Update 12
7 बज रहे थे मैं कीचेन मे खाना बनाने मैं व्यस्त थी तभी डॉर बेल बजी । मैं जान गई की अशोक आ गए है मैं अपना काम छोड़ गेट खोलने चली गई ,
गेट खोला तो सामने अशोक ही थे पर आज रोज की तरह मुस्कुरा नहीं रहे थे उनके हाथ मे एक फाइल थी । मैंने उन्हे देखते ही कहा - "आ गए आप "
अशोक उसी शांत स्वभाव से बोले - " हम्म "
और अंदर की ओर चल दिए । मुझे अशोक के स्वभाव मे कुछ गड़बड़ लगी ऐसा आमतौर पर तो वो नहीं करते । मैंने सोचा " आज ऑफिस मे जरूर कोई बड़ा काम रहा होगा ! या शायद कुछ काम अच्छा ना हुआ हो । " अशोक चुपचाप जाकर हॉल मे सोफ़े पर बैठ गए और मैं भी उनके पीछे - 2 चलती हुई हॉल मे आ गई और उनके बगल मे बैठ कर बोली - " क्या हुआ ? आज मूड बोहोत ऑफ लग रहा है । "
अशोक ने अपने हाथ मे ली हुई फाइल सामने टेबल पर रखी और मेरी ओर देखते हुए बोले - " अरे हाँ ... । बस आज कुछ काम ज्यादा था इसीलिए थोड़ी थकान हो गई । "
मैं - हम्म .. समझ गई ये सब इस फाइल की वजह से हुआ होगा ?
मैंने टेबल पर रखी हुई फाइल को उठाते हुए कहा ।
अशोक - " हाँ ... ये फाइल जाकर अलमारी के लॉकर मे रख दो । और ध्यान रखना ये बोहोत ही जरूरी फाइल है ।
मैं - ठीक है । आप बिल्कुल फिक्र ना करे ।
अशोक - आह .. आज तो अभी से नींद आ रही है । पदमा जल्दी से खाना लगा दो प्लीज ।
मैं - आप बस जाकर फ्रेश होइए मैं खाना लगाती हूँ । फिर आप आराम करना ।
अशोक ने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा और कहा - " ओके बीवी साहिबा । " इतना कहकर अशोक ने मेरे गाल पर अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और फ्रेश होने चले गए ।
अशोक को मुस्कुराता देखकर मुझे भी खुशी मिली और मैं खाना तैयार करने कीचेन मे चली गई , थोड़ी ही देर मे मैंने सारा खाना टेबल पर लगा दिया और तब तक अशोक भी आ गए और फिर हम खाना खाने लगे । खाना खाते हुए हम दोनों यूँही हल्की फुल्की बात करने लगे अचानक मेरे मन मे आया की क्यूं ना अशोक से नितिन के बारे मे पूछ लूँ कि वो शहर मे वापस आया है की नहीं ? इससे मेरे मन का वहम भी मिट जाएगा कि जिसको मैंने आज वरुण के घर जाते देखा वो नितिन हो सकता है या नहीं । मैंने यूँही बातों-बातों मे अशोक से पुछा -
मैं - ओर आपके पुराने बॉस नितिन के क्या हॉल है ? वापस आ गए क्या ?
अशोक नितिन की बात सुन खाना खाते हुए एकदम से रुक गए । मुझे कुछ हैरानी हुई, एकदम से अशोक तो ऐसे रुक गए जैसे पहली बार नितिन का नाम सुन रहे हो , उनके चेहरे पर चिंता की लकिरे खिंच आई । अशोक ने मेरी ओर देखकर सीधे सवाल किया - " क्या तुम्हें वो कहीं दिखाई दिया ?"
अशोक के इस जवाब से मैं भी हैरान थी । मैंने अशोक की बात पर ना मे सर हिलाया और अशोक को कहा - " क्या बात है ? आप नितिन का नाम सुन इतने हैरान क्यों हो गए ? " मेरी इस बात से अशोक एकदम से सकपका गए और बात को घूमते हुए बोले - " अअअ..नहीं तो वो बस ऐसे ही बोहोत दिनों बाद उसका जिक्र तुमसे सुन ना इसलिए । नितिन तो अभी यहाँ नहीं है उसे बॉस ने तो आउट ऑफ टाउन भेजा है ना, तो वो कैसे होगा यहाँ । " अशोक ने जल्दी - जल्दी मे जवाब दिया और फिर से खाना खाने लगे । इसके बाद मैंने अशोक को बीच-बीच मे देखा तो वो कुछ परेशान से लग रहे थे मैंने पूछना भी चाहा , पर फिर कही वो गुस्सा ना हो जाए इसलिए चुप ही रही और खाना खाने लगी । अशोक ने खाना खत्म किया और टेबल से उठकर जाने लगे मैंने पीछे से उन्हे आवाज दी ।
मैं - सुनिए ।
अशोक मेरी ओर घूमे ओर कहा - " हाँ बोलो पदमा । "
मैं - अब तो सुबह को इतनी सर्दी भी नहीं होती तो क्यों ना हम दोनों सुबह ग्राउंड मे वॉक पर चले ।
अशोक - हम्म .. बात तो ठीक है पर मुझसे तो अब इतनी जल्दी उठा नहीं जाता तुम एक काम करो तुम चली जाना । मैं भी कुछ दिनों मे शुरू कर दूंगा ।
इतना बोलकर अशोक बेडरूम की ओर चल दिए । मैं जान गई की अब वो सोना चाहते है । अशोक के जाने के बाद मैं अपने बचे हुए काम निपटाने मे लग गई । सब काम खत्म करके मैं हॉल की लाइट्स ऑफ करके बेडरूम की ओर जाने लगी तभी मेरी नजर टेबल पर रखी उस फाइल पर गई जो अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी मैंने उसे टेबल ये उठाया और लेकर बेडरूम मे आ गई और अलमारी का लॉकर खोलकर उसमे रखने लगी एकबार को उसे खोलकर भी देखा उसमे कंपनी की कुछ रिपोर्ट्स थी जो मेरी तो समझ से बाहर थी इसलिए मैंने उसे वही लॉकर मे रखकर लॉक लगा दिया और अलमारी बंद कर दी । फिर मैंने चेंज किया और अपनी साड़ी और ब्लाउज निकालकर एक नाइटी पहन ली और बेड पर लेट गई बेड पर पहले से ही अशोक गहरी नींद मे थे पर मेरी आँखों मे नींद नहीं कई सारे सवाल और जिस्म मे बैचेनी थी । सवाल ये की "क्या जिसको मैंने आज वरुण के घर के बाहर देखा वो नितिन ही था या नहीं और अगर था तो वहाँ क्या कर रहा था ? वरुण के घर उसे क्या काम ? दूसरा आज नितिन का नाम सुन अशोक इतने परेशान क्यों हो गये ? ऐसी क्या बात हो सकती है ? " जिस्म की बैचेनी ये थी के आज वरुण के घर पर रहने के दौरान जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था कहीं वरुण को कुछ पता तो नहीं चल गया उसकी बातों के अंदाज से तो येही लग रहा था कि उसे मुझ पर कुछ शक हो गया है । पता नहीं आगे क्या-2 होगा मेरी तो कुछ समझ मे नहीं आता । ये सब बाते सोचते हुए ही मेरी आँख लग गई ।
सुबह 5 बजे अलार्म के बजने से मेरी नींद खुली । आज मे 1 घंटा पहले जाग गई क्योंकि मुझे वॉक पर जाना था । मैं अपने बिस्तर से उठी ओर फ्रेश होने वॉशरूम मे चली गई । जब मैं फ्रेश होकर वॉशरूम से बाहर आई मैंने देखा अशोक अभी भी सो रहे थे , वो काफी गहरी नींद मे थे इसलिए मैंने उन्हे जगाना ठीक नहीं समझा मैंने चुप-चाप अपनी अलमारी को खोलकर उसमे से अपना वॉक-सूट निकाला । और उसे पहनने बाथरूम मे चली गई, वॉक-सूट पहनकर मै वॉक के लिए घर से बाहर आई । अशोक अभी सो रहे थे तो मैंने गेट बाहर से लॉक कर दिया उसकी एक चाबी अशोक के पास भी थी तो वो उसे आराम से खोल सकते थे । घर के बाहर आकर मैंने देखा ग्राउंड मे ज्यादा लोग नहीं थे अभी कम ही लोग घूम रहे थे । मैंने सोचा " वरुण तो बोल रहा था कि ग्राउंड मे अब काफी लोग आने लगे है पर यहाँ तो इतने लोग नहीं । " मुझे वरुण भी कही दिखाई नहीं दिया । "खैर मैंने मुझे इन सब से क्या मैं तो घूम कर जल्दी अपने घर वापस आ जाऊँगी । " ये विचार करके मैं ग्राउंड मे पहुँच गई ।
ग्राउंड के सामने ही आगे की ओर एक पुराना बाग था सर्दियों मे किसी के उस ओर ना जाने की वजह से वहाँ बोहोत बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ हो गई थी अगर कोई ग्राउंड पार करके उस ओर चला जाए तो कोई ये भी नहीं देख सकता था की वहाँ कोई है या नहीं ? सुबह का वक्त था पर ज्यादा ठंड नहीं थी मैंने अपनी वॉक शुरू की , अभी मैंने चलना शुरू ही किया था के तभी मेरे पीछे से कोई आदमी दौड़ता हुआ आया और मुझे साइड से कंधा मार कर आगे निकल गया । उसका कंधा लगते ही मैं अपनी जगह से हील गई ओर बस गिरते-2 बची । मैंने संभालते हुए गुस्से से उसे एक आवाज दी
- " ओए ..... कौन है बदतमीज़ ? दिखता नहीं है क्या ? "
वो आदमी एक पल के लिए वहीं रुक गया , पर मेरी ओर पलटा नहीं मैंने उसे पीछे से देखा उसने एक ट्रैक-सूट पहना हुआ था । वहीं रुककर उस आदमी ने बिना पीछे मुड़े एक हँसी भरी और आगे की ओर भागने लगा । मैंने कहा - " रुको कौन हो तुम ? "
मुझे बोहोत गुस्सा आया ये कैसा आदमी है अपनी गलती पर सॉरी कहने के बजाए हँस रहा है । मैं भी दौड़ने के मूड मे थी मैंने निश्चय किया कि एक बार इसे जरूर देखूँगी आखिर ये है कौन ? और फिर मैं उसे पकड़ने के इरादे से उसके पीछे भागने लगी ।
वो बोहोत तेज भाग रहा था पर मैं भी हार मानने वाली नहीं थी मैं उसके पीछे भागती रही । भागते हुए वो ग्राउंड को पार करके भाग मे घुस गया मैं उसके पीछे पकड़ने मे इतनी उलझी थी कि मुझे पता ही नहीं चला कब मैं भी उसके पीछे बाग मे पहुँच गई । बाग के अंदर आकर मैं रुक गई ओर जोर -2 से साँस लेने लगी मैं भागते हुए बोहोत थक गई थी और मुझे पसीना भी आ रहा था । तेज-2 साँस लेते हुए मैंने उस आदमी को चारों ओर देखा पर वो ना जाने कहाँ गायब हो गया । मैं बाग के अंदर थी ओर चारों ओर उसे खोज रही थी पर वो आदमी मुझे कहीं नजर नहीं आया । बाग के अंदर चारों ओर इतनी घनी झाड़ियाँ थी के वहाँ आदमी तो क्या कोई परिंदा तक नहीं था । मैं चारों ओर से अकेली वहाँ घिरी हुई थी जब मेरा ध्यान इस ओर गया तो मैं घबरा गई अकेले उस सूनसान बाग मे वो भी इतनी घनी झाड़ियों के बीच , मेरे तो पसीने छूट गए । मैंने वापस ग्राउंड मे जाने मे ही भलाई समझी और मैं पीछे हटते हुए वहाँ से जाने लगी तभी उन घनी झाड़ियों मे से एक हाथ निकला और उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से खींचा ।
" आह .... " मैं बस इतना ही कह सकी ओर अगले ही पल मैं उन झाड़ियों मे घिरी खड़ी थी जहां मे खड़ी वही एक अमरूद का छोटा सा पेड़ था जिसकी छाव मे मैं और मेरे सामने वही आदमी खड़ा था जिसने मुझे अभी थोड़ी देर पहले ग्राउंड मे कंधा मारा था । " नितिन तुम ...... " मैंने अपनी घबराई हुई आवाज मे कहा । मेरे सामने नितिन खड़ा था जो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था । मैं बोहोत गुस्से मे थी ओर देखते ही मैं उस पर बरस पड़ी - " नितिन तुम यहाँ ..... ? इस तरह से .... तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ? तुम जानते भी हो तुम क्या कर रहे हो ? "
नितिन पर तो जैसे मेरी बातों का कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा वो वैसे ही मुझे देख कर मुस्कुराता रहा । मैंने उसे मुस्कुराते हुए देखकर एक बार फिर से उसे गुस्से मे कहा - " तुम हँस रहे हो ये कोई मजाक नहीं चल रहा यहाँ । जानते हो कितना डर गई थी मैं ? "
नितिन अब भी मेरी बात सुन कर हँसते हुए बोला - " कैसी हो पदमा ? "
नितिन बिल्कुल नॉर्मल स्वभाव मे बोला जैसे कुछ हुआ ही ना हो । मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा - " मुझे नहीं बताना । तुम हँस क्यों रहे हो इतनी देर से मैं कोई जोक सुना रही हूँ क्या ? "
नितिन ने मेरी ओर देखकर कहा - "पदमा तुम गुस्से मे बोहोत प्यारी लगती हो । " नितिन की ये बात सुनकर मैं थोड़ी सकपका गई
ओर बात को बदलते हुए कहा - " तुम बिल्कुल पागल हो , ऐसे किसी को धक्का देते है क्या अगर मैं गिर जाती तो ? "
नितिन - तो मैं तुम्हें उठा लेता ।
मैं - तुम रहने दो । तुम तो मुझे छोड़ कर वहाँ से भाग दिए थे ।
नितिन - नहीं , पहले तो मैं रुका था इसलिए ही तो रुका था कि तुम्हें देख सकूँ ।
अब तक मेरा गुस्सा भी काफी शांत हो गया था और घबराहट भी दूर हो गई थी ।
मैं - हम्म । पर तुम यहाँ कैसे तुम तो आउट ऑफ टाउन गए थे ना ?
नितिन - हाँ सब तुम्हारे पति की मेहरबानी है ?
मैं ( हैरानी से ) - अशोक ? क्या किया उन्होंने ?
नितिन - अरे छोड़ो वो सब तो बिजनेस की बाते है । मैं तो यहाँ तुमसे मिलने आया हूँ ?
मैं - अच्छा ! तो ये कैसा तरीका हुआ मिलने का मुझे कितना डरा दिया । दिल की धड़कने कितनी बढ़ गई थी पता है ?
ये सुनकर नितिन ने कहा - " ओह सॉरी पदमा , देखूँ कहीं तुम ज्यादा तो नहीं डर गई । " इतना बोलकर नितिन ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा । एक बार मे ही मैं खींचती हुई उसके सीने से जा टकराई मेरे बूब्स जो भागने की वजह से तनाव मे आ गए थे । नितिन के सीने से दब गए । " आह .... नितिन ये ...... "
मैं इतना ही बोल सकी तभी नितिन ने अपनी उँगली मेरे होंठों पर रखकर कहा - " शशशश् ....... पदमा । मुझे तुम्हारी धड़कने चेक करने दो । " इतना कहकर नितिन ने मुझे अपने एक हाथ के घेरे मे लिया और अपना दूसरा हाथ मेरे बूब्स के ऊपर मेरे दिल पर रख कर मेरी धड़कनो की चाल मापने लगा मेरी धड़कने जो अब कुछ नॉर्मल होने लगी थी नितिन के शरीर ओर हाथों की छुअन से फिर से तेज हो गई । नितिन ने मुझे बिल्कुल अपने शरीर से मिला रखा था जिससे हमारी साँसे आपस मे टकराने लगी । नितिन का हाथ बिल्कुल मेरे बूब्स के ऊपर मेरे दिल पर था और उसकी आँखे मेरे चेहरे पर लगी हुई थी । फिर नितिन बोला - "सच पदमा , तुम्हारी धड़कन तो बोहोत तेज चल रही है । "
मैं - अब तो यकीन आ गया ना , चलो अब छोड़ो मुझे ।
नितिन ने मेरी आँखों मे देखा और कहा - " छोड़ने का मन नहीं है , पदमा । " नितिन की बात सुनकर मैं थोड़ी घबरा गई ओर उसकी बाहों मे मचलते हुए छूटने की कोशिश करने लगी ।
मैं - नितिन .. छोड़ो ना ।
मुझे विरोध करता पाकर नितिन ने अपनी पकड़ मुझ पर कुछ ढीली कर दी इससे मुझे भी सहजता हुई और मैं सीधी खड़ी हो गई
पर अगले ही पल नितिन ने मुझे कस कर पकड़ा और अपने बिल्कुल करीब लाकर अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए और जोर-2 से मेरे होंठों को चूमने लगा करने लगा । मैं उसके इस हमले से वहीं हक्की-बक्की खड़ी रह गई मुझे कुछ करने का तो क्या कुछ समझने का भी मौका नहीं मिला । नितिन के होंठ मेरे जिस्म पर अपना जादू चलाने लगे और मेरे बदन मे एक मीठा दर्द मचलने लगा ।
नितिन मुझे यहाँ - वहाँ कभी गाल पर , कभी होंठों पर, कभी गले पर चूमने लगा और मेरा जिस्म उसके हर चुम्बन से काँपने लगा । मैंने नितिन को रोकने के लिए उसे कहा - " आह .... नितिन ...... ये क्या ...... ये सब मत ...... करो ......... आह ....... नहीं ....... । "
पर नितिन तो मेरी बात को बिल्कुल अनसुना कर मुझे लगातार चूमते हुए बोला - " आह .. पदमा , तुम तो हुस्न की देवी हो बस थोड़ी देर ओर । मैं तुम्हारे बिना बोहोत तड़पा हूँ । " नितिन की बाते मुझे भी भटका रही थी पर मैं जानती थी के अगर एक बार मेरी जिस्म की आग जाग गई तो फिर मैं चाहकर भी नितिन को रोक नहीं पाऊँगी इसलिए लगातार नितिन का विरोध कर रही थी । मेरा जिस्म नितिन के जिस्म से बिल्कुल मिल हुआ था तभी मुझे नीचे अपनी जांघों के बीच एक लंबी मजबूत चीज का अहसास हुआ जिसके अनुभव से ही मैं समझ गई ये नितिन का लिंग ही है जो अब तनाव मे आने लगा है अब मेरे लिए रुकना बोहोत जरूरी हो गया था क्योंकि नितिन के लिंग का दबाव मेरी योनि पर बढ़ने लगा था जिससे मेरे जिस्म मे एक भयंकर आग उमड़ने लगी । मैंने नितिन को " नहीं ....... आह....... छोड़ ..... दो ..... मुझे ....... ओह "
कहते हुए एक जोर का धक्का दिया । पता नहीं इतनी ताकत मुझमे कैसे आइ पर धक्का देते ही मैं नितिन की पकड़ से छूट गई और नितिन तेजी से पीछे हटते हुए एक अमरूद के पेड़ से जा टकराया जो उसके बिल्कुल पीछे था । मैं नितिन की बाहों की कैद से आजाद होते ही मुझे कुछ सुकून मिला और मैं वही खड़ी रही तभी मेरे ऊपर तेल के जैसी मोटी चिपचिपी कुछ बुँदे गिरने मैं जब तक कुछ समझ पाती तब तक वो बुँदे मेरे शरीर पर हर तरफ चेहरे , हाथों, कंधों, बूब्स के ऊपर गले पर हर जगह बिखर गई कुछ बुँदे मेरे होंठों पर भी गिरी जिससे मुझे उनका स्वाद पता चला
वो बिल्कुल शहद के जैसी थी मुझे कुछ समझ ही नहीं आया के ये क्या हो रहा है उन बूंदों से बचने के लिए मैंने अपने हाथ ऊपर किये ताकि वो बुँदे मुझे पर ना गिर सके तभी वो बुँदे भी गिरना बंद हो गई । मैंने ऊपर की ओर देखा तो मेरी समझ मे सारी बात आ गई दरसल जिस अमरूद के पेड़ के नीचे मैं और नितिन खड़े थे उसके ऊपर एक शहद का छत्ता था और जब मैंने नितिन को खुद से दूर करने के लिए धक्का दिया तो वो अमरूद के पेड़ से टकरा गया जिससे शहद के उस छत्ते से शहद की बुँदे गिरने लगी जो सीधे मुझ पर पड़ी क्योंकि मैं ही उसके नीचे खड़ी थी । मैंने अपनी हालत देखी मेरे शरीर पर हर जगह शहद गिरा हुआ था मेरा सारा शरीर उससे चिपचिपा हो गया । मैंने सामने नितिन की ओर देखा वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था । उसे अपनी ओर ऐसे मुस्कुराता देख मैने कहा - " तुम हँस रहे हो देखो तुम्हारी वजह से ये क्या हो गया ? "
नितिन उसी तरह मुस्कुराता हुआ बोला - " मैंने क्या किया ? तुम्ही ने मुझे धक्का दिया था , ना तुम मुझे धक्का देती ना ये होता । लगता है भगवान भी येही चाहते है की तुम मेरे पास रहो । " इतना बोलकर वो जोर जोर से हँसने लगा ।
मैं - बस बस .. अब ज्यादा बाते मत बनाओ । कुछ करों ये शहद मेरे सारे शरीर पर चिपक रहा है ।
नितिन - मैं क्या करूँ तुम जाना चाहती थी जाओ अब ?
मैं ( थोड़ा चिढ़ते हुए )- पागल हो गए हो क्या मैं ऐसे घर नहीं जा सकती नितिन ये तुम भी जानते हो, मैं अशोक को क्या जवाब दूँगी ?
नितिन - तो मैं क्या करूँ तुम्ही बताओ ।
मैं ( थोड़ी रुदासी की आवाज मे ) - प्लीज कुछ भी करके इस शहद को मेरे शरीर से पोंछ दो ,इससे मुझे बोहोत असहजता हो रही है ।
नितिन अपनी जगह से मेरे करीब आया और अपनी नजरे एक बार मेरे जिस्म पर ऊपर से नीचे तक फिराई फिर एक कुटिल मुस्कान से बोला - " एक तरीका है पदमा , पर कहीं तुम बुरा ना मान जाओ । "
मैं ऐसे खड़े खड़े बोहोत परेशान हो गई थी मेरे जिस्म पर हर शहद बिखरा हुआ था और उसकी चिपचिपाहट मुझे बोहोत परेशान कर रही थी । मैं कैसे भी इससे छुटकारा पाना चाहती थी इसलिए मैंने बिना कुछ सोचे नितिन से कहा - " तुम कुछ भी करो नितिन पर बस इस शहद को मेरे शरीर से हटाओ । "
नितिन एक बार फिर से मेरी ओर देख कर मुस्कुराया और फिर मेरे बिल्कुल करीब आ गया इतने कि हमारी साँसे आपस मे मिलने लगी मैं सोच ही रही थी के ये नितिन क्या कर रहा है इतने मैं ही नितिन ने मेरे चेहरे के पास आकर अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे गाल पर गिरी हुई शहद की बूंदों को चाट लिया ।
मैं एकदम से सिहर गई और नितिन से थोड़ा पीछे हटकर घबराहट मे बोली - "ये ये ... त..तुम क्या कर रहे हो नितिन ? "
नितिन - अरे तुमने ही तो कहा था कि कैसे भी शहद को साफ करूँ अब यहाँ कोई ओर चीज तो है नहीं जिससे मैं इसे साफ कर सकूँ ।
मैं - लेकिन तुम ऐसे ..... नहीं कर सकते ।
नितिन - "क्यों क्या हुआ पदमा ? अब इस शहद को तो हटाना ही होगा ना । आओ मुझे करने दो । " इतना कहकर नितिन फिर से मेरे पास आने लगा , पर मैं ऐसा अपनी मर्जी से भला कैसे होने दे सकती थी ।
मैं - प्लीज , बात को समझो नितिन तुम ऐसे इसे साफ नहीं कर सकते ।
नितिन( नाराजगी से ) - तो ठीक है मैं जाता हूँ तुम खुद ही कर लेना ।
ये कहकर नितिन जाने लगा मैं बोहोत घबराई हुई थी मेरी कोई यहाँ मदद करने वाला भी नहीं था । मैं ऐसे घर भी नहीं जा सकती थी "अगर अशोक ने पुछा की ये शहद कैसे लगा तो मैं क्या जवाब दूँगी और अगर किसी गली वाले ने मुझे ऐसे देख लिया तो वो भी क्या सोचेंगे । " - मैं यही सोच रही थी और मैंने नितिन को जाने से रोका - " नितिन रुक जाओ प्लीज । " मेरी आवाज सुन नितिन वही रुक गया । मैंने आगे कहा - " अच्छा... ठीक है ... जैसा तुम्हें ठीक लगे .... करलो .. । "
नितिन वापस मुड़ा इस बार उसकी आँखों मे एक अलग ही चमक थी वो धीरे -धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगा जैसे - जैसे नितिन मेरी ओर आ रहा था घबराहट और रोमांच मे मेरी धड़कने तेज हो रही थी । "शहद तो मेरे जिस्म के अंग-अंग पर लगा है तो क्या नितिन हर जगह से ऐसे ही अपने होंठों से साफ करेगा । " येही सोचते हुए मुझ पर रोमांच छाने लगा । नितिन फिर से मेरे बिल्कुल करीब आया और आकर कहा - "
सोच लो , तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं वरना बाद मे ये मत कहना की मैंने तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाया है । "
मैं ( मन मे )- फायदा तो तू उठा ही रहा है कमीने , पर अभी मेरे पास कोई ओर चारा भी नहीं है ।
रुदासी से मैंने नितिन से कहा - नहीं नितिन तुम बस कैसे भी इसे साफ करदों ।
घबराओ मत पदमा कुछ नहीं होगा , मैं हूँ ना । "
नितिन ने अपने ट्रेक-सूट की चैन को ऊपर से पकड़ा और उसे नीचे करके खोल दिया और अपना ट्रेक सूट उतारने लगा । उसके ऐसा करने से मैं हैरान थी मैंने उससे पुछा - "नितिन तुम अपना ट्रैक-सूट क्यों उतार रहे हो इसकी क्या जरूरत है ?" नितिन ने अपना ट्रैक-सूट उतारते हुए कहा - " पदमा तुम्हारे शरीर पर कई जगह शहद गिर गया है कहीं उसे साफ करते हुए वो मेरे ट्रैक-सूट पर ना लग जाए । " नितिन के इस जवाब का मेरे पास कोई उत्तर न ही था , नितिन ने ट्रैक-सूट के नीचे कुछ पहना था उसके उतरते ही उसकी चिकनी मजबूत छाती मेरे सामने आ गई मेरी धड़कन तो उसे ऐसे देख कर ही तेज होने लगी आगे क्या होगा इसका तो मुझे अंदाजा ही नहीं था ।
उसके बाद नितिन ने अपना खेल शुरू किया , उसने मुझे मेरी कमर से पकड़ा और अपनी ओर खिंच कर मुझे खुद से सटा लिया और फिर बिना देरी किये अपने होंठ मेरे दूसरे गाल पर लगाकर वहाँ पर से शहद को चूसने लगा । "आह ..... ना ... । "
नितिन के होंठ अपने जिस्म पर पड़ते ही मेरी एक धीमी कामुक आह निकल गई तो साँस फूलने लगी शर्म से मैंने अपनी आँखे बंद करली और अपनी उत्तेजना को रोकने के लिए अपनी मुट्ठी भींच ली । नितिन के दोनों हाथ मेरे नितम्बों पर थे और उन्हे हल्के -हल्के सहला रहे थे उसने अपने होंठ आगे बढ़ाए और उन्हे मेरे माथे ,आँखों और चेहरे पर फिराते हुए वहाँ पर लगा शहद चूसने लगा नितिन ने एक - एक जगह को खूब चूस -चूस कर साफ किया फिर वो अपने होंठ मेरे चेहरे से हटाए बिना नीचे की ओर उन्हे फिराता हुआ बढ़ने लगा और जैसे ही उसके होंठ मेरी गर्दन पर आए वहाँ पर भी जोर -2 से चूमने और चूसने लगे नितिन के हर वार के साथ मेरी कामुकता बढ़ने लगी और साँसे भारी हो चली । अब नितिन के होंठ कहाँ -कहाँ जाएंगे इस रोमांच से धड़कनों ने भी रफ्तार पकड़ ली ,नितिन के हाथ अब मेरे नितम्बों को ना सिर्फ सहला रहे थे बल्कि बीच-बीच मे दबाने भी लगे थे ।
गेट खोला तो सामने अशोक ही थे पर आज रोज की तरह मुस्कुरा नहीं रहे थे उनके हाथ मे एक फाइल थी । मैंने उन्हे देखते ही कहा - "आ गए आप "
अशोक उसी शांत स्वभाव से बोले - " हम्म "
और अंदर की ओर चल दिए । मुझे अशोक के स्वभाव मे कुछ गड़बड़ लगी ऐसा आमतौर पर तो वो नहीं करते । मैंने सोचा " आज ऑफिस मे जरूर कोई बड़ा काम रहा होगा ! या शायद कुछ काम अच्छा ना हुआ हो । " अशोक चुपचाप जाकर हॉल मे सोफ़े पर बैठ गए और मैं भी उनके पीछे - 2 चलती हुई हॉल मे आ गई और उनके बगल मे बैठ कर बोली - " क्या हुआ ? आज मूड बोहोत ऑफ लग रहा है । "
अशोक ने अपने हाथ मे ली हुई फाइल सामने टेबल पर रखी और मेरी ओर देखते हुए बोले - " अरे हाँ ... । बस आज कुछ काम ज्यादा था इसीलिए थोड़ी थकान हो गई । "
मैं - हम्म .. समझ गई ये सब इस फाइल की वजह से हुआ होगा ?
मैंने टेबल पर रखी हुई फाइल को उठाते हुए कहा ।
अशोक - " हाँ ... ये फाइल जाकर अलमारी के लॉकर मे रख दो । और ध्यान रखना ये बोहोत ही जरूरी फाइल है ।
मैं - ठीक है । आप बिल्कुल फिक्र ना करे ।
अशोक - आह .. आज तो अभी से नींद आ रही है । पदमा जल्दी से खाना लगा दो प्लीज ।
मैं - आप बस जाकर फ्रेश होइए मैं खाना लगाती हूँ । फिर आप आराम करना ।
अशोक ने मुस्कुराकर मेरी ओर देखा और कहा - " ओके बीवी साहिबा । " इतना कहकर अशोक ने मेरे गाल पर अपने होंठों से एक चुम्बन दिया और फ्रेश होने चले गए ।
अशोक को मुस्कुराता देखकर मुझे भी खुशी मिली और मैं खाना तैयार करने कीचेन मे चली गई , थोड़ी ही देर मे मैंने सारा खाना टेबल पर लगा दिया और तब तक अशोक भी आ गए और फिर हम खाना खाने लगे । खाना खाते हुए हम दोनों यूँही हल्की फुल्की बात करने लगे अचानक मेरे मन मे आया की क्यूं ना अशोक से नितिन के बारे मे पूछ लूँ कि वो शहर मे वापस आया है की नहीं ? इससे मेरे मन का वहम भी मिट जाएगा कि जिसको मैंने आज वरुण के घर जाते देखा वो नितिन हो सकता है या नहीं । मैंने यूँही बातों-बातों मे अशोक से पुछा -
मैं - ओर आपके पुराने बॉस नितिन के क्या हॉल है ? वापस आ गए क्या ?
अशोक नितिन की बात सुन खाना खाते हुए एकदम से रुक गए । मुझे कुछ हैरानी हुई, एकदम से अशोक तो ऐसे रुक गए जैसे पहली बार नितिन का नाम सुन रहे हो , उनके चेहरे पर चिंता की लकिरे खिंच आई । अशोक ने मेरी ओर देखकर सीधे सवाल किया - " क्या तुम्हें वो कहीं दिखाई दिया ?"
अशोक के इस जवाब से मैं भी हैरान थी । मैंने अशोक की बात पर ना मे सर हिलाया और अशोक को कहा - " क्या बात है ? आप नितिन का नाम सुन इतने हैरान क्यों हो गए ? " मेरी इस बात से अशोक एकदम से सकपका गए और बात को घूमते हुए बोले - " अअअ..नहीं तो वो बस ऐसे ही बोहोत दिनों बाद उसका जिक्र तुमसे सुन ना इसलिए । नितिन तो अभी यहाँ नहीं है उसे बॉस ने तो आउट ऑफ टाउन भेजा है ना, तो वो कैसे होगा यहाँ । " अशोक ने जल्दी - जल्दी मे जवाब दिया और फिर से खाना खाने लगे । इसके बाद मैंने अशोक को बीच-बीच मे देखा तो वो कुछ परेशान से लग रहे थे मैंने पूछना भी चाहा , पर फिर कही वो गुस्सा ना हो जाए इसलिए चुप ही रही और खाना खाने लगी । अशोक ने खाना खत्म किया और टेबल से उठकर जाने लगे मैंने पीछे से उन्हे आवाज दी ।
मैं - सुनिए ।
अशोक मेरी ओर घूमे ओर कहा - " हाँ बोलो पदमा । "
मैं - अब तो सुबह को इतनी सर्दी भी नहीं होती तो क्यों ना हम दोनों सुबह ग्राउंड मे वॉक पर चले ।
अशोक - हम्म .. बात तो ठीक है पर मुझसे तो अब इतनी जल्दी उठा नहीं जाता तुम एक काम करो तुम चली जाना । मैं भी कुछ दिनों मे शुरू कर दूंगा ।
इतना बोलकर अशोक बेडरूम की ओर चल दिए । मैं जान गई की अब वो सोना चाहते है । अशोक के जाने के बाद मैं अपने बचे हुए काम निपटाने मे लग गई । सब काम खत्म करके मैं हॉल की लाइट्स ऑफ करके बेडरूम की ओर जाने लगी तभी मेरी नजर टेबल पर रखी उस फाइल पर गई जो अशोक ने मुझे रखने के लिए दी थी मैंने उसे टेबल ये उठाया और लेकर बेडरूम मे आ गई और अलमारी का लॉकर खोलकर उसमे रखने लगी एकबार को उसे खोलकर भी देखा उसमे कंपनी की कुछ रिपोर्ट्स थी जो मेरी तो समझ से बाहर थी इसलिए मैंने उसे वही लॉकर मे रखकर लॉक लगा दिया और अलमारी बंद कर दी । फिर मैंने चेंज किया और अपनी साड़ी और ब्लाउज निकालकर एक नाइटी पहन ली और बेड पर लेट गई बेड पर पहले से ही अशोक गहरी नींद मे थे पर मेरी आँखों मे नींद नहीं कई सारे सवाल और जिस्म मे बैचेनी थी । सवाल ये की "क्या जिसको मैंने आज वरुण के घर के बाहर देखा वो नितिन ही था या नहीं और अगर था तो वहाँ क्या कर रहा था ? वरुण के घर उसे क्या काम ? दूसरा आज नितिन का नाम सुन अशोक इतने परेशान क्यों हो गये ? ऐसी क्या बात हो सकती है ? " जिस्म की बैचेनी ये थी के आज वरुण के घर पर रहने के दौरान जो हुआ वो नहीं होना चाहिए था कहीं वरुण को कुछ पता तो नहीं चल गया उसकी बातों के अंदाज से तो येही लग रहा था कि उसे मुझ पर कुछ शक हो गया है । पता नहीं आगे क्या-2 होगा मेरी तो कुछ समझ मे नहीं आता । ये सब बाते सोचते हुए ही मेरी आँख लग गई ।
सुबह 5 बजे अलार्म के बजने से मेरी नींद खुली । आज मे 1 घंटा पहले जाग गई क्योंकि मुझे वॉक पर जाना था । मैं अपने बिस्तर से उठी ओर फ्रेश होने वॉशरूम मे चली गई । जब मैं फ्रेश होकर वॉशरूम से बाहर आई मैंने देखा अशोक अभी भी सो रहे थे , वो काफी गहरी नींद मे थे इसलिए मैंने उन्हे जगाना ठीक नहीं समझा मैंने चुप-चाप अपनी अलमारी को खोलकर उसमे से अपना वॉक-सूट निकाला । और उसे पहनने बाथरूम मे चली गई, वॉक-सूट पहनकर मै वॉक के लिए घर से बाहर आई । अशोक अभी सो रहे थे तो मैंने गेट बाहर से लॉक कर दिया उसकी एक चाबी अशोक के पास भी थी तो वो उसे आराम से खोल सकते थे । घर के बाहर आकर मैंने देखा ग्राउंड मे ज्यादा लोग नहीं थे अभी कम ही लोग घूम रहे थे । मैंने सोचा " वरुण तो बोल रहा था कि ग्राउंड मे अब काफी लोग आने लगे है पर यहाँ तो इतने लोग नहीं । " मुझे वरुण भी कही दिखाई नहीं दिया । "खैर मैंने मुझे इन सब से क्या मैं तो घूम कर जल्दी अपने घर वापस आ जाऊँगी । " ये विचार करके मैं ग्राउंड मे पहुँच गई ।
ग्राउंड के सामने ही आगे की ओर एक पुराना बाग था सर्दियों मे किसी के उस ओर ना जाने की वजह से वहाँ बोहोत बड़ी-बड़ी झाड़ियाँ हो गई थी अगर कोई ग्राउंड पार करके उस ओर चला जाए तो कोई ये भी नहीं देख सकता था की वहाँ कोई है या नहीं ? सुबह का वक्त था पर ज्यादा ठंड नहीं थी मैंने अपनी वॉक शुरू की , अभी मैंने चलना शुरू ही किया था के तभी मेरे पीछे से कोई आदमी दौड़ता हुआ आया और मुझे साइड से कंधा मार कर आगे निकल गया । उसका कंधा लगते ही मैं अपनी जगह से हील गई ओर बस गिरते-2 बची । मैंने संभालते हुए गुस्से से उसे एक आवाज दी
- " ओए ..... कौन है बदतमीज़ ? दिखता नहीं है क्या ? "
वो आदमी एक पल के लिए वहीं रुक गया , पर मेरी ओर पलटा नहीं मैंने उसे पीछे से देखा उसने एक ट्रैक-सूट पहना हुआ था । वहीं रुककर उस आदमी ने बिना पीछे मुड़े एक हँसी भरी और आगे की ओर भागने लगा । मैंने कहा - " रुको कौन हो तुम ? "
मुझे बोहोत गुस्सा आया ये कैसा आदमी है अपनी गलती पर सॉरी कहने के बजाए हँस रहा है । मैं भी दौड़ने के मूड मे थी मैंने निश्चय किया कि एक बार इसे जरूर देखूँगी आखिर ये है कौन ? और फिर मैं उसे पकड़ने के इरादे से उसके पीछे भागने लगी ।
वो बोहोत तेज भाग रहा था पर मैं भी हार मानने वाली नहीं थी मैं उसके पीछे भागती रही । भागते हुए वो ग्राउंड को पार करके भाग मे घुस गया मैं उसके पीछे पकड़ने मे इतनी उलझी थी कि मुझे पता ही नहीं चला कब मैं भी उसके पीछे बाग मे पहुँच गई । बाग के अंदर आकर मैं रुक गई ओर जोर -2 से साँस लेने लगी मैं भागते हुए बोहोत थक गई थी और मुझे पसीना भी आ रहा था । तेज-2 साँस लेते हुए मैंने उस आदमी को चारों ओर देखा पर वो ना जाने कहाँ गायब हो गया । मैं बाग के अंदर थी ओर चारों ओर उसे खोज रही थी पर वो आदमी मुझे कहीं नजर नहीं आया । बाग के अंदर चारों ओर इतनी घनी झाड़ियाँ थी के वहाँ आदमी तो क्या कोई परिंदा तक नहीं था । मैं चारों ओर से अकेली वहाँ घिरी हुई थी जब मेरा ध्यान इस ओर गया तो मैं घबरा गई अकेले उस सूनसान बाग मे वो भी इतनी घनी झाड़ियों के बीच , मेरे तो पसीने छूट गए । मैंने वापस ग्राउंड मे जाने मे ही भलाई समझी और मैं पीछे हटते हुए वहाँ से जाने लगी तभी उन घनी झाड़ियों मे से एक हाथ निकला और उसने मेरे हाथ को पकड़कर जोर से खींचा ।
" आह .... " मैं बस इतना ही कह सकी ओर अगले ही पल मैं उन झाड़ियों मे घिरी खड़ी थी जहां मे खड़ी वही एक अमरूद का छोटा सा पेड़ था जिसकी छाव मे मैं और मेरे सामने वही आदमी खड़ा था जिसने मुझे अभी थोड़ी देर पहले ग्राउंड मे कंधा मारा था । " नितिन तुम ...... " मैंने अपनी घबराई हुई आवाज मे कहा । मेरे सामने नितिन खड़ा था जो मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था । मैं बोहोत गुस्से मे थी ओर देखते ही मैं उस पर बरस पड़ी - " नितिन तुम यहाँ ..... ? इस तरह से .... तुम्हारा दिमाग तो खराब नहीं हो गया ? तुम जानते भी हो तुम क्या कर रहे हो ? "
नितिन पर तो जैसे मेरी बातों का कोई फ़र्क ही नहीं पड़ा वो वैसे ही मुझे देख कर मुस्कुराता रहा । मैंने उसे मुस्कुराते हुए देखकर एक बार फिर से उसे गुस्से मे कहा - " तुम हँस रहे हो ये कोई मजाक नहीं चल रहा यहाँ । जानते हो कितना डर गई थी मैं ? "
नितिन अब भी मेरी बात सुन कर हँसते हुए बोला - " कैसी हो पदमा ? "
नितिन बिल्कुल नॉर्मल स्वभाव मे बोला जैसे कुछ हुआ ही ना हो । मैंने उसकी बात का जवाब देते हुए कहा - " मुझे नहीं बताना । तुम हँस क्यों रहे हो इतनी देर से मैं कोई जोक सुना रही हूँ क्या ? "
नितिन ने मेरी ओर देखकर कहा - "पदमा तुम गुस्से मे बोहोत प्यारी लगती हो । " नितिन की ये बात सुनकर मैं थोड़ी सकपका गई
ओर बात को बदलते हुए कहा - " तुम बिल्कुल पागल हो , ऐसे किसी को धक्का देते है क्या अगर मैं गिर जाती तो ? "
नितिन - तो मैं तुम्हें उठा लेता ।
मैं - तुम रहने दो । तुम तो मुझे छोड़ कर वहाँ से भाग दिए थे ।
नितिन - नहीं , पहले तो मैं रुका था इसलिए ही तो रुका था कि तुम्हें देख सकूँ ।
अब तक मेरा गुस्सा भी काफी शांत हो गया था और घबराहट भी दूर हो गई थी ।
मैं - हम्म । पर तुम यहाँ कैसे तुम तो आउट ऑफ टाउन गए थे ना ?
नितिन - हाँ सब तुम्हारे पति की मेहरबानी है ?
मैं ( हैरानी से ) - अशोक ? क्या किया उन्होंने ?
नितिन - अरे छोड़ो वो सब तो बिजनेस की बाते है । मैं तो यहाँ तुमसे मिलने आया हूँ ?
मैं - अच्छा ! तो ये कैसा तरीका हुआ मिलने का मुझे कितना डरा दिया । दिल की धड़कने कितनी बढ़ गई थी पता है ?
ये सुनकर नितिन ने कहा - " ओह सॉरी पदमा , देखूँ कहीं तुम ज्यादा तो नहीं डर गई । " इतना बोलकर नितिन ने मेरा हाथ पकड़कर अपनी ओर खींचा । एक बार मे ही मैं खींचती हुई उसके सीने से जा टकराई मेरे बूब्स जो भागने की वजह से तनाव मे आ गए थे । नितिन के सीने से दब गए । " आह .... नितिन ये ...... "
मैं इतना ही बोल सकी तभी नितिन ने अपनी उँगली मेरे होंठों पर रखकर कहा - " शशशश् ....... पदमा । मुझे तुम्हारी धड़कने चेक करने दो । " इतना कहकर नितिन ने मुझे अपने एक हाथ के घेरे मे लिया और अपना दूसरा हाथ मेरे बूब्स के ऊपर मेरे दिल पर रख कर मेरी धड़कनो की चाल मापने लगा मेरी धड़कने जो अब कुछ नॉर्मल होने लगी थी नितिन के शरीर ओर हाथों की छुअन से फिर से तेज हो गई । नितिन ने मुझे बिल्कुल अपने शरीर से मिला रखा था जिससे हमारी साँसे आपस मे टकराने लगी । नितिन का हाथ बिल्कुल मेरे बूब्स के ऊपर मेरे दिल पर था और उसकी आँखे मेरे चेहरे पर लगी हुई थी । फिर नितिन बोला - "सच पदमा , तुम्हारी धड़कन तो बोहोत तेज चल रही है । "
मैं - अब तो यकीन आ गया ना , चलो अब छोड़ो मुझे ।
नितिन ने मेरी आँखों मे देखा और कहा - " छोड़ने का मन नहीं है , पदमा । " नितिन की बात सुनकर मैं थोड़ी घबरा गई ओर उसकी बाहों मे मचलते हुए छूटने की कोशिश करने लगी ।
मैं - नितिन .. छोड़ो ना ।
मुझे विरोध करता पाकर नितिन ने अपनी पकड़ मुझ पर कुछ ढीली कर दी इससे मुझे भी सहजता हुई और मैं सीधी खड़ी हो गई
पर अगले ही पल नितिन ने मुझे कस कर पकड़ा और अपने बिल्कुल करीब लाकर अपने होंठ मेरे होंठों से लगा दिए और जोर-2 से मेरे होंठों को चूमने लगा करने लगा । मैं उसके इस हमले से वहीं हक्की-बक्की खड़ी रह गई मुझे कुछ करने का तो क्या कुछ समझने का भी मौका नहीं मिला । नितिन के होंठ मेरे जिस्म पर अपना जादू चलाने लगे और मेरे बदन मे एक मीठा दर्द मचलने लगा ।
नितिन मुझे यहाँ - वहाँ कभी गाल पर , कभी होंठों पर, कभी गले पर चूमने लगा और मेरा जिस्म उसके हर चुम्बन से काँपने लगा । मैंने नितिन को रोकने के लिए उसे कहा - " आह .... नितिन ...... ये क्या ...... ये सब मत ...... करो ......... आह ....... नहीं ....... । "
पर नितिन तो मेरी बात को बिल्कुल अनसुना कर मुझे लगातार चूमते हुए बोला - " आह .. पदमा , तुम तो हुस्न की देवी हो बस थोड़ी देर ओर । मैं तुम्हारे बिना बोहोत तड़पा हूँ । " नितिन की बाते मुझे भी भटका रही थी पर मैं जानती थी के अगर एक बार मेरी जिस्म की आग जाग गई तो फिर मैं चाहकर भी नितिन को रोक नहीं पाऊँगी इसलिए लगातार नितिन का विरोध कर रही थी । मेरा जिस्म नितिन के जिस्म से बिल्कुल मिल हुआ था तभी मुझे नीचे अपनी जांघों के बीच एक लंबी मजबूत चीज का अहसास हुआ जिसके अनुभव से ही मैं समझ गई ये नितिन का लिंग ही है जो अब तनाव मे आने लगा है अब मेरे लिए रुकना बोहोत जरूरी हो गया था क्योंकि नितिन के लिंग का दबाव मेरी योनि पर बढ़ने लगा था जिससे मेरे जिस्म मे एक भयंकर आग उमड़ने लगी । मैंने नितिन को " नहीं ....... आह....... छोड़ ..... दो ..... मुझे ....... ओह "
कहते हुए एक जोर का धक्का दिया । पता नहीं इतनी ताकत मुझमे कैसे आइ पर धक्का देते ही मैं नितिन की पकड़ से छूट गई और नितिन तेजी से पीछे हटते हुए एक अमरूद के पेड़ से जा टकराया जो उसके बिल्कुल पीछे था । मैं नितिन की बाहों की कैद से आजाद होते ही मुझे कुछ सुकून मिला और मैं वही खड़ी रही तभी मेरे ऊपर तेल के जैसी मोटी चिपचिपी कुछ बुँदे गिरने मैं जब तक कुछ समझ पाती तब तक वो बुँदे मेरे शरीर पर हर तरफ चेहरे , हाथों, कंधों, बूब्स के ऊपर गले पर हर जगह बिखर गई कुछ बुँदे मेरे होंठों पर भी गिरी जिससे मुझे उनका स्वाद पता चला
वो बिल्कुल शहद के जैसी थी मुझे कुछ समझ ही नहीं आया के ये क्या हो रहा है उन बूंदों से बचने के लिए मैंने अपने हाथ ऊपर किये ताकि वो बुँदे मुझे पर ना गिर सके तभी वो बुँदे भी गिरना बंद हो गई । मैंने ऊपर की ओर देखा तो मेरी समझ मे सारी बात आ गई दरसल जिस अमरूद के पेड़ के नीचे मैं और नितिन खड़े थे उसके ऊपर एक शहद का छत्ता था और जब मैंने नितिन को खुद से दूर करने के लिए धक्का दिया तो वो अमरूद के पेड़ से टकरा गया जिससे शहद के उस छत्ते से शहद की बुँदे गिरने लगी जो सीधे मुझ पर पड़ी क्योंकि मैं ही उसके नीचे खड़ी थी । मैंने अपनी हालत देखी मेरे शरीर पर हर जगह शहद गिरा हुआ था मेरा सारा शरीर उससे चिपचिपा हो गया । मैंने सामने नितिन की ओर देखा वो मुझे देख कर मुस्कुरा रहा था । उसे अपनी ओर ऐसे मुस्कुराता देख मैने कहा - " तुम हँस रहे हो देखो तुम्हारी वजह से ये क्या हो गया ? "
नितिन उसी तरह मुस्कुराता हुआ बोला - " मैंने क्या किया ? तुम्ही ने मुझे धक्का दिया था , ना तुम मुझे धक्का देती ना ये होता । लगता है भगवान भी येही चाहते है की तुम मेरे पास रहो । " इतना बोलकर वो जोर जोर से हँसने लगा ।
मैं - बस बस .. अब ज्यादा बाते मत बनाओ । कुछ करों ये शहद मेरे सारे शरीर पर चिपक रहा है ।
नितिन - मैं क्या करूँ तुम जाना चाहती थी जाओ अब ?
मैं ( थोड़ा चिढ़ते हुए )- पागल हो गए हो क्या मैं ऐसे घर नहीं जा सकती नितिन ये तुम भी जानते हो, मैं अशोक को क्या जवाब दूँगी ?
नितिन - तो मैं क्या करूँ तुम्ही बताओ ।
मैं ( थोड़ी रुदासी की आवाज मे ) - प्लीज कुछ भी करके इस शहद को मेरे शरीर से पोंछ दो ,इससे मुझे बोहोत असहजता हो रही है ।
नितिन अपनी जगह से मेरे करीब आया और अपनी नजरे एक बार मेरे जिस्म पर ऊपर से नीचे तक फिराई फिर एक कुटिल मुस्कान से बोला - " एक तरीका है पदमा , पर कहीं तुम बुरा ना मान जाओ । "
मैं ऐसे खड़े खड़े बोहोत परेशान हो गई थी मेरे जिस्म पर हर शहद बिखरा हुआ था और उसकी चिपचिपाहट मुझे बोहोत परेशान कर रही थी । मैं कैसे भी इससे छुटकारा पाना चाहती थी इसलिए मैंने बिना कुछ सोचे नितिन से कहा - " तुम कुछ भी करो नितिन पर बस इस शहद को मेरे शरीर से हटाओ । "
नितिन एक बार फिर से मेरी ओर देख कर मुस्कुराया और फिर मेरे बिल्कुल करीब आ गया इतने कि हमारी साँसे आपस मे मिलने लगी मैं सोच ही रही थी के ये नितिन क्या कर रहा है इतने मैं ही नितिन ने मेरे चेहरे के पास आकर अपनी जीभ बाहर निकाली और मेरे गाल पर गिरी हुई शहद की बूंदों को चाट लिया ।
मैं एकदम से सिहर गई और नितिन से थोड़ा पीछे हटकर घबराहट मे बोली - "ये ये ... त..तुम क्या कर रहे हो नितिन ? "
नितिन - अरे तुमने ही तो कहा था कि कैसे भी शहद को साफ करूँ अब यहाँ कोई ओर चीज तो है नहीं जिससे मैं इसे साफ कर सकूँ ।
मैं - लेकिन तुम ऐसे ..... नहीं कर सकते ।
नितिन - "क्यों क्या हुआ पदमा ? अब इस शहद को तो हटाना ही होगा ना । आओ मुझे करने दो । " इतना कहकर नितिन फिर से मेरे पास आने लगा , पर मैं ऐसा अपनी मर्जी से भला कैसे होने दे सकती थी ।
मैं - प्लीज , बात को समझो नितिन तुम ऐसे इसे साफ नहीं कर सकते ।
नितिन( नाराजगी से ) - तो ठीक है मैं जाता हूँ तुम खुद ही कर लेना ।
ये कहकर नितिन जाने लगा मैं बोहोत घबराई हुई थी मेरी कोई यहाँ मदद करने वाला भी नहीं था । मैं ऐसे घर भी नहीं जा सकती थी "अगर अशोक ने पुछा की ये शहद कैसे लगा तो मैं क्या जवाब दूँगी और अगर किसी गली वाले ने मुझे ऐसे देख लिया तो वो भी क्या सोचेंगे । " - मैं यही सोच रही थी और मैंने नितिन को जाने से रोका - " नितिन रुक जाओ प्लीज । " मेरी आवाज सुन नितिन वही रुक गया । मैंने आगे कहा - " अच्छा... ठीक है ... जैसा तुम्हें ठीक लगे .... करलो .. । "
नितिन वापस मुड़ा इस बार उसकी आँखों मे एक अलग ही चमक थी वो धीरे -धीरे मेरी तरफ बढ़ने लगा जैसे - जैसे नितिन मेरी ओर आ रहा था घबराहट और रोमांच मे मेरी धड़कने तेज हो रही थी । "शहद तो मेरे जिस्म के अंग-अंग पर लगा है तो क्या नितिन हर जगह से ऐसे ही अपने होंठों से साफ करेगा । " येही सोचते हुए मुझ पर रोमांच छाने लगा । नितिन फिर से मेरे बिल्कुल करीब आया और आकर कहा - "
सोच लो , तुम्हें कोई परेशानी तो नहीं वरना बाद मे ये मत कहना की मैंने तुम्हारी मजबूरी का फायदा उठाया है । "
मैं ( मन मे )- फायदा तो तू उठा ही रहा है कमीने , पर अभी मेरे पास कोई ओर चारा भी नहीं है ।
रुदासी से मैंने नितिन से कहा - नहीं नितिन तुम बस कैसे भी इसे साफ करदों ।
घबराओ मत पदमा कुछ नहीं होगा , मैं हूँ ना । "
नितिन ने अपने ट्रेक-सूट की चैन को ऊपर से पकड़ा और उसे नीचे करके खोल दिया और अपना ट्रेक सूट उतारने लगा । उसके ऐसा करने से मैं हैरान थी मैंने उससे पुछा - "नितिन तुम अपना ट्रैक-सूट क्यों उतार रहे हो इसकी क्या जरूरत है ?" नितिन ने अपना ट्रैक-सूट उतारते हुए कहा - " पदमा तुम्हारे शरीर पर कई जगह शहद गिर गया है कहीं उसे साफ करते हुए वो मेरे ट्रैक-सूट पर ना लग जाए । " नितिन के इस जवाब का मेरे पास कोई उत्तर न ही था , नितिन ने ट्रैक-सूट के नीचे कुछ पहना था उसके उतरते ही उसकी चिकनी मजबूत छाती मेरे सामने आ गई मेरी धड़कन तो उसे ऐसे देख कर ही तेज होने लगी आगे क्या होगा इसका तो मुझे अंदाजा ही नहीं था ।
उसके बाद नितिन ने अपना खेल शुरू किया , उसने मुझे मेरी कमर से पकड़ा और अपनी ओर खिंच कर मुझे खुद से सटा लिया और फिर बिना देरी किये अपने होंठ मेरे दूसरे गाल पर लगाकर वहाँ पर से शहद को चूसने लगा । "आह ..... ना ... । "
नितिन के होंठ अपने जिस्म पर पड़ते ही मेरी एक धीमी कामुक आह निकल गई तो साँस फूलने लगी शर्म से मैंने अपनी आँखे बंद करली और अपनी उत्तेजना को रोकने के लिए अपनी मुट्ठी भींच ली । नितिन के दोनों हाथ मेरे नितम्बों पर थे और उन्हे हल्के -हल्के सहला रहे थे उसने अपने होंठ आगे बढ़ाए और उन्हे मेरे माथे ,आँखों और चेहरे पर फिराते हुए वहाँ पर लगा शहद चूसने लगा नितिन ने एक - एक जगह को खूब चूस -चूस कर साफ किया फिर वो अपने होंठ मेरे चेहरे से हटाए बिना नीचे की ओर उन्हे फिराता हुआ बढ़ने लगा और जैसे ही उसके होंठ मेरी गर्दन पर आए वहाँ पर भी जोर -2 से चूमने और चूसने लगे नितिन के हर वार के साथ मेरी कामुकता बढ़ने लगी और साँसे भारी हो चली । अब नितिन के होंठ कहाँ -कहाँ जाएंगे इस रोमांच से धड़कनों ने भी रफ्तार पकड़ ली ,नितिन के हाथ अब मेरे नितम्बों को ना सिर्फ सहला रहे थे बल्कि बीच-बीच मे दबाने भी लगे थे ।