वो टैक्सी से उतर रहे थे।
असल में , गलती मेरी ही थी , मैंने ही उन्हें दस काम पकड़ा दिए थे।
एम्स्टर्डम से आ तो वो दोपहर को ही दिल्ली गए थे , पर मेरे काम। और उनसे वैसे भी सिवाय ' एक काम ' के और कोई काम ठीक से आता नहीं था ( और उसमें भी जबतक वो यहाँ थे रोज गुड मॉर्निंग गुड नाइट के साथ साथ उनकी सलहज , रीतू भाभी कोचिंग चलाती थीं , ऑन लाइन ) ,
और मैंने उन्हें काम पकड़ा दिया था , एकदम औरतों वाला , साड़ी खरीदने का।
मुझे लगा इत्ते दिन बाद आ रहे हैं तो खाली हाथ , .
इसलिए सास और जेठानी के साथ मैंने कम्मो के बार्रे में भी उन्हें अच्छी तरह बता दिया था , साडी के बारे में भी , खूब चटक गाढ़ा रंग उसे पसंद था , लाल या गुलाबी। ये भी न एकदम बुद्धू , समझ में नहीं आया तो दोनों रंग की एक एक ले आये।
आप पूछेंगे कम्मो कौन , बताउंगी न। पक्का। लेकिन कुछ देर बाद पहले तो उनके बारे मैं।
तो मैं क्या कह रही थी , हाँ। शॉपिंग , .
और सास जेठानी के साथ मैंने अपनी ननद के लिए भी , .
वही गुड्डी रानी , .
पर उसके लिए इन्हे याद दिलाने की जरुरत नही थी , वो तो वहीँ से , फॉरेन से ही , खूब हॉट ड्रेसेज , .
पर सच में भुलकक्ड़ नंबर एक , उसकी भी असली चीज भूल गए थे , . जब दिल्ली पहुंचे तो मैंने याद दिलाई , .
अरे वही छोटे छोटे जुबना के लिए , २८ सी , . और साथ में गुलाबो के लिए भी उसकी मॅचिंग पैंटी ,. क्या कहते हैं वो थांग।
और भी बहुत कुछ ,
मेरी जेठानी को मिठाई पसंद थी , तो दिल्ली में घंटेवाले के यहाँ से सोहन हलवा। पूरा चांदनी चौक उनका बस चलता तो उठा लेते , .
ये मत पूछियेगा की मेरे लिए , . हस्बेंड वाइफ की सब चीज बतानी जरुरी है क्या , . लेकिन चलिए जब बाकी बातें नहीं छुपाई तो वो भी , जितना हो सकेगा बता दूंगी।
दो ये बड़े बड़े सूटकेस ,.
एक तो उन्होंने दिल्ली में ही ख़रीदा था सामान रखने के लिए , आखिर इतने दिन बाद , घर लौटे थे आखिर , .
और फिर असली बात ये थी की इन्हे कुछ समझ में तो आता नहीं था , बाजार पहुंचे जो चमक दमक देखा बस खरीद लिया , हाँ साड़ियां अच्छी लाये थे , खूब तारीफ़ हुयी , जेठानी ने भी की और सास ने भी ,
और उनसे तो कुछ छिपता नहीं था इनका कान पकड़ के बोलीं ,
" तुझे तो कुछ याद रहता नहीं , . होली आने वाली है , जरूर दुल्हन ने याद दिलाया होगा। "
जब उन्होंने कबूला तो जा के कान छूटा ,
और सच बताऊं जब मेरी सास और जेठानी मेरे सामने इनकी रगड़ाई होती है तो बहुत मजा आता है , बस मैं आँख झुकाये , मुंह छुपाये , . खिस्स खिस्स ,. लेकिन सबसे ज्यादा खुश हुई कम्मो , इनकी ओर देख के बोली
" बहुत महंगी होगी न "
और इनकी भौजाई कुछ हड़काते , कुछ समझाते बोलीं ,
" भौजाई से होली मुफ़्ते में खेल लेंगे , . "
फिर मेरी भी जुबान खुल गयी ,
" और क्या , एक होली खेलने के पहले की और दूसरी होली खेलने के बाद की , . या क्या पता आपके देवर इलसिए साडी लाये हों की होली में इनकी रगड़ाई कम हो थोड़ी। "
" एकदम नहीं , डबल रगड़ाई होगी अब तो , ई चाहे चिल्लाएं , चाहें , . अंदर तक हाथ डाल के , . अउर देवर भाभी क होली तो पूरे फागुन भर चलती है , होली क दिन का कौन इन्तजार करेगा। "
कम्मो साडी देखते बोली।
उसकी मुस्कराती आँखे इन्ही पर गड़ी थीं।
' किस दिन से फागुन लगेगा , . "
मैंने पूछा तो हँस कर उठते हुए मेरी जेठानी बोलीं ,
" सुबह उठ के इसके गाल देखलेना पता चल जाएगा , फागुन लग गया। "
इनके गाल फागुन से पहले गुलाल हो गए , .
मैं कम्मो के साथ किचेन में और ये ऊपर कुछ आफिस का काम ,