Episode 54


कम्मो ने मुस्कराते हुए आंगन में से अपना वो ब्लाउज जो उसके देवर ने चरररर करके फाड़ था और सारी बटने भी आंगन में बिखरी पड़ीं थीं , उसे समेटा किसी तरह अपने जोबन पर टांगा और बाहर की ओर

( हम लोगों के घर से सटे ही कुछ कमरे बने थे उसी में वो रहती थी )

उसे छोड़ते हुए मैं मुस्कराकर बोली ,

" आज हुयी देवर भाभी की होली , लेकिन पिचकारी का रंग ,. . "

. मेरी बात काटते वो बोली ,.

" अरे घबड़ा जिन , अब तो देवर भी यहीं भौजी भी यहीं , पूरी पिचकारी पिचका कर रख दूंगी ,. लेकिन एक बात है हमरे देवर की पिचकारी है जबरदस्त , बस एक दो दिन के अंदर सफ़ेद रंग वाली होली , . "

चाहती तो मैं भी यही थी आखिर देवर भौजी क होली हो , और सफ़ेद रंग न बरसे देवर क पिचकारी से भौजी की बाल्टी में ,

मैंने पीछे दरवाजा बंद किया , आगे का तो पहले से ही बंद था , फिर भी चेक कर लिया।
और जब मैं आँगन में आयी तो देखा , पूरा आँगन रंग से भरा बाल्टियां भी रंग से भरी ,

तभी मुझे याद आया की ये तो बाथरूम में ये बंद है ,
और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला ,

बेचारे , बेचारे के 'बेचारे' की हालत खराबी थी

बेचारे के 'बेचारे' की

और जैसे ही मैंने दरवाजा खोला ,

बेचारे , बेचारे के 'बेचारे' की हालत खराबी थी

चारा मिलते मिलते रह गया था ,

भौजाई ने पकड़ा मसला और अंदर लेने ही वाली थी की , .

और उसके बाद बाथरूम के अंदर से ,

दो किशोरियों की लेस्बियन कुश्ती

और उसके बाद अपनी उन ' बहनों ' की उनकी भौजाइयों के द्वारा की गयी रगड़ाई ,.

खूंटा तो खड़ा होना ही था , और जो काम भौजाई के साथ होना था , भौजाई नहीं उनकी देवरानी ,

जानती तो मैं भी थी , और चाहती भी थी , इनकी कांफ्रेंस के चक्कर में गुलाबो का रात भर का उपवास हो गया था ,

पर सताने में तो मजा आता है , ये आंगन में पहुंचे और मैंने सीधे एक बाल्टी रंग उनके खूंटे को निशाना बना कर

लेकिन उन्हें तो सीधे देह की होली खेलनी थी ,

और घर में सिर्फ हम दोनों थे , साजन , सजनी और शाम तक किसी और को आना भी नहीं था , न उनकी माँ न भाभी

और वहीँ आंगन में मुझे लेटा कर , दोनों टाँगे उनके कंधे पर और उनकी रंगीपर

पुती , पेण्ट लगी पिचकारी सीधे मेरे अंदर ,

क्या हचक के आँगन में चोदा उन्होंने ,

ऐसी बात नहीं की ऊपर मेरे कमरे के अलावा कहीं मेरी ठुकाई नहीं हुयी शादी के सात आठ दिन बाद ही , मेहमान सब चले गए थे घर में सिर्फ ये और मेरी जेठानी थीं , और मैं किचेन में

और उस दिन मैं शलवार सूट पहने हुयी थी , की दिन का समय , नीचे किचन में , इनकी भाभी घर में

लेकिन गलती मेरी भी थी , कुर्ता एकदम टाइट था , दुपट्टा गले से चिपका जान बूझ के अपने उभार दिखा के मैं इन्हे ललचा रही थी , फिर कसी सलवार में चूतड़ मटका के इन्हे ललचाते उकसाते , चिढाया

" किसी को कुछ चाहिए क्या "

बस वहीँ किचेन की पट्टी पर निहुरा के ,

लेकिन गलती मेरी भी थी , कुर्ता एकदम टाइट था , दुपट्टा गले से चिपका जान बूझ के अपने उभार दिखा के मैं इन्हे ललचा रही थी ,

फिर कसी सलवार में चूतड़ मटका के इन्हे ललचाते उकसाते , चिढाया

" किसी को कुछ चाहिए क्या "

बस वहीँ किचेन की पट्टी पर निहुरा के ,

एक हाथ से उन्होंने मेरी शलवार का नाड़ा खोला और दूसरे से कुर्ता उठाया ,

किचेन में चिकनाई की कोई कमी तो होती नहीं , कड़वे तेल की शीशी थी बस वही थोड़ा सा अपने खूंटे पर लगाया और

गच्चाक

और सुपाड़ा अंदर ,

और शादी के पहले दो तीन दिन में ही मैं समझ गयी थी , एक बार इनका मोटा सुपाड़ा घुस गया न तो बस

लाख चूतड़ पटको , चीखो चिल्लाओ , चुदने के अलावा कोई और चारा नहीं है , .

बस वही हुआ ,

मैंने कनखियों से अपनी जेठानी साड़ी देखी पर वो भी , . उन्हें अंदाजा लग गया था और वो दबे पांव वापस चली गयीं

( हालाँकि बाद में उन्होंने मुझे बहुत छेड़ा )

सासू जी की पलंग पर भी एक दिन , सासू जी कहीं गयीं थी , जेठानी जी दोपहर को सो रही थीं

घर का कोई कोना बचा नहीं था , .

पर आंगन में आज पहली बार ,

और वो भी ऐसे तूफानी धक्के और मैं क्यों छोड़ती उन्हें

कभी उनकी कम्मो भौजी का नाम लेकर छेड़ती कभी आंगन में बहता रंग उन्हें लगाती

वो आंगन से रंग उठा उठा के मेरे जोबन पर लगाते , और वो रंग मेरे जोबन से उनकी छाती पर

और उसके बाद भी उस लड़के ने मुझे कपडे नहीं पहनने दिए ,

वैसे ही मैंने किचेन में खाना बनाया और वैसे ही हम दोनों ने खाना खाया , .

ये कहने की बात नहीं किचेन में एक राउंड और खाना खाते समय भी उन्होने मेरी नहीं ली हो ,

और वैसी होली शुरू हुयी , १२ दिन बाद हम लोगों को इनकी ससुराल जाना था , होली के तीन दिन पहले हम लोगों को वहां पहुंचना था ,

कोई दिन नागा नहीं गया , जब आंगन में रंग न बरसा हो

इनकी तो दिन में तीन चार बार रगड़ाई हो जाती थी , दो दो भौजाइयां

लेकिन मैं भी,

ननदें थी , अगले दिन ज्योति फिर आयी , कालोनी की तीन चार और। /

पर मैं तो अपने देवर के पीछे पड़ी थी , और कौन वही चिकना अनुज

देवर,. चिकना अनुज

पर मैं तो अपने देवर के पीछे पड़ी थी , और कौन वही चिकना अनुज

और वो एकदम बच के , आता ही नहीं था पकड़ में ,

पर कम्मो थी न , एक दिन मैंने और कम्मो ने मिल के रगड़ दिया उसको।

अनुज , अरे वही ,

स्साला , चिकना , एकदम अपनी बहन की तरह गोरा , रेख भी ठीक से नहीं आयी थी , मेरी शादी में सब मेरी सहेलियां गारी गाते गाते उसे हर बार गँड़ुआ जरूर बोलती थीं ,

" गुड्डी का भैया , अनुजा स्साला गँड़ुआ है , अपनी बहना क भंड़ुआ है। "

लेकिन स्साला नम्बरी चोदू भी है , उसका टांका मैंने ही भिड़वाया था , जेठानी की भतीजी , वही हाईकॉलेज वाली गुड्डो के साथ ,

फिर तो कोई दिन नागा नहीं गया ,

और अब रेनू के साथ , उसकी बहन गुड्डी की सहेली के साथ , उसी के मोहल्ले में रहती है , .

वही , वैसे तो मुझसे हरदम लसा रहता है , जब देखो तब ,.

लेकिन जैसे फागुन लगा है , तबसे ,. मैंने बुलाया तो उसने साफ़ साफ़ अपना डर बताया

आप लोग तीन हैं , मैं अकेले , ( मैं , कम्मो और जेठानी जी , तीनो तो उसकी भाभी थीं , सही बात थी उसकी ) फिर आप कपडे पहले फाड़ती हैं , रंग बाद में लगाती हैं , ( ये भी बात उसकी सही थी , देवर ननदों से होली खेलने के लिए मेरा यही तरीका था )

" अरे नहीं डर मत यार , तेरा कपडा नहीं फाड़ेंगे , प्रॉमिस , कपडे के अंदर वाली फाड़ेंगे , पिछवाड़े वाली ,. "

( उसकी तो भले बच जाती लेकिन उसकी बहना , गुड्डी रानी की आगे वाली इस फागुन में नहीं बचने वाली थी )

वो और डर गया , लेकिन कम्मो ने तरीका बताया ,

रेनू , रेनू को चोदने के लालच में वो जरूर आएगा , . जैसे वो शेर के शिकार के लिए बकरी के बच्चे का इस्तेमाल किया जाता है , एकदम उसी तरह

बकरी की बच्ची , . मेरा मतलब रेनू तो नहीं बची , डबल चुदाई हुयी उसकी , वो भी दमदार लेकिन शेर पिंजड़े में आ गया ,

घर पर सिर्फ मैं और कम्मो थे , सास और जेठानी कहीं रिश्तेदारी में दो दिन के लिए गए थे और ये भी कहीं अपने किसी दोस्त के पास ,

बस हम दोनों की चांदी ,

और सच में कपडे उसके हमने नहीं फाड़े , बल्कि कम्मो ने उसे दिखा के अपनी साडी खुद उतार दी , मैं अनुज का हाथ पीछे से पकड़ी थी और उसी साडी से कस के बांधा गया मेरे देवर को ,

हाँ कपडे वापस भी नहीं मिले उसे , . दो घंटे तक रगड़ाई हुयी , . उस दिन हम दोनों ने उसके बहुत चिल्लाने पर उसकी पैंटी नहीं उतारी , लेकिन आगे से हाथ डाल के कम्मो ने उसके खूंटे की कालिख पेण्ट दो दो कोट रंग , जबरदस्त मालिश की , और खूंटा एकदम खड़ा , . हाँ हम दोनों ने उसे झड़ने नहीं दिया , और मैंने पिछवाड़ा , लाल रंग पहले फिर बैंगनी , उसके बाद प्रिंट वाली जो स्याही होती है है उसकी ट्यूब से गाढा नीला रंग ,. और दोनों चूतड़ फैला के , बीच वाले छेद पर , बस अंदर नहीं डाला , लेकिन डरवाया ,

" बोल स्साले , किस लौंडे बाज ने तेरी गाँड़ मारी ऐसा चिकना माल बचा तो नहीं होगा , . "

और उसने कबूल दिया की कोरा है , बस कम्मो पीछे पड़ गयी ,

" ये स्साले जितने एलवल वाले कोरे हैं या या कोरी हैं , उन सबके फाड़ने का काम हम भौजाइयों का है , . "

और उसकी चड्ढी सरका दी ,

फटा पोस्टर निकला हीरो , लाल पीला कालिख पेण्ट से पुता

हम दोनों ने उसे प्रॉमिस किया था की उसकी चड्ढी नहीं उतारेंगे , इसलिए चड्ढी घुटने में फंसी रहने दी ,

और भाभी कैसी जो फागुन में देवर के खूंटे की लम्बाई चौड़ाई न नापे जांचे ,

देवर संग होली

और सच में कपडे उसके हमने नहीं फाड़े , बल्कि कम्मो ने उसे दिखा के अपनी साडी खुद उतार दी ,

सिर्फ ब्लाउज पेटीकोट में ,ब्रा तो वो पहनती नहीं थी , बड़े बड़े कड़े कड़े ३८ डी डी साइज के चोली फाड़ते जोबन

मैं अनुज का हाथ पीछे से पकड़ी थी

और उसी साडी से कस के बांधा गया मेरे देवर को ,

हाँ कपडे वापस भी नहीं मिले उसे , . दो घंटे तक रगड़ाई हुयी , .

उस दिन हम दोनों ने उसके बहुत चिल्लाने पर उसकी पैंटी नहीं उतारी ,

लेकिन आगे से हाथ डाल के कम्मो ने उसके खूंटे की कालिख पेण्ट दो दो कोट रंग , जबरदस्त मालिश की , और खूंटा एकदम खड़ा , .

हाँ हम दोनों ने उसे झड़ने नहीं दिया ,

और मैंने पिछवाड़ा , लाल रंग पहले फिर बैंगनी , उसके बाद प्रिंट वाली जो स्याही होती है है उसकी ट्यूब से गाढा नीला रंग ,.

और दोनों चूतड़ फैला के , बीच वाले छेद पर , बस अंदर नहीं डाला , लेकिन डरवाया ,

" बोल स्साले , किस लौंडे बाज ने तेरी गाँड़ मारी ऐसा चिकना माल बचा तो नहीं होगा , . "

और उसने कबूल दिया की कोरा है ,

बस कम्मो पीछे पड़ गयी ,

" ये स्साले जितने एलवल वाले कोरे हैं या या कोरी हैं , उन सबके फाड़ने का काम हम भौजाइयों का है , . "

और उसकी चड्ढी सरका दी ,

फटा पोस्टर निकला हीरो , लाल पीला कालिख पेण्ट से पुता

हम दोनों ने उसे प्रॉमिस किया था की उसकी चड्ढी नहीं उतारेंगे , इसलिए चड्ढी घुटने में फंसी रहने दी ,

और भाभी कैसी जो फागुन में देवर के खूंटे की लम्बाई चौड़ाई न नापे जांचे ,

इनके इतना तो नहीं था , लेकिन आलमोस्ट ७ इंच का रहा होगा , मोटा भी अच्छा था , इसलिए तो रेनू और गुड्डो दोनों फैन थीं मेरे देवर की ,

बहुत प्यार से उसके पूरे खानदान को गरियाते हुए मैंने मुठियाया , थोड़ा थूक लगा के , सुपाड़ा खोला , उसके पी होल को सहलाया

और आराम से वार्निश हाथ में पोत कर खूंटे पर रगड़ा और तरीका भी बताया ,

जा के उस गुड्डी छिनार से साफ़ करवा लेना उसे भी लंड मुठियाने की प्रैक्टिस हो जायेगी ,

और उस समय कम्मो , पिछवाड़े का हाल चाल ले रही थी लेकिन वो मेरी तरह शरीफ नहीं थी , उसने मंझली ऊँगली सीधे दो पोर अंदर तक पेल दी

अनुज बहुत जोर से चीखा ,

" अरे गांडू , प्रैक्टिस छूट गयी है क्या गाँड़ मरवाने की , . " मैं हंस के बोली और जोर जोर से मुठियाने लगी ,

ये नहीं की हम दोनों की रगड़ाई नहीं हुयी , उसके कपडे ( चड्ढी के अलावा ) उतारने के बाद हम दोनों ने हाथ उसके खोल दिए थे ,

इनका फोन आ गया था ,

और मैं बरामदे में चली गयी इनसे बतियाने , स्पीकर आन और इतना टाइम काफी था मेरे देवर के पास कम्मो के ब्लाउज हाथ डालने के लिए ,

कम्मो के जोबन थे भी जोरदार ३८ डी डी खूब मांसल लेकिन एकदम कड़क ,

और मैं तारीफ़ से अपने देवर की ओर देख रही थी , इनकी तरह वो झिझक नहीं रहा था सीधे टारगेट पर , हाथ में रंग पोत कर सीधे कम्मो के ब्लाउज के अंदर और कचकचा के दोनों चूँची उसकी दबोच ली ,

मैंने तारीफ़ से अनुज की ओर देखा तो देवर की आँखों ने टेलीग्राम किया ,

" भाभी प्लीज , बस दस मिंनट अकेले , . "

इनसे जो बात ख़तम होने वाली थी वो मैंने पंद्रह मिनट तक खींची , बात मैं इनसे कर रही थी लेकिन आंख मेरी अनुज के ऊपर लगी थी , क्या मस्त जोबन की रगड़ाई कर रहा था मेरा देवर

चरचरा कर कम्मो का ब्लाउज फटा लेकिन न भौजाई को फरक पड़ा न देवर को , कम्मो भी न वो एकदम छुड़ाने की कोशिश कर रही थी , दोनों हाथ मेरे देवर के हाथों के ऊपर , जैसे कह रही हो दबा लो देवर राजा , .

और उससे ज्यादा खुले शेर के ऊपर अपने भीगे पेटीकोट में चिपके मोटे मोटे चूतड़ को रगड़ते हुए कम्मो देवर राजा की हालत और ख़राब कर रही थी

मैं भी मैदान में

पंद्रह मिनट बाद मैं भी मैदान में उतरी ये अनाउंस कर के , अनुज के भैया जो एक घंटे बाद आने वाले थे अब रात में सात बजे आएंगे तीन घंटे के बाद।

और अनुज के पीछे , और अब देवर की सैंडविच बन रही थी ,

पर यही तो देवर चाहता है ,

एक के जोबन उसके हाथ में और दूसरे के जोबन , भीगे देह से चिपके ब्लाउज से ( साडी तो मेरी भी खुल चुकी थी ) देवर के पीठ पर रगड़ रगड़ कर छेद करें , .

यही तो मेरा एकलौता देवर था , शहर में था और स्साला चिकना मेरा फेवरिट ,

मैं आराम से रंग लगा के दोनों हाथों से उसके चिकने मीठे मीठे मालपुआ ऐसे गालों पर रंग लगा रही थी , होंठों पर भी , और मुंह खुलवा के दांतों पर भी , साथ में मेरे गीले भीगे ३४ सी वाले जोबन उसके पीठ पर रगड़ रही थी और बाकी देह भी उसकी देह से चिपकी थी , नीचे से ग्राइंड कर रही थी , और साथ में मैंने देवर को उकसाया भी और समझाया भी

सच में वो नंबर वन देवर था , एकदम भाभी चमचा , और मेरी बात मान के एक हाथ ने कम्मो का जोबन छोड़ा और सीधे गीले पेटीकोट में सेंध लगाई ,

जो भौजाई थोड़ी देर पहले उसके लंड को मुठिया चुकी हो , गाँड़ में ऊँगली कर चुकी हो उससे क्या झिझक , .

न सिर्फ कम्मो की चुनमुनिया रगड़ी गयी बल्कि देवर की एक ऊँगली भौजी की लसलसी बुरिया में ,

यही तो असली देवर भाभी की होली है , .

यह नहीं की सिर्फ कम्मो की चोली में हाथ घुसा , .

मैंने और कम्मो ने आँखों आँखों में प्लानिंग की थी , और उसके लिए कम्मो थोड़ी देर के लिए अपने कमरे में गयी

और अनुज को मौका मिल गया , मैंने ज्यादा रोक टोक नहीं की ,

थोड़ी देर तक तो उसने सिर्फ मेरी कसी बैकलेस चोली के ऊपर से ही , पर मैंने उसे घूर के देखा जैसे कह रही होऊं

" भौजी भौजी में भेद करते हो "

बस देवर का हाथ मेरी चोली में

मेरी जेठानी

मजा तो बहुत मिला पर डांट भी बहुत पड़ी और डांटने वाली कौन , ऐसी डांट ससुराल में आने बाद कभी नहीं पड़ी थी

मेरी जेठानी ,और वो भी सासू जी के सामने , . कम्मो भी थी।

और डांट अनुज को भी पड़ी ,

देर शाम को ८ बजे के बाद मेरी सास जेठानी लौटीं ,

और चाय के समय मैंने बताया , की आज उनके और मेरे देवर की ,. फोटो भी दिखायीं , कुछ तो मैंने अपने फेसबुक पेज पर भी डाल दी थीं
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