Update 11
जल्दी-जल्दी कदम बढ़ाकर मैं अपने घर पहुँची । मैं बोहोत थका हुआ महसूस कर रही थी घर पहुंचते ही मैं सीधे अपने बेडरूम मे गई और बेड पर गिर गई ।
बेड पर लेटकर मुझे वो सब फिर से याद आने लगा जो अभी थोड़ी देर पहले गुप्ता जी ने मेरे साथ अपनी दुकान मे किया था उसके साथ ही अशोक का भी ध्यान आया इन सब मे मैं अशोक को तो भूल ही गई थी अशोक का ख्याल आते ही मेरी आँखे भर आई मन मे ना जाने कितने भाव उमड़ने लगे । "मैं चाहकर भी क्यूँ अपने जिस्म की आग को रोक नहीं पाती , जब एक बार मेरी हवस परवान चढ़ती है उसके बाद तो मुझे कुछ ख्याल ही नहीं रहता ना अपने पति की इज्जत का , ना ही अपनी मर्यादाओं का और ना ही अपनी सीमाओं का "- मैं यही सोच रही थी और सोचते -2 मुझे नींद आ गई ।
तकरीबन 3:30 बजे डॉर बेल बजने की आवाज से मेरी आँखे खुली । मैं अँगड़ाई लेते हुए उठी । ये समय वरुण के आने का था । मैंने उठकर दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए । दरवाजा खोला
तो सामने वरुण ही था वो मुझे देखकर मुस्कुराया तो रिटर्न मे मैंने भी उसे स्माइल पास की और कहा- " आजाओ वरुण .... "
वरुण अंदर आया और बोला - " आप सो रही थी क्या भाभी । "
मैं - हाँ । वो आज जरा थकान सी हो गई थी ।
वरुण - ओह । अगर आप आराम करना चाहे तो मैं चला जाता हूँ । पढ़ाई कल कर लेंगे ।
मैं - नहीं नहीं सब ठीक है थोड़ी सी थकान ही तो थी सो कर ठीक हो गई ।
इतनी बातों-2 मे ही हम दोनों हॉल मे आ गए मैंने सोफ़े की ओर इशारा करते हुए वरुण से कहा - " तुम बैठो वरुण , मैं अभी आई । " इतना बोलकर मे किचन मे चली गई और गैस पर अपने और वरुण के लिए चाय चढ़ा दी । जब मे किचन से बाहर आई तो देखा वरुण अपनी किताब खोल उसे ही पढ़ रहा था ये देखकर मुझे अच्छा लगा कि चलो अब वरुण अपनी पढ़ाई पर थोड़ा ध्यान तो दे रहा है पर मुझे गुप्ता जी की बात भी याद थी जो उन्होंने मुझे वरुण को के बारे मे बताई थी । मेरे मन मे एक सवाल भी था कि "क्या वरुण सच मे ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी बोल रहे थे या फिर इसमे कुछ ओर बात है । " मैं वरुण के पास गई और उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठ गई और बोली - " वरुण , शनिवार को जो डेफ़िनिशन मैंने तुम्हें याद करने को दी थी वो तुमने याद करली । " वरुण ने मेरी ओर देखा और जवाब दिया - " जी भाभी मैंने उन्हे याद कर लिया । " वरुण की बात सुनकर मैंने खुशी से कहा - " वेरी गुड़ । चलो अब आगे पढ़ते है । " और इतना कहकर मैंने वरुण को आगे की डेफ़िनिशन याद करने को दी और खुद उठकर किचन मे आई । चाय बिल्कुल तैयार होने वाली थी उसके तैयार होते ही मैंने दो कप चाय तैयार की और वरुण को चाय देने के लिए किचन से बाहर आई
वरुण के पास पहुंचकर मैंने उसे बोला - " लो वरुण चाय पीओ । " जैसे ही मैं उसे चाय देने के लिए झुकी , तो हर बार की तरह मेरा पल्लू सरक गया और मेरे गोल-2 ब्लाउज मे कैद बूब्स वरुण के सामने आ गए
वरुण चाय लेना भूल सीधे मेरे बूब्स को अपनी आँखों से घूरने लगा । अपनी स्थिति को देख मैंने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया और चाय का कप वरुण के सामने टेबल पर रखकर सीधी हो गई । वरुण भी होश मे आया और चुपचाप सीधा होकर चाय पीने लगा । उसके बाद मैं किचन मे गई और अपनी भी चाय ले आइ फिर सोफ़े पर बैठकर चाय पीने लगी वरुण मेरे सामने बैठकर ही पढ़ रहा था और बीच -2 मे अपनी चोर निगाहों से मेरे बूब्स को घूर रहा था । जब भी मे उसे कुछ समझाने के लिए उसकी किताब मे देखती झुकने के कारण मेरे बूब्स , ब्लाउज से छलककर वरुण की आँखों के सामने आ जाते और उसकी पैनी नजरे वहीं जम जाती । मैं वरुण की हर हरकत पर गौर कर रही थी और उसकी नज़रों मे अपने बूब्स के लिए हवस मुझे साफ दिखाई दे रही थी जो मुझे भी अंदर रोमांचित करने लगी । ये सिलसिला थोड़ी देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर अचानक से वरुण खड़ा हो हुआ और बोला - " भाभी मुझे वाशरूम जाना है । " उसकी ये बात सुन मेरे दिमाग मे उस दिन का वोही द्रश्य छा गया जब वरुण वाशरूम मे अपना लिंग बाहर निकाले हिला रहा था और उसके याद आते ही मेरे दिल मे धुक-2 होने लगी मैंने तिरछी नज़रों से उसकी ओर देखा तो मुझे उसकी पेंट के ऊपर वही जाना-पहचाना ऊभार नजर आया । उसके लिंग का ऊभार देखकर मेरी साँसे फिर रुक सी गई मैंने बिना बोले उसे जाने का इशारा किया ।
वरुण सीधा हॉल से निकलकर वाशरूम की ओर जाने लगा । आज जिस वजह ने मेरा ध्यान खींचा वो थी के वरुण जाते हुए आपना मोबाईल नहीं ले गया था , पता नहीं ये मेरा वरुण की ओर आकर्षण था या मेरी हवस पर मुझे फिर से वरुण को देखने की इच्छा होने लगी मन बैचेन हो उठा जैसे कह रहा हो एक बार जाके देख की वरुण क्या कर रहा है । मैंने मन को डाँटने की कोशिश की पर जिस्म मे उठते इस रोमांच को रोक ना सकी और धीरे से अपनी सैंडल वही हॉल मे उतारकर धीरे-2 वाशरूम की ओर चलने लगी , चलते हुए भी मेरा दिल जोर-2 से धडक रहा था एक अलग ही रोमांच का नशा मुझ पर छा रहा था इस तरह से मैंने पहले काभी किसी को छिपकर नहीं देखा था और ये नशा अंदर ही अंदर मेरे बदन का रोयाँ सुलगा ने लगा । हॉल से निकली तो देखा वाशरूम का दरवाजा बंद है एक बार को तो मेरे जिस्म मे शांति का भाव आ गया , लगा की जैसे एक तूफान मेरे मन मे थम गया । मैं वापस मुड़ने लगी पर तभी मेरी नज़र वाशरूम से अटैच बाथरूम पर पड़ी जिसका दरवाजा आधा खुला हुआ था मेरे मन मे बेचैनी जो अभी कुछ कम हुई थी ओर भी बढ़ गई " वरुण तो वाशरूम मे गया था फिर ये बाथरूम का गेट क्यूँ खुला हुआ है ? कहीं वरुण बाथरूम मे तो नहीं? "मेरी इस सोच ने मेरी धड़कन को और भी तेज कर दिया । " अगर वरुण बाथरूम मे हुआ तो वो क्या कर रहा होगा ? " ये ही सब सोचते-सोचते मैं बाथरूम के पास पहुँची । जैसे ही मैं बाथरूम के पास गई तो मुझे हल्की -2 कुछ आवाजे सुनाई पड़ी मैंने धीरे से बाथरूम मे झाँका तो जो मैंने देखा उसे देख मेरी धड़कने रुक और साँसे फूलने लगी ।
अंदर वरुण ने अपनी पेंट खोल अपना लिंग बाहर निकाला हुआ था जिसे वो एक हाथ से पकड़ कर हिला रहा था
और दूसरे हाथ मे मेरी ब्रा और पेन्टी को लेकर अपनी नाक के पास लेजाकर सूँघ रहा था । " हे भगवान ....... ये वरुण क्या कर रहा है कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही कल तक जो मेरे साथ खेलता था आज मेरी ब्रा-पेन्टी से खेल रहा है । "- ये सोच-सोचकर मेरी साँसे और भारी होने लगी डर के मारे मेरे पैर कांपने लगे दिल की धड़कने तेज हो चुकी थी और एक उत्तेजना ने मेरे जिस्म पर कब्जा कर लिया ,ना जाने क्यूँ और कैसे मेरा जिस्म मेरे काबू से बाहर होता चला गया मैं छिपकर वरुण को देखने लगी ।
वरुण ने मेरी ब्रा को अपने लिंग के टोपे पर रखकर रगड़ना शुरू किया और मेरी पेन्टी को अपने होंठों के पास लेजाकर उसे चूमने -चाटने लगा ठीक वैसे ही जैसे गुप्ता जी ने अपनी दुकान मे किया था जिस तरह से वरुण मेरी पेन्टी को चूम और चाट रहा था मुझे तो ऐसा महसूस होने लगा जैसे वो मेरी योनि को चूम रहा है मेरी साँसों की रफ्तार बढ़ती रही वरुण साथ मे धीरे से कुछ बड़बड़ा भी रहा था जो मुझे हल्का-हल्का सुन रहा था । " आह ...... पदमा भाभी ....... सेक्सी ......... मिल ......... खा जाऊँगा ...।..।।। " - ये सब बातें बोलते हुए वरुण जोर-जोर से मेरी ब्रा को अपने लिंग पर रगड़ने लगा । वरुण अंदर अपनी हरकतों को अंजाम दे रहा था और इधर मैं उसकी इन हरकतों से उत्तेजित हो चुकी थी
और अनजाने मे ही मेरा हाथ मेरी योनि पर पहुँच गया । पेन्टी तो मैंने पहनी ही नहीं थी तो हाथ की सीधी चोट ,योनि पर होने लगी जिससे मेरे मन मे उठे रोमांच से पैदा हुई उत्तेजना ने गहरी हवस का रूप ले लिया मेरी योनि भी गीली होकर पानी छोड़ने लगी और योनि को सहलाने के लिए चलने वाले मेरे हाथ भड़कती जिस्म की आग को शांत करने के लिए उसे रगड़ने लगे हवस मे अंधी हो मैं अपने होंठ काटने लगी और तेजी से अपनी योनि को रगड़ने लगी उधर वरुण भी अब पूरी तेजी के साथ अपने लिंग को हिला रहा था और इधर मैं भी एक हाथ से अपने बूब्स और दूसरे हाथ से अपनी योनि के दाने को रगड़ने लगी जल्द ही मेरी योनि भर-भरकर पानी छोड़ने लगी मेरी हालत खराब हो चली मैं बोहोत ज्यादा उत्तेजित हो गई और अपनी योनि के दाने को मसलने लगी मेरे अंदर की वासना का लावा अब पानी के रूप मे बाहर आना चाहता था और मैं भी उसे रुकने नहीं देना चाहती थी मैंने अपने होंठ दाँतों तले दबाकर जोर-2 से अपनी योनि को रगड़ा , मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा । उधर वरुण ने भी अपनी उखड़ती हुई साँसों को थामते हुए अपना सारा वीर्य मेरी ब्रा के कप मे भर दिया और इधर मैं भी अपनी आहों को बड़ी मुश्किल से अपने गले मे दफ्न करते हुए झड़ने लगी
पेन्टी ना पहने रखने के कारण मेरी योनि का सारा पानी मेरी टांगों से बहता हुआ नीचे फर्श पर बिखर गया, वासना शांत हुई तो कुछ होश आया झड़ने के बाद मेरे लिए खड़ा रहना मुश्किल हो गया मुझे साँस चढ़ रही थी और मेरे माथे पर पसीना छलक आया था वासना का तूफान थमने के बाद मुझे अपनी स्थिति का पता लगा । बाथरूम के अंदर का नजारा भी कुछ ऐसा ही था झड़ने के बाद वरुण ने मेरी ब्रा और पेन्टी वही बाथरूम की टाइल्स पर फेंक दी और नीचे बैठ गया । मैंने सावधानी से अपने कदम पीछे खींचने शुरू किये , वरुण के बाथरूम से निकलने से पहले मुझे हॉल मे जाकर सोफ़े पर बैठना था और मे इसमे कामयाब भी हो गई ।
मैं चुपके से जाके हॉल मे सोफ़े पर बैठ गई और अपने को वरुण की किताब मे व्यस्त करने का दिखावा करने लगी ।
थोड़ी देर बाद वरुण हॉल मे आया उसे भी पसीना आया हुआ था वो चुपचाप आकर मेरे सामने सोफ़े पर बैठ गया । मैंने उसे ना कुछ कहा और ना ही उसकी ओर देखा दरसल अब मुझे खुद पर शर्म भी आ रही थी और मैं वरुण की आँखों मे देखने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी । फिर पढ़ाई का बहाना बना कर मैंने वरुण से बात शुरू की , वरुण पढ़ाते हुए मैंने एक बात नोटिस की वरुण बीच-2 मे मुझे कुछ अजीब तरह से देख रहा था जैसे उसे मुझ पर कुछ शक हो और मैं बेवकूफ उससे नजरे चुराकर उसके शक को ओर भी पक्का कर रही थी ।
थोड़ी देर बाद वरुण के जाने का समय हो गया और वो उठकर जाने लगा , जाते हुए वरुण मेरी ओर देखकर एक कटीली मुस्कान के साथ बोला - " भाभी ! " मैं वरुण की ओर देखकर बोली -
मैं - हाँ वरुण ?
वरुण - आपने अपनी सैंडल क्यों उतारी हुई है ?
दरसल वापस हॉल मे आकर मैं अपनी सैंडल पहनना तो भूल गई थी और वरुण की इस बात से तो मुझे यकीन हो गया की उसे मुझ पर शक है कि मैं उसे छिपकर बाथरूम के बाहर से देख रही थी , मेरा गला सुख गया कुछ जवाब भी ना सुझा , बड़ी मुश्किल से एक बहाना बनाया -
मैं - वो .... वो क्या है ना ...... वरुण ..... सारा दिन ये सैंडल पहनने से मेरे पैरों मे दर्द होने लगता है इसलिए सोचा की थोड़ी देर के लिए उतार दूँ ।
मेरे इस गोल -मोल जवाब को सुन वरुण फिर से मुस्काया और कहने लगा - " भाभी अब तो फरवरी भी खत्म होने को है और अब इतनी ठंड भी नहीं होती । तो आप सुबह को ग्राउंड मे वॉक के लिए क्यों नहीं आ जाती ? अब तो मोहल्ले के काफी लोग भी घूमने आने लगे है , इससे आपके पैरों को भी आराम मिलेगा ।
दरसल हर साल सर्दियाँ बीत जाने पर मैं और अशोक रोज सुबह -सुबह हमारे घर के सामने वाले पार्क मे वॉक और योग के लिए जाते थे पर इस बार सर्दियाँ बीत जाने पर भी अशोक ने मॉर्निंग वॉक की बात नहीं छेड़ी और मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर अब वरुण के याद दिलाने से मुझे भी मॉर्निंग वॉक पर जाने की इच्छा होने लगी मैंने मन मे सोचा की आज अशोक से इसके बारे मे जरूर बात करूंगी ।
मैं - हम्म .. कह तो तुम ठीक रहे हो वरुण । कल से मैं भी शुरू करूंगी ।
वरुण खुश होते हुए बोला- ओके भाभी फिर 6 बजे ग्राउंड मे मिलते है । बाय ।
मैंने भी वरुण को बाय बोला और वो चला गया ।
वरुण के जाने के बाद मैं सीधे बाथरूम की ओर गई बाथरूम के बाहर पानी की कुछ बुँदे बिखरी हुई थी जो और कुछ नहीं अभी थोड़ी देर पहले मेरी योनि से निकला मेरा चुतरस था उसे देखकर मुझे शर्म भी आई और घबराहट भी हुई मेरे मन मे एक बात ने जगह बना ली कि वरुण ने ये मेरा चुतरस जरूर देख लिया होगा और इसीलिए वो मुझे शक की निगाहों से देख रहा था "हे ! भगवान अब क्या होगा ? क्या वरुण जान गया है कि मैं उसे छिपकर देख रही थी ? वो मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा ?" - ये बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी और फिर मैंने बाथरूम मे प्रवेश किया बाथरूम के अंदर का नजारा तो नॉर्मल ही लग रहा था पर मेरी ब्रा और पेन्टी जो वरुण के हाथ मे थी कहीं नजर नहीं आई मैंने इधर -उधर देखा तो दीवार पर टँगे कपड़ों के पीछे मुझे कुछ दिखाई दिया मैंने धीरे से दीवार पर टँगे कपड़े उतारे उनके उतरते ही सामने मुझे मेरी ब्रा और पेन्टी दिख गई मैंने उन्हे उतारकर अपने हाथों मे लिया पेन्टी तो मुझे ठीक सी ही लगी पर जब ब्रा को मैंने अपने हाथों मे लिया तो कुछ गाढ़ा चिपचिपा लिक्विड की तरह का मेरे हाथों पर लग गया मैंने ब्रा को पलटकर देखा तो उसके कप मे ढेर सारा वोही सफेद लिक्विड भरा हुआ था मैं समझ गई ये ओर कुछ नहीं बल्कि वरुण का वीर्य है जो उसने चरमसुख पाते हुए मेरी ब्रा के कप मे भर दिया था मेरे हाथ वरुण के वीर्य से सन गए थे जिससे मुझे घिन आ रही थी वरुण का वीर्य बोहोत ही गाढ़ा सफेद था वो मेरी उंगलियों और हथेली पर चिपक गया उसे देखकर मुझे ना चाहते हुए भी अशोक की याद आ गई ,कारण था अशोक का पतला वीर्य । अशोक का वीर्य वरुण के मुकाबले बिल्कुल पानी था , ना ही उसका वीर्य इतना गाढ़ा था ना ही सफेद । मैं बाथरूम के पानी की टंकी को खोलकर अपने हाथ धोने लगी । हाथ धोकर मैं अपनी साड़ी उतारने लगी । मैं नहाना चाहती थी आज पूरे दिन की उथल -पुथल मे मुझे नहाने का तो मौका ही नहीं मिला था अपने सारे कपड़े उतारकर मैंने शावर खोल दिया । शावर की ठंडी बुँदे मुझे आनंदित करने लगी और मैं भी आज दिनभर की घटनाओ को भूलकर नहाने लगी ।
नहाने के बाद शावर बंद करके मैं अपने शरीर को टावल से पोंछने लगी ऐसा करते हुए एक बार फिर मेरी नजर मेरी उस ब्रा पर पड़ी जिसपर वरुण ने अपना कम छोड़ा था मेरी नजर बार-बार उस पर जा रही थी और एक अजीब सी कशिश मुझे उसकी ओर बाँधे हुई थी मैं अपने मन की उस स्थिति को बता नहीं सकती पर ना जाने क्यूँ मेरे हाथों ने एक बार फिर से उस ब्रा को उठा लिया और मैं बोहोत ध्यान से उसके कप मे गिरे वरुण के वीर्य को देखने लगी मन मे तो एक उफान सा उमड़ रहा था एक जिज्ञासा से मैं अपनी ब्रा को अपने नाक के पास लाई और वरुण के वीर्य की गंध को सूंघने लगी वरुण के वीर्य की गंध बोहोत तेज और अजीब सी थी उसे सूँघकर मुझे बोहोत अजीब स लगा और मैंने उसे अपने नाक से हटा लिया और उसे नीचे फेंककर अपने कपड़े पहनने लगी।
कपड़े पहनकर मैंने अपने पहले वाले कपड़े वाशिंग मशीन मे धोने के लिए डाल दिए पर अपनी ब्रा को उसमे नहीं डाला मैं नहीं चाहती थी के उसपर लगा वरुण का वीर्य मेरे दूसरे कपड़ों मे भी मिल जाए तो मैंने ब्रा को अलग बाल्टी मे भिगो कर रख दिया । हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई सोफ़े पर बैठी हुई कितनी ही देर तक मैं आज की हुई चीजों के बारे मे सोचती रही ये भी सवाल मन मे था कि क्या वरुण वाकई ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी ने उसके बारे मे कहा था ? आज जो कुछ उसने मेरे बाथरूम मे किया वो तो इसी ओर इशारा कर रहा था । दूसरी ओर मेरा खुद का जिस्म मेरे काबू मे नहीं था मेरे अंदर उत्तेजना कितनी जल्दी भरने लगी थी इसका तो खुद मुझे आश्चर्य हो रहा था शायद ये सब अशोक से ना मिल पाने वाले प्यार के कारण था जो अब बोहोत आगे बढ़ चुका था और फिर पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो भी हो रहा था उससे भी मेरी दबी हुई कामाअग्नि सुलगने लगी थी । "ना जाने मेरी ये हवस मुझे किस अंधेरे दल-दल मे ले जाएगी " - ये सब मे बैठे हुए सोचती रही । थोड़ी देर ऐसे बैठने के बाद जब मन को कुछ शांति मिली तो मैं उठकर घर की छत पर घूमने चली गई शाम हो जाने की वजह से छत पर ठंड थी और फिर मैं अभी-अभी नहाई भी तो थी । छत पर घूमते हुए मैं गली की ओर वाली रैलिंग पर पहुँची और नीचे गली मे देखने लगी
नीचे कुछ लोग थे जो अपने-अपने काम मे लगे हुए थे तभी मैंने देखा एक बाईक हमारी गली मे आ रही है और आते हुए सीधे वारुण के घर के सामने रुकी । मेरे उस बाईक को इतने गौर से देखने की वजह ये थी कि मैंने वो बाईक पहले भी देखी हुई थी बिल्कुल ऐसी ही बाईक नितिन के पास थी उसपर बैठे आदमी ने हेलमेट लगाया हुआ था वो आदमी अपनी बाईक से नीचे उतरा और वरुण के घर की डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद किसी ने आकर दरवाजा खोला अब तक उस आदमी ने हेलमेट नहीं उतारा था दरवाजा खुलने के बाद उस आदमी ने अपना हेलमेट उतारा । जैसे ही मेरी नजर उस आदमी के चेहरे पर गई एक बार के लिए मैं बिल्कुल हील गई
,वो बाईक वाला आदमी " नितिन " था , कम से कम मुझे तो वहाँ से ऐसा ही दिखाई दिया । शाम का वक्त था और वो मेरी नज़रों से काफी दूर खड़ा था मैंने उसे थोड़ा और गौर से देखने की कोशिश की पर वो तब तक वरुण के घर के अंदर चला गया । मेरा तो शरीर ठंडा पड़ गया , हालाँकि मैंने उसे पूरे साफ तौर पर नहीं देखा था पर जितना देखा उससे तो मैं उसके नितिन होने का ही अंदाजा लगा पाई ।
मेरे मन मे ढेर सारे सवाल एक साथ खड़े हो गए ," ये कौन था जो नितिन जैसा लग रहा था ? कही ये नितिन ही तो नहीं ? पर वो यहाँ क्या करेगा ? और उसका वरुण के घर से क्या रिश्ता ? वो तो इन्हे जानता भी नहीं । अगर ये नितिन ही हुआ तो ? ये यहाँ हो क्या रहा है ? क्या कोई खेल चल रहा है ? वैसे भी पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो वाक्या हुए है वो भी तो कुछ नॉर्मल नहीं थे । " इन्ही सब बातों को सोचते हुए मैं बैचेन होकर छत पर इधर उधर चक्कर काटने लगी । फिर मन मे ख्याल आया - " नहीं ये नितिन कैसे हो सकता है उसे तो बॉस ने आउट ऑफ टाउन भेजा हुआ है । वो यहाँ कैसे हो सकता है ? पर ये बाईक तो उसकी ही लगती है । क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा ?" ये सब बातें मेरे जहन मे घूमने लगी । मैंने सोचा यहीं रुककर देखती हूँ जब वो बाहर आएगा तो एक बार फिर उसे ध्यान से देखने की कोशिश करूंगी । मैं वही छत की रेलिंग पर खड़ी हो गई और गली मे देखने लगी मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा थोड़ी ही देर मे वरुण के घर का दरवाजा खुला और वो आदमी घर के बाहर आया , पर इस बार तो मैं उसे पहले जितना भी नहीं देख पाई क्योंकि वो घर के अंदर से ही हेलमेट लगाकर आया था । वो सीधे अपनी बाईक पर बैठा और उसे स्टार्ट करके जाने लगा एक अजीब बात इस बार ये हुई की जाने से पहले उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा । उसे पीछे मुड़ता पाकर मैं रेलिंग से हट कर नीचे छत पर बैठ गई ।
मैं नहीं जानती की उसने किस ओर देखा था और क्यूँ ? पर मुझे येही लगा जैसे वो मेरे ही घर को देख रहा हो । फिर वो सीधा हुआ और अपनी बाईक तेजी से लेकर चला गया । उसके जाने के बाद मैं कितनी ही देर इन्ही खयालों और सवालों मे उलझी वहाँ घूमती रही ।
बेड पर लेटकर मुझे वो सब फिर से याद आने लगा जो अभी थोड़ी देर पहले गुप्ता जी ने मेरे साथ अपनी दुकान मे किया था उसके साथ ही अशोक का भी ध्यान आया इन सब मे मैं अशोक को तो भूल ही गई थी अशोक का ख्याल आते ही मेरी आँखे भर आई मन मे ना जाने कितने भाव उमड़ने लगे । "मैं चाहकर भी क्यूँ अपने जिस्म की आग को रोक नहीं पाती , जब एक बार मेरी हवस परवान चढ़ती है उसके बाद तो मुझे कुछ ख्याल ही नहीं रहता ना अपने पति की इज्जत का , ना ही अपनी मर्यादाओं का और ना ही अपनी सीमाओं का "- मैं यही सोच रही थी और सोचते -2 मुझे नींद आ गई ।
तकरीबन 3:30 बजे डॉर बेल बजने की आवाज से मेरी आँखे खुली । मैं अँगड़ाई लेते हुए उठी । ये समय वरुण के आने का था । मैंने उठकर दरवाजे की ओर कदम बढ़ाए । दरवाजा खोला
तो सामने वरुण ही था वो मुझे देखकर मुस्कुराया तो रिटर्न मे मैंने भी उसे स्माइल पास की और कहा- " आजाओ वरुण .... "
वरुण अंदर आया और बोला - " आप सो रही थी क्या भाभी । "
मैं - हाँ । वो आज जरा थकान सी हो गई थी ।
वरुण - ओह । अगर आप आराम करना चाहे तो मैं चला जाता हूँ । पढ़ाई कल कर लेंगे ।
मैं - नहीं नहीं सब ठीक है थोड़ी सी थकान ही तो थी सो कर ठीक हो गई ।
इतनी बातों-2 मे ही हम दोनों हॉल मे आ गए मैंने सोफ़े की ओर इशारा करते हुए वरुण से कहा - " तुम बैठो वरुण , मैं अभी आई । " इतना बोलकर मे किचन मे चली गई और गैस पर अपने और वरुण के लिए चाय चढ़ा दी । जब मे किचन से बाहर आई तो देखा वरुण अपनी किताब खोल उसे ही पढ़ रहा था ये देखकर मुझे अच्छा लगा कि चलो अब वरुण अपनी पढ़ाई पर थोड़ा ध्यान तो दे रहा है पर मुझे गुप्ता जी की बात भी याद थी जो उन्होंने मुझे वरुण को के बारे मे बताई थी । मेरे मन मे एक सवाल भी था कि "क्या वरुण सच मे ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी बोल रहे थे या फिर इसमे कुछ ओर बात है । " मैं वरुण के पास गई और उसके सामने वाले सोफ़े पर बैठ गई और बोली - " वरुण , शनिवार को जो डेफ़िनिशन मैंने तुम्हें याद करने को दी थी वो तुमने याद करली । " वरुण ने मेरी ओर देखा और जवाब दिया - " जी भाभी मैंने उन्हे याद कर लिया । " वरुण की बात सुनकर मैंने खुशी से कहा - " वेरी गुड़ । चलो अब आगे पढ़ते है । " और इतना कहकर मैंने वरुण को आगे की डेफ़िनिशन याद करने को दी और खुद उठकर किचन मे आई । चाय बिल्कुल तैयार होने वाली थी उसके तैयार होते ही मैंने दो कप चाय तैयार की और वरुण को चाय देने के लिए किचन से बाहर आई
वरुण के पास पहुंचकर मैंने उसे बोला - " लो वरुण चाय पीओ । " जैसे ही मैं उसे चाय देने के लिए झुकी , तो हर बार की तरह मेरा पल्लू सरक गया और मेरे गोल-2 ब्लाउज मे कैद बूब्स वरुण के सामने आ गए
वरुण चाय लेना भूल सीधे मेरे बूब्स को अपनी आँखों से घूरने लगा । अपनी स्थिति को देख मैंने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया और चाय का कप वरुण के सामने टेबल पर रखकर सीधी हो गई । वरुण भी होश मे आया और चुपचाप सीधा होकर चाय पीने लगा । उसके बाद मैं किचन मे गई और अपनी भी चाय ले आइ फिर सोफ़े पर बैठकर चाय पीने लगी वरुण मेरे सामने बैठकर ही पढ़ रहा था और बीच -2 मे अपनी चोर निगाहों से मेरे बूब्स को घूर रहा था । जब भी मे उसे कुछ समझाने के लिए उसकी किताब मे देखती झुकने के कारण मेरे बूब्स , ब्लाउज से छलककर वरुण की आँखों के सामने आ जाते और उसकी पैनी नजरे वहीं जम जाती । मैं वरुण की हर हरकत पर गौर कर रही थी और उसकी नज़रों मे अपने बूब्स के लिए हवस मुझे साफ दिखाई दे रही थी जो मुझे भी अंदर रोमांचित करने लगी । ये सिलसिला थोड़ी देर तक ऐसे ही चलता रहा फिर अचानक से वरुण खड़ा हो हुआ और बोला - " भाभी मुझे वाशरूम जाना है । " उसकी ये बात सुन मेरे दिमाग मे उस दिन का वोही द्रश्य छा गया जब वरुण वाशरूम मे अपना लिंग बाहर निकाले हिला रहा था और उसके याद आते ही मेरे दिल मे धुक-2 होने लगी मैंने तिरछी नज़रों से उसकी ओर देखा तो मुझे उसकी पेंट के ऊपर वही जाना-पहचाना ऊभार नजर आया । उसके लिंग का ऊभार देखकर मेरी साँसे फिर रुक सी गई मैंने बिना बोले उसे जाने का इशारा किया ।
वरुण सीधा हॉल से निकलकर वाशरूम की ओर जाने लगा । आज जिस वजह ने मेरा ध्यान खींचा वो थी के वरुण जाते हुए आपना मोबाईल नहीं ले गया था , पता नहीं ये मेरा वरुण की ओर आकर्षण था या मेरी हवस पर मुझे फिर से वरुण को देखने की इच्छा होने लगी मन बैचेन हो उठा जैसे कह रहा हो एक बार जाके देख की वरुण क्या कर रहा है । मैंने मन को डाँटने की कोशिश की पर जिस्म मे उठते इस रोमांच को रोक ना सकी और धीरे से अपनी सैंडल वही हॉल मे उतारकर धीरे-2 वाशरूम की ओर चलने लगी , चलते हुए भी मेरा दिल जोर-2 से धडक रहा था एक अलग ही रोमांच का नशा मुझ पर छा रहा था इस तरह से मैंने पहले काभी किसी को छिपकर नहीं देखा था और ये नशा अंदर ही अंदर मेरे बदन का रोयाँ सुलगा ने लगा । हॉल से निकली तो देखा वाशरूम का दरवाजा बंद है एक बार को तो मेरे जिस्म मे शांति का भाव आ गया , लगा की जैसे एक तूफान मेरे मन मे थम गया । मैं वापस मुड़ने लगी पर तभी मेरी नज़र वाशरूम से अटैच बाथरूम पर पड़ी जिसका दरवाजा आधा खुला हुआ था मेरे मन मे बेचैनी जो अभी कुछ कम हुई थी ओर भी बढ़ गई " वरुण तो वाशरूम मे गया था फिर ये बाथरूम का गेट क्यूँ खुला हुआ है ? कहीं वरुण बाथरूम मे तो नहीं? "मेरी इस सोच ने मेरी धड़कन को और भी तेज कर दिया । " अगर वरुण बाथरूम मे हुआ तो वो क्या कर रहा होगा ? " ये ही सब सोचते-सोचते मैं बाथरूम के पास पहुँची । जैसे ही मैं बाथरूम के पास गई तो मुझे हल्की -2 कुछ आवाजे सुनाई पड़ी मैंने धीरे से बाथरूम मे झाँका तो जो मैंने देखा उसे देख मेरी धड़कने रुक और साँसे फूलने लगी ।
अंदर वरुण ने अपनी पेंट खोल अपना लिंग बाहर निकाला हुआ था जिसे वो एक हाथ से पकड़ कर हिला रहा था
और दूसरे हाथ मे मेरी ब्रा और पेन्टी को लेकर अपनी नाक के पास लेजाकर सूँघ रहा था । " हे भगवान ....... ये वरुण क्या कर रहा है कहीं मैं सपना तो नहीं देख रही कल तक जो मेरे साथ खेलता था आज मेरी ब्रा-पेन्टी से खेल रहा है । "- ये सोच-सोचकर मेरी साँसे और भारी होने लगी डर के मारे मेरे पैर कांपने लगे दिल की धड़कने तेज हो चुकी थी और एक उत्तेजना ने मेरे जिस्म पर कब्जा कर लिया ,ना जाने क्यूँ और कैसे मेरा जिस्म मेरे काबू से बाहर होता चला गया मैं छिपकर वरुण को देखने लगी ।
वरुण ने मेरी ब्रा को अपने लिंग के टोपे पर रखकर रगड़ना शुरू किया और मेरी पेन्टी को अपने होंठों के पास लेजाकर उसे चूमने -चाटने लगा ठीक वैसे ही जैसे गुप्ता जी ने अपनी दुकान मे किया था जिस तरह से वरुण मेरी पेन्टी को चूम और चाट रहा था मुझे तो ऐसा महसूस होने लगा जैसे वो मेरी योनि को चूम रहा है मेरी साँसों की रफ्तार बढ़ती रही वरुण साथ मे धीरे से कुछ बड़बड़ा भी रहा था जो मुझे हल्का-हल्का सुन रहा था । " आह ...... पदमा भाभी ....... सेक्सी ......... मिल ......... खा जाऊँगा ...।..।।। " - ये सब बातें बोलते हुए वरुण जोर-जोर से मेरी ब्रा को अपने लिंग पर रगड़ने लगा । वरुण अंदर अपनी हरकतों को अंजाम दे रहा था और इधर मैं उसकी इन हरकतों से उत्तेजित हो चुकी थी
और अनजाने मे ही मेरा हाथ मेरी योनि पर पहुँच गया । पेन्टी तो मैंने पहनी ही नहीं थी तो हाथ की सीधी चोट ,योनि पर होने लगी जिससे मेरे मन मे उठे रोमांच से पैदा हुई उत्तेजना ने गहरी हवस का रूप ले लिया मेरी योनि भी गीली होकर पानी छोड़ने लगी और योनि को सहलाने के लिए चलने वाले मेरे हाथ भड़कती जिस्म की आग को शांत करने के लिए उसे रगड़ने लगे हवस मे अंधी हो मैं अपने होंठ काटने लगी और तेजी से अपनी योनि को रगड़ने लगी उधर वरुण भी अब पूरी तेजी के साथ अपने लिंग को हिला रहा था और इधर मैं भी एक हाथ से अपने बूब्स और दूसरे हाथ से अपनी योनि के दाने को रगड़ने लगी जल्द ही मेरी योनि भर-भरकर पानी छोड़ने लगी मेरी हालत खराब हो चली मैं बोहोत ज्यादा उत्तेजित हो गई और अपनी योनि के दाने को मसलने लगी मेरे अंदर की वासना का लावा अब पानी के रूप मे बाहर आना चाहता था और मैं भी उसे रुकने नहीं देना चाहती थी मैंने अपने होंठ दाँतों तले दबाकर जोर-2 से अपनी योनि को रगड़ा , मुझे ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा । उधर वरुण ने भी अपनी उखड़ती हुई साँसों को थामते हुए अपना सारा वीर्य मेरी ब्रा के कप मे भर दिया और इधर मैं भी अपनी आहों को बड़ी मुश्किल से अपने गले मे दफ्न करते हुए झड़ने लगी
पेन्टी ना पहने रखने के कारण मेरी योनि का सारा पानी मेरी टांगों से बहता हुआ नीचे फर्श पर बिखर गया, वासना शांत हुई तो कुछ होश आया झड़ने के बाद मेरे लिए खड़ा रहना मुश्किल हो गया मुझे साँस चढ़ रही थी और मेरे माथे पर पसीना छलक आया था वासना का तूफान थमने के बाद मुझे अपनी स्थिति का पता लगा । बाथरूम के अंदर का नजारा भी कुछ ऐसा ही था झड़ने के बाद वरुण ने मेरी ब्रा और पेन्टी वही बाथरूम की टाइल्स पर फेंक दी और नीचे बैठ गया । मैंने सावधानी से अपने कदम पीछे खींचने शुरू किये , वरुण के बाथरूम से निकलने से पहले मुझे हॉल मे जाकर सोफ़े पर बैठना था और मे इसमे कामयाब भी हो गई ।
मैं चुपके से जाके हॉल मे सोफ़े पर बैठ गई और अपने को वरुण की किताब मे व्यस्त करने का दिखावा करने लगी ।
थोड़ी देर बाद वरुण हॉल मे आया उसे भी पसीना आया हुआ था वो चुपचाप आकर मेरे सामने सोफ़े पर बैठ गया । मैंने उसे ना कुछ कहा और ना ही उसकी ओर देखा दरसल अब मुझे खुद पर शर्म भी आ रही थी और मैं वरुण की आँखों मे देखने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी । फिर पढ़ाई का बहाना बना कर मैंने वरुण से बात शुरू की , वरुण पढ़ाते हुए मैंने एक बात नोटिस की वरुण बीच-2 मे मुझे कुछ अजीब तरह से देख रहा था जैसे उसे मुझ पर कुछ शक हो और मैं बेवकूफ उससे नजरे चुराकर उसके शक को ओर भी पक्का कर रही थी ।
थोड़ी देर बाद वरुण के जाने का समय हो गया और वो उठकर जाने लगा , जाते हुए वरुण मेरी ओर देखकर एक कटीली मुस्कान के साथ बोला - " भाभी ! " मैं वरुण की ओर देखकर बोली -
मैं - हाँ वरुण ?
वरुण - आपने अपनी सैंडल क्यों उतारी हुई है ?
दरसल वापस हॉल मे आकर मैं अपनी सैंडल पहनना तो भूल गई थी और वरुण की इस बात से तो मुझे यकीन हो गया की उसे मुझ पर शक है कि मैं उसे छिपकर बाथरूम के बाहर से देख रही थी , मेरा गला सुख गया कुछ जवाब भी ना सुझा , बड़ी मुश्किल से एक बहाना बनाया -
मैं - वो .... वो क्या है ना ...... वरुण ..... सारा दिन ये सैंडल पहनने से मेरे पैरों मे दर्द होने लगता है इसलिए सोचा की थोड़ी देर के लिए उतार दूँ ।
मेरे इस गोल -मोल जवाब को सुन वरुण फिर से मुस्काया और कहने लगा - " भाभी अब तो फरवरी भी खत्म होने को है और अब इतनी ठंड भी नहीं होती । तो आप सुबह को ग्राउंड मे वॉक के लिए क्यों नहीं आ जाती ? अब तो मोहल्ले के काफी लोग भी घूमने आने लगे है , इससे आपके पैरों को भी आराम मिलेगा ।
दरसल हर साल सर्दियाँ बीत जाने पर मैं और अशोक रोज सुबह -सुबह हमारे घर के सामने वाले पार्क मे वॉक और योग के लिए जाते थे पर इस बार सर्दियाँ बीत जाने पर भी अशोक ने मॉर्निंग वॉक की बात नहीं छेड़ी और मैंने भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर अब वरुण के याद दिलाने से मुझे भी मॉर्निंग वॉक पर जाने की इच्छा होने लगी मैंने मन मे सोचा की आज अशोक से इसके बारे मे जरूर बात करूंगी ।
मैं - हम्म .. कह तो तुम ठीक रहे हो वरुण । कल से मैं भी शुरू करूंगी ।
वरुण खुश होते हुए बोला- ओके भाभी फिर 6 बजे ग्राउंड मे मिलते है । बाय ।
मैंने भी वरुण को बाय बोला और वो चला गया ।
वरुण के जाने के बाद मैं सीधे बाथरूम की ओर गई बाथरूम के बाहर पानी की कुछ बुँदे बिखरी हुई थी जो और कुछ नहीं अभी थोड़ी देर पहले मेरी योनि से निकला मेरा चुतरस था उसे देखकर मुझे शर्म भी आई और घबराहट भी हुई मेरे मन मे एक बात ने जगह बना ली कि वरुण ने ये मेरा चुतरस जरूर देख लिया होगा और इसीलिए वो मुझे शक की निगाहों से देख रहा था "हे ! भगवान अब क्या होगा ? क्या वरुण जान गया है कि मैं उसे छिपकर देख रही थी ? वो मेरे बारे मे क्या सोच रहा होगा ?" - ये बातें मेरे दिमाग मे घूमने लगी और फिर मैंने बाथरूम मे प्रवेश किया बाथरूम के अंदर का नजारा तो नॉर्मल ही लग रहा था पर मेरी ब्रा और पेन्टी जो वरुण के हाथ मे थी कहीं नजर नहीं आई मैंने इधर -उधर देखा तो दीवार पर टँगे कपड़ों के पीछे मुझे कुछ दिखाई दिया मैंने धीरे से दीवार पर टँगे कपड़े उतारे उनके उतरते ही सामने मुझे मेरी ब्रा और पेन्टी दिख गई मैंने उन्हे उतारकर अपने हाथों मे लिया पेन्टी तो मुझे ठीक सी ही लगी पर जब ब्रा को मैंने अपने हाथों मे लिया तो कुछ गाढ़ा चिपचिपा लिक्विड की तरह का मेरे हाथों पर लग गया मैंने ब्रा को पलटकर देखा तो उसके कप मे ढेर सारा वोही सफेद लिक्विड भरा हुआ था मैं समझ गई ये ओर कुछ नहीं बल्कि वरुण का वीर्य है जो उसने चरमसुख पाते हुए मेरी ब्रा के कप मे भर दिया था मेरे हाथ वरुण के वीर्य से सन गए थे जिससे मुझे घिन आ रही थी वरुण का वीर्य बोहोत ही गाढ़ा सफेद था वो मेरी उंगलियों और हथेली पर चिपक गया उसे देखकर मुझे ना चाहते हुए भी अशोक की याद आ गई ,कारण था अशोक का पतला वीर्य । अशोक का वीर्य वरुण के मुकाबले बिल्कुल पानी था , ना ही उसका वीर्य इतना गाढ़ा था ना ही सफेद । मैं बाथरूम के पानी की टंकी को खोलकर अपने हाथ धोने लगी । हाथ धोकर मैं अपनी साड़ी उतारने लगी । मैं नहाना चाहती थी आज पूरे दिन की उथल -पुथल मे मुझे नहाने का तो मौका ही नहीं मिला था अपने सारे कपड़े उतारकर मैंने शावर खोल दिया । शावर की ठंडी बुँदे मुझे आनंदित करने लगी और मैं भी आज दिनभर की घटनाओ को भूलकर नहाने लगी ।
नहाने के बाद शावर बंद करके मैं अपने शरीर को टावल से पोंछने लगी ऐसा करते हुए एक बार फिर मेरी नजर मेरी उस ब्रा पर पड़ी जिसपर वरुण ने अपना कम छोड़ा था मेरी नजर बार-बार उस पर जा रही थी और एक अजीब सी कशिश मुझे उसकी ओर बाँधे हुई थी मैं अपने मन की उस स्थिति को बता नहीं सकती पर ना जाने क्यूँ मेरे हाथों ने एक बार फिर से उस ब्रा को उठा लिया और मैं बोहोत ध्यान से उसके कप मे गिरे वरुण के वीर्य को देखने लगी मन मे तो एक उफान सा उमड़ रहा था एक जिज्ञासा से मैं अपनी ब्रा को अपने नाक के पास लाई और वरुण के वीर्य की गंध को सूंघने लगी वरुण के वीर्य की गंध बोहोत तेज और अजीब सी थी उसे सूँघकर मुझे बोहोत अजीब स लगा और मैंने उसे अपने नाक से हटा लिया और उसे नीचे फेंककर अपने कपड़े पहनने लगी।
कपड़े पहनकर मैंने अपने पहले वाले कपड़े वाशिंग मशीन मे धोने के लिए डाल दिए पर अपनी ब्रा को उसमे नहीं डाला मैं नहीं चाहती थी के उसपर लगा वरुण का वीर्य मेरे दूसरे कपड़ों मे भी मिल जाए तो मैंने ब्रा को अलग बाल्टी मे भिगो कर रख दिया । हॉल मे आकर सोफ़े पर बैठ गई सोफ़े पर बैठी हुई कितनी ही देर तक मैं आज की हुई चीजों के बारे मे सोचती रही ये भी सवाल मन मे था कि क्या वरुण वाकई ऐसा ही है जैसा गुप्ता जी ने उसके बारे मे कहा था ? आज जो कुछ उसने मेरे बाथरूम मे किया वो तो इसी ओर इशारा कर रहा था । दूसरी ओर मेरा खुद का जिस्म मेरे काबू मे नहीं था मेरे अंदर उत्तेजना कितनी जल्दी भरने लगी थी इसका तो खुद मुझे आश्चर्य हो रहा था शायद ये सब अशोक से ना मिल पाने वाले प्यार के कारण था जो अब बोहोत आगे बढ़ चुका था और फिर पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो भी हो रहा था उससे भी मेरी दबी हुई कामाअग्नि सुलगने लगी थी । "ना जाने मेरी ये हवस मुझे किस अंधेरे दल-दल मे ले जाएगी " - ये सब मे बैठे हुए सोचती रही । थोड़ी देर ऐसे बैठने के बाद जब मन को कुछ शांति मिली तो मैं उठकर घर की छत पर घूमने चली गई शाम हो जाने की वजह से छत पर ठंड थी और फिर मैं अभी-अभी नहाई भी तो थी । छत पर घूमते हुए मैं गली की ओर वाली रैलिंग पर पहुँची और नीचे गली मे देखने लगी
नीचे कुछ लोग थे जो अपने-अपने काम मे लगे हुए थे तभी मैंने देखा एक बाईक हमारी गली मे आ रही है और आते हुए सीधे वारुण के घर के सामने रुकी । मेरे उस बाईक को इतने गौर से देखने की वजह ये थी कि मैंने वो बाईक पहले भी देखी हुई थी बिल्कुल ऐसी ही बाईक नितिन के पास थी उसपर बैठे आदमी ने हेलमेट लगाया हुआ था वो आदमी अपनी बाईक से नीचे उतरा और वरुण के घर की डॉर बेल बजाई थोड़ी देर बाद किसी ने आकर दरवाजा खोला अब तक उस आदमी ने हेलमेट नहीं उतारा था दरवाजा खुलने के बाद उस आदमी ने अपना हेलमेट उतारा । जैसे ही मेरी नजर उस आदमी के चेहरे पर गई एक बार के लिए मैं बिल्कुल हील गई
,वो बाईक वाला आदमी " नितिन " था , कम से कम मुझे तो वहाँ से ऐसा ही दिखाई दिया । शाम का वक्त था और वो मेरी नज़रों से काफी दूर खड़ा था मैंने उसे थोड़ा और गौर से देखने की कोशिश की पर वो तब तक वरुण के घर के अंदर चला गया । मेरा तो शरीर ठंडा पड़ गया , हालाँकि मैंने उसे पूरे साफ तौर पर नहीं देखा था पर जितना देखा उससे तो मैं उसके नितिन होने का ही अंदाजा लगा पाई ।
मेरे मन मे ढेर सारे सवाल एक साथ खड़े हो गए ," ये कौन था जो नितिन जैसा लग रहा था ? कही ये नितिन ही तो नहीं ? पर वो यहाँ क्या करेगा ? और उसका वरुण के घर से क्या रिश्ता ? वो तो इन्हे जानता भी नहीं । अगर ये नितिन ही हुआ तो ? ये यहाँ हो क्या रहा है ? क्या कोई खेल चल रहा है ? वैसे भी पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ जो वाक्या हुए है वो भी तो कुछ नॉर्मल नहीं थे । " इन्ही सब बातों को सोचते हुए मैं बैचेन होकर छत पर इधर उधर चक्कर काटने लगी । फिर मन मे ख्याल आया - " नहीं ये नितिन कैसे हो सकता है उसे तो बॉस ने आउट ऑफ टाउन भेजा हुआ है । वो यहाँ कैसे हो सकता है ? पर ये बाईक तो उसकी ही लगती है । क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा ?" ये सब बातें मेरे जहन मे घूमने लगी । मैंने सोचा यहीं रुककर देखती हूँ जब वो बाहर आएगा तो एक बार फिर उसे ध्यान से देखने की कोशिश करूंगी । मैं वही छत की रेलिंग पर खड़ी हो गई और गली मे देखने लगी मुझे ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा थोड़ी ही देर मे वरुण के घर का दरवाजा खुला और वो आदमी घर के बाहर आया , पर इस बार तो मैं उसे पहले जितना भी नहीं देख पाई क्योंकि वो घर के अंदर से ही हेलमेट लगाकर आया था । वो सीधे अपनी बाईक पर बैठा और उसे स्टार्ट करके जाने लगा एक अजीब बात इस बार ये हुई की जाने से पहले उसने एक बार पीछे मुड़कर देखा । उसे पीछे मुड़ता पाकर मैं रेलिंग से हट कर नीचे छत पर बैठ गई ।
मैं नहीं जानती की उसने किस ओर देखा था और क्यूँ ? पर मुझे येही लगा जैसे वो मेरे ही घर को देख रहा हो । फिर वो सीधा हुआ और अपनी बाईक तेजी से लेकर चला गया । उसके जाने के बाद मैं कितनी ही देर इन्ही खयालों और सवालों मे उलझी वहाँ घूमती रही ।