Episode 50


और वैसे तो कोहबर की बात सच में कोहबर में ही रहती है , वीडियो वाले भी नहीं घुसते , मर्दों में सिर्फ दुलहा ,. लेकिन मेरी बहने , वो तो मोबाइल पर रिकार्ड कर रही थीं , और फिर व्हाट्सऐप , फेसबुक और गूगल ड्राइव का जमाना ,

कोहबर की शर्त ,

होली का वादा

कुल सात बार इनकी साली सलहजों ने इनसे तिरबाचा भरवाया था , कसम धरवाई थी , होली में जरूर आएंगे ,

और कम से कम पांच दिन रहेंगे पूरे रंग पंचमी में ,.

इनकी सालियों ने जोड़ कर दिन घडी तक बता दी थी , आज से ९४ दिन बाद ,

और वैसे तो कोहबर की बात सच में कोहबर में ही रहती है , वीडियो वाले भी नहीं घुसते , मर्दों में सिर्फ दुलहा ,.

लेकिन मेरी बहने , वो तो मोबाइल पर रिकार्ड कर रही थीं , और फिर व्हाट्सऐप , फेसबुक और गूगल ड्राइव का जमाना , .

छुटकी ने हमारी बिदाई के घंटे भर के अंदर ही सब का सब जेठानी जी को ,

वैसे भी मेरे रिश्ते से मेरी बहनो की बड़ी बहन ही लगती थीं ,

और वो दोनों , मंझली और छुटकी उन्हें बड़ी दी ही कहती थीं ,

वो दोनों मेरी बहने , बचपन से उन्होंने मेरी कोई बात नहीं मानी तो अब क्या मानती लेकिन मेरी जेठानी की एक एक बात ,

और जेठानी जी को कोहबर की एक एक बात वीडियो स्टिल सब , और ये भी की सात बार उनके देवर ने कहा है की वो पहली होली में ससुराल जाएंगे , .

इसलिए शायद उन्होंने सास जी को समझाया हो , . कि इस बार होली में हम लोग मायके चले जाएँ ,.

और सासू वैसे भी , मुझसे ज्यादा मेरा ख्याल करती थीं।

और यह बात पक्की भी हो गयी , जब हम लोग शॉपिंग से लौटे तो जेठानी जी अकेले बाहर बरामदे में खड़ी थी , इन्हे चिढ़ाते बोलीं ,

गाँव की होली , रगड़ायी तो तेरी खूब होगी , लेकिन चलो तेरी कोहबर की शर्त तो पूरी होगी ,

और जब हम दोनों ऊपर कमरे में चढ़ रहे थे तो उन्होंने अपने देवर को वार्न भी कर दिया ,

" ये मत सोचो यहाँ बच जाओगे , मुझसे , . ससुराल तो होली में जाओगे , यहाँ तो फागुन लगते ही ,. पहले दिन से ही और अबकी तो मेरे साथ कम्मो भी है।"

लग गया फागुन

और यह बात पक्की भी हो गयी , जब हम लोग शॉपिंग से लौटे तो जेठानी जी अकेले बाहर बरामदे में खड़ी थी , इन्हे चिढ़ाते बोलीं ,

गाँव की होली , रगड़ायी तो तेरी खूब होगी , लेकिन चलो तेरी कोहबर की शर्त तो पूरी होगी , और जब हम दोनों ऊपर कमरे में चढ़ रहे थे तो उन्होंने अपने देवर को वार्न भी कर दिया ,

" ये मत सोचो यहाँ बच जाओगे , मुझसे , . ससुराल तो होली में जाओगे , यहाँ तो फागुन लगते ही ,. पहले दिन से ही और अबकी तो मेरे साथ कम्मो भी है।

दीदी फागुन कब से लगेगा ,

मैंने अपनी जेठानी से पूछा।

वो जोर से खिलखिलायीं , और साथ में कम्मो भी , .

" सुबह सुबह मेरे देवर को देख लेना , पता चल जाएगा , आज फागुन का पहला दिन है। "

सच में फागुन का इन्तजार सबसे ज्यादा रहता है देवर को और उससे ज्यादा भाभियों को , .

और फागुन का पता तो खिलते पलाश और हवा की फगुनाहट दे देती है ,

आम में लगे बौर ,

खेतों में फूली इतराती बसंती सरसों , नयी जवान होती लड़कियों की तरह इठलाती खिलती है ,

और कब यह फागुन सीधे आँखों से साँसों से उतर कर तन मन में आग लगा देता है , पता नहीं चलता।

बाहर आम बौराता है , और घर में तन मन सब , .

आज कल तो यू ट्यूब पर होली के नए गाने आने लगते हैं , देवर भाभी , जीजा साली , गानों में होली के साथ चोली की तुक जरूर जोड़ी जाती है , किस्मत वाला देवर हुआ और थोड़ा उदार साली या जोशीली सलहज हुयी तो साली के चोली में भी सेंध लग ही जाती है , वरना चोली के ऊपर से ही , . .

देवर भाभी तो साथ ही रहते हैं ,

आज के व्हाट्सऐप और टेक्स्ट के जमाने में , जीजा साली के बीच सन्देश गरमा भी जाते हैं और ना ना के बीच भी जीजा हाँ समझने की कोशिश करते हैं , .

सच में मुझे ये बात सास की और उनके पीछे मेरी जेठानी की अच्छी लगी की उन्होंने मेरे बिना बोले , मेरे मन की और सबसे बढ़कर इनकी मन की बात समझ ली , . लेकिन

लेकिन मन के कोने में कहीं ये भी था की ससुराल में होली के मजे ,. नयी दुल्हन की रगड़ायी ,

पर ये भी था होली के प्लान के सेंटर में कहीं मेरे नन्दोई भी थे , . .

. शादी के बाद से मेरी उनसे अच्छी सेटिंग हो गयी थी और उन्होंने जिस तरह से मिली की रगड़ाई की , गुड्डो को शीशे में उतारा , . उन्होंने मुझे चैलेंज किया था की होली में नहीं छोडूंगा बचोगी नहीं ,. और मैंने भी बोला था बचना कौन चाहती है , . . आइये अगर इसी आँगन में आपके कपडे नहीं फाड़े ,. और मेरी जेठानी ने भी चैलेन्ज दे दिया था दिया था , . .

एकदम नन्दोई जी , अबकी दो दो सलहज होंगी , डरियेगा मत ,.

हफ्ते में एक बार ननद का फोन आ ही जाता था और साथ में पीछे से वो भी , डबल मीनिंग डायलॉग, सच में कुछ रिश्ते , इसके बिना अच्छे ही नहीं लगते , ननदोई सलहज का उसमें से एक है , दोनों शादी शुदा , अनुभवी , . पर

पर नन्दोई जी ही , . मैदान उन्होंने ही छोड़ दिया ,. उनके घर में कोई शादी थी होली के एक दो दिन आगे पीछे, ,. और इसलिए

और मेरा देवर , अनुज ,.

उसका भी कोई इंजीनियरिंग का इंट्रेंस का एक्जाम था , मैंने सोचा था होली में उस की रगड़ाई करुँगी जबरदस्त , . वैसे तो कर्टसी मी , गुड्डो और रेनू के ऊपर चढ़ाई कर चुका था वो , .
फिर भी मेरे सामने इतना शर्मीला , लजीला ,. मुझे बार बार रीतू भाभी की बात याद आ जाती थी , ऐसे चिकने लौंडो को होली में , नंगा कर के ,. निहुरा के , बस सारी सरम लिहाज उनकी गाँड़ में डाल दो , . आँगन में आधा घंटा नंगा नचाओ , उनकी बहनों के सामने , बहनों का नाम ले ले के सड़का मरवाओ , . देखो स्साली सरम ,.

अब मैं रीतू भाभी की बराबरी तो नहीं क्र सकती थी ,.

लेकिन थी तो उन्ही की ननद , और रीतू भाभी ने सात बार कसम धरवाई थी , ससुराल में उनकी नाक नहीं कटवाउंगी , . लेकिन वो स्साला मेरा देवर खुद ही होली के चार दिन पहले बनारस जा रहा था , वही इम्तहान के चक्कर में , .

पर मेरी सासू सच्च में बहुत अच्छी थीं , पहला अच्छा काम इन्होने ये किया की इन्हे पैदा किया ,. ( मेरी मम्मी होतीं तो तुरंत ये जोड़तीं , पता नहीं किससे चुदवा के , गदहा , घोड़ा ,. और सच में वो गदहे घोड़े वाली बात पर मैं भी अब यकीन करने लगी थी , इनका वो देखकर ) ,

लेकिन सब से अच्छी बात थी , मेरे मन की बात , बिना ब्रॉडकास्ट , टेलीकास्ट किये उन्हें पता चल जाती थी , मेरे बिना बोले ,

और मेरे इस उहापोह को भी वो समझ गयीं , जिस दिन ये फैसला हुआ की होली में ये अपने ससुराल जाएंगे , उसी दिन शाम को खाने के बाद , .

" अरे दुल्हिन का सोच रही हो , देवर ननद की रगड़ाई होली की ,. अरे उ तो फागुन लगते ही ,. फिर होली तो पंद्रह दिन बाद पड़ेगी न , . तो पन्दरह दिन तक रोज होली , . "

और जेठानी ने भी हुंकारी भरी , .

एकदम और पहले तो मैं अकेले थी अब तो तुम भी हो , कम्मो भी है ,एकदम कपडा फाड़ होली ,. अरे रंग देवर ननद से खेलते हैं , उनके कपड़ों से थोड़े ही ,

एकदम रीतू भाभी टाइप उवाच , सच में जितनी गाँव में मेरी रीतू भाभी से दोस्ती थी , उससे कम मैं अपनी जेठानी से नहीं खुली थी , सुहाग रात के दिन उन्होंने ही मुझे समझाया था की उनका देवर कुछ ज्यादा ही सीधा है केयरिंग है , इसलिए मैं ज्यादा ना ना न करूँ , वरना ,. . और उनकी बात सोलहों आना सच थी

पन्दरह दिन तो नहीं , १२-१३ दिन मैं यहाँ थी ससुराल में , .

फिर इनकी ससुराल , .

प्लान ये था की होली के दो दिन पहले हम लोग पहुंचेंगे , . मंझली का हाईकॉलेज का बोर्ड चल रहा था उस दिन लास्ट पेपर था ,. अगले दिन ,. जिस दिन होली जलती वो भी ,. वो बनारस में अपनी किसी सहेली के साथ रह कर बोर्ड दे रही थी , . तो वो और उसकी सहेली भी , .

इनके ससुराल में तो पांच दिन की होली होती थी , . रंग पंचमी तक , .

और असली होली तो होली के बाद ही होती थी , कीचड़ और ,. रंगपंचमी के बाद तीन दिन और हम लोग रहते , कुल दस दिन ,. और वहीँ से सीधे इनकी जॉब पर , . फ्लाइट बनारस से ही थी।

और सासू जी की बात से मेरे मन में एक नया जोश आ गया , १२ -१३ दिन कम नहीं होते , गुड्डी , रेनू , उसकी और सहेलियां , अनुज ,. मेरा देवर ,. .

इसीलिए मैं जेठानी जी से पूछ रही थी ,

" दीदी , फागुन का पहला दिन कब है " और उन्होंने बोला पता चल जाएगा तुझे खुद ही ,.

और सच में पता चल . गया।

लग गया फागुन

" दीदी , फागुन का पहला दिन कब है " और उन्होंने बोला पता चल जाएगा तुझे खुद ही ,.

और सच में पता चल . गया।

मैंने बताया था न की सुबह की चाय मुझे बेड रूम में ही मिलती थी , और बनाता कौन था , . ये और कौन ,. मुझे तो रात भर रगड़ के रख देते थे , एकदम कचर कर और मैं उठने की हालत में नहीं रहती थी , .

लेकिन ये भी बात है , चाय अच्छी बनाते थे ,

पर जब ये ट्रेनिंग के लिए गए तो ये काम शिफ्ट हो गया , .

मेरी जेठानी , .

रात तो बस ऐसी ही गुजर जाती , कभी थोड़ी बहुत नींद आती कभी वो भी नहीं , . और सुबह उठ कर , फ्रेश हो कर सीधे नीचे किचेन में , जहां मेरी जेठानी चाय बनाती रहतीं , .

तो जब ट्रेनिंग ख़तम कर के ये आये तो भी सुबह का मेरे चाय का सिलसिला नीचे ही चलता रहा , ये तो रात भर दंड बैठक लगा कर सुबह घोड़े ( मेरा मतलब मेरी ननदें ) बेच कर सोते रहते , .

और मैं नीचे जेठानी जी के साथ , दस मिनट की चाय कम से कम डेढ़ घंटे में पूरी होती ,

और अक्सर ये भी नीचे आ जाते ,

कभी इनके आने के पहले रात के नोट्स हम लोग कम्पेयर करते तो कभी , बल्कि अक्सर हम लोगों की की ननद , इनके एलवल वाले माल की बात होती और इनके आने के बाद तो एकदम , बस वही एक बात , . इनकी हम दोनों मिल के खिंचाई करते ,

बस इनकी ममेरी बहन का नाम इनसे जोड़ जोड़ के ,

उस दिन भी , मैं नीचे आगयी थी , फ्रेश भी वहीँ हुयी , ब्रश किया , . रात से ऊपर हम लोगों के बाथरूम में पानी नहीं आ रहा था। और जेठानी जी ने मुझसे कहा की वो थोड़ी देर में आ रही हैं , कुछ अपने आँचल में छुपाये हुए थीं

चाय मैं आज बना लूँ ,.

बीस पचीस मिनट में आ गयीं वो ,

और उसके बीस पचीस मिनट के बाद उनके देवर और आते ही बरामदे में लगे वाश बेसिन के पास , ब्रश करने के लिए ,

और बड़ी तेजी से कम्मो की हंसी सुनाई पड़ी ,

कम्मो बताया तो था , मेरे ससुराल में जो काम वाली काम करती थी , उसकी बहु , एकदम घर की तरह , . काम वाली तो महीने भर के तीरथ पर , तो रिश्ते से इनकी भौजी लगती , मुझसे खूब पटती थी उसकी , .

ननदों की रगड़ाई करने के मामले में , 'असली ' वाली गारी गाने के लिए और सब बढ़ कर इन्हे छेड़ने के लिए ,

उसकी शादी के चार पांच साल हो गए थे , लेकिन मरद पंजाब कमाने गया था , डेढ़ दो साल में एक बार आता था ,

कभी कभी मैं और जेठानी जी उसे चिढ़ाती थीं की तेरा काम कैसे चलता है ,

तो वो हंस के बोलती , अरे इतने देवर हैं , क्या खाली ननदों के साथ कबड्डी खेलने के लिए बने हैं , . और इनसे भी उसका रिश्ता देवर भौजाई का ही था ,.

एकदम खुल के इन्हे छेड़ती भी थी ,

तो वो जोर जोर से हंस रही थी और ये शीशे में अपने को देख रहे थे ,

मैं भी बाहर निकली तो इन्हे देख कर हंस हंस कर , .

मेरे साथ जेठानी जी भी , लेकिन वो ज़रा भी नहीं हंसी , खाली मुझसे बोली ,

" आज फागुन लग गया "

और इन्हे जोर से हड़काया , . खबरदार जो ज़रा सा भी छुड़ाया , . इत्ते मुश्किल से आधे घंटे में लगाया है ,.

सच में जेठानी ने उनकी मस्त धजा बनाई थी , .

खूब चौड़ी सीधी मांग में भरा छलकता हुआ , खूब भरा सिन्दूर , . नाक पे झरता

( मुझे अपनी पहली दिन की बात याद आयी , जब सुहागरात के लिए मैं जा रही थी कर सासू जी का पैर छू रही थी , मेरी मांग में खूब कस के सिन्दूर भरा था , . वो बोलीं , नयी नयी दुल्हिन की पहचान यही है , मांग में सिंदूर दमकता रहे , झड़ता रहे , . और साथ में बैठी मेरी बुआ सास ने जोड़ा , एकदम नयी दुल्हिन की मांग से सिन्दूर झरे और बुर से सड़का , यही असली पहचान है )

और माथे पे एक चौड़ी से टिकुली , खूब लाल लाल , . आँखों में काजल और गाल

एक गाल अच्छी तरह से कालिख से रगड़ रगड़ कर एकदम उनका गोरा गोरा गाल काला उनकी भौजाई ने कर दिया था और दूसरा गाल व्हाइट पेण्ट से बार्निश ,

अब मैं समझी रोज रात को कढ़ाही और भगोने की कालिख क्यों वो रोज रोज के छुड़ाती थीं ,

होंठों पर मेरी ही लाल लिपस्टिक ,

दीदी ( मेरी जेठानी ) मुझसे मुस्करा के बोलीं ,

" पता चल गया न फागुन का पहला दिन , . "

" एकदम दीदी , शुरुआत ऐसी है तो ,. "

लेकिन मेरी बात ख़तम होने के पहले ही उनकी तेज निगाह अपने देवर पर पड़ी , जो वाश बेसिन के सामने मुंह धोने की कोशिश कर रहे थे ,

" खबरदार जो रंग छुड़ाने की कोशिश की , इत्ती मेहनत से रगड़ रगड़ के लगाया है पूरे आधे घंटे। "

उन्होंने अपने देवर को हड़काया।

दीदी ( मेरी जेठानी ) मुझसे मुस्करा के बोलीं ,

" पता चल गया न फागुन का पहला दिन , . "

" एकदम दीदी , शुरुआत ऐसी है तो ,. "

लेकिन मेरी बात ख़तम होने के पहले ही उनकी तेज निगाह अपने देवर पर पड़ी , जो वाश बेसिन के सामने मुंह धोने की कोशिश कर रहे थे ,

" खबरदार जो रंग छुड़ाने की कोशिश की , इत्ती मेहनत से रगड़ रगड़ के लगाया है पूरे आधे घंटे। "

उन्होंने अपने देवर को हड़काया।

तबतक कम्मो भी मैदान में आ गयी , वही जो मेरी जेठानी से उमर में साल दो साल ही बड़ी रही होगी और लगती इनकी भौजी ही थी , और साथ में मेरी सास भी पूजा कर के आ गयीं , वो भी इन्हे देखकर मुस्कराने लगीं।

" अरे अगर तनिको छुड़वाने क कोशिश करीहें न , तो जितना मुंहवा पे लगा है न उसका दूना गंडियों पर लग जाएगा , . दू दू भौजाई हैं , . "

कम्मो एकदम अपने लेवल पर आ गयी .

मैं मजा लेने का मौका क्यों छोड़ती , चाय छानते मैं बोली , ( देख मैं उनको रही थी , पूछ अपनी जेठानी से रही थी , सच में बहुत मज़ा आ रहा था उनकी दुर्गत देखने में ,. )

" लेकिन दीदी आपके देवर ने मुंह किसके साथ काला किया ये समझ में नहीं आ रहा है "

लेकिन जवाब कम्मो ने दिया , मुझसे चाय लेकर अपने देवर को देते बोली ,

" और कौन , उ एलवल वाली छिनार , उहै चोदवासी फिरती है , का नाम है ओकर ,. रंडी ,. कहो देवर जी सही कह रही हूँ न ओहि के साथ "

वो बेचारे क्या बोलते , सासू जी बगल में बैठी थीं , और वो एकदम खुल के मुस्करा रही थी और मेरी जेठानियों को चढ़ा रही थीं , "

मैं भी अब एकदम खुल गयी सबसे , मैंने थोड़ा सा नाम में संशोधन किया , .

" रंडी की ,. गुड्डी "

" अरे नाम भले गुड्डी है , काम तो रंडी का ही है ,. पैदायशी खानदानी रंडी क्यों देवर जी है न ,. "

अब मेरी जेठानी भी कम्मो के लेवल पर उतर आयीं थीं ,

वो बेचारे क्या बोलते , सासू जी बगल में बैठी थीं , और वो एकदम खुल के मुस्करा रही थी और मेरी जेठानियों को चढ़ा रही थीं , "

मैं भी अब एकदम खुल गयी सबसे , मैंने थोड़ा सा नाम में संशोधन किया , .

" रंडी की ,. गुड्डी "

" अरे नाम भले गुड्डी है , काम तो रंडी का ही है ,. पैदायशी खानदानी रंडी क्यों देवर जी है न ,. " अब मेरी जेठानी भी कम्मो के लेवल पर उतर आयीं थीं ,

उनके तो वैसे ही बोल नहीं फूटते थे और यहाँ दो दो भौजाइयां , . और साथ में बगल में उनकी माँ बैठी थीं , और हम सब मिल के उन्हें रगड़ रहे थे। और मैं आग में घी डाल रही थी , रात में कमरे में तो गुड्डी का नाम लेकर इन्हे छेड़ती ही थी , पर आज सबके सामने , एकदम जबरदस्त मज़ा आ रहा था ,

" आपके देवर ने कितनी बार मुंह काला किया उस रंडी , मेरा मतलब गुड्डी के साथ। "

जेठानी ने मुस्करा के मेरी ओर देखा जैसे कह रही हों , एकदम असल देवरानी हो मेरी , पर जवाब एक बार फिर कम्मो ने दिया , उन्ही से पूछ कर ,

" बोलो न , कितने बार , . . एक दो बार में ओह छिनार क बुर की प्यास तो बुझेगी नहीं , . लेकिन आने दो , जउने दिन पकड़ में आएगी न यह फागुन में , एही आंगन में ओके नंगे नचाउंगी , तोहरे सामने , और बाल्टी भर रंग सीधे उसकी बुर में डालूंगी तो उसकी पियास ठंडी होगी , . "

" अरे न नाउन दूर न नहन्नी , जाके बुला लाइए न उसको , . अब आपकी भाभी कह रही हैं , और आपकी बात तो वो रंडी , . मेरा मतलब गुड्डी टालती नहीं , . "

मैं भी उनकी रगड़ाई में जुट गयी।

लेकिन सासू जी ने एकदम वीटो कर दिया , बोलीं , . अरे फ़ोन काहे को है , फिर अभी तो उसका कॉलेज चल रहा होगा , जब शाम को बाजार जाना तो एलवल हो लेना , लेकिन अभिन गुझिया , चिप्स , पापड़ बहुत काम है , . "

और मेरी सास , मेरी जेठानी , कम्मो सब लोग किचेन के बाहर बैठ कर होली का सामान बनाने में लग गए , उन्होंने उठने की कोशिश की , तो कम्मो ने रोक लिया , खाली हमार नन्दन के साथे मुंह काला करे में लगे रहते है , चलो बैठ के काम करवाओ , . और वो फस्स मार के बैठ गए।

मैं तो समझ रही थी , मुस्करा रही थी , इस लड़के को तो सिर्फ एक काम आता है , . कोई बहाना बना के मुझे टुकुर टुकुर देखना , . जहाँ वो बैठे थे , वहां से मैं किचेन में साफ़ साफ दिख रही थी , आज किचेन में खाना बनाने का काम मेरे जिम्मे था , होली के सामान बनाने का काम सास जेठानी के जिम्मे , . "

मैंने पीढ़ा थोड़ा और सरका लिया , जिसे उन्हें और साफ़ दिख सकूँ , . . देखने का मन कर रहा है तो बेचारे का तो देखे।

सच में एकदम नदीदे थे , कभी भी उनका मन नहीं भरता था , न देखने में न ,. और कभी मैं उनका कान का पान बना के पूछती भी थी , तेरा मन नहीं भरता तो वो बेसरम साफ़ बोलता , . . नहीं , सात जनम का तो लिखवा के लाया हूँ , तो तेरी सात जनम तक तो छुट्टी नहीं ,

और मैं खुद उन्हें चूम के बोलती ,

"और आठवें मैं मैं साजन तुम सजनी ,. जितनी रगड़ाई तुम सात जनम में करोगे न उतनी मैं एक जनम में अकेले कर दूंगी तेरी , सब हिसाब रख रही हूँ , सूद के साथ साथ। "

मैं किचेन का काम भी कर रही थी और बाहर की सब बात भी सुन रही थी , बीच बीच में पलीता भी लगाती और दो भौजाइयां उनकी जिस तरह खिंचाई कर रही थीं ये भी देख रही थी ,

गुझिया का सामान बन रहा था , मेरी सास ने कम्मो को बोला , ज़रा देख ले न पहले मीठा ठीक है न ,

" तानी चख के देखा न , " कम्मो ने एक चुटकी में गुझिया का खोवा , सीधे उनके मुंह में डाल के पूछा ,

लेकिन मैं अपनी सास को मान गयी , फगुनाहट उनपर भी चढ़ रही थी ,

" अरे भौजी क ऊँगली केतना मीठ है ये मत बताना , खोआ और मीठ तो नहीं चाहिए , . " उन्होंने उनसे पूछा।

ऊँगली थोड़ा और उनके मुंह में धँसाते कम्मो बोली , " अरे उ रंडी ,. . गुड्डी क होंठवा अस मीठ है ना , . "

" हाँ " उन्होंने सर हिलाया और सास मेरी कम्मो सब लोग हंस पड़े , साथ में किचन में से मैं बोलीं ,

" तो चलो मान तो लिया चखे हो ,. हमार ननदिया के होंठ। "

" अरे ऊपर वाला और नीचे वाला दोनों , हमार देवर को समझती का हो , पक्का बहनचोद है , "

उनके मुंह से निकली सीधे अपने होंठों के बीच डालती कम्मो बोली। तबतक मेरी जेठानी जो स्टोर से कुछ सामान निकालने गयी थीं , वापस आ गयी , सु वो भी सब रही थी और उन्होंने भी जोड़ दिया , .

" और हमार ननद भाइचॉद "

फिर तो दोनों उनकी भौजाइयां , डबल अटैक , . और डबल मीनिंग तो छोड़ दीजिये असल वाली , और आज मेरी जेठानी भी एकदम कम्मो के लेवल पर

" क्यों देवर जी समोसे कैसे पंसद है , आपको , छोटे साइज वाले , . ये देखिये हैं न एकदम गुड्डी की साइज के "

छोटे छोटे होली वाले समोसे बनाते मेरी भौजी ने चिढ़ाया ,

" अरे दबाय मीज मीज के बड़ा कर दिया , . मिजवाती तो होगी न तुमसे , . " कम्मो समोसा तलते बोली। "

मेरा मन भी नहीं लग रहा था , किचेन का काम जल्दी जल्दी ख़तम कर के मैं बाहर होली का सामान बनवाने पहुंची और गुझिया तलने का काम मैंने ले लिया ,

सास मुझे दे रही थीं , और उनकी दोनों भौजाइयां बचा हुआ मैदा उनके गाल में लगाने में लगी थीं ,

वो वाश बेसिन पर गए छुड़ाने , और मेरी जेठानी स्टोर से पिछली होली के बचे रंग का स्टॉक ला के मेरी सास को दिखा रही थीं , इतना बचा है आज शाम को मंगा लुंगी और , लेकिन ये पता नहीं केतना चटख होगा , .

और मैंने सुझाव दे दिया , इनकी दोनों भौजाइयों को ,

" अरे आपके देवर हैं न चेक कर लीजिये उनके गाल पे , . "

" बहू ठीक तो कह रही हैं , अब खाली गुझिया ही छानना है , मैं और बहू मिल कर कर लेंगे , तुम दोनों उठों न " सासू जी ने ग्रीन सिग्नल दे दिया ,

लग गया फागुन , उनका फागुन , उनकी भौजाइयां

वो वाश बेसिन पर गए छुड़ाने , और मेरी जेठानी स्टोर से पिछली होली के बचे रंग का स्टॉक ला के मेरी सास को दिखा रही थीं , इतना बचा है आज शाम को मंगा लुंगी और , लेकिन ये पता नहीं केतना चटख होगा , .

और मैंने सुझाव दे दिया , इनकी दोनों भौजाइयों को ,

" अरे आपके देवर हैं न चेक कर लीजिये उनके गाल पे , . "

" बहू ठीक तो कह रही हैं , अब खाली गुझिया ही छानना है , मैं और बहू मिल कर कर लेंगे , तुम दोनों उठों न " सासू जी ने ग्रीन सिग्नल दे दिया ,

बस कम्मो के हाथ में बैंगनी रंग और मेरी जेठानी के हाथ में गाढ़ा लाल रंग ,

वो वाश बेसिन पर , चेहरे का मैदा छुड़ाने में लगे थे ,

पीछे से दोनों भौजाइयां , मेरी जेठानी ने दोनों गाल अपने देवर के दबोचे

और कम्मो ने सीधे कुर्ते के अंदर हाथ डाला ,

" अरे बरामदे में नहीं , आंगन में ,. "

थोड़ी ही देर में देवर और दोनों भौजाइयां , आंगन में

मेरी जेठानी ने तैयारी पहले से कर रखी थी , आंगन में दो बाल्टियां थीं ,

एक में गाढ़ा लाल और दुसरे में नीला रंग घोल के उन्होने रख रखा था , और भाभी उनकी , बहोत तगड़ी , निशाना भी अचूक , .

एक बार में ही पूरी बाल्टी उठाकर सीधे अपने देवर पर , उनका सफ़ेद कुरता , पाजामा , .

पीछे से उनकी कम्मो भौजी ने उन्हें दबोच रखा था , और अपने बड़े बड़े ३८ डी डी , कड़े कड़े जोबन उनकी पीठ में रगड़ रही थीं ,
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