Chapter 02


हेल्लो दोस्तों, मैं आपका दोस्त आपके लिए लेकर आया हूँ प्रीति-मेरी बहन कहानी का दूसरा पार्ट।

पिछला भाग आप पढ़ ले इस कहानी को पड़ने के पहले।

अब कहानी में आगे पढ़े।

भीमकाय लिंग प्रीति की कामसीन योनि में 9 इंच का लंबा रास्ता तय कर रहा था। कई हजारों बार मैंने लिंग से प्रीति को बिना रुके और बिना अपनी झटकों की रफ़्तार कम किए ना जाने कितनी देर तक चौदता रहा।

प्रीति की मादक सिसकारीयाँ मेरे कानो में आती रही और मेरा जोश बढ़ता रहा। लगभग हर 15 मिनट में मुझे महसूस होता रहा कि प्रीति झड़ गई है, पर मैं रुका नहीं। अचानक मुझे लगने लगा कि अब मैं झड़ सकता हूँ तो मैंने प्रीति के कान में कहा कि क्या करना है? बाहर निकलना है कि अन्दर ही झड़ जाऊँ?

पर प्रीति तो पूरी तरह से बेसुध हो चुकी थी। मेरी आवाज़ सुनते ही वह होश मैं आई और पूछा "क्या बोल रहे हो भईया?"

मैंने दोबारा पूछा "तेरे अंदर ही डिस्चार्ज होना है या बाहर?"

यह सुन कर प्रीति बोली "नहीं बाहर नहीं निकालना है मेरे भोले भैया, अंदर ही चाहिए मुझे तुम्हारा प्यार, इस पल को इतना यादगार बना दो की हम कभी इसे ना भूल सके।"

यह सुनकर मैंने पूरी शक्ति लगाकर प्रीति को बाहों में जकड़ा और अपने लिंग के झटकों की रफ़्तार को किसी वाइब्रेटर के समान तेज कर दिया और कुछ मिनट बाद ही आख़िर एक तेज वीर्य की पिचकारी मेने प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में पूरे प्रेशर से छोड़ दी और लगभग उसी समय प्रीति भी अंतिम बार झड़ी। स्खलित होने के कुछ सेकंड पहले मैंने मेरे लिंग इतनी ज़ोर से प्रीति की योनि पर दबाया कि सारा का सारा लिंग योनि में समा गया और मेरे लिंग के ऊपर की हड्डी और प्रीति की योनि के ऊपर की हड्डी आपस में इस तरह टकराई मानो कुदरत कह रही हो कि इससे आगे बढ़ने की अब-अब कोई संभावना नहीं है तुम्हारे पास।

मेरे जोरदार दबाव के कारण प्रीति का शरीर भी बेड के ऊपर की और खिसकने लगा, जिसे मैंने उसके कंधों को पकड़ कर नीचे की और खिंच कर रोका।

बहुत दिनों तक सेक्स या हस्त मैथुन नहीं करने के कारण मानो वीर्य का गर्म ज्वालामुखी मेरे शरीर में जमा हो गया था, जो आज मेरी प्यारी-सी नाज़ुक बहन की योनि की गहराईयों में फट पड़ा था। प्रीति का स्खलन भी साथ में होने के कारण उसकी योनी की गहराई में गर्म लावे का सैलाब आ गया था। जिसका असर प्रीति के शरीर की प्रतिक्रिया से साफ़ जाहिर हो रहा था। उसका पसीने से लथपथ बदन जोर-जोर से झटके ले रहा था। शरीर रह-रह कर अकड़ रहा था। मैं बस जैसे तैसे उसे सम्भाले हुए था।

उस समय प्रीति के प्यारे मासूम चेहरे पर आ रहे चरमसुख (आॅरगेस्म) के भावों को देखने से मुझे मिल रहे चरमसुख के अहसासों को कई गुना बढ़ा रहे थे।

लगभग 5-10 मिनट तक हम दोनों के नग्न शरीर एक दूसरे में किसी नाग नागिन के जोड़े की तरह लिपटे रहे और मेरा वीर्य भी झटके ले के कर लिंग से निकालता रहा और योनि की गागर को भरता रहा। इस दौरान प्रीति भी अपने मुलायम हाथों से मेरी पीठ और कुल्हों को सहला कर और होठों के चुंबन से मानो मुझे शाबासी दे रही थी।

हम दोनों थकान और सेक्स का चरमसुख मिलने के कारण लगभग बेहोश हो गए थे।

मैंने घड़ी पर नज़र डाली तो देखा कि सुबह के पाँच बजे थे। मुझे विश्वास नहीं हुआ कि पिछले 5-6 घंटों से मैं प्रीति को लगातार चोद रहा था और प्रीति की भी हिम्मत और समर्पण की दाद देनी पड़ेगी की अपने भाई को अपना कौमार्य तो समर्पित किया ही साथ ही पहली बार में ही इतनी लंबी चुदाई को सहन भी किया।

अब हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर गहरी नींद में जा चुके थे। मेरा लिंग भी वीर्य स्खलन होने के बाद पता नहीं कब नर्म होकर धीरे-धीरे प्रीति की योनि से बाहर आ गया और योनि में भरा ढेर सारा द्रव्य भी बेड पर फैलता चला गया।

अगले दिन दोपहर लगभग 12 बजे तक हम दोनों एक दूसरे से लिपट कर सोते रहे।

सुबह प्रीति से पहले मेरी नींद खुली। मैंने पाया कि आधा दिन बीत चुका है और मेरी प्यारी बहन अब भी गहरी नींद में है और पूरी नग्न अवस्था में मेरे बेड पर किसी बहुत पसंदीदा तोहफे की तरह सजी हुई है। मैंने बहुत ही प्यार से उसके माथे को चूम कर उसके गालों को सहलाते हुए उसे उठाया।

वह घबरा कर अचानक उठ कर बैठ गई और मुझसे नज़दीक पाकर तुरंत मुझसे लिपट गई।

मैंने आश्चर्य से पूछा "क्या हुआ मेरी जान?"

वह बोली "रात में जो हुआ क्या वह सब हक़ीक़त था या कोई सपना था भैया?"

मैं मुस्कराते हुए बोला "वह सपना था"।

यह बोल कर मैंने अपने बेड की और इशारा किया और उठ कर खड़ा हो गया।

उसने मेरे नंगे बदन पर नज़र घूमाते हुए बेड पर नज़र डाली।

सारा बिस्तर बेतरतीब हो रहा था। बेडशीट पर खून के निशान थे जो प्रीति का कौमार्य भंग होने के कारण लगे थे और ढेर सारे वीर्य और योनि से निकलने वाले पदार्थ के दाग थे। उसके बाद अचानक प्रीति का ध्यान ख़ुद के बदन पर गया, जो अब भी पूरी तरह नग्न था। उसके हाथ अनायास ही अपने विशाल सख्त स्तनों को छुपाने की नाकाम कोशिश करने लगे।

अब उसकी आँखों के आगे रात का सारा घटना क्रम घूमने लगा। मैं बड़े प्यार से उसके चेहरे के पल-पल बदलते भावों को देख रहा था।

कुछ पलों तक सोचने के बाद प्रीति लड़खड़ाती आवाज़ में बोली "मेरे कपड़े कहाँ है भैया?"

इस बार भी मैंने बेडरूम के एक कोने में पड़े उसके कटे-फटे गाउन, ब्रा और पैंटी की और इशारा किया।

नग्न अवस्था में ही वह वहाँ तक पहुची और कटे हुए ब्रा और गाउन के टुकड़े को उठा कर मुझे गुस्से से देखने लगी।

मैं अब भी उसे देख कर मुस्करा रहा था।

कुछ सोच कर वह चलते हुए मेरे करीब आई और मेरे चेहरे के पास अपना प्यारा-सा खूबसूरत चेहरा नज़दीक लाकर धीरे से बोली "तुमने बड़ी ही चालाकी और खूबसूरती से अपनी सगी बहन को पाने के लिए ये जाल बुना था और बड़ी आसानी से कामयाब भी हो गये।"

"है ना मेरे प्यारे भैया?"

मेने भी अपने चेहरे को उसके थोड़ा और नज़दीक ले जाकर बड़े ही आत्म विश्वास से कहा "अपने भाई की चालाकी पर कोई शक है क्या मेरी प्यारी बहन?"

इस जवाब का इनाम मुझे तुरंत ही मिल गया।

प्रीति ने अपने एक हाथ से मेरे बालों को पकड़ कर मेरे सर को अपने चेहरे की और खींचा और

एक बहुत ही प्यारा-सा होंठो का चुंबन शुरू कर दिया और अपनी ज़ुबान मेरे मुंह में घुमाने लगी, साथ ही उसके दूसरे हाथ से मेरे शिथिल लिंग को सहलाने लगा।

मैं भी कहाँ कम था, मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसके गोल-मटोल बड़े-बड़े कुल्हों में अपनी उंगलियों को दबाते हुए उसका पूरा बदन अपनी और खिंच लिया और चुंबन में पूरा योगदान देने लगा।

कुछ ही सेकंड मेरा लिंग प्रीति के हाथ के पकड़ की क्षमता से बाहर हो गया। जिन हाथो से कुछ सेकंड पहले प्रीति ने पूरे लिंग को जकड़ रखा था, वहीं लिंग अब इतना मोटा और लंबा हो गया था कि प्रीति के हाथों की उँगलियों के घेरे में लिंग की आधी गोलाई ही आ रही थी।

यह देख कर प्रीति ने तुरंत ही अपने हाथों को लिंग से हटाया और अपने दोनों हाथो की माला बना कर मेरे गले में डाल दी और चुंबन लेते हुए मुझ पर लगभग झूलने लगी। मैंने भी तुरंत उसके कुल्हों सहारा देते हुए उसके पूरे शरीर को ऊपर उठाया और उसके दोने पैरों को मेरी कमर के आसपास बाँध कर प्रीति को लगभग अपने मज़बूत लिंग पर बैठा लिया।

प्रीति ने इस पोजिशन में आने की कल्पना भी नहीं की थी। उसने महसूस किया कि इस वक़्त वह मेरे सख्त लिंग पर बैठी है। उसने मेरे लिंग की ताकत जाँचने के लिए मेरे गले में पड़ी अपने हाथों की माला को ढीला किया, जिससे प्रीति का लगभग सारा वज़न फिसलकर मेरे लिंग पर आ गया।

मुझे भी बहुत आश्चर्य हुआ, क्योंकि प्रीति का वज़न कम नहीं था। विशाल स्तन, कुल्हों और गदराये बदन के कारण मेरे अनुमान से प्रीति का वज़न 65-70 किलो के लगभग होगा। जो इस वक़्त मेरे विशाल लिंग पर रखा हुआ था। हम दोनों ने ही लगभग एक साथ आश्चर्य से एक दूसरे को देखा।

प्रीति चेहरे पर आश्चर्य के भाव बना कर बोली "तुम तो सुपरमेन हो भैया, इतनी ताकत कहाँ से आई तुम्हारे अंदर।" ऐसा कह कर प्रीति ने अपने हाथ अपने कुल्हों की और हाथ ले जा कर मेरे लिंग का मुआयना किया तो और भी आश्चर्यचकित हो गई। उसके हाथों में 2-3 इंच बाहर को निकला लिंग भी आ गया।

अब तो उसका मुह खुला का खुला रह गया।

वह आश्चर्य के भाव से मेरी और देखती रह गई। कुछ पलों के बाद लगभग एक साथ हम दोनों की ही हंसी छूट गई।

मैंने प्रीति मज़ाक के लहजे में पूछा "करना है रॉकेट की सवारी?"

प्रीति "नहीं, अभी मुझे नहाना है।"

देखो रात भर में क्या हाल कर दिया तुमने मेरा।

मेरे अरमानों को तो जैसे ब्रेक लगा दिया गया हो।

पर फिर मुझे एक आइडिया सूझा।

मैं प्रीति को उसी पोजीशन में उठाकर चलते हुए बाथरूम में ले गया और वह मेरे चेहरे को देखती रही।

शाॅवर के नीचे ले जाकर मैं प्रीति से बोला "नहाना और रॉकेट की सवारी करना दोनों एक साथ भी तो किया जा सकता है।"

प्रीति ने शरारती अंदाज़ में पूछा "भला वह कैसे होगा।"

जवाब में मैंने एक हाथ से गर्म पानी का शाॅवर चालू कर दिया और प्रीति को चुंबन करने लगा।

दोनों के बदन भीगने लगे और गीले बदन के स्पर्श के अहसासों से अलग ही सुख मिलने लगा।

प्रीति अब तक आगे की पोजिशन को समझ चुकी थी।

वह अब भी मेरे गले में हाथ लपेट कर मेरे लिंग पर बैठी थी।

मैंने चुंबन लेते हुए ही प्रीति के मांसल कुल्हों को सहारा देते हुए उसके बदन को ऊपर की और उठाया। इस क्रिया में प्रीति ने भी मेरी मदद की और मेरी कमर में उलझे पैरों और गले में लिपटे हाथों की मदद से अपने शरीर को उपर की और उठा कर रोक लिया।

अब मेरा लिंग प्रीति के भार से मुक्त हो गया।

हालांकि इस नई सेक्स पोजीशन की कल्पना से ही प्रीति की योनि से बहुत मात्रा में प्रीकम बहना शुरू हो चुका था, ऊपर से शॉवर के पानी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी।

मैंने अपने लोहे की तरह कठोर हो चुके, भीगे हुए और आसमान की और निशाना साध रहे लिंग का मुहाना पकड़कर प्रीति की योनि की तरफ़ मोड़ दिया और उसके कुल्हों से अपने हाथ का सहारा हटा लिया।

अब प्रीति की बारी थी और वह समझ भी चुकी थी। पर वह डर रही थी कि कहीं ज़्यादा दर्द तो नहीं होगा।

मैंने उसे आँखों से इशारा करके नीचे वज़न देने को कहा।

वह झिझकते हुए मेरे गले से अपने हाथों की पकड़ को ढीला करने लगी जिससे मेरा लिंग उसकी योनि में उतरने लगा। वैसे मेरी रात में की गई मेहनत के कारण अभी प्रीति को ज़्यादा दर्द नहीं होना था पर इस नई पोजीशन के कारण वह असहज थी।

जैसे-जैसे लिंग योनि के अंदर उतर रहा था प्रीति का मुह खुलता जा रहा था और उसकी दर्द भरी आवाज़ तेज होती जा रही थी। पर 4-5 इंच पर ही प्रीति ने हार मान ली और मेरे गले में पड़ी हाथों की माला को फिर से कस लिया और उसका नीचे की और सरकता बदन अचानक रुक गया।

जिससे मुझे मिल रहे चरम सुख में थोड़ी रुकावट आ गई। मैंने नाराज होने का भाव बना कर प्रीति से इशारे में कारण पूछा।

प्रीति बोली "इस पोजिशन में थोड़ा दर्द हो रहा है भैया, थोड़ा तो रहम करो मुझ पर।"

मैंने भी उसी स्थिति में प्रीति के कुल्हों को सहारा देकर थोड़ा ऊपर नीचे करने लगा और प्रीति के भीगते बदन को चूमने लगा और उसके होंठो पर भी चुंबन करने लगा। वह भी मुझे सहयोग करने लगी।

कुछ मिनट तक इस क्रिया को करते हुए अचानक मैंने मेरे गले में कसी प्रीति के हाथो की माला को खोल दिया जिससे प्रीति के बदन का सारा भार अचानक एक झटके से नीचे मेरे लिंग पर आ गया।

नतीजा आप समझ सकते हो।

एक पल में ही मेरा सारा का सारा लिंग प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में समा गया। प्रीति की तो मानो साँस ही कुछ पल के लिए रुक गई हो।

उसकी जोरदार चीख निकली और आँखों की पुतलियाँ मानो गुम हो गई हो।

इस वक़्त प्रीति का सारा भारी बदन मेरे सख्त लिंग रूपी खूँटे पर टंगा हुआ था और मैंने बस उसकी कमर को पीछे से सहारा दिया हुआ था, जिससे वह पीछे की और नहीं गिर रही थी। प्रीति को अपने आप को सम्भालने में कुछ समय लगा। पर सम्भालने के तुरंत बाद वह मेरे सीने पर अपनी मुट्ठी से बहुत सारे प्रहार करते हुए कहने लगी "तुम तो बड़े निर्दय हो भैया, अपनी बहन की कुछ तो फ़िक्र करो जान ही ले ली तुमने तो मेरी।"

मैं बोला "तुम ने ही तो रात में कहा था कि मैं तुम्हारी जान ले सकता हूँ।"

मेरी बात सुनकर वह भोली सूरत और आँखों में गुस्सा करते हुए कुछ देर मुझे देखती रही और फिर मेरे गले में हाथों की माला कसते हुए मुझे चुंबन करने लगी। साथ ही हाथों और मेरी कमर में लिपटे पैरों के सहारे से मुझसे लिपटे हुए बदन को ऊपर नीचे करने लगी।

मैंने भी उसकी कमर को पकड़ कर उसका सहयोग करने लगा।

मेरा विशाल सख्त 9 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लिंग उसकी अत्यधिक कसी हुई योनि में फिर सफ़र करने लगा। शाॅवर से गिरता गुनगुना पानी हम दोनों कर शरीर को भिगा कर मजे को कई गुना बढ़ा रहा था।

ऊपर नीचे होने के दौरान प्रीति के भीगे बड़े-बड़े स्तन मेरे सीने से घर्षण कर रहे थे।

उसके भीगे हुए लंबे और घने बालों ने मेरे और उसके बदन को ढक रखा था। शावर से प्रीति के सर से चेहरे और होंठो पर फिसलते पानी के कारण उसके भीगे होंठो को चूसने में कुछ अलग ही मज़ा आ रहा था।

जितनी बार प्रीति का भीगा बदन ऊपर उठ कर छप्प से मेरे लिंग पर गिरता तो हम दोनों के मुह से कामुक सिसकारी निकल जाती।

बीच-बीच में मैं प्रीति के दोनों भीगे स्तनों के निप्पलों को चूस कर और ज़ोर से मसल कर उसकी उत्तेजना को और बढ़ाता रहा।

यह छपा-छप चुदाई का सिलसिला लगभग एक घंटे चलता रहा। एक घंटे बाद प्रीति स्खलित हो गई और साथ ही में भी।

स्खलित होते ही वह मेरे बदन से कस कर लिपट गई और उसने ऊपर नीचे होना बंद कर दिया। पर लिंग रूपी खूँटे पर वह अब भी टंगी हुई थी।

कुछ समय बाद जब मेरा लिंग नर्म पड़ने लगा तो मैं प्रीति से बोला "रॉकेट की सवारी हो गई हो तो नीचे उतर जाओ मेरी प्यारी बहन।"

वह मेरी और देख कर मुस्कराते हुए मेरे बदन से उतर गई। लगभग डेढ़ घंटे के बाद उसने अपने पैर ज़मीन पर रखे। उतारे ही वह बोली "थैंक्स भैया, इतनी अच्छी सवारी करवाने के लिए।"

ऐसा कहकर वह बड़े ही सेक्सी अंदाज़ में चलते हुए अपने कमरे में चली गई और मैं उसके मटकते कुल्हों अपने से दूर जाते देखता रह गया।

अब हम दोनों ने फ्रेश होकर बेडरूम को व्यवस्थित किया और डायनिंग रूम में आकर बैठ गए। काफ़ी भूख लगने के कारण पहले तो प्रीति ने खाना बनाया और हम दोनों ने साथ ही खाया। बाहर बारिश रुक चुकी थी। दोपहर के तीन बजे थे हमने अब तक आपस में किसी भी विषय पर बात नहीं की थी। मुझे लगा शायद इतना सब होने के कारण प्रीति को पछतावा हो रहा है और शायद वह भी मेरे बारे में यही सोच रही थी।

मैं सोफ़े पर बैठ कर मोबाइल चलाने लगा। प्रीति भी यह देख कर अपना मोबाइल लेकर मेरे नज़दीक बैठ गई। अचानक मैंने देखा कि उसने मम्मी-पापा को कॉल कर दिया। मैं बहुत घबरा गया।

वह उनसे बात करते हुए दूसरे कमरे में चली गई और मैं उनकी बात सुन नहीं पाया।

कुछ देर बाद वह फिर मेरे पास आकर बैठ गई और बोली "मम्मी-पापा तीन दिन बाद वापस आ रहे हैं, हमारे पास शायद यही तीन दिन है, हम भाई बहन होने के कारण हमेशा तो साथ नहीं रह सकते, पर इन तीन दिनों में तुम मुझे इतना प्यार दो की मेरा होने वाला पति ज़िन्दगी भर भी ना दे सके।"

मैंने सोचा है कि आने वाले तीन दिन हम दोनों को एक पति पत्नी की तरह बिताना चाहिए। एक नए शादी शुदा जोड़े की तरह। इसके बाद हम दोनों फिर भाई बहन की तरह आम ज़िन्दगी जियेंगे। यह राज हम दोनों के बीच ही रहेगा।

इन तीन दिनों मैं तुम्हें मुझसे जो कुछ भी चाहिए मैं तुम्हें दूंगी। तुम मेरे साथ वह सब कुछ करने के लिए आजाद हो जिससे तुम्हें ख़ुशी और संतुष्टि मिलती है। यह तीन दिन हमारे हनीमून ट्रिप की तरह होंगे जो हमे घर में ही मनाना है। यह मैं सिर्फ़ तुम्हारी ख़ुशी के लिए कर रही हूँ।

मैं उसकी बातें सुनकर दंग ही रह गया। इतनी ख़ुशी महसूस हुई कि बता नहीं सकता।

मैं बोला "मेरी प्यारी बहन, तुमने तो मुझे सारी खुशियाँ, मेरे सारे सपने पहले ही साकार कर दिए। अब मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि यह सब मुझे तीन दिनों तक और मिलने वाला है।"

प्रीति "हाँ भैया, केवल तुम्हारी ख़ुशी के लिए।"

मैं "और तुम्हें भी ख़ुशी मिलेगी ना?"

प्रीति "बिलकुल मिलेगी भईया, क्यों नहीं मिलेगी? तुम्हारे जैसा ताकतवर मर्द दूसरा कोई मुझे मिलेगा भी नहीं ज़िन्दगी में।"

मुझे यह सुनकर बहुत ख़ुशी हुई और मैंने प्रीति को गले से लगा लिया।

अब आगे के तीन दिनों की दास्तान अगली पोस्ट में दोस्तों...

उम्मीद है कि आप को कहानी पसंद आ रही है।

मैं कोशिश कर रहा हूँ कि अगली पोस्ट भी जल्द पेश कर सकूं...

कृपया कमेन्ट करके फीडबैक दें...

धन्यवाद...​
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