Episode 52

" एकदम और तभी मालूम हो गया मेरे देवर क लंड एकदम जबरदंग है , और अइसन फनकार रहा था की साड़ी साया फाड़कर सीधे गाँड़ में घुस के रहेगा , लेकिन सीधा बहुत है , मन तो ओकर बहुत कर रहा था लेकिन हिम्मत नहीं पड़ी , चोली में हाथ घुसाने की। "

कम्मो को सब अंदाज था।

लेकिन मैं उसकी बुराई नहीं सुन सकती थी ,

" मान लिया सीधे हैं लौंडिया मार्का शरमाते हैं , पर तब तो भौजी क जिम्मेदारी और बढ़ जाती है , अइसन देवर के साथ तो और जोर जबरदस्ती करनी चाहिए ,. "

" एकदम , बात तोहार सोलहो आना सही है , कल देखना , एही आँगन में ,. "

कम्मो ने बात मानी , लेकिन तब तक फोन घनघनाया , और मैंने देखा उन्ही का फोन था , स्पीकर फोन मैंने ऑन कर दिया , जिससे कम्मो भी सुन स

खिलखिलाती हुई आवाज , जैसे फर्श पर किसी ने ढेर सारे मोती बिखेर दिए हों ,

और कौन वहीँ इनकी छिनार ममेरी बहन , गुड्डी , .

" भैया मेरे पास है आज मैं इनको खिला पिला के भेजूंगी , . " वो किशोरी बोली।

" अरे खाली पिला के नहीं पेलवा के भेजना , फागुन चढ़ गया है , अबकी फागुन में इन्हे नन्दोई बनाना है पक्का "

जवाब मेरी ओर से कम्मो ने दिया।

और गुड्डी और जोर से खिलखिलाई और चीखी

" भौजी , . "

( मेरी सारी छोटी ननदें , मेरी जेठानी को बड़ी भाभी , मुझे भाभी या नयकी भाभी और कम्मो को भौजी कहती थीं , गुड्डी की सहेलियां भी )

लेकिन कम्मो अपने देवर ननद की और खिंचाई करती उसके पहले इन्होने सिर्फ ये बता के की वो खाना खा के आएंगे और हम लोग खाना खा ले , फोन काट दिया . )

सिर्फ हमी और कम्मो तो थे , तो हम लोगों ने साथ साथ खा लिया , हाँ वो जब रात को लौटे , तो मैंने उन्हें खूब हड़काया ,

कम्मो

सिर्फ हमी और कम्मो तो थे , तो हम लोगों ने साथ साथ खा लिया , हाँ वो जब रात को लौटे , तो मैंने उन्हें खूब हड़काया ,

वही कम्मो की बात लेकर , और थोड़ा बहुत झूठ का तड़का भी ,

"कम्मो बहुत नाराज थी आप से , आप उसे भौजी नहीं मानते वो कह रही थी। उसे भी पता चल गया की आपका मन तो बहुत करता है उसकी चोली में हाथ डालने का , जोबन जबरदंग हैं ही उसके , लेकिन होली में भी ,. वो कह रही थी , की उसकी बेइज्जती तो वो बर्दास्त कर लेती जबरदंग जोबन की बेइज्जती आज तक किसी ने नहीं की , . कहीं वो काम वाली है इसलिए तो नहीं , . ये बात उसने नहीं कही थी मैं कह रही हूँ ,

भूल गए ससुराल में नाउन क बहू कैसी रगड़ाई की थी और नाउन के बेटी भी , . उन दोनों का तो छोडो सलहज , साली का रिश्ता लगता है , नाउन खुदे बोल रही थी , अपनी सलहज से पूछ लेना , आने दो पाहुन को सास का रिश्ता लगने से क्या होता है , होली ने नई उम्र की बहुओं का कान काटूंगी ,.

और चमरौटी , भरौटी वाली , पानी भरने वाली कहाईन , गुलबिया ,. सब ,. और ये सब ,.

" नहीं ये नहीं है , ऐसा कुछ नहीं हमने तो उनको हरदम भौजी माना है , माना का है , हैं ही लेकिन ,. "

जवाब उन्होंने दे दिया लेकिन ऐन मौके पर रुक गए।

" लेकिन क्या बताओ न साफ़ साफ़ , . " मैंने पूछ लिया।

" मन तो मेरा बहुत कर रहा था उसकी चोली में हाथ डालने को , लेकिन मन कर रहा था की कहीं भौजी गुस्सा न हो जाये , फिर ,. फिर तुम भी बैठी थी सामने , . "

ये भी न एक तो बहुत सीधे है , फिर लजाते भी कितना है , पता नहीं ये लड़का कैसे सुधरेगा , . मैंने उनके कान का पान बनाया और प्यार से समझाया ,

" यार तेरी गलती नहीं है , जो बुद्धू होते हैं न बुद्धू ही रहते हैं ,. अरे बुद्धूराम , . वो तो इन्तजार कर रही थीं , खुद मुझसे बोलीं , होली में देवर भाभी की चोली न खोले तो ये भाभी की बेइज्जती है , . और मैं क्यों बुरा मानती। मैं तो इस बात का बुरा मान रही थी की चोली फटी नहीं , अरे ऊपर झाँपर से तो होली में हर कोई चोली दबा लेता है

देवर का हक तो सीधे चोली के अंदर का है , . ससुराल जा के साली सलहज के सामने नाक कटाओगे , . खैर चलो , अगर कल चोली नहीं फटी और तेरी कम्मो भाभी का पेटीकोट नहीं खुला तो मैं भी उनके साथ मिल के तेरा ,. "

गनीमत थी उनका फोन आ गया , . उस रात उनकी कई कानफ्रेंस काल थी , इसलिए और कुछ तो होना नहीं था , . थोड़ी देर मैं जगी रही , पर सो गयी।

देवर भौजी की असली होली अगले दिन हुयी सुबह सुबह ,

कम्मो भी तैयार थी और अब इनकी हिचक झिझक भी ,.

और मेरी जेठानी सास थे भी नहीं ,. इनकी और इनके कम्मो भौजी की होली अगले दिन कैसे शुरू हुयी , ये बताने का कोई मतलब नहीं , .

देवर भाभी की होली तो कभी भी शुरू हो जाती है , कहाँ भी कैसे भी , और फागुन हो ,

कम्मो ऐसी रसीली जबरदंग जोबन वाली भौजी हो , जो अपने हर देवर को साजन बना के , .

फिर तो , बस परेशानी इनकी झिझक की थी तो कल रात में मैंने इन्हे खूब हड़काया था , .

और कम्मो को भी समझाया था , देवर तोहरे थोड़े ज्यादा सीधे हैं , तो तोहिंके ,.

फिर सुबह सुबह मैंने दोनों को , देवर को भी भौजाई को भी , डबल भांग वाली एक नहीं दो दो गुझिया भी , .

मैं बरामदे में बैठी देख रही थी , मजे ले रही थी और आज मेरी सास जेठानी कोई थी भी नहीं ,

सच में होली देखने का भी ख़ास तौर से होली के रंगे पुते ,.

पहली बार ये अहसास मुझे दसवीं में हुआ ,

उसी साल बसंत कालेज , बनारस के एक कॉलेज में एडमिशन हुआ था आठ तक तो मैंने गाँव के कॉलेज में ही पढ़ाई की थी ,

थोड़ा सा फ्लैश बैक

सच में होली देखने का भी ख़ास तौर से होली के रंगे पुते ,.

पहली बार ये अहसास मुझे दसवीं में हुआ , उसी साल बसंत कालेज , बनारस के एक कॉलेज में एडमिशन हुआ था

आठ तक तो मैंने गाँव के कॉलेज में ही पढ़ाई की थी ,

हर बार की तरह होली बोर्ड के एक्जाम के बीच में पड़ रही थी , इसलिए जब कॉलेज एक्जाम के पहले दिन बंद हुआ ,

उस दिन ही लड़कियों ने होली खेलने का प्रोग्राम बनाया , लेकिन कॉलेज में बहुत रिस्ट्रिक्शन , सिर्फ अबीर गुलाल , . और वो भी ज्यादा जबरदस्ती नहीं , बस गाल वाल पे , .

लेकिन मैं गाँव की लड़की और रीतू भाभी की ननद ,

( पिछले साल की होली रीतू भाभी की ससुराल में पहली होली थी और क्या मस्ती हुयी थी , . )

तो बिना गीले रंग के और ' इधर उधर रगड़े ' कहाँ से होली पूरी होती ,

रीतू भाभी की जुगत कहीं फेल होती , उन्होंने मुझे गुलाल के बड़े बड़े तीन पैकेट दिए , मेरे और मेरी दो ख़ास सहेलियों के लिए ( लेकिन ये बात उन्होंने सिर्फ मुझे बतायी , उन दोनों से शेयर नहीं करनी थी , २०-८० का रेशियो है यानी २० % गुलाल और ८०% उसमे मुर्गा छाप पक्का रंग मिला है ).

दूसरा आइडिया मुझे आया , सहेलियों की भांग की गुझिया खिलाने का , लेकिन रीतू भाभी ने तुरंत वीटो कर दिया ,

कॉलेज में एक तो बाहर से खाने का सामान मना है , दूसरे गुझिया देख के लड़कियों को शक होजाता ,

मैंने तुरंत एक कहानी गढ़ी , मेरी बर्थडे ,

और रीतू भाभी मुस्कराने लगी , एकदम उनकी असली ननद और उन्होंने फिर एक बात जोड़ी , जो मिठाई तेरे कॉलेज की कैंटीन में मिलती हो , . लाल पेड़ा , ललुआ बहुत मस्त बनाता है , . बस ये तय हो गया की लाल पेड़ा पूरे एक किलो शुद्ध असली बनारसी भांग की , हर पेड़े में दो दो गोली , रीतू भाभी ने अपने हाथ से बनाया , . और ये भी उन्ही का आइडिया था कैंटीन के डिब्बे में ही सील बंद , . भांग वाले पेड़े,

जबरदस्त होली हुयी , पहले तो सिर्फ गाल और माथे पर , फिर जो लड़कियां सबसे ज्यादा उचकती थीं , होली के नाम पर , मेरी दो सहेलियों ने एक एक हाथ पकड़ लिए , फिर मेरे हाथ गाल से सरक कर ,.

स्सालियों ने मुझे ही बिग बी की टाइटल दी थी ,

एक हाथ से कॉलेज टॉप की बटन खुली , और दूसरे हाथ से नए आते चूजों को दुलराया , सहलाया ,

और वही रीतू भाभी ब्रांड गुलाल , सिर्फ डाला नहीं कस कस के मला ,

" अरे यार गुलाल ही तो है , लगवा लो , अभी वो तेरा वाला लगाता तो खूब मजे से मिसवाती "

फिर निपल पर पिंच और साथ में उस लड़की के पीछे जो लड़के पड़े थे उनके नाम ले ले कर , और मैं भी नहीं बची , मेरी भी भी खूब रगड़ाई हुयी , और मेरे साथ मेरे भौंरों का नाम ले ले कर , .

और कॉलेज के गेट के बाहर निकलने के पहले , अपनी वाटर बॉटल से सब लड़कियों के कपडे के ऊपर अंदर , . अब गुलाल के अंदर के रंग ने असर दिखा दिया , सबके उभार , पिछवाड़ा , कुछ के तो जाँघों के बीच में भी ,

लेकिन सबसे ज्यादा भौंरो को , . . स्साले मवाली बहनचोद , पता नहीं उन्हें कैसे पता चल गया था की आज हम लोगों की होली होगी और रोज तो आठ दस लड़के कॉलेज के गेट पर रहते थे , आज तो दर्जन भर से ऊपर , .

और लगाते समय भी हम लोग अपंनी सहेलीयों को लड़को का नाम ले ले कर , ये चंदू की ओर से ये चुन्नू की ओर से ये टुन्नू की ओर से ,

बेचारे रंग तो लगा नहीं सकते हाँ रंगी पुती पुती , भीगी , देह से चिपकी , हर अंग झलकती देख देख कर आँखे खूब सेंकते है , और सिर्फ लड़कियों की ही नहीं , बड़ी उम्र की औरतों की भी होली और होली के बाद रंग से भीगी , देह से चिपकी साडी ब्लाउज से झलकते अंग का मजा लेने वाले कम नहीं होते

लेकिन हम लड़कियां , औरतें भी यही सोचती हैं , ले तो ले , आखिर होली है , मन तो सबका करता है , .

और तभी चरर की आवाज से मेरा ध्यान एक बार फिर से इनकी और इनकी कम्मो भौजी की ओर लौट गया।

उनका ब्लाउज ,. . मैं मुस्कराने लगी , यही तो मैं चाहती थी।

कम्मो के मम्मे जबरदस्त थे ,

खूब बड़े , कड़े और एकदम खड़े , .

38 डी डी ,

और तभी चरर की आवाज से मेरा ध्यान एक बार फिर से इनकी और इनकी कम्मो भौजी की ओर लौट गया।

उनका ब्लाउज ,. . मैं मुस्कराने लगी , यही तो मैं चाहती थी।

कम्मो के मम्मे जबरदस्त थे ,

खूब बड़े , कड़े और एकदम खड़े , .

38 डी डी ,

मम्मे देखकर तो ये वैसे ही ललचाते थे , और इनकी कम्मो भौजी के मम्मे तो और एकदम जबरदंग ,

और ऊपर से वो कभी भी ब्रा नहीं पहनती थी और ब्लाउज भी एकदम पतला , . झलकते छलकते रहते थे , दोनों मम्मे

कल होली की शुरआत में बेचारे ब्लाउज के अंदर भले हाथ न डाल पाए हों पर रंग से भीगे , देह से चिपके पतले पारभासी ब्लाउज से झलक के एकदम साफ़ साफ़ दिख रहे थे , और ऊपर से जब वो ब्लाउज के ऊपर से अपनी कम्मो भौजी के ३८ डी डी वाले उभार दबा रहे थे , मसल रहे थे ,

वो भी उन्हें उकसा रही थी अपने कड़े कड़े बड़े बड़े चूतड़ कस कस के अपने देवर के भीगे पाजामे में तने बौराये खूंटे पे रगड़ रगड़ कर के ,

समझ तो ये भी रहे थे की उनकी भौजी फागुन में क्या चाहती हैं ,

और आज तो ,

एक तो कल रात मैंने उन्हें साफ़ साफ़ समझा दिया था , उनको भी , उनके उस मूसलचंद को भी , . फागुन में भौजी , साली सलहज का हक इसपर मुझसे पहले है ( और मुझे तो शक था की जब ये ससुराल पहुंचेंगे तो उस लिस्ट में उनकी सास भी जुड़ जाएंगी ) ,

उन से ज्यादा उनकी कम्मो भौजी को ,

उनके देवर गौने की दुल्हिन से भी ज्यादा लजाते शर्माते हैं , जबतक कुछ जोर जबरदस्ती नहीं करेंगी वो , तो फागुन ऐसे सूखा चला जाएगा ,

और फिर आज सुबह देवर भौजाई दोनों को डबल भांग की दो दो गुझिया ,

और आज मेरी जेठानी, सास भी नहीं थी , सिर्फ मैं , और मैं तो खुद ही उन दोनों लोगो को चढ़ा रही थी ,

उनका एक हाथ ब्लाउज के अंदर घुस गया ,

चरर चररर , रहा सहा ब्लाउज भी फट गया ,. और अब दोनों हाथों की चांदी ,

कोई छोटे मोटे उभार नहीं थे , एकदम बड़े बड़े मक्खन के कटोरे , मुश्किल से उनके देवर के दोनों हाथों में आ रहे थे और ऊपर से उनकी कम्मो भौजी बजाय छुड़ाने के गरिया रही थीं

" अभिन हमहुँ फाड़ेंगी तोहार , लेकिन खाली पजामा नहीं पजामे अंदर वाला भी , . बचपन में गांड मरवाये होंगे न वो याद आजायेगा , . लौंडे तेल वैसलीन लगा के इस चिकने की मारते रहे होंगे पर मैं सूखी मारूंगी ,. "

मैं बरामदे में बैठी बैठी देवर भाभी की मस्ती देख रही थी , पर मैं अपने को नहीं रोक पायी , . वहीँ से खिलखिलाते हुए बोली ,

" अरे नहीं , अभी इनकी कोरी है , कोहबर में खुद अपनी सास सलहज के सामने कबूला था इन्होने "

तब तक ये कस कस के कम्मो भौजी की बड़ी बड़ी चूँचिया मसल रहे थे , और जोबन मर्दन में तो जैसे इन्होने पी एच डी कर रखी थी , मुझसे ज्यादा कौन जानता था इस बात को , बस एक बार चोली खुल जाए और इनका हाथ लड़की के उभारों पर छू बस जाए , फिर तो वो खुद टाँगे फैला देगी , .

कौन

और कम्मो तो खूब खेली खायी , . उसकी हालत तो एकदम , . वो एक जोबन एक निपल फ्लिक कर रहे थे तो दूसरे को पूरी ताकत से मीज रहे थे

सच में देवर भाभी की होली हो , जीजा साली की या नन्दोई सलहज की रंग तो बहाना है ,असली चीज तो जोबन मीजना मसलना रगड़ना है , और होली में जिसने भौजाई , साली , सलहज के जोबन नहीं मसले रगड़े न वो असली देवर , जीजा या नन्दोई है , और जिसने न मलवाया वो असली भौजाई , साली , सलहज नहीं ,

लेकिन कम्मो भौजी असली भौजी थीं , और उन्हें डर ये था की कहीं उनका देवर बिचक न जाये , इसलिए नाम के लिए भी वो इनका हाथ नहीं पकड़ रही थी , पर उन्हें गरियाने से कौन रोक सकता था

मैं तो कत्तई नहीं ,

" हे कहाँ से सीखा अइसन चूँची मीजना , मसलना , बचपन से आपन बहिन महतारी चूँची मीज मीज , के, स्साले तेरी बहन की गाँड़ मारुं ,. " कम्मो उन्हें गरिया रही थी , और हँसते हुए मैं बोली

" एकदम सही कह रही हो आप , लेकिन उस एलवल वाली की कच्ची अमिया , . . जरूर अपनी महतारी के साथ , . उन्ही की बड़ी बड़ी हैं , . "

" एकदम सही कह रही है तोहार दुल्हिन , अरे एक चूँची ये चूसर चूसर पीते थे और दूसरी चूँची रगड़ता मीजते थे , काहें देवर जी "

मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,

मैं जानती थी अब क्या होना है और वही हुआ ,

इनकी माँ बहन को गाली , उनका नाम लेकर छेड़ना , वियाग्रा से ज्यादा काम करता था , . रात में तीन चार बार के बाद भी जैसे ही मैं उस दर्जा आठ वाली का नाम ले के उन्हें छेड़ती थी , . लोहे का खम्भा झूठ , . ऐसा कड़ा खड़ा और फिर मेरी रगड़ाई तय होती थी , .

और वही हुआ , . चूँची मसलने के साथ साथ वो पीछे से ही कम्मो के चूतड़ों पर ऐसे जोर जोर के धक्के मार रहे थे जैसे उसकी गाँड़ मार के रहेंगे।

और उनकी भौजाई कौन कम छिनार , वो भी अपने बड़े बड़े चूतड़ रगड़ के ,. साडी तो उनकी पहले ही खेत रही थी वो अब सिर्फ पेटीकोट में और उनके देवर बनियाइन , पाजामें में ,.

लेकिन चुदाई और होली में कब कौन पलटी मार जाए पता नहीं चलता , वही हुआ , . अब बाजी भौजी के हाथ में थी ,

वही पहले गुदगुदी , . फिर कम्मो ने पीछे पीछे से उनकी भीगी बनयायिन खींची ,

चररर , . फट के हाथ में आ गयी ,

और जब तक वो सम्हलते उनकी भौजी ने उनके दोनों हाथ पीछे करके उन्ही की फटी बनयाईन और अपने फटे ब्लाउज से बाँध दिया था ,

फिर गुलाबो ने कड़ाही की कालिख , लाल , बैंगनी रंग का जबरदस्त कॉकटेल बना के अपने हाथ में रगड़ा और ,

पाजामा फटा नहीं , बस आराम से भौजी ने नाड़ा खोल दिया ,

( कल यही तो मैं सास से शिकायत कर रही थी , दो दो भौजाई और देवर का नाड़ा न खुले , . लेकिन किसी किसी दुलहन का नाड़ा अगर कुछ बहाना वहाना बना के गौने की रात खुलने से बच भी जाता है तो अगले दिन तो शर्तिया खुलता है , बस वही हालत कम्मो भौजी के देवर की हुयी ,

नाड़ा खुल गया और रंग में लथपथ पैजामा उनकी कम्मो भौजी ने उछाल के फेंक दिया , मेरी ओर

और बरामदे में बैठी बैठी मैंने उसे कैच कर लिया , आखिर इतना तो मेरा हक भी था और जिम्मेदारी भी , . आखिर उनकी कम्मो भौजी की देवरानी थी मैं ,

फटा पोस्टर निकला हीरो ,

लेकिन उसकी आजादी क्षणभंगुर थी , जैसे कम्मो के चोली फटने के बाद आज़ाद जोबन उनके देवर के हाथों में कैद हो गए वैसे ही

उनके देवर के पाजामा खुलने के बाद , आजाद खूंटे को कम्मो के हाथों ने कैद कर लिया ,

फिर तो पहले कालिख , बैंगनी लाल रंग की कॉकटेल , और फिर सफ़ेद पेण्ट

साथ में भौजी जबरदस्त मुठिया रही थीं , सुपाड़ा एकदम खुला , . फूला , बौराया ,.

अब लग रहा था देवर भाभी की होली हो रही है ,.

मान गयी मैं उनकी कम्मो भौजी को , असल होली , देवर भौजी की आज हो रही थी ,

एकदम खुल्लम खुल्ला ,

जैसे देवर भौजाई , ननदोई सलहज , और जीजा साली की होनी चाहिए ,.

क्या जबरदस्त मुट्ठ मार रही थीं अपने देवर की , रंग पेण्ट कालिख का जबरदस्त कातिल कॉकटेल , सुपाड़ा एकदम खुला

और बित्ते भर का लंड भौजी की दायीं मुट्ठी में कसा ,

भौजी भी समझ गयीं थीं देवर उनका लम्बी रेस का घोडा है , केतना भी जोर जोर से मुठियाएंगी वो पिघलने वाला नहीं ,

लेकिन कम्मो भौजी सिर्फ अपने देवर का लंड ही नहीं मुठिया रही थीं , जो रंग उनके देवर ने चोली फाड़ कर उनके जोबना में मला था पीछे से देवर की पीठ पर ,

दायां हाथ में कम्मो के इनका लंड था , मोटा तन्नाया , पर बायां हाथ तो खाली था ,

और वो उनके चिकने पिछवाड़े पर , सफ़ेद वार्निश पेण्ट रगड़ रगड़ कर , . और साथ में दो ऊँगली , पिछवाड़े के छेद पर और साथ में उनकी भौजी की गालियां

" स्साले किसके लिए कोरा बचा के रखा है , असों होली में तोहार गाँड़ जरूर फटी , एकदम तोहरी बहिनिया की तरह कोर हो , एक बार खुल जाए न तो देखना एक से एक मोटा लंड तोहरी गाँड़ में जायेगी ,

में बरामदे में बैठी कम्मो को उकसा रही थी , इन्हे चिढ़ा रही थी और सोच रही थी कम्मो की बात एकदम सही है , इस होली में तो इनके पिछवाड़े की नथ उतरनी तय है , कोहबर में तो कैसे कर के बच गए , लेकिन सलहज सास सब ने बोल रखा था , जब ससुराल आओगे न तो बचेगी नहीं , और ये तो होली में , वो भी दस दिन के लिए , . . रीतू भाभी रोज याद दिलाती थीं मुझे , नन्दोई के पिछवाड़े वैसलीन लगाया की नहीं , .

मैं अपनी जेठानी की कम्मो की ओर थी , लेकिन ये कहाँ लिखा है की देवरानी जेठानी में होली नहीं होगी , . पर शुरआत कम्मो ने ही की ,

देवरानी जेठानी की होली

मैं अपनी जेठानी की कम्मो की ओर थी , लेकिन ये कहाँ लिखा है की देवरानी जेठानी में होली नहीं होगी , . पर शुरआत कम्मो ने ही की ,

और मैं जान रही थी वो बदमाशी उनकी अकेले की नहीं थी , उनके देवर ने ही उन्हें उकसाया की अपनी देवरानी को भी आँगन में घसीट लें , . . वो तो मुझे इशारा कर के बुला रहे थे , पर मैं मना कर रही थी , पहले अपने भौजी से निपट लो ,

बाल्टी में रंग बनाने का काम मेरा था , एक में गाढ़ा लाल , एक में गाढ़ा नीला , .

और जैसे मैं बाल्टी देवर भाभी के ऊपर डालने के लिए बढ़ी , .

कम्मो ने उलटे मुझे बाल्टी लेकर सीधे मेरे ऊपर , .

मैं क्यों छोड़ती मैंने भी दूसरी बाल्टी सीधे कम्मो के ऊपर वो भी सिर्फ पेटीकोट , साडी तो कब की खुल गयी थीं उनकी ,

ब्लाउज उनके देवर ने फाड़ दिया था और ब्रा वो पहनती नहीं थीं , . मैंने बाल्टी का पूरा रंग सीधे भौजी के सेंटर पर ,

लेकिन कम्मो भौजी उनकी रंग वंग में कहाँ , .

बस पीछे से मुझे दबोच लिया , और आराम से मेरी साडी पेटीकोट से निकाली और चक्कर दे कर पूरी साडी निकाल ली , जब तक मैं सम्हलती साडी उनके हाथ में , .

वो दुष्ट बदमाश , जोर जोर से अपनी भाभी को उकसा रहे थे , मुझे चिढ़ा रहे थे ,

साडी कम्मो ने खूब जोर से फेंकी , बरामदे में जहाँ मैं थोड़ी देर पहले बैठी थी , वहीँ पर गिरी , .

अब मुझे मिलने से रही लेकिन कम्मो को इतने से कहाँ संतोष था , उसने मेरे ब्लाउज पर हाथ लगाया , चट चट कर बटन टूटे , लेकिन वो ब्लाउज खोल पाती , मेरी आँखों ने उनसे गुहार की , पर उन्होंने इशारा किया उनके हाथ बंधे हैं।

कम्मो के दोनों हाथ मेरे जोबन पर थे और मेरे दोनों हाथ खुले

बस मैंने इनके भी हाथ खोल दिए , . बस अब वो कम्मो के पीछे

और जब तक कम्मो समझे , अब वो पीछे से ,

एक जोबन भौजाई के उनके हाथ में और ,

तबतक मैंने कम्मो का पेटीकोट उठा दिया और सीधे उसकी कमर में लपेट दिया , . बस इनकी तो चांदी हो गयी ,

एक हाथ चूँची पर और दूसरा चूतड़ पर , मस्त बड़े चूतड़ खूब चाकर , अभी तक तो वो इनके पिछवाड़े पड़ी थी

और अब ये इसके ,

गांड इन्होने मारी नहीं थी अभी तक लेकिन मन तो इनका करता थी था और कम्मो के चूतड़ , एकदम मांसल कड़े कड़े , ४० +

ऊँगली सीधे पिछवाड़े के छेद पर ,

मैंने एक बाल्टी में फिर रंग घोला और एक साथ देवर भाभी के ऊपर ,

उनका खूंटा कम्मो के पिछवाड़े ठोकर मार रहा था और अब वो खुल के कम्मो की बिलिया सहला रहे थे मसल रहे थे , एक ऊँगली अंदर

रंग से वो फिसले और साथ में कम्मो , वो नीचे और कम्मो ऊपर , कम्मो की दोनों जाँघे खुली फैली

और मैं बाल्टी से रंग धीमे धीमे कम्मो की बुर के ऊपर टपका रही थी , "

" अब तोहार भौजी क बुरिया क गर्मी कुछ शांत होई " मैंने दोनों को चिढ़ाया ,

कम्मो खिलखिलाती बोली

" अरे देवरानी , होली में भौजी क बुर खाली देवर के पिचकारी के सफ़ेद रंग से जुड़ाती है , और कउनो रंग का असर नहीं होने वाला है "

" अरे तो भौजी भी हैं , देवर भी हैं और देवर क पिचकारी भी खूब कड़क बौराई , . . खेल लीजिये न "

मैंने कम्मो को उकसाया ,

तबतक कम्मो ने पलटा खाया और अब देवर नीचे

, भौजी ऊपर और अपनी गुलाबो से उनके खूंटे को रगड़ते मुझसे बोली ,

" हमरे देवर क पिचकारी तो गजबै हाउ , लेकिन बचपन में ओंकर महतारी , . "

मैंने बात काट के कम्मो से बोला , अपने देवर से ही पूछ लीजिये न ,

फिर तो गारी की वो बौछार , और होली खाली रंग की बौछार से थोड़ी पूरी होती है , जब तक जम के गारी न हो , .

" बोल स्साले मादरचोद , बचपन में खूब अपनी महतारी के संग गुल्ली डंडा खेले होंगे न , खूब मुठियाये होगी वो बचपन में , बोल गदहा से चोदवा के तोहैं पैदा किया या घोड़ा से , तबहिं तो गदहा घोडा अस ,. बहुत आपन महतारी बहन चोदे होगे न बचपन में , लेकिन आज सब भूल जाओगे गांडू ,. ऐसा चोदुंगी न तुझे जैसा तेरे खानदान में न तेरी महतारी चोदी गयी होगी न तेरी बहनें , . स्साले लेकिन बुर का मजा लेना है न भौजाई का तो पहले चूस चाट के ,

भौजी ऊपर

फिर तो गारी की वो बौछार , और होली खाली रंग की बौछार से थोड़ी पूरी होती है , जब तक जम के गारी न हो , .

" बोल स्साले मादरचोद , बचपन में खूब अपनी महतारी के संग गुल्ली डंडा खेले होंगे न , खूब मुठियाये होगी वो बचपन में , बोल गदहा से चोदवा के तोहैं पैदा किया या घोड़ा से , तबहिं तो गदहा घोडा अस ,. बहुत आपन महतारी बहन चोदे होगे न बचपन में , लेकिन आज सब भूल जाओगे गांडू ,. ऐसा चोदुंगी न तुझे जैसा तेरे खानदान में न तेरी महतारी चोदी गयी होगी न तेरी बहनें , . स्साले लेकिन बुर का मजा लेना है न भौजाई का तो पहले चूस चाट के , . "

और कम्मो अब उनके सर के ऊपर उसकी बुर ,

सीधे इनके मुंह पर और क्या कस के घिस्से मार रही थी वो उनकी भौजी ,

और ये नहीं की उसके देवर का लंड आजाद हो गया था , वो अब कम्मो की मुट्ठी में और साथ में गारियाँ खोल

" तोहार महतारी खूब चुसवाये होगी बचपन में तभी इतना मस्त , . . अरे स्साले बुर में जीभ डाल अरे अभी तो तो तुझसे अपनी गांड भी चटवानी है , गाँड़ के अंदर का भी , जीभ अंदर डाल के , जैसे टेढ़ी ऊँगली अंदर डाल के घी निकालते हैं न एकदम वैसे ही लसर लसर ,

हाँ तब भौजी क बुर मिलेगी होली में , .

हाँ चाट गांडू चाट "

चाट वो कम्मो की रहे थे , गरमा मैं रही थी , बाल्टी में फिर मैंने दो चार बाल्टियां रंग की भर लीं , हाथ में पेण्ट भी ,

कुछ देर बाद कम्मो ने अपना चौड़ा पिछवाड़ा सीधे उनके मुंह के ऊपर ,

और उसके पहले हाथ से अपने दोनों चूतड़ फैला के छेद खोल के , सीधे उनके मुंह पर सील कर दिया ,

उनकी जीभ कम्मो की गांड में घुसी पता नहीं , लेकिन दरवाजे पर जोर जोर से खटखट हुयी

भाभी , भाभी , . . दरवाजा खोलिये न ,.

सब रंगभग ,

वो क्या पहनते उनका पजामा तो चीर चीर , आँगन में पड़ी कम्मो की साड़ी उन्होंने उठाया और लपेटा , बाथरूम के अंदर ,

कम्मो सिर्फ पेटीकोट में थी उसने बरामदे में पड़ी मेरी साडी लपेट ली और दरवाजा खोलने चली गयी , . और मं खूब गीली देह से चिपकी

आवाज तो मैं पहचान ही गयी थी , मेरी मोहल्ले की दो लड़कियां इंटर वाली ,

दोनों ननदे , ज्योति , नीता ,.

ननदे , ज्योति ,

नीता ,. .

आवाज तो मैं पहचान ही गयी थी , मेरी मोहल्ले की दो लड़कियां इंटर वाली , दोनों ननदे , ज्योति , नीता ,.

और दोनों पक्की छिनार ,

ज्योति तो खूब दबवा मिजवा के गदरा गयी थी , जोबन उसके आलमोस्ट मेरे साइज के , दोनों ११ वे पढ़ती हैं ,

वहीँ जहाँ गुड्डी पढ़ती है , हम लोगो के घर के बगल वाले गवर्मेंट गर्ल्स इंटर कालेज ,

नीता भी कम मस्त नहीं है , हंसती है तो गाल में गड्ढे पड़ते हैं ,

और दोनों मुझे जबसे मैं आयी तबसे होली का नाम ले ले कर धमका रही थीं ,

" भाभी अभी आप भैया से मजा ले लीजिये , आने दीजिये होली , इस होली में आपके कपडे से नहीं सिर्फ देह से होली होगी "

नीता छेड़ती रहती ,

और ज्योति और

" अरे हमारी भाभी बनारस की डांसिंग क्वीन थीं , आने दो होली को इस आंगन में हम ननदें नचाएंगी , हाँ बिना कपडे के , और सेल्फी वीडियो , सब ,. "

वही दोनों ,

उन दोनों को पता चल गया था की मैं होली में नहीं रहूंगी , सीधे होली के तीन दिन पहले अपने मायके ,

जैसे मैंने किवाड़ खोला , दोनों जोर जोर से बोलती घुसी ,

" अरे भाभी ये सख्त नाइंसाफी है , होली में अपने मायके यारों की पिचकारी का मजा लेने जा रही है , आप डर गयीं की होली में यहाँ ननदें नंगे नचाएंगी न ,

अरे बचपन की छिनार अपने भौजाई बहुत मजा लिया होगा अबकी अपने देवर और ननदों का रस लेना चाहिए था न ,

भाभी ये एकदम फाउल है "

उन दोनों को क्या मालूम था मैं केवाड़ी के पीछे छुपी खड़ी हूँ , बनारस वाली हूँ इन आजमगढ़ वालियों की लेने के लिए आयी हूँ , .

पीछे से मैंने नीतू को धर दबोचा और आगे से कम्मो ने ज्योति को अपनी अँकवार में कस के भींच लिया ,

कम्मो की पकड़ लोहे की सँडसी से भी जबरदस्त , चार चार बच्चो की माँ उससे पार नहीं पा सकती , ये ज्योति तो नयी बछेड़ी थी ,

ज्योति शलवार सूट में , जोबन उसके छलक रहे थे , .

बोली ,

" नहीं नहीं भाभी , ये ड्रेस मेरा , रंग से , . आप लोग ,. "

उसकी निगाह रंग से लिथड़ी कम्मो पर पड़ी।

कम्मो ने बिना बोले , पहले उसे हलके से गुदगुदी लगाई , जब तक वह सम्हले , पीछे से उसकी दोनों कलाई कम्मो के हाथ में ,

और मुंह से ही उसने ज्योति का दुप्पटा खींच लिया , और हँसते हुए बोली

" ननद रानी ई जोबना फागुन में मिजवाने मसलवाने के लिए हैं , काहें हमारे देवर को ललचाती हो , देखाओ न खुल के , . "

और आराम से ज्योति के दोनों हाथ दुप्पटे से बाँध दिए ,

मैंने नीतू के दोनों हाथ पीछे से पकड़ रखे थे , वो टॉप और स्कर्ट में थी।

कम्मो ने ज्योति की शलवार का नाड़ा न सिर्फ खोला बल्कि खींच कर निकाल दिया और उसी नाड़े से अब नीतू के हाथ बंधे थे ,

हम चारो अब आंगन में थे , आंगन में चारो ओर रंग बिखरा था , बाल्टियों में रंग भरा था , लग रहा था भी जबरदस्त होली हुयी थी ,​
Next page: Episode 53
Previous page: Episode 51