Episode 54
मोहन ने उसे अपनी गोद मे उठा लिया और हवा में टांग लिया और पीछे से विनीत आ गया । लेकिन दोनों ज्यादा देर तक इस पोजीशन में उसको चोद नही पाए । फिर मोहन नीचे लेटा उसके ऊपर लिजेल उल्टा मुहँ करके और आगे से लिजेल की चूत में विनीत । धुंवाधार धक्के पर धक्के वाली चुदाई शुरू हुई और अब लिजेल का कोई वजूद नही था दो लंडो की उबलती आग के तपिश के आगे बस वो मांस का लोथड़ा भर थी । ये कुछ पल ऐसे होते है जब मर्द सब भूल जाता है उसे बस औरत के जिस्म में उतरना है और अपनी सारी गर्मी उतारने तक पेल पेल के चुदाई करनी है । इन पलों में न औरत न मर्द किसी को किसी मर्यादा का ख्याल नही रहता । औरत जमकर चुदवाती है और मर्द जमकर चोदते है । मोहन और विनीत इस वक्त अपना वजूद भूल चुके थे न उन्हें लिजेल याद थी उन्हें बाद अपने लंड की उबलती प्यास बुझानी है । धकापेल चुदाई से लिजेल की भी हालत और पतली होने लगी लेकिन अभी आराम का समय नही था ।
लिजेल - फ़क मी बॉयज हार्डर । मोर मोर हार्डर । फ़क लाइक नेवर बिफोर फ़क यु एनीवन । फ़क लाइक यु विल नेवर फ़क एनीवन । यस बेबी कंमान बेबी फक में हार्डर । आई कैन फील योर कॉक ।फ़क फ़क फ़क फ़क . . . . ।
विनीत - यस येआ यस यस यस यस बेबी , योर पुसी इस सो प्यासी सो प्यासी, मैं प्यास बुझाऊंगा ।
दोनों की कमर बराबर स्पीड से हिल रही थी । चुत और गांड की सुरंगे तो आग की भट्ठी बानी हुई थी । तेजी से रगड़ खाते लंड आग के गोले बने हुवे थे । तीनो का पसीना टप टप जमीन पर बरस रहा था । लिजेल के चुदते चुदते हाथ पांव ढीले हो गए थे ।
मोहन ने धक्कों के स्पीड बढ़ा दी - लिजेल की गांड पर इतने जोरदार धक्के उफ्फ्फ वो सोच भी नही सकती थी लेकिन पड़ रहे थे एक सेकेंड में तीन बात गांड का सफर करके लंड लौट रहा था । मोहन -- आआआआआ हहहहहहहह बहुत कसी गांड है मैडम तुमार, तेल निकाल दिया चूतड़ों से गांड मारने में । लंड तीन दिन तक दर्द करेगा इतनी कसी गांड चीरी है । आह लो मैडम मलाई चखो, साहब के चोदने के बाद भी जान निकल गयी आपकी गांड मारने में । आआआआह हहहहहहहह लो मलाई लो पांच पिचकारियों उसने अपनी गोलियों में मथते आखिरी लावे की बूंदे5 भी लिजेल की गांड में उड़ेल दी । आग से जल्दी गांड में ये सफेद लावा जैसे रेगिस्तान में बरसती फुहार जैसा । जमीन पर लेता मोहन वही निढाल हो गया ।
रीमा के जिस्म ने भी खड़े खड़े जवाब दे दिया था | उसने तौलिये से खुद को पोंछा और बिस्तर पर बाथरोब पहन लुढ़क गयी |
विनीत - बेबी यु वांट suck ।
लिजेल - नो जस्ट फ़क ।
विनीत ने तेजी से अपना लैंड निकाल मोहन का लंड हटा लिजेल की गांड में पेल दिया ।
विनीत - आई एम कलेक्टिंग वाइट क्रीम इन योर टाइट ASS ।
लिजेल - आई लव तो ईट ।
विनीत ने उसकी गांड में सरपट अपना लंड दौड़ाना शुरू कर दिया और 2 मिनट की रेस के बाद उसने भी पिचकारी छोड़नी शुरू कर दी । दो लोंगो के सफेद रस को कुछ देर बाद कप में निकाल कर लिजेल ने विनीत के लंड पर लगाकर काफी देर तक चूसती चाटती रही | जब जब मस्ती में अपने चूतड़ हिलाती, दर्द की करक से जांघे काँप जाती | लिजेल की मारने के बाद मोहन तो तुरंत ही सोने लगा था लेकिन लिजेल ने विनीत की रात यादगार बनाने को दो बजे तक जगती रही । मोहन के सोने बाद दोनों ने दो एनर्जी ड्रिंक ली और फिर गांड में क्रीम लगाकर विनीत के लंड से एक घंटे तक खेलती रही चाटती रही चूसती रही फिर उसे गांड में धीरे धीरे डाल कर अपने गाड़ का दर्द चेक करती रही । आखिर में विनीत ने नॉन स्टॉप 25 मिनट उसकी गांड में अपना लंड पेला । ये रिकॉर्ड था इतनी देर तक लगातार कभी विनीत ने चुदाई नही करी । स्प्रे और क्रीम का असर खत्म होने के बाद उसका छेद परपराने लगा था उसमें दर्द भी हो रहा था लेकिन उसके बाद भी चुदती रही । सिर्फ विनीत के लिए । सिफ विनीत के लिए अपनी जिस्म की सुरंगो की परवाह किये बिना चुदती रही । जब विनीत पिचकारी की कुछ बुँदे छोड़ निढाल हो गया ।
लिजेल - अब तो खुश हो । मतलब तुम मुझे दर्द में देखना चाहते थे |
विनीत - नही ऐसा नही है ।
लिजेल - झूठ मत बोलो, तुम दुबारा भी मेरी गांड मार सकते थे लेकिन तुमने मोहन से कहाँ क्योंकि तुमने मेरे चेहरे पर चुदते वक्त दर्द देखना था । अब तो देख लिया अब तो खुश हो ।
विनीत - आई एम सॉरी जब पहली बार तड़पी थी गांड में लंड जाते वक्त तब मै ठीक से देख नही पाया था ।
लिजेल - कहा तो होता एक बार, बिना स्प्रे के ही मरवा लेती । बहुत ताकत होती है दर्द सहने की हम औरतों में ।
विनीत निढाल हो कर नंगा ही लिजेल की बाँहो में ही सोने जा रहा था ये उसके साथ उसकी आखिरी रात थी अगले हफ्ते उसकी सगाई हो जाएगी और वो शादी के बाद अपनी वाइफ को चीट करना नही चाहता था । लिजेल भी नंगी ही थी । दोनों ने आँखे मूंदी और गहरी नींद में जाने का सफर तय करने लगे । लिजेल ने मोबाइल में टाइम देखा तो पौने तीन हो रहा था । मन मे ही सोचा मोहन के सोने के बाद हम दोनों दो घंटे एक दुसरे के जिस्म से खेलते रहे । हुस्न और वासना के खुले खेल में समय कौन देखता है ।
विनीत की झपकी लगी ही थी, कमरे के फ़ोन की घंटी बजी । बाहर का चौकीदार तेज सांस के साथ - साहब सूर्यदेव जी आये है बहुत सारे गोली असलहे के साथ ।
इससे पहले वो गॉर्ड आगे कुछ कहता विनीत को एक आवाज सुनाई दी - फ़ोन रख मादरचोद, तेरे साहब की आज सबके सामने अपने कुत्ते से गाड़ मरवाऊंगा । साला मुझसे दलाली करने चला था । अब सिखाता हूँ डॉक्टर को सबक ।
विनीत ने फ़ोन वैसे ही छोड़ दिया और रीमा के कमरे के कमरे की तरफ भागा | उसे अपने सभी दरवाजो के इलेक्ट्रोनिक तालो का मास्टर कोड पता था | जल्दी ही उसने दरवाजा खोला , वो पूरी तरह नंगा था, रीमा भी उसकी चुदाई देख थककर सो गई थी, रीमा ने जिस्म पर सिर्फ बाथरोब लपेटा था । उससे तेजी से झिंझोड़ा ।
रीमा ने मिलमिलाते हुए आंख खोली विनीत को नंगा देखकर - हआआआआयय ये क्या है । वो तेजी से बेड के सिरहाने की ओर खिसक गई ।
विनीत - मैडम सूर्यदेव आ गया है । आपको भागना होगा नही तो हम सबको मार देगा ।
रीमा - क्या कैसे. . . कब कहाँ से ? मैं कही नही जाऊँगी । वो यहाँ कैसे आया |
विनीत - मैडम टाइम नही है अभी निकालो फिर बताऊंगा अगर जिंदा रहे तो । सूर्यदेव के साथ हथियार बंद आदमी है ।
रीमा - लेकिन वो यहाँ कैसे आ सकता है ? हे भगवान ये मुसीबत कब मेरा पीछा छोड़ेगी |
रीमा - मेरी रोहित से बात हो चुकी है | रोहित भी पूरी सिक्युरिटी फ़ोर्स लेकर आ रहा है ।
विनीत - कौन रोहित, कौन सी सिक्युरिटी , यहाँ सब सूर्यदेव की मुट्ठी में है |
रीमा - मेरा देवर रोहित, उससे मेरी बात हो गयी है, वो शहर से निकल चूका है |
विनीत - मैडम जब तक आपकी फ़ोर्स आएगी हम दोनों मर चुके होंगे । सूर्यदेव नीचे आ गया है ।
रीमा तेजी से उछली और फर्श पर आ गयी ।
रीमा - वो यहाँ कैसे आ गया |
विनीत ने सर झुकाकर - अभी यहाँ से निकलिए वरना कहानी सुनाने के लिए जिन्दा नहीं बचेगे |
रीमा - मै यहाँ से कही नहीं जाउंगी |
तभी नीचे से धायं गोली चलने की आवाज आई |
विनीत - ये नामुराद इतनी जल्दी यहाँ कैसे आ गया |
विनीत ने वही पड़ी गीली तौलिया उठा ली जो रीमा ने नहाकर सूखने के लिए फैलाई थी । तेजी से उसके कमरे से बाहर निकल कर, एक केबिन खोल और फिर संकरे गलियारे से सीढ़ियों की तरफ आ गया । जितना तेज उतर सकते थे नीचे उतरे । फिर विनीत उसे तहखाने में ले गया । एक तेजी एक तरफ भागा और उसी तेजी से वापस आ गया । आगे से दाहिने जाकर कुछ सीढियां है उनको चढ़कर एक दरवाजा पड़ेगा । ये बिल्डिंग से बाहर निकलने का खुफिया दरवाजा था ।
विनीत - ये रही उसकी चाभी । उसे खोलकर सीधे पगडंडी पर तीन किमी जंगल की तरफ चलती जाना , वहाँ एक आदमी मशरूम बेचता है उसको मेरा नाम बताना । और कहना डॉक्टर साहब के लिए मशरूम बचाने है । इसका मतलब है तुम्हे छिपने की जगह पहुंचा कर वो मुझसे मिलने आएगा । मैं उसे सब समझा दूँगा ।
रीमा - लेकिन वो यहाँ आया कैसे ।
विनीत - मैं तुमसे झूठ नही बोलूंगा लेकिन मेरे रियल स्टेट में एक दोस्त है दबंग टाइप का, उसे और मुझे तुमारी असलियत मालूम है । तुमने मुझे जो बताया था वो झूठ था । सूर्यदेव तुमको ढूंढ रहा है और हम उससे कुछ पैसा कमाने चाहते थे लेकिन मेरे दोस्त ने बातों बातों में उसे बता दिया कि तुम मेरे साथ हो मिस रीमा ।
रीमा - मिसेज रीमा दुष्ट नालायक , हाय तुम मुझे पैसे लेकर उसे बेचने वाले थे ।
विनीत - आपने भी तो झूठ बोला, क्या है ऐसा जो सूर्यदेव आपके पीछे हाथ धोकर पड़ा है ।
रीमा - लंबी कहानी है लेकिन तुम धोखेबाज, मीठी मीठी बातों में मुझे बहला फुसला कर अपना उल्लू सीधा कर रहा था और रोहित आता ही होगा सिक्युरिटी फ़ोर्स लेकर । तड़ाक ये तुमारी दगाबाजी की लिये ।
सिर्फ एक थप्पड़ मारा है क्योंकि मुझे पता था तुम मुझे सूर्यदेव को नही देने वाले थे बल्कि जब तुमने मुझे नहाते हुए नंगा देखा तुमारी नियति मुझ पर तभी ही खराब हो गयी थी और इसीलिए बेदम होने के बाद भी लिजेल की नॉन स्टॉप गांड रात के दो बजे मारी । मेरे चूतड़ और नंगी पीठ अभी तक तुमारे दिमाग से उतरी नही है । ऐसा कमाल का फिगर देख तुमारे होश उड़ गए थे ।
विनीत - वैसे आप हो भी कमाल, कभी पीछे से अपना फिगर देखा है | १ भी ग्राम ज्यादा फैट नहीं है | 18 साल जैसी लड़की की कमर और जवान औरत जैसे भरे पुरे चूतड़ | आप के इस रूप को देखकर तो बुड्ढ़े भी जवानी का अहसास करने लगेगे | उर्वशी मेनका जैसी अप्सरा जैसा जिस्म लेकर आई हो रीमा जी | किसी भी आदमी की रातो की हुस्न परी हो आप | अच्छा आपको कैसे पता की मै अपने कमरे में क्या कर रहा था | उधर लिजेल की कराहे जा रही थी क्या ?
रीमा - खाई खोदने वाला खुद ही उसमें गिरता है जाकर । जहाँ से तुम दूसरी औरतो को देखते थे वही से मैंने तुमारी हवस लीला देखी । बेचारी की गांड फाड़ के ही रख दी तुम दोनों ।
विनीत - शिट तुमने सब देख लिया शिट शिट शिट ओह गॉड।
रीमा - तुमने भी तो मेरा सब देख लिया, ऊपर से नीचे तक बाथरूम में । आगे की तो झलक ही मिली थी ।
विनीत - यस मिसेज रीमा
विनीत -मिसेज रीमा तुम बहुत बोल्ड हो, ये जानते हुए भी मैंने आपको पूरा नंगा देख लिया, असल में मैंने नहीं देखा आपने दिखाया | उसमे मेरी कोई गलती नहीं है, जब आपने तौलिया उठा लिया था तो फिर उसे ऊपर नीचे करके पहले जांघे और चूत और फिर चूंची दिखाने की क्या जरुरत थी |
रीमा - हाय तुम तो पूरी बेशर्मी पर उतर आये |
विनीत - लोजी उसके बाद में पलट कर चूतड़ दिखाने की क्या जरुरत थी | इतना सब होने के बाद भी आप बाथरूम में नहाती रही, सच में बोल्डनेस बहुत है आपके अन्दर |
रीमा - बोल्डनेस गयी भाड़ में, अभी तो निकलना होगा ।
विनीत ने आगे बढ़कर रीमा का हाथ थाम लिया - ट्रस्ट मी मेरा आपको किसी तरह का नुकसान पहुचाने का कोई इरादा नही था न ही आपको किसी मुसीबत में फंसाने के इरादा था । सच में दिल से कह रहा हूँ आप बहुत खूबसूरत है, आपकी एक झलक ने ही दिल में आग लगा दी है |
रीमा - बकवास बंद करो, इतनी काली रात में एक अकेली औरत और जंगल | यहाँ डर में मारे बुरा हाल है तुझे रोमांस सूझ रहा है |
विनीत रीमा के करीब आता हुआ - सच में यकीं मानिये मेरा आपको किसी तरह का नुकसान पहुचाने का कोई इरादा नही था न ही आपको किसी मुसीबत में फंसाने के इरादा था ।
रीमा - सुनसान रात में अनजाने राह पर जंगल जा रही हूँ मुसीबत और कहते किसको है ।
विनीत - भरोसा करिये मेरा आदमी आपके लिए सारी व्यवस्था कर देगा । ये मोबाइल रख लीजिए लेकिन सिम निकाल कर फेंक देना । मैं नया ले लूँगा । इससे अंधेरे रास्ते मे रोशनी का सहारा मिल जाएगा । रीमा जाने वाली थी ।
विनीत - मैडम एक मिनट और
रीमा झुन्झुलाई - अब क्या है |
वो भाग के गया और जंगल पहनने वाले जूते का एक जोड़ा किसी कोने से उठा लाया । जूते धूल से सने हुए थे ।
विनीत - मैम पैर उठाइये । ये आपको जंगल मे जमीनी कीड़ो से बचा कर रखेगा ।
रीमा - बहुत धूल जमी है ।
अभी इतना टाइम नही है - विनीत बोला ।
रीमा ने वो हार्ड लैथर के जूते पहने और गोली की रफ्तार से निकल गयी । तीन किमी तो उसने भाग के ही पूरे कर लिए । रास्ता बिल्कुल सीधा था इसलिए कोई दिक्कत नही हुई। वहां पहुंच कर उसने मोबाइल की टॉर्च जलाई और आगे का रास्ता देखने लगी । एक पगडण्डी पर 100 कदम चलने पर एक झोपड़ी दिखाई पड़ी ।
रीमा - मशरूम चाहिए, डॉक्टर विनीत ने भेजा है ।
झोपड़ी से कोई आवाज नही आई । रीमा ने दो तीन बार आवाज दी ।फिर कुछ देर वही वेट करती रही और निराश कदमों से लौटने लगी । अभी मुश्किल से 10 कदम ही चली होगी ।
आदमी - डॉक्टर साहब के लिए मशरूम बचाने है ।
रीमा तेजी से पलटी - हाँ हाँ वही जल्दी जल्दी में भूल गयी ।
आदमी - नाम ।
रीमा - रीमा ।
आदमी - इतनी रात को क्या मुसीबत . । वो आगे कुछ बोल पाता ।
रीमा - सूर्यदेव ।
आदमी बड़बड़ाया - जब से ये शैतान इस कस्बे पैदा हुआ है रात को भी चैन नही है ।
आदमी - रुको, लालटेन जला लू चलता हूँ फिर । बिस्तर तो लायी नही होगी ।
रीमा - नही ।
आदमी - ये लाइट बंद करो ।
रीमा ने मोबाइल की टॉर्च बंद कर दी । आदमी लालटेन जला कर आया, उसके दूसरे हाथ मे दो लाठी थी । असल मे एक लाठी और दूसरी भाली थी ।
लाठी रीमा को देता हुआ - ये पकड़ो , जंगल मे कई बार जरूरत पड़ती है ।
रीमा उसके साथ पीछे पीछे चल दी । लगभग आधे घंटे चलने के बाद , एक लकड़ी के पुराने खोखे में साथ लाया कम्बल बिछा दिया ।आदमी - पौ फटने में बस अब पहर भर की देर है । तब तक यही आराम करो , सुबह आऊँगा नाश्ता लेकर, अगर देर हो जाये तो इधर उधर निकल मत जाना । आगे जंगल घना है और उधर जंगली जानवर से ज्यादा खतरनाक अघोरी है, जिंदा ही तुम्हें लाश बना देगें और फिर तुमारे जिस्म पर साधना करेंगे । चुपचाप यही पड़ी रहना, यहाँ कोई नही आएगा।
आदमी चला गया, रीमा उस घनघोर जंगल के घटाटोप अँधेरे में, उस लकड़ी के ढांचे में दुबक गयी । उसने आँखे तो बंद की लेकिन सो नही पाई । बार बार उसे लग रहा था रोहित अब तक कस्बे में पँहुच उसे ढूंढ रहा होगा ।
अगली सुबह वो आदमी लाठी टेकता लगभग 8 बजे आया - रीमा को उजाला निकलने के बाद हल्की नीद आ गयी थी | बूढ़े आदमी ने रीमा को घूर कर देखा | असल में सिर्फ बाथरोब पहनकर रीमा भागी थी | अभी वो जैसे लेटी थी उससे उसकी दोनों जांघे शुरआत में आखिरी तक बाहर झांक रही थी |
बुढा आदमी - लगता है बहुत जल्दी में थी, कपड़ा नही नहीं पहन पायी | ये लो चार पराठे है और लस्सी और ये पानी अब शाम को खाना मिलेगा और तब तक यही पड़ी रहना | पानी हिसाब से खर्च करना | अब शाम को ही लेकर आऊंगा | देखते है डॉक्टर साहब क्या प्लान बताते है | और ये नंगी जांघे वान्घे ढककर रखो | इ नंगई यहाँ नहीं चलती |
रीमा - कपड़े है ही कहाँ |
बुढा - कपड़े नहीं है कम्बल है आधा बिछाओ और आधा लपेटो |
तुम रईसों को का पता कैसे कम में गुजारा किया जात है |
इतना कहकर वो उसी पगडण्डी पर चला गया | जंगल इतना घना था की सूरज की रौशनी बहुत कम जमीन तक आ रही थी | रीमा ने खाना खाया और फिर लुढ़क गयी | सोने की कोशिश करी लेकिन नीद नहीं आई | खोखे से बाहर निकल आई | तभी कुछ देर इधर उधर घूमती रही | तभी उसे शोरगुल सुनाई दिया | गोली चलने की आवाज भी सुनाई पड़ी | रीमा मारे डर के अन्दर जंगल की तरफ भागने लगी | वो सूर्यदेव के आदमी थे | बुढा तो नहीं मिला लेकिन उसकी झोपड़ी को उन्होंने राख का देर बना दिया | रीमा घनघोर जंगल की झाड़ियो में काफी देर डुबकी रही फिर हिम्मत करके बाहर निकली तब तक सिक्युरिटी के सायरन बजने लगे | कुत्तो के भौकने की आवाजे और हूटर की आवाजे बढती ही जा रही थी | रीमा को समझ नहीं आया ये किसकी सिक्युरिटी है | वो तेजी से उसी हालत में अन्दर की और जंगल की गहराई में भागी |
भागते भागते वो एक जंगल के एक खंडहर में पंहुच गयी | कुछ देर वही बैठकर सुस्ताने लगी | फिर पानी पिया | वो पछता रही थी क्यों उसने डॉक्टर का मोबाईल फेंक दिया | वहां बैठे बैठे शाम हो गयी | अब तो उसे भूख भी लग आई थी | अँधेरा होने से पहले उसने एक ऊँचा पत्थर दूंढ लिया यहाँ से लगभग सारा खंडहर दीखता था | लेकिन भूख का क्या करे | पत्थर से उतरकर कुछ खाने लायक ढूढ़ने लगी | जैसे जैसे वो खंडहर के अन्दर जाती गयी, जगल झाड़ियाँ कम होते गए और पत्थर की सिलापट भी साफ़ सुथरे | रीमा की भूख उसे बेधड़क आगे ले जाती गयी | वहां शायद कोई रहता था | रीमा को एक तरफ घास की बनी चटाई दिखी | दूसरी तरफ एक कच्चा घड़ा और उसके पास में जंगली पपीते और कुछ और फल थे | रीमा ने सतर्क निगाहों से इधर उधर देखा और फिर फलो वाली टोकरी उठा ली और उलटे पाँव वहां से लौट आई | फिर उसी ऊँची पत्थर पर आकर उसने जी भर के वे फल खाए | उसी कम्बल की बिछाकर खुद को उसी में लपेट लिया |
रीमा बस सुस्ताने ही चली थी, अचानक कुत्तों की तेज भौकने की आवाज़ से चौंक गयी । कुछ देर तक सतर्क कानो से अंदाज़ा लगाती रही की लोग किधर जा रहे है फिर एक गोली की आवाज़ सुनी । रीमा वहाँ से उठी और बिना कुछ सोचे समझे खुद को कसकर कम्बल में लपेट और अंदर गहरे घने जंगल की तरह भागी । एक सीमा के बाद तो रास्ते भी नहीं बचे अब कहाँ जाए किधर जाए कुछ समझ नहीं आया । कुछ देर बाद जब उसे लगा कुत्तों की आवाज़ों का शोर बढ़ता जा रहा है तो घनी झाड़ियों में कूद पड़ी और जहां से जैसे बन पड़ा घने जंगल को चीरती और अंदर चली गयी । तब तक भागती रही जब तक उसके कानो से कुत्तों की आवाज़ गुम नहीं हो गयी । जब साँसें क़ाबू आयी और दिमाग़ पर से दर का साया उतरा और चेतना वापस आयी तो खुद को डरावने घने जंगल में पाया । जहां १० मीटर बाद क्या है कुछ नहीं दिखायी पड़ रहा था । भयभीत रीमा ने जब खुद को कुछ और एकाग्र किया तो उसे लगा आस पास कही पानी बह रहा है लेकिन वो आगे बढ़े तो किस तरफ़ से । काफ़ी सोचने के बाद उसने ऊपर की तरफ़ सर किया और सूरज को पूरब दिशा में मानकर उसी तरफ़ चली ।
बड़ी बड़ी झाड़ियों में चलना मुश्किल हो रहा था, कभी बैठकर या लेटकर तक निकलना पड़ रहा था । कुछ देर झाड़ियों को चीरने के बाद उसे एक पतली सी पगडंडी मिली । वो हैरान थी बीचो बीच जंगल में पगडंडी, उसे कुछ समझ नहीं आया, धीरे धीरे उसी पर आगे बढ़ती चली गयी । कुछ किमी चलने के बाद उसे एक पुराना सा खंडहर मिला, जिसको गौर से देखने पर पता चला यहाँ को सदियों पुरानी इमारत रही होगी । कुछ हिस्सा अभी भी दीवारों के रूप में खड़ा था बाक़ी इमारत के पथर इधर उधर बिखरे पड़े थे । जिस पर जमकर घास और लताए चिपकी हुई थी । पथर की शिलाओं पर खूबसूरत नक्कासी भी थी, बिलकुल वैसी ही जैसी रीमा ने खजुराहो में देखी थी ।कुछ देर इधर उधर देखने के बाद वही थक कर एक पथर पर छाँव में आराम करने लगी । भागते भागते वैसे भी उसका दम निकल गया था वो किसी भी हाल में इस बार सूर्यदेव के चंगुल में फँसना नहीं चाहती थी । फिर धीरे धीरे उन चट्टान नुमा फैले पथरो पर एक एक कर चढ़ते हुए सबसे ऊपर पहुँच गयी । वहाँ से आस पास का पूरा इलाक़ा नज़र आता था । उसे वहाँ से बहती नदी साफ़ दिखायी दे रही थी, हर तरफ़ बस हरियाली ही हरियाली और घना जंगल । जहां रीमा बैठी थी यहाँ पर जंगली जानवरो का भी डर नहीं थी । उसने एक लम्बी साँस ली और ठंडी हवा का सुखद स्पर्श महसूस करते हुए उसी पथर पर पसर गयी । कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला ।
इधर सूर्यदेव जैसे ही क्लिनिक में घुसा, उससे पहले ही विनीत भाग निकला, फ़िलहाल सूर्यदेव को रीमा चाहिए थी वो विनीत से तो बाद में भी निपट लेगा । उसने तेज़ी से अपने आदमियों को सब कमरे ढूँढने भेजा । खुद में लोगों से पूछताछ करने में लगा रहा । परे एक घंटे में सारा क्लिनिक छान मारा लेकिन रीमा का कही कोई अता पता नहीं था । क्लिनिक के गार्ड को वो पहले ही मार चुका था अब बाक़ी स्टाफ़ को भी धमकाने लगा । स्टाफ़ का बुरा हाल था लेकिन किसी को कुछ पता नहीं था । लिजेल और मोहन भी पीछे के दरवाज़े से जान बचाकर निकल भागे । बाक़ी स्टाफ़ को विनीत की प्राइवट चीजों का कुछ पता नहीं था । आख़िर हार कर विनीत के पेंट हाउस के ताले तोड़े जाने लगे । वहाँ भी बाद उसकी आय्यासी के समान की अलावा सूर्यदेव को कुछ हाथ नहीं लगा ।
वो आपने आदमियों पर चिल्लाया - अरे मदरचोदो मेरी शक्ल क्या देख रहे हो ढूँढो उस भोसड़ी वाली रंडी को वरना विलास मुझे बाद में मारेगा, उससे पहले मैं तुम सब को जहन्नुम पहुँचा दूँगा । उसके साथ आयी सिक्युरिटी भी इधर उधर निकल ली । सुबह होने के बाद रीमा को ढूँढ ने के काम में तेज़ी आयी और सिक्युरिटी की एक टीम जंगल की तरफ़ जाने वाली पगडंडी की तरफ़ गयी । उसके पीछे पीछे शिकारी कुत्ते और सिक्युरिटी वाले भी गए, फिर सूर्यदेव भी उसी तरफ़ बढ़ चला । बूढ़ा रीमा को खाना देकर आया था और बस नहा पाया था की सिक्युरिटी वाले आ धमके , उन्होंने पूछताछ शुरू करी । बूढ़ा भी एक नम्बर का घाघ था, ज़रा सी भनक न लगने दी । असल में विनीत ने उसके पैर का इलाज किया था जिसके कारण वो फिर से चलने लायक़ हो पाया था बस इसीलिए जी जान से डाक्टर का वफ़ादार था । सिक्युरिटी ने जल्दी ही विनीत का ऑफ़ फ़ोन ढूँढ लिया अब बुड्ढे की ख़ैर नहीं थी । सिक्युरिटी के साथ साथ सूर्यदेव भी क़हर बनकर टूट पड़ा लेकिन बुड्ढे ने मुहँ नहीं खोला । आख़िर कार ग़ुस्से में आकर सूर्यदेव ने उसको गोली मार दी । शिकारी कुत्ते जंगल में रीमा को खोजने निकल पड़े लेकिन एक सीमा के आगे जाने से वो कतराने लगे क्योंकि आगे भालुओं का साम्राज्य था और रास्ते भी नहीं थे । रास्ता ख़त्म होने के बाद आगे जाने को कोई राज़ी नहीं था, सूर्यदेव ने भी यहाँ की कहानियाँ सुनी थी एक यहाँ आदमखोर जंगली इंसान रहते है वो ज़िंदा ही आदमी को भूनते है और खाते है । इसके अलावा जंगली जानवरो का ख़तरा भी था । तभी पीछे से कुछ आहटों ने सबको चौंका दिया ।
इधर रोहित रीमा की तलाश में भटक रहा । उसके दिए पते पर पहुँचने पर वहाँ तो कुछ और ही नजारा देखने को मिला । बाहर दो लाशें और सिक्युरिटी का मजमा लगा हुआ था । अपनी गाड़ी से उतरते ही समझ गया यहाँ कोई गोली कांड हुआ है । चूँकि वो अपने शहर की सिक्युरिटी के साथ था । इसलिए उसके साथ आया इन्स्पेक्टर ही आगे का मामला समझने गाड़ी से उतरा ।
वापस आकर उसी ने सारी कहानी रोहित को बतायी ।
रोहित के जबड़े भींच गए - सूर्यदेव अभी ज़िंदा है साला ।
इन्स्पेक्टर चौका - तुम जानते हो इस गुंडे को ।
रोहित ठीक से नहीं लेकिन जान पहचान तो बहुत पुरानी है ।
इन्स्पेक्टर - कैसे ।
रोहित - छोड़ो , अभी रीमा का पता लगाना ज़रूरी है ।
इन्स्पेक्टर - अगर आस पास के लोगों की कानाफूसी पर भरोसा करे तो, मैडम के यहाँ से २ किमी पूरब की तरफ़ पड़ने वाले तराई के घनघोर जंगल की तरफ़ जाने की बातें हो रही है । ये जंगल यहाँ से शुरू होकर नदी के साथ साथ आगे १०० किमी तक गया है । सूर्यदेव भी वही गया है ।
रोहित - तो देर किस बात की है, चलो उसी तरफ़ ।
इन्स्पेक्टर - देखो बुरा मत मानना लेकिन हमें किसी भी सूरत में यहाँ की लोकल सिक्युरिटी से नहीं भिड़ना है, मुझे पता है ये ज़रूर सूर्यदेव से मिले हुए होंगे लेकिन फिर भी किसी तरह की खींचतानी मत करना प्लीज़ । हमें मैडम को किसी भी तरह पता लगाकर वापस ले चलना है, एक दोस्त की हैसियत से इमोशन पर थोड़ा क़ाबू रखना अगर यहाँ की सिक्युरिटी अड़ंगे डालती भी है तो चलेगा कोई बात नहीं ।
रोहित - ठीक है जैसा तुम कहो ।
रोहित भी उसी रास्ते से जंगल की तरफ़ बढ़ गया जिस रास्ते से पहले रीमा फिर सूर्यदेव अपनी गैंग के साथ गया था । कही देर खोजने के बाद रोहित भी उसी रास्ते पर चला जहां सूर्यदेव गया था । आगे मरे पड़े बूढ़े की लाश देख सब सतर्क हो गए । सबने अपने अपने हथियार निकाल लिए और कुछ ही दूर पर आख़िरकार रोहित को सूर्यदेव का गैंग मिल ही गया । दोनो तरफ़ के लोगों ने एक दूसरे पर हथियार तान दिए । रोहित के साथ ज़्यादा लोग तो नहीं थे लेकिन सबके पास औटोमैटिक गन थी । रोहित को सूर्यदेव को पहचानते देर न लगी लेकिन सूर्यदेव को अंदाज़ा नहीं था की सामने वाला कौन है यहाँ कैसे ।
सूर्यदेव की माथे पर बल पड़ गए, इस वक्त इस जंगल में वो भी इन हथियारों के साथ
सूर्यदेव - कौन हो तुम लोग और यहाँ इस घने जंगल में क्या कर रहे हो ।
रोहित - यही सवाल मेरा भी है ।
सूर्यदेव गरजा - ये मेरा इलाक़ा है ।
रोहित - इलाक़ा तो कुत्तों का होता है शेर तो पूरे जंगल का मालिक होता है ।
सूर्यदेव - अबे औक़ात में रह, वरना यही मार के डाल दूँगा, लाश भी नहीं नसीब होगी घरवालों को ।
रोहित - ओय धमकी किसको देता है, गाँड में दम है तो चला गोली साले ५ सेकंड में ७२ छेद कर दूँगा । पता नहीं चलेगा की छेदो में तू फ़िट किया गया है या तुझमें छेद भक्क गड़फट्टू ।
सूर्यदेव - साले औक़ात के बाहर बोल रहा है ।
रोहित - उतना ही बोल रहा हूँ जितना पिछवाड़े में दम है , तेरी तरह पालतू कुत्तों की फ़ौज लेकर नहीं चलता हूँ ।
उसके कुछ कुत्ते गुराने लगे इससे पहले ही रोहित के साथ आया इन्स्पेक्टर बीच बचाव में आ गया - देखिए सर हम लोग दो ज़िले पार करके आए है, हमें किसी गुमसूदा की तलाश है । तभी सूर्यदेव के साथ आए सिक्युरिटी वालों में से एक बोल - तो आपको कोतवाली आना था यहाँ जंगल में हम आपकी कोई मदद थोड़े ही ना कर पायेंगे ।
सूर्यदेव बीच में टोकता हुआ - किसको ढूँढ रहे हो तुम ।
इन्स्पेक्टर ने जेब से फ़ोटो निकाली और सधे कदमों से सूर्यदेव की तरफ़ बढ़ा, सबकी बंदूके तनी हुई थी - रोहित भी साये की तरह उसके पीछे चला जिसे खुद उसने रुकने का इशारा किया । फ़ोटो देखते ही सूर्यदेव चौंक गया । वो रीमा की थी ।
सूर्यदेव - इसको कैसे जानते हो ।
इन्स्पेक्टर - तुमने देखा है इसे क्या ?
सूर्यदेव - पहले मैंने सवाल किया । पूरी बात बतावो तभी बात आगे और ज़्यादा नहीं बिगड़ेगी ।
इन्स्पेक्टर ने कुछ सोचा - देखिए अगर आपको कोई जानकारी हो तो हमें बता दीजिए, इसकी कई दिनो से हम तलाश कर रहे है ऊपर से बहुत प्रेशर है ।
सूर्यदेव - मैंने कहा न पूरी बात बतावो, तुम लोग इसके जनाने वाले हो । सूर्यदेव अंदर से सतर्क हो गया उसे लगा रीमा के घरवाले यहाँ आ गए है, उसने अंदर से पूरी हिम्मत बटोरी ।
इन्स्पेक्टर - देखिए आप लोग समझ नहीं रहे मेरे ऊपर से बहुत प्रेशर है, SP साहब ने इसे हर हाल में खोज कर लाने को कहा है ।
सूर्यदेव - मैंने कहा न पूरी बात बतावो, वरना ख़ाली हाथ ही यहाँ से जवोगे ये मेरा इलाक़ा है । उसके पीछे खड़े सिक्युरिटी वाले हंसने लगे । रोहित मुट्ठियाँ भींच आगे बढ़ा तो उसे इन्स्पेक्टर ने शांत रहने का इशारा किया ।
इन्स्पेक्टर - देखिए सूर्यदेव जी मैं आपको सच बता दूँगा लेकिन आपको भी वादा करना पड़ेगा की इन मैडम को खोजने में आप मेरी मदद करेंगे ।
सूर्यदेव - इसकी कोई मैं गारंटी नहीं दे सकता, बस इतना कह सकता हूँ अगर आपने मुझे मेरे सवालों का जवाब सही सही दिया तो शायद मैं आपकी कोई मदद कर पाऊँ । अब बताइए ये कौन है और आप इसे यहाँ क्यू खोजने आए है ।
इन्स्पेक्टर - अब आपसे क्या झूठ बोलना, लेकिन ये बात आप अपने पास तक ही रखिएगा, क्योंकि इसमें मेरे विभाग की बड़ी बदनामी हो सकती है । ये औरत एक नम्बर की फ़्रॉड है इसने SP साहब को अपने रूप जाल में फँसा कर ५० लाख रुपए ऐंठ लिए है और अब मंत्री जी उनका MMS भेजने की धमकी दे रही थी । जिसने बाद सिक्युरिटी ने जब दबिश करी तो ये वहाँ से भाग निकली ।
सूर्यदेव - अच्छा और ये कब की बात है ।
इन्स्पेक्टर - यही कोई एक हफ़्ता पहले की, उसके बाद हमें जंगल में एक लाश मिली, जो हमारे शहर के बेहद शरीफ़ व्यापारी विलास जी के बेटे की थी । हमें शक है इसी ने उसकी हत्या की है । इनसे (रोहित की तरफ़ इशारा करके ) जिनसे आप दो दो हाथ करने की तैयारी में थे इनके डेढ़ करोड़ रुपए का चुना लगा गयी है तभी से ये उनके खून के प्यासे घूम रहे है । धीमा आवाज़ में, नुक़सान के कारण थोड़ा सदमे में चले गए है । इनकी बात का बुरा मत मानिएगा । SP साहब के घर अगर वो SMS पहुँच गया तो न केवल समाज में उनकी थू थू होगी बल्कि परिवार में भी कलह होगी ।
सूर्यदेव - तुमारी बात का थोड़ा थोड़ा ही भरोसा हो रहा है पता नहीं क्यू । वैसे अगर ये औरत तुम्हें मिल जाए तो क्या करोगे इसका ।
इन्स्पेक्टर - गोली मार देगें, मेरा मतलब इन काउंटर कर देगें , न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी ।
सूर्यदेव - वैसे मेरा इस औरत से कोई लेना देना नहीं है आपका सरदर्द है आप जानो ।
इन्स्पेक्टर - लेकिन आप ने अभी तो थोड़ी देर पहले कहा आप इसे जानते है ।
सूर्यदेव - नहीं आप ग़लत समझ रहे है, मैंने तो बस एक अजनबी के नाते सवाल किया था, मैं भी इस क़स्बे का एक जाना माना बिज़नेस मैन हूँ और मेरी गोदाम से कुछ क़ीमती चीज़ चोरी हो गयी थी वही खोजने इस जंगल में आया था ।
इन्स्पेक्टर - आप अपने वादे से मुकर रहे है सूर्यदेव जी, याद रखिए हम सिक्युरिटी वाले है हमारे पास सबकी कुंडली रहती है, विलास जी को आपकी भी तलाश है, अगर रीमा मैडम न मिली तो सिक्युरिटी से पहले आपका इन काउंटर विलास के आदमी कर देगें । बाक़ी आपकी मर्ज़ी, मैं तो बस आपकी मदद करना चाहता था ।
सूर्यदेव - ये धमकाता किसको है, फिर से ढीली पड़ी बंदूके तन गयी ।
माहौल की गर्मी देख इन्स्पेक्टर बोला - देखिए सूर्यदेव जी मैं आपसे लड़ने झगड़ने नहीं आया हूँ, अगर आप हमारा सहयोग करेंगे तो ठीक है, नहीं करेंगे तो हम अपने आप मैडम को खोज निकालेगे और अगर आपने मेरी राह में रोड़े अटकाए तो सोच लीजिए, मेरा एक फ़ोन और २००० की सिक्युरिटी फ़ोर्स यहाँ होंगी । मैं आपकी बंदर घुड़कियों से नहीं डरने वाला , बाक़ी आप समझदार है ।
अपने साथ आए लोगों को इशारा करता हुआ - चलो से आगे चलकर देखते है ।
सूर्यदेव कुछ सोचकर - रुको, शायद मैं आपकी कोई मदद कर पाऊँ ।
रोहित भी नज़दीक आ गया । सूर्यदेव ने मोबाइल निकाला उसमें से जितेश और उसके दो साथियों की फ़ोटो दिखाकर - मैं पुख़्ता तौर पर अभी कुछ नहीं कह सकता लेकिन इस आदमी ने किसी तीसरे के ज़रिए दो दिन पहले मुझसे फिरौती माँगी थी लेकिन उसके बाद ये औरत वहाँ से उड़न छू हो गयी । मुझे बस इतना ही पता है ।
इन्स्पेक्टर - आपको रीमा मैडम की तलाश क्यू है ?
सूर्यदेव - इसका जवाब आप जानते है । मैं आपकी कोई मदद नहीं कर पाऊँगा लेकिन मेरे तरफ़ से आपको कोई दिक़्क़त भी नहीं होगी । आप आराम से मैडम को खोजिए, अब मैं चलता हूँ ।
इतना कहकर वो पूरे दल बदल के साथ वापस क़स्बे की तरफ़ चल दिया । उसका दिल ज़ोरों से धड़क रहा था, यहाँ की सिक्युरिटी को तो वो सम्भाल लेता लेकिन रोहित के साथ आयी सिक्युरिटी, ऊपर से विलास के कहने पर आयी । सूर्यदेव ऊपर से नीचे तक पसीना पसीना हो गया । उसने जल्दी जल्दी यहाँ से निकलने में भलायी समझी ।
रोहित के साथ आए लोगों ने लाख हाथ पाँव मारे लेकिन चारों तरफ़ जंगल ही जंगल, कुछ हाथ न लगा, इसीलिए कुछ देर बाद वो भी क़स्बे की तरफ़ लौट गए । वहाँ जाकर एक ठीक ठाक गेस्ट हाउस लिया, और नए सिरे से सोचने लगे ।
रोहित अपने हाथ मलता हुआ - कोई तो होगा जिसे रीमा का पता होगा ।
इन्स्पेक्टर - हमें लगता है हमें एक बार फिर से क्लिनिक चलना चाहिए ।
रोहित - जैसा तुम कहो मेरा दिमाँग तो चल नहीं रहा है ।
इधर विलास की बेचैनी बढ़ती जा रही थी, उसके घर में मातम का माहौल ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा था । ऊपर से सूर्यदेव पर
उसे रह रह कर ग़ुस्सा आ रहा था । सूर्यदेव और विलास के बीच की रार का फ़ायदा उठाने की सोच रहे मंत्री की सारी राजनीति जग्गु की मौत ने पलट दी थी । बिना विलास के समर्थन के उनका अगली बार जीत पाना मुश्किल था । समझ नहीं पा रहे थे की विलास के साथ खड़े हो या सूर्यदेव के ।
हाल ये था कि
रोहित रीमा की चिंता में भटक रहा
रीमा अपनी घर वापसी की चिंता में डूबी
सूर्यदेव विलास के डर से रीमा की चिंता में डूबा हुआ
जितेश अपनी ही चिंता में डूब हुआ
विनीत को सूर्यदेव की चिंता
मंत्री जी को अपने राजनैतिक करियर की चिंता
सबकी चिंता की वजह सिर्फ़ रीमा थी और रीमा की हालत की ज़िम्मेदार उसकी असीमित वासना थी जिसमें वो जितना डूबती वो उतनी ही गहरी होती चली जा रही थी ।
सुबह की शाम हो गयी, थक हारकर रोहित वापस क़स्बे पहुँच गया । उसने सूर्यदेव के दिए दो फ़ोटो से जितेश और उसके आदमी को ढूँढने में लग गया । उसके पास बस अभी यही अंतिम सुराग था जो रीमा तक पहुँचा सकता था । लेकिन इन्स्पेक्टर के दिमाग़ में कुछ और भी चल रहा था लेकिन उसने रोहित को बताना वो ज़रूरी नहीं समझा ।
इधर शाम होते ही रीमा को ज़ोरों की भूख लग आयी । सूरज अभी डूबा नहीं था लेकिन घना जंगल होने के कारण काफ़ी अंधेरा हो गया था यही अंधेरा रीमा की सामने भी छाया था अब क्या करे कहाँ जाए । न फ़ोन न खाना न कपड़े न सर छुपाने की कोई जगह । आख़िर कब तक इस कम्बल में लिपटी रहती । विवेक शून्य वही बैठी रही फिर नदी की तरफ़ देखा, सोचा कम से कम नदी के किनारे पानी तो मिलेगा पीने को, यही सोचकर चट्टान की चोटी से उतर आयी और कल कल बहती नदी की आवाज़ की दिशा का अंदाज़ा लगाकर चलने लगी । नदी की धारा का प्रवाह तेज था इसीलिए रीमा को यहाँ तक आवाज़ सुनायी पड़ रही थी लेकिन जब वह घूमते घूमते नदी के किनारे तक पहुँची तो घनघोर अंधेरा हो चुका था । हालाँकि नदी के आस पास पेड़ दूर थे तो सूरज की बची मध्यिम लालिमा अभी पानी पर पड़ रही थी । एक दो जगह अंदाज़ा लगाने के बाद एक छिछले किनारे पहुँच उसने कम्बल एक किनारे रख दिया और नदी की तरफ़ बढ़ चली।
मन में कई शंकाए थी डर भी था, अनजान जगह और पानी में पता नहीं कौन सा जानवर हो लेकिन क्या करती कब तक डरती और डर में जीती । धीरे धीरे पथरो से उतर कर एक रेतीले किनारे पर आ गयी और पानी की शीतलता महसूस करने लगी । अपने पैर पानी में घुसा दिए और अपने हाथ पैर धुलने लगी ।
कुछ देर तक पानी में पैर भिगोए रखने के बाद धीरे धीरे उसके अंदर उतरने लगी । दिन भर की ऊहापोह थकान चिंता सब ने रीमा को थका डाला था । नीद के बाद भी शरीर भारी था । आख़िर अपने डर पर क़ाबू पाकर धीरे धीरे आगे पानी में बढ़ने लगी । पानी ठंडा था साफ़ था । धारा में आगे बढ़ते बढ़ते पीछे भी देखती जाती, कही उसका कम्बल कोई जंगली जानवर न उठा ले जाए वरना फिर पूरी आदम रूप में घूमना पड़ेगा । वैसी भी अभी तो आदम रूप में ही तो थी । वही गुलाबी संगमरमर की तरह चमकता गोरा दूधिया बदन, जिसको एक ठीक से अगर कब्र के मुर्दे देख ले तो बाहर निकल आए । ऐसा जिस्म ही था रीमा का जो बड़े बड़े तपस्वी की हसरतें जगा दे । बस जैसे हाथी को उसकी विशाल ताक़त का अंदाज़ा नहीं होता वैसे ही रीमा को अपने जिस्म के हुस्नो शबाब का अंदाज़ा नहीं था । उसके वही रसीले ओंठ, किसी नयी कली की तरह उठे हुए उरोज और उसकी नुकीली चोटियाँ, मादकता में लचकती कमर और भरे ठोस मांसल चूतड, जिन्हें देखते ही दादा के उम्र के लोगों की कमर में उठान आ जाए। ऐसी थी रीमा और उसका बदन।
जैसे जैसे उसका कामुकता भरा जिस्म पानी में उतरता गया, उसका जिस्म की रंगत और खिलने लगी । बदन में तरावट और फुर्ती महसूस होने लगी । मन हल्का होने लगा, मन के डर निकल कर बाहर जाने लगे या कही कोने में दब गए । मन प्रफुल्लित हो उठा और जिस्म तरोताज़ा । प्रक्रति को माँ का दर्जा दिया गया और नदी को भी माँ माना जाता है । जैसे एक बच्चा माँ की गोद में पहुँचते ही अठखेलियाँ करने लगता है वैसे ही रीमा नदी की गोद में पहुँच कर पूरी तरह बच्चा बन गयी ।
सारी चिंता तनाव डर अवसाद सब कही गुम हो गया । बहती लहरो की अठखेलियों से खुद भी खेलने लगी । चेहरे की उदासी, मन का अवसाद सब ग़ायब हो गया । अगर उसे क्लिनिक से भागना न होता तो आज इतनी सुरम्य हरियाली के बीच में नदी की शीतलता का अहसास भी नहीं कर रही होती । उसके हाथ पाँव चलने लगे, चलने लगे, उछलने लगे, नाचने लगे, पानी में छलकने लगे ।
दुबकियाँ लगने लगी, रीमा मछली बन गयी । जैसे मछली पानी में उन्मुक्त होकर घूमती है आगे पीछे इधर इधर, वैसे ही रीमा भी पानी में विचरने लगी, हालाँकि उसे अपनी सीमा के बाहर नहीं जाना था लेकिन कम सेकम उतने में तो जी भरके गोते लगा सकती थी और लगा रही थी । नहाने के बाद प्रफुल्लित मन से तितली की भाँति चहकती हुई रीमा किनारे की तरफ़ चल दी ।
पानी से निकलते ही गर्दन घुमाकर चारों तरफ़ निगाह डाली और फिर एक पथर की टेक लेकर खुद के जिस्म की निहारने लगी । वही गुलाबी रंगत, वही गोरा दमकता बदन, वही चिकनी जाँघे और गुलाबी रंगत वाले गाल । रीमा खुद के अस्तित्व के अहसास से ही शर्मा गयी, उसके गाल सुर्ख़ हो गए । उसने धीरे से नीचे के तरफ़ उँगलियाँ बढ़ायी । हल्की हल्की घास जम आयी थी लेकिन वो भी घाटी की चमक रोक पाने में नाकाम थी । अपने जिस्म की ख़ूबसूरती पर इतरा कर रीमा ने खुद के आदम रूप में होने से लज़ा गयी । हाय हाय मुझे रत्ती भर भी न शर्म है नंगी पुंगी खड़ी हूँ । कोई जानवर ही देख ले और हमला कर दे तो । अपनी बिलकुल प्राक़्रतिक़ अवस्था में और चारों ओर घना होता अंधियारा फिर से रीमा को शंका से भर गया । पल में ही अपने रूप लावण्य का ख़याल करके स्त्री की सहज प्रव्रत्ति के कारण खुद से ही लज़ा गयी ।
कही कोई देख न ले इसलिए जल्दी से कम्बल में खुद को लपेट लिया । अब कहाँ जाए, कुछ देर वही नदी की कल कल सुनती रही, भूख तो उसे पहले भी लग रही थी लेकिन नहाने के बाद ये और बढ़ गयी । इस अंधकार में कहाँ खाना रखा, आज तो ख़ाली पेट पकड़ ही सोना पड़ेगा । वापस जाने का रास्ता भी तो नहीं खोज सकती थी, क्या करे , कब तक इस ठंडी रेत में नदी के किनारे पर बैठी रहे, मन तो किया यही लेट जाए लेकिन बिछाने को भी तो कुछ नहीं था और जिसे बिछा सकती थी वो शरीर की लाज ढके हुए था । बैठे बैठे ही उसकी आँख लग गयी । ठंडी रेत नदी का किनारा और शीतल हवा में झपकी खा गयी । फिर अचानक उसकी आँख खुली तो उसे दूर कही एक आग की रोशनी दिखायी थी । रीमा सतर्क वो गयी, आग की चमक कुछ ही देर में खो गयी । लेकिन अभी फिर से एक तेज लपट निकली और फिर घनघोर अंधेरे में खो गयी ।
रीमा ने मन ही मन सोचा - क्या कोई वहाँ है । पता नहीं लेकिन आग का मतलब है कोई इंसान ही होगा । ऐसे घनघोर जंगल में लेकिन कौन होगा जहाँ आगे जाने आने का कोई रास्ता नहीं है । उसे डर लगने लगा, कही कोई चोर डाकू लुटेरे तो यहाँ देर नहीं जमाए है । कही तरह की आशंकाओं ने मन घिर गया । खुद में ही सिमट कर बैठ गयी । और कर भी क्या सकती थी । रात गहराने के साथ आसमान में चाँद अपनी लगभग पूरी शकल के साथ चमकने लगा । दूधिया चाँदनी की रोशनी पर्याप्त थी चारों तरफ़ देखने के लिए । रीमा भी अब खुले में नहीं बैठना चाहती थी ऊपर से मन की जिज्ञासा उसे शांत रहने नहीं दे रही थी । अपनी जगह से उठी और कुछ देर इधर उधर घूमने के बाद उसे एक मोटी लकड़ी का डंडा मिल गया । धीरे धीरे कदमों से वो उस उठी रोशनी की तरफ़ चली, नदी के बहाव की कल कल आवाज़ की धारा के साथ वो भी आगे बढ़ने लगी । आधे घंटे चलने के बाद समझ आया ये आग नदी के दूसरी छोर पर उठी थी । जब थोड़ा और नज़दीक गयी तो वहाँ इस छोर से दूसरे छोर तक नदी सबसे संकरी थी और पथरो पर से आसानी से इधर से उधर ज़ाया जा सकता था । एक ठंडे के सहारे आदमी नदी की तेज धारा में इधर से उधर जा सकता था । खड़े खड़े कुछ देर सोचती रही, अपने मन के डर को सम्भालती रही फिर जो होगा देखा जाएगा सोचकर आगे बढ़ गयी ।
फ़िलहाल चाँद की चाँदनी में उसके सामने एक और दुविधा थी, अगर वो कम्बल ओढ़कर पार करती तो वो भीग जाता और कपड़े के नाम पर बस वही था उसके पास । इसलिए उसने कम्बल को उतार कर गठरी बना ली और फिर से अपनी प्राक्रतिक अवस्था में दूसरी तरफ़ बढ़ने लगी । कम्बल को उसने अपने बालों की चोटी बनाकर सर में बांध लिया था । जैसे जैसे आगे बढ़ती गयी नदी की गहरायी बढ़ती गयी, लेकिन फिर भी पानी कमर से ऊपर नहीं गया। पीछे से ऊँचायी से बहाव के कारण स्पीड तेज थी लेकिन फिर भी रीमा ने जैसे तैसे नदी पार कर ली । नदी पार करके उसने फिर से कम्बल अपने शरीर पर लपेट लिया और आगे बढ़ने लगी ।
यहाँ उसे नदी से निकलते ही पगडंडी मिल गयी । कुछ देर चलने के बाद वो ठीक उसी जगह पहुँच गयी जहाँ आग जल रही थी, वहाँ आस पास कोई मौजूद नहीं था । थोड़ा आगे बढ़ते ही उसे एक गुफा दिखी और बेहद सतर्क कदमों से जब आगे बढ़ी तो वहाँ का नजारा देख चौक गयी, वहाँ भयानक चेहरे वाले कुछ जंगली आदम जैसे लोग मौजूद थे । भयानक क्या महाभयानक, किसी होरर फ़िल्म की तरह, जटाए रस्सी बन गयी थी, चेहरे भभूत से सने, आँखे रक्त सी लाल, गले में हड्डियों की माला, कमर में छाल । औरतें बच्चे तो छोड़ें जवान आदमी डर जायँ ऐसी भयानक वेशभूषा बना रखी थी । इनके बारे में ही अफ़वाह थी ये आदमखोर है इंसान को ज़िंदा ही आग में भूनते है और खा जाते है । सच क्या था किसी को नहीं पता लेकिन इनसे डरना ही समझदारी थी ।
बीच में एक हवन कुंड और आस पास कौवा चील मरे पड़े थे और मांस की घनघोर बदबू आ रही थी, कुंड के सामने बैठा आदम एक ख़रगोश का रक्त एक प्याली में इकट्ठा कर रहा था । रीमा से वहाँ रुका न गया । वो पलट बाहर आने लगी तभी उसे बाहर से किसी के आने की आहट हुई तो वो गुफा के एक अंधेरे कोने में छुप गयी और उसके गुजरने के बाद बाहर निकल गयी । बाहर दायी तरफ़ थोड़ा चलने पर एक कुटिया थी वहाँ भी एक हवन कुंड था और एक बूढ़ा आदम संभावी मुद्रा में ध्यान मग्न था और हवन कुंड में अग्नि जल रही थी । वहाँ आस पास काफ़ी फल रखे हुए थे, साथ में एक पात्र में जल और कुछ विशेष पदार्थ रखे हुए थे । एक आदम का चेहरा झुर्रियों से पटा पड़ा था शरीर पर वस्त्र के नाम पर बस कमर में एक छाल पहने था, सर की जटाए उलझ कर मोटी रस्सियाँ बन चुकी थी और चेहरे पर एक विशेष आभा थी । रीमा दूर से ही उसे काफ़ी देर तक देखती रही, सामने रखे फलो को देख उसके मुहँ में पानी आ रहा था, भूख भी बहुत तेज लगी थी लेकिन करे तो क्या करे । तभी बूढ़े की तंद्रा टूटी । सामने से कोई आ रहा था । बूढ़े ने आँखे खोली निर्विकार भाव से सामने देखा और आँखें बंद कर ध्यान मग्न हो गया ।
तभी किसी की आहत पाते ही वो एक पेड़ की आड़ में हो गयी, वो आदमी आया, उसने कुछ गुलगुला कर बोला लेकिन उस बूढ़े आदम ने सुना नहीं तो उस पर एक टोकरी का सामान फेंक कर पैर फटकता हुआ चला गया । उसका चेहरा तो इससे भी भयानक था चेहरे पर भस्म और रक्त लगा था, शरीर पर कंकाल के आभूषण और कमर पर छाल, जाते वक्त वो कोई कच्चे मांस का टुकड़ा खाकर फेंकता हुआ चला गया । रीमा के शरीर का एक एक रोया खड़ा हो गया । पहला शब्द जो उसके दिमाग़ में आया आदमखोर, हाय यहाँ कहाँ फँस गयी । रीमा निकल यहाँ से वरना तेरा नरम मांस तो ये बड़े प्रेम से खायेंगे । वो वापस जाने वाली थी तभी उसके दिमाग़ में के ख़्याल आया, वो तेज़ी से हवन कुंड की तरफ़ बढ़ी और एक डलिया उठाकर उसी तरह उलटे पाँव लौट भागी । बूढ़ा आदम अभी भी ध्यान मग्न था । रीमा नदी के किनारे आकर एक जगह बैठकर, डलिया के सारे फल खा डाले । फल खाते ही उसे एक शुरूर चढ़ने लगा, पहले तो लगा वो नीद का नशा है लेकिन ये कुछ और था । उसकी भूख बढ़ गयी वो नशे में झूमती हुई फिर से वापस चली और फिर उसी जगह पहुँच गयी जहां से डलिया लायी थी, उसने एक डलिया चुपके से और उठायी और फिर भाग निकली । नदी के किनारे आकार उसने थोड़ी दूर पर जाकर डकारे मार मार कर उसने डलिया में रखे जंगली फल खाए और वही एक पेड़ के किनारे घने पत्ते की छाया में कम्बल बिछाकर लुढ़क गयी।
इधर रोहित जितेश की तलाश में क़स्बे में घूमने लगा, शाम तक उसे ये पता चल गया इस आदमी का पता लगाने के लिए इसे अपराधियों की बस्ती में जाना होगा वो वहाँ जाने की तैयारी कर ही रहा था की उसके साथ आया इन्स्पेक्टर के अख़बार की खबर दिखाने लगा, तू जहां जाने की बाद कर रहा है उस जगह का नाम इस पेपर में लिखा है । बड़ी पेशवेर अपराधियों की पनाहगाह है, किसी के मर्डर और ख़ुफ़िया सुरंग की की खबर लिखी है ।
इन्स्पेक्टर - हमें लगता है हमें किसी लोकल को साथ लेकर चलना चाहिए, ऐसी जगह पर जाना ख़तरनाक हो सकता है ।
रोहित - हूँ ।
इन्स्पेक्टर - क्यूँ न सूर्यदेव से इसकी जानकारी ली जाय आख़िर वो यहाँ का माफिया जो है ।
रोहित - सूर्यदेव को हमारी मदद करनी होती तो अब तक कर चुका होता ।
इन्स्पेक्टर - ठीक है मैंने एक दो लोकल के सिपाहियों से बात की है, उनके साथ ही निकलते है ।
रोहित - हाँ ये ठीक रहेगा ।