Episode 51
मेरी जेठानी का निशाना अचूक था , रंग सीधे उनके कुर्ते पर और फिर खूंटे पर , ( चड्ढी उन्होंने पहन नहीं रखी थी ) , पाजामा पूरा चिपक कर , एकदम साफ़ साफ़ , . सब कुछ दिखता है वाले अंदाज में
लेकिन उनके देवर भी कम तगड़े चालाक नहीं थे ,
अपनी कम्मो भौजी को ढाल की तरह सीधे आगे , और कम्मो का आँचल देवर की बदमाशी से या आपधापी में नीचे सरक गया पता नहीं , पर
मेरी जेठानी की आधी बाल्टी का गाढ़ा लाल रंग सीधे कम्मो के ब्लाउज पर ,
ब्लाउज पूरा गीला होकर उसके बड़े बड़े उभारों से चिपक गया , और ब्रा वो पहनती नहीं थी ,.
ब्लाउज भी एकदम छोटा सा बस नीचे से उभारों को उभारे , उठाये और लो कट , चोली कट
इन्होने दोनों हाथों से अपनी कम्मो भौजी को पीछे से जकड़ रखा था ,
दोनों हाथ उसके चिकने पेट पर ब्लाउज जहाँ नीचे से शुरू होता था बस वहीँ ,
मैं समझ सकती थी इनकी हालत , और इनसे ज्यादा इनके खूंटे की हालत , .
ऐसे मस्त बड़े बड़े जोबन , साफ़ साफ़ झलक रहे हों , मैं जान रही थी मन तो इनका कर रहा होगा , ब्लाउज के अंदर हाथ डालकर , ब्लाउज फाड़ कर दबोच लें , .
ये क्या कोई भी मर्द होता , . होली हो , कम्मो ऐसी लाइन मारती , रसीली भौजाई हो , ब्लाउज के अंदर सेंध लगाने का ये मौका नहीं छोड़ता ,
पर ये भी न , .
इनकी झिझक , सरम , लिहाज ,
कम्मो
ये क्या कोई भी मर्द होता , . होली हो , कम्मो ऐसी लाइन मारती , रसीली भौजाई हो , ब्लाउज के अंदर सेंध लगाने का ये मौका नहीं छोड़ता ,
पर ये भी न , .
इनकी झिझक , सरम , लिहाज ,.
बहुत हिम्मत की तो ब्लाउज के ऊपर से ही उन गीले चिपके उभारों को कस के पकड़ लिया ,
कम्मो ने कुछ भी छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की , बस अपने बड़े बड़े चूतड़ उनके खूंटे पर रगड़ रही थी ,
होली थी , भौजाई थी , रिश्ता था , हक था उसका ,.
लेकिन होली अभी शुरू हुयी थी , भौजाई दो देवर एक , मेरी जेठानी कम्मो की हेल्प के लिए पहुँच गयीं , . और उनसे ज्यादा किसे मालूम था इनकी कमजोरी ,
गुदगुदी ,
बस कभी कांखों में , तो कभी पेट में , . और थोड़ी देर में ही उनकी हालत खराब हो गयी , . बस एक बार कम्मो छूट गयी तो जो काम भौजाइयों को करना चाहिए साथ ,
कुर्ता उनका गीला तो हो ही गया था , उतारने की जहमत उन दोनों ने नहीं की करनी भी नहीं चाहिए ,
चरर चरर , कुरता दो हिस्सों में बंट गया , . और सीधे आंगन में ,. वो मुड़ कर मेरी जेठानी को पकडने की कोशिश करते तो कम्मो गुदगुदी लगाने के लिए तैयार रहती ,
मैं तल गुझिया रही थी ,
लेकिन मेरी निगाह आंगन में चल रही होली पर लगी थी , मेरी सास की और कभी कभी हम दोनों एक दुसरे को देख कर मुस्करा रहे थे
" दीदी , आपने अपने देवर की ब्रा क्यों छोड़ रखी है , इनकी बहने तो उभार के , झलकाती चलती हैं , . "
मैं भी होली में बात के जरिये ही शामिल होती बोली ,
मेरी सास ने धीरे से मुझसे कहा ,
" एकदम सही कहती हो , . "
और कम्मो ने एकदम मेरी बात मान कर इनकी बनयान भी , और फिर फटे कुर्ते बनयाइंन से इनके दोनों हाथ पीछे कर के बाँध लिए ,
कम्मो ने खुद अपने आँचल को अपनी कमर में बाँध दिया था और दोनों जोबन साफ़ साफ़ दिख रहे थे , दोनों हाथ में बैगनी रंग लगा के अब अपने देवर के चिकने गाल को रगड़ रही थी , और पीछे से जेठानी जी ' ब्रा ' के फटने के बाद लाल नीले रंग से इनके ' टिट्स ' को रंग रही थीं ,
खूंटे की हालत ख़राब थी , और अब कुर्ते का कवर भी नहीं था , साफ़ दिख रहा था , .
किसी भी देवर की हालत खराब होती , एक भौजाई पीछे से एक आगे से दोनों के जबरदस्त जोबन ,
आँगन में होली खेल रही भौजाई देवर से कम मैं नहीं भीग रही थी ,
मुझे अपने गाँव की होली यादआ रही थी , वहां जो देवर भौजाइयों की पकड़ में आ जाता , . और बचता कोई नहीं था , . अब तक उसका पाजामा , नेकर भी
फ़ट फुट कर आंगन में होती और वो निहुरा के , मुठियाया भी जाता और उससे उसकी बहनों का नाम ले ले के उससे सड़का भी लगवाया जाता , पर यहाँ अभी तो , .
और मेरी सारी भौजाइयों ने जबसे उन्हें पता चला है की उनके नन्दोई पूरे दस दिन तक होली में उनके हवाले रहेंगे , रोज मुझे फोन करके कहतीं , . जितना वो अपने देवरों की रगड़ाई करती हैं , उससे दस गुना ज्यादा उनके ननदोई की रगड़ाई होने वाली थी ,
पर यहाँ उनकी भौजाइयां अभी भी कमर के ऊपर ही ,.
मैं अपने को नहीं रोक सकी , मैंने अपनी सास से बोल दिया , गुझिया तली जा चुकी चुकी थी , मैंने कड़ाही उतारते हुए अपनी सास से कहा ,
" दो दो भौजाइयां , और अभी तक देवर के पाजामे का नाड़ा नहीं खुला "
" एकदम सही बोलती हो " और वहीँ बरामदे में बैठी उन्होंने उनकी दोनों भौजाइयों को ललकारा , जो बात मैंने कही थी वही दुहराकर
" दो दो भौजाइयां , और अभी तक देवर के पाजामे का नाड़ा नहीं खुला "
देवर -भौजाई
" एकदम सही बोलती हो " और वहीँ बरामदे में बैठी उन्होंने उनकी दोनों भौजाइयों को ललकारा , जो बात मैंने कही थी वही दुहराकर
" दो दो भौजाइयां , और अभी तक देवर के पाजामे का नाड़ा नहीं खुला "
और कम्मो ने अपने हाथ में कालिख उन्हें दिखा के मली और चिढ़ाया ,
"जउन रंग तोहरे मुंहवा क उहे पिछवाड़े क "
और पाजामे के अंदर पिछवाड़े से डाल दिया , .
और मेरी जेठानी गाढ़े नीले रंग की भरी बाल्टी लेकर उनके पास ले जाके रख दिया , . उनके तो दोनों हाथ कस के पीछे बंधे थे ,
मेरी सास को लगा शायद वो बैठी रहेंगी तो मामला उससे ज्यादा नहीं बढ़ेगा , तो वो उठ कर अंदर जाने लगी ,
लेकिन तभी मेरी निगाह भांग के गोले पर पड़ी , . भांग वाली गुझिया तो बनी ही नहीं , .
और वो मेरी बात समझ गयीं , कम्मो की ओर इशारा कर के बोलीं ,
शाम को तुम दोनों मिल के बना लेना , लेकिन डबल भांग , सिंगल भाग वाली गुझिया अलग अलग गोंठना भी , अलग डिब्बे में भी रख देना , मैं कमरे में चलती हूँ , थोड़ी देर आराम कर लेती हूँ , .
और शायद मेरी जेठानियाँ उनके जाने का ही इन्तजार कर रही थीं ,
पाजामा फाड़ते खूंटे की ओर इशारा करते कम्मो मेरी जेठानी से बोली ,
" इहो बहुत गरमाइल हौ तानी इसको भी ठंडा कर दें ,. "
" एकदम " जेठानी बोलीं ,
और कम्मो ने गाढ़ा नीला बाल्टी का रंग कुछ देर तो पजामे के ऊपर से सीधे उनके खूंटे पर डाला , फिर पाजामा खिंच कर सीधे खूंटे पर पाजामे के अंदर गाढ़ा नीला रंग ,
" अरे एकर असली गर्मी तो गुड्डी रानी एंकर बहिन बुझाएंगी , . "
मेरी जेठानी उनके पेट पर रंग लगाते बोलीं ,
और कम्मो , पाजामे के अंदर धीमे धीमे रंग डालते सीधे अपने देवर से बोली
" घबड़ा जिन , एही फागुन में , एही आंगन में तोहरी बहिन को नंगे कर के नचवाऊंगी और तोहें चढ़ाउंगी अपने सामने , . "
और उनकी भौजाई , मेरी जेठानी ने एक पैकेट पूरा का पूरा सूखा बैगनी रंग , खोल कर उनके पाजामे के अंदर सीधे डाल दिया और बोला
" और क्या जंगल में मोर नाचा किसने देखा , एकदम हम सबके सामने फटेगी उसकी इसी होली में इसी पिचकारी से , पूरा सफ़ेद रंग डाल उसके अंदर , . "
सास चली गयी थीं और अब मैं भी खुल के बोल रही थी
" एकदम दीदी आपने तो अपने देवर के मन की बात कर दी , आखिर इनका पुराना माल है , नेवान तो इन्हे ही करना चाहिए। "
" और एक बार तू बस फाड़ दा ओकर फिर तो तोहार जितने सार हैं , हम सबके भाई ,. चोद चोद कर तोहरी बहिन की चूत अगली होली तक भोंसड़ा कर देंगे , . "
कम्मो पूरी बाल्टी का रंग एक बार में इनके पाजामे में खाली करती बोली।
लेकिन बात के चक्कर में इनकी भौजाइयों ने शायद ये नहीं देखा की इनके देवर ने अपने हाथ छुड़ा लिए और जब कम्मो बाल्टी एक बार फिर से नल में लगाने गयी , उन्होंने पीछे से पकड़ लिया , .
मेरी जेठानी कुछ देर के लिए मेरे पास आ गयीं , सब सामान हटा के बरामदे से स्टोर में रखने के लिए , और आंगन में पीछे से उन्होंने कम्मो को उन्होंने दबोच रखा था अबकी हाथ सीधे जोबन पर था और हलके हलके वो दबा रहे थे , मसल रहे थे
मैं और दीदी ( इनकी भाभी ) बरामदे से खड़े देखते मुस्करा रहे थे ,
फागुन सच में लग गया था।
जो इनकी रगड़ाई हुयी थी उसका सूद मूल के साथ अपनी भौजाई की कड़ी कड़ी चूँची ब्लाउज के ऊपर से रगड़ रगड़ के वसूल कर रहे थे वो ,
और कम्मो भी मान गयी मैं एकदम मेरी गाँव वाली भाभियों के टक्कर की , एकदम इनकी सलहजों की तरह ,
और मैं समझ रही थी की कम्मो के मोटे मोटे चूतड़ क्या कर रहे थे ,
उनके पाजामा फाड़ते खूंटे को वो अपने चूतड़ से रगड़ रही थी , मसल रही थी , . और साथ में होली की रंगीन गालियां ,
" अरे स्साले बहनचोद , गुड्डी रंडी के भंडुए , . आपन पिचकारी आपन बहिनी के लिए बचा के रखे हो का , . अरे अबकी फागुन में चोदवाउंगी ओह छिनार को , अगर नहीं फाड़ी देवर जी तूने मेरी ननद की न तो हम तोहार गाँड़ फ़ाड़ के रख देंगे , . "
और साथ में बरामदे में से मैं और उनकी भाभी भी साथ दे रहे थे
" अरे उस गुड्डी छिनार की गाँड़ भी खूब मारने लायक है , एहि फागुन में उसकी चूत और गाँड़ दोनों फट जानी चाहिए , " मैं भी अब खुल के बोल रही थी , और जेठानी जी ने जोड़ा
' नहीं तो हम सब उसकी तीनो भौजाई , यह फागुन में मुट्ठी डाल के उसकी बुर गाँड़ फाड़ेंगे , सोच लो देवर जी तोहैं अपने खूंटे से उसकी चूत गाँड़ फाड़नी है या हम लोगो की मुट्ठी से "
जवाब उन्होंने इतनी कस के कम्मो के जोबन को मसल के दिया की चट चट ब्लाउज के दो बटन टूट गए ,
और तब तक मेरी जेठानी एक बार फिर देवर की रगड़ाई करने , . बाल्टी में पानी भर गया था , और जेठानी ने पूरे दो पैकेट मुर्गा छाप गाढ़ा लाल रंग घोल के रंग बनाया , अपने हाथ में कालिख के साथ कडुवा तेल मिलाकर रंग , और पहुँच गयी अपने देवर की रगड़ाई को
घण्टे भर से ज्यादा होली चली , खूब मस्ती लेकिन मुझे सिर्फ एक बात का अफ़सोस रहा , बल्कि दो बात का
दो दो भौजाइयां और मुर्गा बाहर नहीं निकला , .
और उनका हाथ भी उनकी कम्मो भौजी के ब्लाउज के अंदर नहीं घुसा , बस ऊपर से रगड़ा रगड़ी , .
मुझे ये बात ठीक नहीं लगी , होली में भौजी के चोली के अंदर हाथ न घुसे तो कोई भी भौजाई बुरा मान जाएगी , खास तौर से कम्मो ऐसी मस्त भौजाई ,
लेकिन चलिए आज फागुन का पहला दिन था , पर मैंने अपनी मन की बात कम्मो से भी कही , और उनसे भी रात को ,
लेकिन शाम को अचानक मेरी सास और जेठानी को जाना पड़ा ,
फागुन आयो रे
मुझे ये बात ठीक नहीं लगी , होली में भौजी के चोली के अंदर हाथ न घुसे तो कोई भी भौजाई बुरा मान जाएगी ,
खास तौर से कम्मो ऐसी मस्त भौजाई ,
लेकिन चलिए आज फागुन का पहला दिन था , पर मैंने अपनी मन की बात कम्मो से भी कही , और उनसे भी रात को ,
लेकिन शाम को अचानक मेरी सास और जेठानी को जाना पड़ा ,
मैं भी न , चलिए शाम के पहले से शुरू करती हूँ , .
शाम को वो बाजार जा रहे थे , कम्मो स्टोर से देख देख कर उन्हें सामान की लिस्ट नोट करवा रही थी , पर मैंने शिकायत लगाई
" आज अपने दिन में सारे रंग ख़तम कर दिए , याद कर के रंग लेते आइयेगा , . अबीर गुलाल के साथ , पक्के वाले "
और उनकी शामत आयी थी उन्होंने अपनी खतरनाक भौजाई , कम्मो से पूछ लिया ,
" भौजी , केतना रंग ,. "
बस कम्मो अपने पर आ गयी ,
" एक पाँव रंग तो तोहार उ जउन एलवल वाली माल हैं उनके भोसड़े में जाएगा , और एक पाँव तोहरी गांडियो में , बस ओकरे बाद होली के लिए ,. "
और हँसते हँसते हम सब की हालात खराब , मेरी सास जेठानी , सास बेचारी बस अपनी हंसी दबाने की कोशिश करती थीं , लेकिन मुस्कराहट तो वो भी नहीं रोक पाती थीं , जब इनकी भौजाइयां इनकी रगड़ाई करती थीं , और मैं थी ही तीली लगाने वाली।
हाँ सास जी कभी कभी मामला सम्हालने की कोशिश जरूर करती थीं , तो वो हंसी रोकते रोकते बोल पड़ीं ,
" हाँ कम्मो अच्छा याद दिलाई , लौटते हुए एलवल होते आना , . ज़रा हाल चाल लेते आना "
" जी "
वो बेचारे धीमे से बोले और अब मेरी जेठानी चढ़ गयीं उन के ऊपर।
" और अपने माल का सट्टा लिखवा लाना , समझे याद करके पूरे फागुन का , "( शादी ब्याह में जो रंडिया बुक की जाती थीं , नाचने के लिए , उनके साथ जो कागज लिखवाया जाता था उसे सट्टा कहते थे , और उसमें वो रंडी कबूल करती थी , कितने दिन , क्या क्या ,. )
मैंने कम्मो को उकसाया उनके ऊपर , .
आज होली तो अच्छी खासी हो गयी थी हाँ मेरे हिसाब से चार आने का खेल बचा रहा गया था , न उनके भौजाइयों का ब्लाउज फटा , न उनका पजामा उतरा , और उसके बिना क्या देवर भाभी की होली , .
लेकिन उसके लिए देवर भौजाई के साथ जिसने मोबाइल बनाया था वो जिम्मेदार था।
चार बार तो घंटी बजी , उनकी कम्पनी का फोन था अर्जेण्टिया , और फिर मेसेज , काल अर्जेण्टली , . और एक बार जब होली में ब्रेक हुआ , नौकरी वाली बात फ़ोन पर शुरू हो गयी तो कहाँ , आज रात , पता नहीं कहाँ कहाँ से , तीन चार कांफ्रेसे काल आने वाली थीं ,
" हे तोहार देवर कइसन लक्क झक्क सफ़ेद कमीज पहिन के अपने माल के यहाँ जाय रहे हैं , . "
मैंने कम्मो को ललकारा ,
वो बड़ी जोर से मुस्करायी और मुझे इशारा किया मैं उन्हें पांच छह मिनट तक रोक के रखूं , और ये तो मेरे लिए बाएं हाथ का खेल था , मैंने अपनी जेठानी से कहा
" दीदी , ज़रा इनसे लिस्ट एक बार पढ़वा लीजिये , कहीं इनका ध्यान अपने माल में रहा और बजाय खोआ , सूजी के उसकी चड्ढी बनियाइन का नाप लिख रहे हो , . "
" हाँ सही कह रही है , कोमल ज़रा एक बार फिर से लिस्ट सुना दो , और ऊ भांग लिखे हो की नहीं , ठंडाई का सामान , . "
जेठानी जी ने उन्हें काम थमा दिया ,
" एकदम नहीं , भांग तो सबसे पहले लिखवाई थीं , आधा किलो , . " वो बोले
" नहीं नहीं तीन पाव कर दो , और पूरी लिस्ट सुनाओ फिर से "
मेरी सास बोली और मैं तबतक किचेन में पहुँच गयी थी
" चाय चढ़ा रही हूँ पी के जाइयेगा , मेरी ननद रानी कहीं किसी के साथ भागी नहीं जा रही हैं , . "
मैंने किचेन से गुहार लगाई।
पांच की जगह दस मिनट हो गए थे , और वो जब चाय पी रहे थे तब तक कम्मो आयी और उनकी सफ़ेद शर्ट पर
धप्प धप्प
होली के थापे ,
खूब गाढ़े लाल नीले
बहनचोद ,
गुड्डी का भंडुआ , .
और मैंने कम्मो को चाय पकड़ा दी और अब जेठानी को अपना मोबाइल दिखाते हुए इशारा किया ,.
बस जेठानी ने ऊँगली से ही ,
सफ़ेद शर्ट पर हम दोनों की उस कमसिन ननद का मोबाइल नंबर भी लिख दिया ,
जहाँ गुड्डी लिखा था उसी के ठीक नीचे।
" एकदम दीदी , आज कल बिना नंबर के कुछ नहीं होता , . " मैंने उनकी तारीफ़ की तो ये चौंके , .
" ये शर्ट , बाजार में ,. बदलनी पड़ेगी ,. "
पर अब मेरी सास ने हड़का लिया
" अरे कुछ नहीं सब को मालूम हो जाएगा , घर में दो दो भौजाई हैं , जाओ जल्दी। "
" अरे जाइये , आज भीड़ भी बहुत होल्गी , और फिर आपके अपने माल के यहां भी , वहां भी तो वो उतनी जल्दी छोड़ेगी नहीं ,. आते आते आधी रात मत कर दीजियेगा . "
हम चारों ने आलमोस्ट धक्का देकर उन्हें घर के बाहर भेजा ,
और उस के बाद फिर हंसी , सबसे पहले मेरी सास बोलीं
" अब लग रहा है होली का असर ,
पिछली होली
सबसे पहले मेरी सास बोलीं
" अब लग रहा है होली का असर , . "
और मेरी जेठानी ने राज खोला , .
" पिछली होली तो एकदम फीकी , . . बात करने में . "
पता ये चला की इनका कैम्पस सेलेक्शन था , पहले फरवरी के आसपास फाइनल सेमेस्टर , और उसके तुरंत बाद से नौकरी के लिए कम्पनी थीं , वो भी कई कई राउंड , . पूरे अप्रेल तक , और ये उस कमेटी में भी थे जो लड़कों का सेलेक्शन करवाती है , . इसलिए पिछले साल होली हुयी ही नहीं देवर भाभी की ,
फिर चाय पीते पीते इनकी भाभी ने अपनी पहली होली का किस्सा सुनाया , . पांच साल पहले का ,. जब से आयी तभी से उनका वन प्वाइंट प्रोग्राम था
देवर की रगड़ाई ,
ये उस समय इंटर कर रहे थे , उसकी शरम लाज छुड़ाने का , .
पर दोस्ती तो उनकी पक्की हो गयी थी , जेठ जी अक्सर बाहर चले जाते थे , वैसे भी दिन में ,. बात करने में भी उनके देवर उनसे शरमाते थे , डबल मिंनिंग डायलॉग उनकी भाभी बोलती भी तो वो एकदम , ' मैं शरम से लाल हो गयी ' टाइप ,. . और मेरी जेठानी और ,.
होली के लिए उन्होंने बहुत प्लान बनाया था पर होली उनके देवर के इंटर के बोर्ड के इक्जाम के बीच में पड़ी , .
और इम्तहान के डेढ़ महीने पहले से देवर का कमरा बंद , सिर्फ उनकी भाभी के लिए खुलता , दूध , नाश्ता , खाना सब वहीँ कमरे में ये खुद ले जातीं ,.
यहाँ तक की सेंटर कहाँ पड़ा है , उनका कमरा कहाँ है , सब बातें उनकी भाभी ने पता कर के बताई ,
कब होली आयी कब गयी पता नहीं चला.
रोज इम्तहान देने जाने के पहले उन्हें दही गुड़ खिलाना , टीका लगाना , . सब काम उनकी भाभी का ,.
लेकिन जिस दिन वो फाइनल पेपर देकर आये
दो दो बाल्टी में आंगन में मेरी जेठानी ने पहले से ही रंग घोल कर रखा था ,
पेपर कैसे हुआ ये बाद में पूछा गया , एक बाल्टी रंग पहले पड़ा , . और जबरदस्त डिफर्ड होली ,
उनकी यूपी बोर्ड में पोजीशन आयी और उसी साल आई आई टी बॉम्बे में एडमिशन भी हो गया , .
फिर कई बार सेमस्टर के इम्तहान और होली में मामला फंसता तो वो अगर जाड़े में भी आते और पता चलता की होली में नहीं आ पाएंगे तो होली उसी समय हो जाती।
पर आज , वो कुछ बोलतीं उसके पहले कम्मो बोल पड़ी।
" अरे आज तो डबल भौजाई थीं , अभी तो शुरुआत है , . "
"एकदम , "
जेठानी जी बोली लेकिन तब तक उनका फोन घनघनाया , . "
इनके बुआ के यहाँ से फोन था , हमारी ननद की गोदभराई है आज ही तय हुआ , कल सुबह ,. ये और सासू जी दोनों लोग आ जाएँ , . आज ही सारी तैयारी करनी है
ज्यादा दूर नहीं जाना था मऊ , घंटे भर का रास्ता था , . कल शाम तक लौट भी आना था ,
गयी वो और मेरी सास , पर जाने के पहले सास मुझे और कम्मो दोनों को चार बार याद दिला के गयीं , . वो भांग वाली गुझिया अभी बची हैं , . खोया बना के रखा है , .
और गुझिया बनाते समय मैंने कम्मो को अपने मन की बात बता दी।
कम्मो
और गुझिया बनाते समय मैंने कम्मो को अपने मन की बात बता दी।
" आप इनको अपना देवर नहीं मानती "
गुझिया के लिए आटा गूंथते हुए मैं बोली , वो गुझिया में डालने के लिए खोया भून रहे थीं , .
पलट के वो मुस्कराते हुए बोलीं ,
" अरे अइसन काहें कह रही हो , उ तो हमार असल से भी बढ़कर देवर हैं , देखो आज होली मैं कईसन ,. "
बस यही तो मैं सुनना चाहती थी और मैं एकदम उनके पीछे पड़ गयी , और उन्हें याद दिलाया।
" याद है आपने कहा था , की आपके वो साल भर में एक दो बार आते हैं , तो आपको , . "
हँसते हुए कम्मो ने कबूला
" एकदम याद है , आखिर देवर नन्दोई किस काम के लिए हैं , अरे रोज तो नहीं , लेकिन हफ्ते में दो तीन बार तो ,. "
बहुत गंभीर चेहरा बनाकर मैं बोली ,
" लेकिन आपके जो ये देवर हैं न मैं बता देती हूँ , . उनके वहां काँटा नहीं लगा है , . . आपकी देवरानी रोज बिना नागा तीन चार बार घोंटती है , और आप जिन देवरों , उनसे बीस नहीं ,. "
एक बार कम्मो ने फिर बात काटी , जोर जोर से हंसती बोली. बीस नहीं पच्चीस होगा , इतना तो अंदाज लग गया मुझे।
“ " तब भी , न आपने देवर का पकड़ा , न रगड़ा , न खोला , न रंग पोता ,. ऐसी देवर भौजाई क होली तो हम अपने मायके में कभी नहीं देखे " मैंने अपने मन की बात उनके सामने अब साफ साफ़ उड़ेल दी।
पर मायके की बात आये तो तो कोई भी औरत , .
कम्मो भी चालू हो गयीं
" बात तो तोहार सही है , हमरे मायके में तो देवर के पाजामे का नाडा पहले भौजी खोलत हैं , बाकी बात चीत बाद में , . और अइसन चिक्क्न देवर हो तो , फिर तो गुड़ चींटा , , तो छोड़ा , चचेरी , मौसेरी , ममेरी ,. गाँव क कुल ,. .
और जेनकर रिश्ता भाभी का न लागे उहो फागुन भर
अइसन देवर तो ,. एकदम रसगुल्ला ,. फिर हमारे कोई सगा देवर तो है नहीं , जेह दिन हम बियाह के आये , . तोहार सास इन्ही के बतायीं , . इहै तोहार देवर हो , इसी लिए हम कह रहे थे , सेज से बढ़कर ,. "
लेकिन कम्मो ने राज खोल दिया ,
" हम तोहरे लिहाज करत रहे , . हमको लगा की पता नहीं तोहैं कइसन लगे "
और अब मैं गुस्से उबल गयी ,
" हमको तो उहै खराब लगा , दू दू भौजी और देवर क पाजामा क नाड़ा ,. "
मेरी बात एक बार फिर से कम्मो ने पूरी की और अबकी मेरी दिल की बात कह दी ,
" तो चलो कल होगी असल देवर भौजी क होली , अभी आज ही तो फागुन लगा है ,. "
" एकदम सफ़ेद रंग वाली होली न हो तो देवर भाभी क होली क्या ,. "
हँसते हुए मैं बोली , और भांग की हम दोनों गुझिया में डालने के लिए गोलियां बनाने लगे , लेकिन एक बात मेरे मन में घूम रही थी सो मैंने कम्मो से पूछ लिया ,.
' लेकिन एक बात बताइये न आपने हाथ में पकड़ा न रगड़ा लेकिन कैसे पता चल गया की आपके बाकी देवर से २० नहीं २५ है। "
वो कुछ देर तक तो खिलखिलाती रही फिर उलटे मुझसे पूछ लिया , . . हम भांग की गोली गुझिया में मिला रहे थे लेकिन असर हम दोनों पर हो रहा था। उसने पूछा
" पहले बताओ , की देवर तोहार गाँड़ कचकचा के मारते हैं की नहीं , . "
मुझे मालूम था की मन उनका करता तो होगा लेकिन ये भी बात सही थी की मेरा पिछवाड़ा अभी तक कोरा था। लेकिन गनीमत थी कम्मो ने अपनी बात बतानी शुरू कर दी
" अरे जब पिछवाड़े से पकड़ के , तो उनके खूंटे पर हम आपन , . "
और अबकी बात काटने की बारी मेरी थी ,
"चाकर चूतड़ उनके खूंटे पर रगड़ रही थी है न , . " मैं बोली