Episode 60


और फिर गुड्डो की मम्मी की सहेलियां होंगी , उन की बेटियां , गुड्डी की सहेलियां , .
एक से एक कच्ची कलियाँ , जब गुड्डो की मम्मी को गुड्डो के सामने चोद चूका होगा तो फिर तो जो नहीं माने उस के साथ थोड़ी बहुत जोर जबरदस्ती , लेकिन बिना फाड़े छोड़ना मत सालियों की ,

और जा भी कितने सही मौके पर रहा है , बनारस में होली से ज्यादा रंग पंचमी का हंगामा , फिर रिश्ता ऐसे , तेरा भैया की ससुराल , तेरी ससुराल , कोई सलहज कोई साली , फिर गुड्डो का अलग रिश्ता , तेरे पास तलवार भी जबरदस्त है और तलवार बाजी भी सीख गया है , . "

अनुज कुछ देर तक सोचता रहा , फिर बड़ी जोर से मुस्कराया ,

" भौजी बात तो आपकी एकदम सही है , फिर अब तो कहीं मेरा सेलेक्शन हो गया तो फिर तो बनारस ,में ही रहूँगा , फिर तो ये ट्रिक बहुत काम आएगी . लेकिन होगा कैसे। "

उसके थोड़े सोये थोड़े जागे खूंटे को मुठियाते , कम्मो ने समझाया ,

देवर जी बस इसी जादू के डंडे से , हाँ थोड़ी हिम्मत करिये तो बस रस ही रस है , देखिये आपको कुछ नहीं करना , पहली रात गुड्डो अपनी सहेली के घर और आप उसकी मम्मी को खचाखच , दो बार तीन बार , तो बस मांग लीजियेगा , इनाम ,.

और हाँ उस समय बोलियेगा बात में बताऊंगा और फिर गुड्डो को दिखा के , .

फिर कई तरीके हैं , कभी वो और उनकी बेटी साथ सो रही हों तो बस आप भी , उसकी मम्मी के बगल में , फिर धीमे धीमे गर्म करना और बोलना की गुड्डो तो सो रही है , और पहले तो धीरे धीरे , फिर हचक हचक के , साथ में गुड्डो के भी जोबन पर , जाँघों पर हाथ फेरते रहना , जग तो वो जायेगी ही , लेकिन पहले ये बोल , गुड्डो को तो नहीं बुरा लगेगा , . "

" अरे नहीं भौजी , गुड्डो को , उसे तो मैं जो भी बोलूं , एकदम आँख मूंदकर ,.

और उसे उसकी मम्मी का नाम लेकर रो मैं चिढ़ाता ही रहता हूँ ,कभी बनारस आऊंगा तो जिस जगह से इतनी बढ़िया मिठाई निकली है उसे भी चखूँगा , तो वो बोलती है , चख लेना , मेरी मम्मी सहेली ज्यादा हैं , बल्कि सहेली से भी बढ़कर , लेकिन बच के रहना , तेरी ले लेंगी वो अच्छे से ,. मेरी इतनी सीधी नहीं है , तो उसका डर तो बिलकुल नहीं "

" फिर क्या , तो एक दो बार ऐसे ,. फिर कभी जब उसकी मम्मी पर चढ़ाई करो तो गुड्डो को बोलना की अचानक आ जाए , फिर इस नाम पर की वो सबको बता देगी , उसको भी वहीँ ,. बस एक बार तुम मन बना लो तो सब हो जाएगा , लेकिन मैं सच बोल रही हूँ , एक बार तुमने माँ बेटी को साथ चोद दिया न तो तेरी वो सात करोड़ वाली लाटरी लग जायेगी , और उसके बाद रस की कोई कमी नहीं। "

अनुज के चेहरे से लग रहा था , उसका इरादा पक्का है , गुड्डो का और उसकी मम्मी का साथ साथ ,

कम्मो ने अब और मजे दिखाए ,

" देखो तुम कह रहे क्या पता बनारस के इंजिनयरिंग कालेज में हो जाए , फिर तो चार पांच साल ,. इसलिए जो कच्ची कलियाँ हो न , बस मटर की छिमी की तरह चूँचिया उठान हो रहा हो , भूरी सुनहली छोटी छोटी झांटे आ रही हों , उनका भी , कपडे के ऊपर से ही हाथ फिराना , रंग अंदर हाथ डाल के और उनके सामने उनकी बड़ी बहनों के साथ , असली मजा तो आएगा , गुड्डो की मम्मी की ऊपर वालों के साथ , लेकिन छोड़ना किसी को मत ,. और हाँ गाँड़ जरूर मारना गुड्डो की मम्मी की पहले फिर गुड्डो की भी उन्ही के सामने , उन से बोल के , हाँ एक टोटका बता रही हूँ , ये गुड्डो की मम्मी के साथ इस्तेमाल करना , गाँड़ हचक के मारने के बाद जो गाँड़ में मलाई निकले न , मक्खन मलाई दोनों मिली जुली , बस वो गुड्डो की मम्मी को जरूर चिखाना , बस एकदम तेरी हर बात मानेगी , एकदम कोरी कोरी खुद फंसाएगी तेरे लिए "

एकदम भौजी , अनुज बोला , लेकिन तब तक उसकी निगाह घडी पर पड़ गयी , तिझरिया हो रही थी ,

वो जोर से चिल्लाया ,

" अरे बस दो घंटे बचे हैं बनारस की बस में , अभी घर जा के सब पैकिंग करनी है , मैं चलता हूँ , भाभी को बोल दीजियेगा , "

लेकिन तब तक मेरा फोन आ गया था , मैंने कम्मो को बोल दिया था मुझे अभी और टाइम लगेगा , अनुज को बोल दीजियेगा , मैं उससे उसके घर पर मिलूँगी ,

रास्ते में हम दोनों अनुज के घर रुके , वो एकदम तैयार था , मैंने सबके सामने तो उसे बेस्ट ऑफ़ लक कहा , लेकिन कान में बोला , बनारस में हम लोगों की नाक मत कटवाना , तेरी पिचकारी का असर नौ महीने बाद पता चलना चाहिए , छोड़ना मत किसी को ,. "

जब घर लौट के आयी तो बाद में कम्मो ने उसकी और देवर की होली , सारी बातें बतायीं , जो मैंने अभी शेयर की।

थोड़ा सा हट के

देवर की हालचाल , और बनारस में अनुज

जब घर लौट के आयी तो बाद में कम्मो ने उसकी और देवर की होली , सारी बातें बतायीं , जो मैंने अभी शेयर की।

रात को मैंने अपने देवर का हाल चाल लिया , अनुज ने तो बस थोड़ा बहुत ,. लेकिन जिसकी ली जाती है वो स्साला कभी पूरी बात बताती हैं , पर मेरी जासूस थी न , गुड्डो

और उससे भी बढ़कर , गुड्डो की मम्मी ,. मेरी जेठानी की भौजी तो मेरी भी तो भौजी लगेंगी ,

और ननद भाभी में बात चीत , फिर अनुज के जाने के पहले ही मैंने ,. . उन्हें खूब अच्छी तरह ,

मेरे देवर का स्वागत खूब अच्छे तरह से हुआ। एक कमरा उसके लिए अलग से पहले से सेट करके रखा था , अटैच्ड बाथरूम भी , एक टेबल , कुर्सी , उस पर टेबल लैम्प , जिस से उसके पढ़ने , एक्जाम में कोई दिक्कत न हो , पहुँचते ही उसका सामान गुड्डो ने रख लिया , भाभी ने उसका कमरा दिखाया , . लेकिन उसे तुरंत कोचिंग में जाना था , वहीँ बगल में ही सेंटर था ,. उसके बाद लौटकर , फिर चार दिन बाद ही निकालता होली के अगले दिन , इम्तहान वाले दिन ,.

लेकिन जब लौट के आये तो सबसे पहले गुड्डो ने हड़काया

" ऐसे बाहर जातें हैं , हूश की तरह बाल भी ठीक से नहीं झाड़े ,. ये तेरा शहर नहीं है , बनारस है , कम से कम अपनी नहीं तो हम लोगों की इज्जत का ख्याल करते , नाक कटवाओगे तुम ,. "

ये कहने की बात नहीं , गुड्डो ने उसकी शर्ट और पैंट उतरवाकर , उसके बदले में सिर्फ एक शार्ट देकर , और जब उसने चड्ढी नहीं उतारी तो फिर डांट पड़ी ,

" उतारो उसे भी , थोड़ा उसे भी हवा लगने दो ,. "

बस बनियाइन और शार्ट में

तबतक गुड्डो की मम्मी आ गयी और वो अपने देवर की ओर से गुड्डो पर ,

" फालतू में उसे डांट रही हो , तुम क्या कर रही हो , चलो उसका बाल अब से झाड़ दो , अब से ये सब जिम्मेदारी तेरी "

बेचारे देवर को क्या मालूम था माँ बेटी की जुगलबंदी , . वो कुर्सी पर बैठा था और वहां कोई शीशे विशे का जुगाड़ तो था नहीं ,. बस गुड्डो ने

बड़े प्यार से बड़ी देर तक बाल झाड़े , मांग काढ़ी और फिर कहीं दीवाल पर से चिपका हुआ बड़ा सा शीशा उखाड़ के ले आयी , और तारीफ़ सुनने का इन्तजार करते हुए बोल पड़ी ,

" अच्छा है न , . "

बेचारे अनुज से न बोलते बन रहा था न , किसी तरह से बोल फूटे,

" सीधी मांग, . . ?"

अब गुड्डो का नंबर था ठुनकने का , .

" यार तू भी न एक तो इतनी अच्छी मांग काढ़ी , मैं तो ऐसे ही काढ़ती हूँ , मम्मी भी , तो मुझे यही आती है ,. "

लेकिन अब गुड्डो की मम्मी का नंबर था , उन्होंने अपनी बेटी को हड़का लिया , अरे सूनी मांग अच्छी लगती है , जाके जल्दी ,. "

उनकी बात पूरी होने के पहले ही सिन्दूर की डिबिया ले कर , गुड्डो हाजिर थी ,

" लीजिये डाल दीजिये , . "

" तू क्या सोचती है मैं छोडूंगी इस चिकने को , लेकिन तूने इतने प्यार से इनकी इतनी अच्छी मांग काढ़ी थी , चल डाल सोचते नहीं ,. "

और गुड्डो ने सिन्दूर दान कर दिया , और उसके बाद गुड्डो की मम्मी ने भी ,. खाली मांग कितनी खराब लगती थी ,. "

कम्मो ने इतना सिखा पढ़ा कर भेजा था पर बनारस वालियों के आगे , बड़े बड़े पानी मांग जाते हैं ,.

और जब गुड्डो सिन्दूर की डिब्बी वापस रखने गयी तो बड़ी हिम्मत कर के , कम्मो का सब सिखाया, उनके बोल फूटे,

" सिन्दूर दान के बाद भी तो ,. "

गुड्डो की मम्मी ऐसी हंसती थी की सिगरा पर हँसे तो चौक में सुनाई दे , जोर से हंसी , बोलीं

" एकदम होगा क्यों नहीं होगा , लेकिन जिसकी मांग में सिन्दूर पड़ता है , उसी की ली जाती है धूमधाम से ,. यहाँ तो लौण्डेबाजों की लाइन लगी थी जब से तेरे आने का सुना उन्होंने , लेकिन तेरा इम्तहान, जिस दिन तेरा इम्तिहान ख़तम होगा , उसी रात चार की बुकिंग है, यही इसी कमरे में ,. और फिर वही हंसी ,. और गुड्डो की मम्मी ने बात आगे बढ़ाई , मैं मजाक एकदम नहीं कर रही , हाँ इस खूंटे के बारे में ,. . तो तेरी बहन को मैंने बुला लिया है , वो आ जायेगी इम्तहान के अगले दिन , बस इसी कमरे में हम लोगों के सामने ,. मना लेना मन भर सुहाग रात , या सुहागदिन ,. "

लेकिन तब तक गुड्डो अंदर आ गयी थी , उसने पूछ लिया ," क्या कह रहे थे ये ,"

" कहेंगे क्या, . अपने माल को याद कर रहे थे, क्या नाम है उसका गुड्डी इनकी बहन ,. " मम्मी उसकी बोलीं ,.

गुड्डो भी कौन कम थी , वो भी बनारस वाली , बोली

" बड़ी लम्बी उमर है उसकी , अभी उसी की बात हो रही थी उसी की सहेली से , . बोल रही थी जैसे ये यहां आये हैं वहां छैलों की लाइन लगी है , अभी चौथे का नंबर चल रहा है। "

लेकिन गुड्डो की मम्मी के मन में कुछ और चल रहा था बोलीं , इतना चिक्क्न माथा , ऐसा खाली , . " और अपनी बड़ी सी टिकुली उनके माथे पर लगा दी ,

उसके बाद खाना , लेकिन ससुराल में खाना तो बिना गाली के होती नहीं ,.

पर उसके बाद उन दोनों ने उसे पढ़ने के लिए छोड़ दिया था बस उसी शर्त के साथ मांग , सिन्दूर टिकुली हटाने की सोचे भी नहीं , अब तो घर में ही रहना है ,

बस तीन चार घंटे में एक बार कभी हार्लिक्स , कभी दूध कभी काफी , ज्यादातर गुड्डी ,. कभी उसकी मम्मी भी

कुछ अपनी कुछ उनकी

आजकल रातें किसी और ' काम' में गुजरती थीं,

और हाँ वो उस ' काम ' वाले ' काम ' में कमी न उन्होंने न आने दी , न मैंने , बस फर्क ये पड़ा की शुरू के दिनों में रात होने का इंतजार उन्हें भी रहता था , और सच कहूं तो मुझे भी। लेकिन अब इतना इन्तजार न वो कर सकते थे न मैं ,

तो बस थोड़ी सी पेट पूजा कहीं भी कभी भी , शुरू के दोनों में ४-६ बार की जो आदत उन्होंने डाल दी थी , ३-४ बार रात में , ( गुड मॉर्निंग जोड़कर ) और एक दो बार दिन में कर्टसी मेरी जेठानी। वो कम नहीं हुयी थी , कभी कभी बढ़ भी जाती थी ,

बस फर्क दो थे , अब हम दोनों न दिन देखते थे रात और दूसरी बात , पहले हर बार वही पहल करते थे , अभी भी , लेकिन अब कभी कभी मैं भी , .

हाँ तो बात मैं कह रही थी रात का रूटीन बदलने की, तो एक कारण और सबसे बड़ा कारण थीं , उनकी सालियाँ

और सलहजें , .

ससुराल का लालच , उन दस दिनों तक वो डिजिटल डेजर्ट में रहने वाले थे, फोन , मेरी दोनों सौतने, लैपी और आई पैड , सब बंद।

तो टारगेट , काम सब कुछ अभी ख़तम करना था, .

लेकिन और भी बातें थी , मेरा भी एक लालच था , स्विट्जरलैंड में दस दिन फिर थोड़ा यूरोप का चक्कर , वो भी सड़ी गर्मीं में ,. इन्हे जो काम कर रहे थे उसका एक पेपर जून में प्रजेंट करना था , लासेन स्विट्जरलैंड में

हनीमून तो हम लोग गए नहीं थे , पर जितने कपल्स हनीमून में इंज्वाय करते हैं उससे ज्यादा हमने घर में ही मजे लिए थे , हर रोज सुहागरात ,. पूरे हफ्ते भर का प्रोग्राम था स्विट्जरलैंड का , दो दिन की इनकी कांफ्रेंस थी , एक दो दिन और कुछ मीटिंग विटिंग , लेकिन तीन दिन सिर्फ एक काम , . बस वही ,. सटासट सटासट ,.

और इन्विटेशन में मैं भी शामिल हो गयी थी। मैं हर 'काम ' वाले ' ' काम ' में इनका साथ देती थी तो ये क्यों छोड़ देती थी , चलिए बताती हूँ साफ़ साफ़ ,

मैंने इंटर का कोर्स ( इंटरकोर्स तो इन्ही के साथ किया सबसे पहले ) करने के साथ फ्रेंच लैंग्वेज का एक डिप्लोमा किया था और मेरी एक पक्की सहेली जर्मन सीखती तो तो थोड़ा बहुत उस साली की टांग खींचने के चक्कर में बहुत हलकी फुलकी ,. तो बस ये जो पेपर पढ़ते थे , नेट पे कुछ फ्रेंच में भी और तर्जुमा करने का काम मेरे जिम्मे , इनके साथ में कुछ एक्सेल भी सीख गयी थी , तो सही अर्थों में सह धर्मिणी हो गयी थी , हाँ मैं भी नहीं , बात कर रही थी रात की और बात फ्रेंच पर आ गयी ,

असल में जब यहाँ रात होती थी तो उन सब जगहों पर दिन , खासतौर पर अमेरिका में , तो इन लोगों की ग्रुप मीटिंग कांफ्रेंस लेट इवनिंग या रात में , कुल ४-५ लोगों का ग्रुप था जो उस टॉपिक पर काम कर रहे थे , हाँ कभी कभी रीत भी आ के जुड़ जाती थी , .

अरे बताया था तो रीत के बारे में , बनारसी , लेकिन अब पक्की पंजाबन बन गयी थी , बनारस की थी तो इनकी साली अपने आप , और मुझसे बड़ी थी तो मैं कभी दी कहती , कभी वो डांटती , नाम लेने के लिए तो मैं नाम भी ले लेती , ये सब लोग मिल के उस टॉपिक पर , लेकिन में रोल इन्ही का था ,

और इस के चक्कर में बिना कुछ समझे मैं भी कन्वर्जेंस , ए आई , बिग डाटा , ब्लॉकचेन सब बोलने लगी थी। तो उस दिन कांफ्रेंस ख़तम होगयी थी , मैं व्हाटसएप पर झाड़ू लगाने में जुटी थी और ये कुछ पढ़ लिख रहे थे , उसी समय कुछ झुंझलाहट में मैं पूछ बैठी , असल में ये व्हाट्सएप ऐसी चीज, जिसके बिना भी रहना मुश्किल और जिसके साथ भी रहना मुश्किल, आखिर एक एक जोक कोई दो बार चार बार कितनी बार पढ़ेगा , फिर चलो डिलीट करो ,. और सबसे ज्यादा परेशानी ग्रुप में, न खोलो तो भी ये बात खुल जाती है ,. इसलिए मैं ज्यादा नहीं खाली ४०-४२ ग्रुप में हूँ , कितनों को तो मना कर दिया , अब आप पूछेंगे तो बाकियों में से भी ,. लेकिन कैसे ,

व्हाट्सएप

ये व्हाट्सएप ऐसी चीज, जिसके बिना भी रहना मुश्किल और जिसके साथ भी रहना मुश्किल, आखिर एक एक जोक कोई दो बार चार बार कितनी बार पढ़ेगा , फिर चलो डिलीट करो ,. और सबसे ज्यादा परेशानी ग्रुप में, न खोलो तो भी ये बात खुल जाती है ,.

इसलिए मैं ज्यादा नहीं खाली ४०-४२ ग्रुप में हूँ , कितनों को तो मना कर दिया , अब आप पूछेंगे तो बाकियों में से भी ,. लेकिन कैसे ,.

मेरी कॉलेज की सहेलियों का ही चार चार ग्रुप है , एक तो कॉलेज का , एक मेरी क्लासमेट्स का , और एडल्ट्डस ओनली नाम से , जिसमें सिर्फ मेरी खास खास २५- २६ सहेलियां बस ,

उसके बाद इनके मायके के सात आठ ग्रुप , एक तो मेरी ननदों का जिसमें मैं जुगाड़ कर के घुस गयी हूँ , इनकी सारी ममेरी चचेरी मौसेरी फुफेरी बहने, कुल २७ हैं , और हर रोज सब तीन चार मेसेज तो करती ही हैं ,

दो गुड्डी रानी की सहेलियों के ग्रुप में भी , और अगर इनके मायके के सात आठ हैं ,

तो मेरे मायके के इसके दूने न भी हों तो इससे ज्यादा तो होने ही चाहिए , किसी का गुड मॉर्निंग का जवाब न दो तो वो मुंह फुला लेगा , और किसी के जोक पर स्माइली न चिपकाओ तो वो अलग और झगड़े इतने की पूछिए मत , .

और दिन में दो बार झाड़ू न लगाओ तो मेमोरी का नाटक ,

और जब मैं ज्यादा ही झुंझालने लगी तो ये मेरे पास गरम गरम काफ़ी का प्याला लाकर पूछने लगे ,

" क्या हो गया ,. दो चार ग्रुप छोड़ क्यों नहीं देती "

सच में चाय और काफी दोनों में इनका जवाब नहीं था, . जबरदस्त बनाते थे. मेरी सास का चक्कर जरूर किसी चाय वाले के साथ , चाय पर चर्चा के साथ ,

मैंने खोल कर इनकी ओर बढ़ा दिया , एक मस्त माल की फोटो थी , एकदम गर्मायी कच्ची कली ,

और वो शर्मा गए ,.

" पहचान कौन " मैंने चिढ़ाया , . एक बार वो फिर से झेंप गए ,

शरमाने में कोई कम्पटीशन हो तो ये लौंडियों को पीछे छोड़ देंगे , मेरी भौजी और इनकी सलहज का सिर्फ एक सजेशन था , इन्हे किसी तरह इनकी ममेरी बहन के ऊपर चढ़ा दूँ तो इनकी सरम लाज सब छूट जाएंगी , और वैसे भी इनकी सास ने इन्हे मेरे सामने साफ साफ़ बोल दिया था की बस वो ससुराल पहुँच जाएँ , आगे का काम उनकी सास और सलहज मिल के कर दूंगी , सरम सब पिछवाड़े के अंदर ,. .

फोटो इनकी फुफेरी बहन की थी , .
" अब बता स्साली इत्ती मस्त माल के दरसन तो तुझे किसी पॉर्न साइट पर भी नहीं होंगे जो मेरी ननदों के ग्रुप पर होते हैं तो कैसे छोड़ दूँ "

उनकी वीडियो कांफ्रेंस ख़त्म हो गयी थी आधे घंटे का इंटरवल , इसलिए काफी ,.

" अच्छा तो ग्रुप भी नहीं छोड़ोगी तो बताओ तेरी परेशानी क्या है ,. "

एकदम एवमस्तु वाली मुद्रा में उन्होंने सवाल किया और मैं एकदम चालू हो गयी।

"वो जो नकली बुद्धि और बड़का डाटा की बात तुम लोग हरदम करते रहते हो न , ( मेरा आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और बिग डाटा के लिए शब्द ) तो बस , अब रोज तो मैं मेसेज डिलीट करती रहती हूँ , दोनों टाइम , तो ये नहीं पता कर सकते की किस तरह का मेसेज मैं डिलीट करुँगी और किस तरह का पढूंगी , फिर मन लीजिये एक जोक मैं एक ग्रुप में पढ़ चुकी हूँ , लाइक भी कर दिया , फिर दूसरे ग्रुप में भी कर दिया तो आगे के ग्रुप में अगर मैंने नहीं पढ़ा तो उसे डिलीट कर दे , मुझे रोज रोज के झाड़ू पोंछे से तो मुक्ति दिलाये ,. "

वो बहुत ध्यान से सुन रहे थे , फिर बोले लेकिन मानलो उसने बिना पूछे डिलीट कर दिया तो कल तुम कहोगी नहीं मुझे वो चाहिए तो ,

बात में उनके दम था तो मैंने बीच का रास्ता निकाला

तो चलो २४ घण्टे का समय रख दो , उसके बाद दो चार दिन ट्रैश में , उसके बाद ख़तम कर दे , तो कुछ तो ये सफाई अभियान जो रोज चलाना पड़ता है , उससे मुक्ति मिले , और दूसरी बात , ग्रुप तो मैं छोड़ नहीं सकती मान लो उसमें ५० मेंबर हैं ३० -४० तो रोज मैं बिना पढ़े डिलीट करती हूँ , तो कम से कम उनकी बात, डिलीट कर दे ,. ऊँगली तक जाती है , ये ऊँगली इतनी मेहनत तोहरी बहिनी की बिल में करे तो वो स्साली तेरे लिए पट जाती , .

" हो तो सकता है , मोबाइल स्पेसिफिक , परसन स्पेसिफिक ,. पर "

मेरे प्याले में और काफी डालते हुए , चिढ़ाते बोले , फिर तुम कहोगे , प्राइवेसी ,.

मैं झुंझला उठी , प्राइवेसी गयी तेल लेने , मैं कुछ लिखती हूँ मजाक में भी तो उससे जुड़े ऐड सपने में भी दिखने लगते हैं ,

पर वो इतनी जल्दी हार मानने वाले नहीं थे , एकदम मशीन वाली आवाज निकालते बो, ले,

मेसेज पूरी तरह एन्क्रिप्टेड होते हैं , हम आपकी प्राइवेसी का पूरा ख्याल रखते हैं ,

मुझे हंसी आ गयी पर मैंने अपने गुस्से वाले टोन बरक़रार रखी ,

" अभी कोई डंडा फटकारता आ जाये न तो सारी प्राइवेसी की , . अभी एक बॉलीवुड वाली की तीन साल पुरानी , . पता नहीं किसे वो माल कह रही थी , मैं तो तेरी सारी बहनों को ही माल कहती हूँ ,. और सिक्युरिटी तो चलो मान लिया ,. सारे चैनल , यू ट्यूबर , मैं जो कह रही हूँ वो सुनते नहीं ऊपर से बात टाल रहे हो , अरे मैं खाली झाड़ू पोंछा का काम काम करने को कह रही हूँ ,. "

लेकिन बात टालने में वो एक्सपर्ट , मेरे हाथ से काफी का प्याला ले कर किचेन में चले गए और जब लौटे तो उन्होंने बात बदल दी और उलटे मुझपर सवाल दाग दिया .

बस पीटा नहीं मैंने इनको,

" कोमल तुम्हारा नाम क्या है। "

मैं मारने के लिए कोई चीज ढूंढती उसके पहले उन्होंने दूसरा सवाल दाग दिया , जो थोड़ा मुश्किल था ,

" अच्छा चल तेरे नाम का पहला अक्षर क है न , तो ये बताओ अक्षर क्या है , और क्यों हैं ? "

कोमल तुम्हारा नाम क्या है

मुझपर सवाल दाग दिया .

बस पीटा नहीं मैंने इनको,

" कोमल तुम्हारा नाम क्या है। "

मैं मारने के लिए कोई चीज ढूंढती उसके पहले उन्होंने दूसरा सवाल दाग दिया , जो थोड़ा मुश्किल था ,

" अच्छा चल तेरे नाम का पहला अक्षर क है न , तो ये बताओ अक्षर क्या है , और क्यों हैं ? "

मैंने थोड़ा सर खुजलाया , इनकी माँ बहन को गाली दी मन ही मन, लेकिन मैं भी बनारस की , मैंने सोच कर बोल दिया ,

" अक्षर, मतलब भाषा का बिल्डिंग ब्लाक, सबसे बेसिक यूनिट,. "

पर इन्हे संतुष्ट करना आसान नहीं था , उन्होंने ना ना में सर हिलाया और फिर पूछा ,

" नहीं नहीं , जैसे क , तो ये लिखा जाता है की बोला जाता है , . "

अब मुझसे नहीं रहा गया , इतना घुमा फिरा के हम बनारस वालियां नहीं बात करती , जो सुनने के लिए उनके कान तरस रहे थे मैंने बोल दिया ,

" स्साले बहन के भंडुए , जब बचपन में क, ख , ग पढ़ाया जा रहा था तो क्या गाँड़ मरा रहे थे , लेकिन वो तो नहीं हो सकता क्योंकि तेरी अब तक कोरी है , ससुराल में अपने ससुराल वालियों/ वालों से मारने के लिए बचा रखी है , तो अपनी बहिनों के लिए मोटा औजार ढूंढ रहे थे क्या जो अब मुझसे पूछ रहे हो ,. बोलते भी हैं , लिखते हैं ,. "

वो जोर से हँसे , हँसते ही रहे , उनकी इसी हंसी पर तो सिर्फ मैं नहीं उनकी सारी ससुराल वालियां निहाल थीं , पर जो बात बतायीं उन्होनी , सच बताऊँ , किसी से बताइयेगा नहीं , कोमल के दिमाग में भी कभी नहीं आयी थी , .

जीभ, तालू , होंठ के संयोग से जो हवा मुंह से निकलती है , वो एक आवाज होती है , लेकिन हर आवाज अक्षर , या शब्द नहीं होती। उसी तरह हम लाइने , कुछ ज्यामितीय आकृतियां उकेरते हैं , लेकिन हर बार उस का भी अर्थ नहीं होता , लेकिन जब दोनों को मिलाकर, जैसे हमने एक लाइन , गोला , पूँछ ( ाजिसे कॉलेज में मास्टर जी सिखाते हैं क लिखने के लिए ) और उसको एक ख़ास अंदाज में बोलते हैं , तो ये दोनों का कन्वर्जेंस अक्षर होता है , और उसी के साथ जुड़ा होता है एक सोशल सैंक्शन , सभी लोग एक इलाके के , जो साथ साथ रहते हैं यह मान लेते हैं की इस ज्यामितीय आकृति के लिए यह जो आवाज निकल रही है वह क होता है ,

मैं चुपचाप सुनती रही , ये बात कभी मैंने सोची भी नहीं थी , कितनी बार क ख ग लिखा पर , पर मेरी आदत चुप रहने की नहीं थी तो मैं बोल पड़ी ,

" और उसी को जोड़ कर शब्द बनते हैं ,. "

ज्यादातर इनकी हिम्मत नहीं होती थी मेरी बात काटने की , माँ बहन सब की ऐसी की तैसी कर देती मैं , और उपवास का डर अलग, लेकिन आज बात काटी तो नहीं लेकिन थोड़ी कैंची जरूर चलायी।

" हाँ और नहीं , कई ट्राइबल सोसायटी में रिटेन लैंग्वेज अभी भी नहीं है , पर शब्द हैं गीत हैं कहानियां है , तो एकदम नैरो सेन्स में हम उन्हें लिटरेट नहीं मानते , लेकिन उनका अपना लिटरेचर अलग तरीके का है , लेकिन लिखने का फायदा है की सम्प्रेषण आसान हो जाता है , समय और स्थान के बंधन से हट कर , जो अशोक ने शिलालेख पर लिखा, वो हजारों साल बाद भी पढ़ कर उस समय के बारे में , पता चल जाता है , . फिर जो यहाँ लिखा है उसे हजारो किलोमीटर दूर भी भेजा जा सकता है , तो कोई भी जीव, समाज , सभ्यता, संस्कृति अपने को प्रिजर्व करना चाहती है , तो लिखित भाषा उसमें सहायक होती है , . "

मेरा भी दिमाग अब काम करने लगा था , मैंने जोड़ा और साहित्य ,

" एकदम लेकिन उसके पहले व्याकरण , और फिर वही बात सामाजिक स्वीकृत की , मान्यता की और बदलाव की भी , संस्कृत ऐसी भाषा भी , व्याकरण के नियम , शब्दों के अर्थ सब बदलते हैं , लेकिन हर अक्षर जिसमें अर्थ छिपा रहता है एक डाटा है , अच्छा चलो ये बताओ ढेर सारा डाटा एक साथ कब पहली बार संग्रहित किया गया होगा ,

मैंने झट से जवाब दिया और जल्दी के चक्कर में गलत जवाब दिया , कंप्यूटर पर उन्होंने तुरतं बड़ी हिम्मत बात काटी ,

नहीं किताब ,

और समझाया भी , जब शिलालेख पर , गुफाओं में कुछ उकेरते थे तो समय और स्थान की सीमा रहती थी पर किताब के एक पन्ने पर कितनी लाइनें , कितने शब्द , फिर जो एक के बाद एक पन्ने को जोड़ कर रखने की तरकीब निकली तो कितनी बातें एक साथ एक जगह और भाषा के साहित्य में बदलने में किताबों का बड़ा रोल था , ,

मुझसे नहीं रहा गया मैं पूछ बैठी , और कंप्यूटर ,

वो फिर हंसने लगे , और मैं उनसे एकदम सट कर बैठ गयी ,

कंप्यूटर बड़ी , . वो हर भाषा , चित्र , संख्या , आवाज को ० और १ में बदल देता है तो एक यूनिवर्सिलिटी ,. लेकिन ये पहली बार नहीं हो रहा है , टेलीफोन और उससे पहले टेलीग्राफ , मोर्स कोड , इलेक्ट्रिक करेंट को , फिर ग्रामोफोन रिकार्ड , . सौ साल बाद भी गौहर जान को सुन सकते हैं ,. चलो एक और सवाल पूछता हूँ कन्वर्जेन्स का , दो एकदम शुरू की सबसे बड़ी खोजें , मिल कर क्या बनीं ,

और अबकी मैं सही थी ,

इंजन जोर से बोली मैं ,

एकदम सही , आग और पहिया , . और सिर्फ ट्रेन के इंजिन में नहीं , टरबाइन , और पहली औद्योगिक क्रांति जिसने यूरोप को इतना आगे कर दिया ,

हम दोनों बड़ी देर तक बतियाते रहे , वो बताते रहे , की वो लोग मिल कर क्या कर रहे हैं जिस कंपनी में वो ज्वाइन करने जा रहे हैं , वहां क्या क्या होता है और फिर उन्होंने अगला सवाल पूछ दिया , तेरा पैन नंबर , आधार कार्ड ,

मैंने झट से बता दिया , और ये भी मेरा आधार मेरी पहचान।
और बात दूसरी तरफ मुड़ गयी।

मेरा आधार मेरी पहचान ,

मेरा आधार मेरी पहचान , . मैं हँसते हुए बोली ,

और तेरा नाम तेरी पहचान नहीं , हँसते हुए मेरा गाल पिंच कर के वो बोले,

चौबीस घंटे लग गए थे नाम पता करने में और तेरे आधे दोस्तों ने मेरी कितनी सहेलियों का नाड़ा भी खोल लिया था इतनी देर में , सुपर स्लो ,.

मैंने उन्हें चिढ़ाया।

मैंने उन्हें चिढ़ाया फिर अपने ज्ञान का परिचय भी दिया ,. . देखिये आँख की पुतली , और ऊँगली के निशान भी इसमें नाम के साथ जुड़े हैं , मानती हूँ , कोमल जैसा कोई नहीं , लेकिन बहुरूपियों से बचने के लिए अच्छा हैं न फिर हर जगह इस्तेमाल हो जाता है ,

लेकिन आज वो मेरी लेने पर तुले थे , कहने लगे एकदम गलत ,

इनकम टैक्स, बैंक और भी पचासो जगह पैन कार्ड लगता है , फिर सामान खरीदो तो कार्ड और ऑनलाइन खरीदो तो डेबिट कार्ड और फोन दोनों , फिर कई जगह प्लेस आफ रेजिडेंस , इलेक्शन में वोट देबे जाओ तो वोटर कार्ड , राशन लेने जाओ तो राशन कार्ड , क्लब में जाओ तो मेंबरशिप कार्ड , मेट्रो में चढ़ो तो उसका कार्ड ,

बात तो उनकी सही थी थी और सही थी तभी तो मेरी उनसे शादी हुयी , छोटी मोटी बुद्धि वाले के हत्थे ये बनारस वाली चढ़ने वाली नहीं थी ,

मैं चुप रही , वो कभी कभी बोलते थे , लेकिन आज उनका बोलने का दिन था ,

बोल लें बेचारे दो दिन के बाद ससुराल में जैसे पहुंचेंगे बोलती बंद हो जाएगी , सिर्फ सहलज और साली वो भी बिना गाली के पानी नहीं मिलेगा , खाना तो छोड़ दीजिये ,

बात उन्होंने आगे बढ़ाई कभी ऐसा हुआ है की शॉपिंग के बाद याद आये की कार्ड रखना भूल गए , या कार्ड स्वाइप की मशीन नहीं काम कर रही है ,

अब ऐसी लूज बाल पर छक्का न मारना पूरे गाँव की नाक कटवानी होती , मैंने मुस्कराते हुए जवाब दिया ,

" अव्वल तो मैंने तेरे मायके वालों की तरह भुलक्क़ड नहीं हूँ , दूसरे मान लो , कभी भूल गयी भी तो वो तेरी एलवल वाली है न, मेरी छुटकी ननदिया ,

बस उसे गिरवी रख दूंगी , एक रात के बदले तो महीने भर की शॉपिंग हो जायेगी , स्साली माल तो है जबरदस्त ,. "

अब उनकी बोलती तो बंद होनी ही थी , मेरी छुटकी ननद उनकी सबसे बड़ी कमजोरी थी , . लेकिन बात उनकी मान ली मैंने ,

" हाँ मैंने देखा जरूर कितनी बार है लोगों को कभी कार्ड भूल जाएंगे तो कभी जिस फोन में ओटीपी आता है वो , उसी की बैटरी गायब ऐन मौके पे , . बात तुम्हारी सही है "

" अच्छा मान लो मैं तेरे लिए एक ऐसा कोई कार्ड हो , ऐसा कुछ भी एकदम यूनिक ,. एटीएम में भी वो काम करे , दूकान में भी ट्रेन में भी ,आन लाईन , . "

लेकिन मैं तो अब जिस चीज के पीछे पड़ गयी थी , और में अकेले क्यों मेरे मायके और ससुराल के सब लौंडे भी ,. और कौन वही एलवल वाली , उमर की बारी पर जुबना की भारी , तो मैं क्यों चुप रहती

" वैसी तो एक ही चीज है , क्या मस्त चूजे हैं स्साली के , वो तेरी बहन कम माल ज्यादा , . लेकिन एक बात मान लो यार मेरी , अभी भी दो दिन बचे हैं ससुराल जाने में , उसके बाद वही से नौकरी पर , जाने के पहले एक उसका उद्धघाटन कर दो , . एक बार निवान हो जाए बस , फिर तो बाकी का काम तेरे स्साले , . वही ऐसी चीज है जो हर जगह चलेगी, यार एक बार बस , . स्साली की बिल में चींटे काट रहे हैं , . एक बार ये मूसल घुसेगा न तो फिर ,. "
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