Episode 55


सुदूर प्रदेश की उत्तरी पहाड़ियों के बीच में घाटी थी। जिसको निलय घाटी कहते थे वहाँ से एक नदी निकलती थी, जिसको निलय नदी कहते थे, ये पहाड़ियों से निकल कर निलय घाटी से होते हुए मैदान में आकर डेल्टा बनाती थी । यहाँ नीचे मैदान में आकर नदी दो भागों में बँट जाती थी और फिर २५ किमी चौड़ा और १०० किमी लंबा एक डेल्टा बनाती हुई फिर से जाकर एक हो जाती थी । इसे निलय टापू कहते थे । रीमा जिस शहर में रहती थी उसके उत्तर में स्थित जिला का ५० फ़ीसदी से ज़्यादा हिस्सा निलय डेल्टा का हिस्सा था । घना जंगल रिजर्व एरिया, इसीलिए तस्करी और कई आपराधिक गतीवधियो का केंद्र भी रहता था । विराज और सूर्यदेव जैसे माफिया यही के कस्बों के ग़रीब लोगों को पैसे के लालच में फँसा कर उनका भरपूर फ़ायदा उठाते थे । रीमा जिस कस्बे से भाग कर यहाँ फँस गई वो इसी नदी के दक्षिण छोर पर २० किमी दूर पर बंसा था । रीमा जिस अवैध बस्ती में जितेश के साथ फँसी थी वो इसी कस्बे के बाहरी इलाके में थी । लेकिन रीमा के ये सब एक अनजान इलाका था लेकिन ऐसा लगता था जैसे उसे अब किसी चीज का न डर था न चिंता । वो बस जो सामने है उसे जी रही थी ।

यहाँ चारों तरफ़ १०० किमी का घनघोर जंगल है जिसने नदी को भी अपने आग़ोश में ले रखा है । ये पूरा इलाक़ा रिज़र्व है, यहाँ सरकार की तरफ़ से किसी को भी अंदर जाने की अनुमति नहीं है, सरकार भी नदी को पार करके जंगल में दूसरी तरफ़ नहीं जाती और कहते है यहाँ हज़ारो साल पुरानी आदमखोर जनजाति रहती है । इसको रिज़र्व रखने के लिए सरकार ने बड़ा ही कठोर नियम बना रखा है । लोकल लोग सिर्फ़ लकड़ियाँ लेने के लिए जंगल में एक किमी तक आते है लेकिन आज तक किसी ने नदी पार कर टापू पर जाने की हिम्मत नहीं की और अगर कोई गया भी तो वापस न आया । वहाँ रीमा बेख़ौफ़ नंगी बे लिबास घूम रही है , न जंगली जानवरों का डर , न कीड़ो मकौड़ो का, नहीं के किनारे बेख़ौफ़ घूमती, ऐसा लगता जैसे हमेशा से यही रहती हो । नंगा बदन, भीगे बाल कंधे और छाती तक बिखरे हुए, उठी उन्नत गोलाकार मांसल दूध की सफ़ेद और गुलाब की गुलाबी रंगत लिए उसके मांसल उरोज और उन उठी चोटियों का वो भूरा नुकीला शिखर, वही से धनुष सा कटाव लिए उसके पेट और कमर, किसी सपाट मैदान की तरह नज़र आते है । उन्हीं के बीच उसकी सुघड़ नाभि का छेद । उफ़ मुर्दों के लंड खड़े हो जाये ऐसी बनावट । कमर का कटाव नीचे की और चौड़े होते होते रीमा का वो विशेष अंग त्रिकोण घाटी बनाता है जिसके आज की बाहरी दुनिया कई क़द्रदान है और एक झलक पाने को एक दूरसे का क़त्ल करने से भी ना चूँकेगे । गुलाबी त्रिकोण घाटी दो मांस से भारी जाँघो से कदम ताल से जो थिरक पैदा करती थी ऐसा लग रहा हो कोई काम वासना की तरंग छोड़ रहा हो और उससे ये पूरा जंगल वासनामयी हो रहा हो । चाँद की रोशनी पर्याप्त थी और नदी की रेत सफ़ेद तो सब कुछ साफ़ साफ़ दिख रहा था ।

रीमा को अंदाज़ा भी नहीं था की वो कितनी गहरी मुसीबत में फँसने वाली थी । रीमा जब फल चुराकर वापस आयी तो फिर से किसी तरह से नदी पार करके क़स्बे वाले किनारे पर आ गई थी । यहाँ फल खाने के बाद उसने एक सुरक्षित ठिकाना देखा जहां न जंगली जनवरो का डर था न आदमों का। ये जगह ज़मीन से कुछ ऊपर थी चारों तरफ़ से किसी भी जंगली हमले से सुरक्षित, रीमा ने देखा यहाँ वो किसी को भी बाहर से नज़र भी नहीं आएगी । उसने ख़ुद के लिए कुछ पत्ते और टहनियाँ तोड़ी, पत्ते बिछाये और और फिर वो कंबल ओढ़ कर गहरी नीद में चली गई । ऐसा सोई की अगले दिन दोपहर तक नीड ही नहीं खुली, शायद फलो में कोई नशीला फल था या जंगल की इस नई दुनिया के संघर्ष की थकान । अगले दिन जब उठी तो चारों तरफ़ नजर दौड़ायी फिर धीरे से निकल कर नदी की तरफ़ बढ़ गई । पहाड़ियो से उतरते ही न केवल पानी की गति कम हो बल्कि नदी की गहराई भी ज़्यादा नहीं थी इसलिए कुछ जगहो पर इसे आसानी से इधर से उधर पार किया जा सकता था । ऊपर से नीचे तक पानी से भीगी, घनघोर जंगल में एक गुलाबी बदन नंगी हसीना , कोई इंसान देख ले गस खाकर गिर जाये ।

उधर बूढ़ा आदम जब संभावी मुद्रा से अपनी साधना पूर्ण कर वापस लौटा तो उसके सामने के देवी को अर्पित फल ग़ायब थे । उसको क्रोध की सीमा ना रही ।

वो चिल्लाया - हआऊ उउउव्यू उर्युउउउउउउ ।
पलक झपकते ही वहाँ ४ और आदम प्रकट हो गये । वहाँ का दृश्य और बूढ़े आदम का क्रोध देखकर वो सभी भी हाऊ हाऊ हाऊ हाऊ करने लगे ।
बूढ़ा आदम - मुढ़मती पता करो देवी का प्रसाद कहाँ गया ।
सभी अपने भाले और धनुष तीर लेकर इधर उधर निकल गये , वो बूढ़ा क्रोध से फ़नफ़नाता रहा । सबके चेहरे पर तनाव झलक रहा था । सभी जंगल में इधर उधर भटकने लगे लेकिन अंधेरा था इसलिए ज़्यादा कुछ पता नहीं लगा पाये । बूढ़े आदम के क्रोध का कोपभाजन बनने से बचने के लिए वही जंगल में ही ठहर गये और सुबह की प्रतीक्षा करने लगे । उनको डर था अगर ख़ाली हाथ लौटे तो देवी माँ की साधना भंग होने के कारण बूढ़ा आदम उन्हें एक और श्राप ना दे दे ।

जैसे तैसे सुबह हुई और वो सारे पूरे जंगल में फैल गये, उनमे से कुछ नदी के किनारे पर भी पहुँच गये । ये लोग किसी कारण से नदी नहीं पार करते थे शायद इनकी कोई प्राचीन श्राप या मजबूरी थी की नदी में घुसते ही इनका शरीर में भीषण जलन होने लगती थी । यही कारण था जब अंग्रज़ो के शासन में ब्रिटिश को ये पता चला तो उन्होंने इसे रिज़र्व एरिया बनाकर वहाँ किसी के जाने पर प्रतिबंध लगा दिया था । आज़ादी के बाद भी सरकार इसी नियम का पालन करती रही । न इधर से किसी को जाने की अनुमति थी और न ही उधर से वो नदी पार कर क़स्बे की तरफ़ वाले जंगल में आते थे। वो रात भर जंगल में छान बीन करते रहे और सुबह होते होते वो नदी के किनारे बैठकर इंतज़ार करने लगे शायद कोई जंगली जानवर पानी पीने के बहाने आये, तो उसको पकड़कर वो उसे बूढ़े आदम को सौंप दे । इधर रीमा सूरज चढ़ने के बाद तक सोती रही , चिड़ियों का शोर और नदी की कल कल आवाज़ जब उसके कानों को चीरने लगी तब जाकर उसकी आँख खुली, जब आँख खुली तो ख़ुद को उसने पत्तो के बिस्तर पर पाया और चारों तरफ़ से झाड़ियों का घना आवरण जीवजंतुओ से उसको प्राकृतिक सुरक्षा दे रहा था ।

रीमा जब सोई थी तो कंबल लपेट कर सोई थी लेकिन जब जागी तो कंबल का दूर दूर तक कोई निशान नहीं था । अपने मांसल गुलाबी बदन को निहारने लगी, इस जंगल की घनघोर कठोरता ने भी उसके जिस्म की कोमलता का कुछ नहीं बिगाड़ पाया । उसका बदन वैसा ही कमसीन गुलाबी, बड़े बड़े उरोज जो ख़ुद अपने वजन से नीचे तक तने हुए थे । उसके त्रिकोण घाटी में जमी हल्की घास साफ़ दिख रही थी । घर पर होती तो अब तक सारी घास फूस झाड़ी साफ़ करके घाटी को बिलकुल संगमरमर पत्थर की तरह चिकना कर दिया होता और फिर उस घाटी के दर्शन ख़ुद ही शीशे में करके खुश हो रही होती ।
काफ़ी देर इसी सोच में पड़ी अपने चारो तरफ़ के हालतों से निश्चिंत अपनी पुरानी ज़िंदगी को याद करती रही। फिर सोचते सोचते उसको अपनी हक़ीक़त का अहसास हुआ और तेज़ी उसने कंबल लपेटा और धीरे धीरे अपने सोने वाले स्थान से बाहर आई, न कोई जानवर था और इंसान का होना तो वहाँ संभव ही नहीं था। हवा तेज चल रही थी जिससे एक बार को उसके शरीर पर पड़ा कंबल उड़कर अलग जा गिरने को हुआ लेकिन जैसे तैसे रीमा ने उसे पकड़ लिया लेकिन इस चक्कर में उसके गुलाबी बदन की पूरी नुमाइश हो गई ।

नदी में दुबकी लगाकर रीमा नदी के दूसरे किनारे की तरफ़ जा ही रही थी की एकदम से कुछ देखकर सहम गई , उसके कदम पीछे की तरफ़ लौटने लगे। सहमी सी रीमा नदी ने इधर उधर तैरती विचरण करती रीमा अपने छोर पर वापस आ गई। थोड़ी ही देर में उन आदमों की नज़र पड़ भी उन पर पड़ गयी । उसे समझ ही नहीं आ रहा था की क्या करे । रीमा अपने ही डर से डरी सहमी, आगे क्या करना है कैसे करना है, इन्ही में उलझी हुई थी। उनमे से कुछ आदम नदी पार कर उसे पकड़ना चाहते थे लेकिन बाक़ी ने उन्हें परंपरा का हवाला देकर रोका ।

वो उसी किनारे से झाड़ियो में बैठकर उस पर नज़र रखने लगे - मानव स्त्री । अति सुंदर, इसका मांस बहुत नरम होगा एक बोला ।
दूसरे ने दुत्कार - ह्यूउउउ ।
एक बोला - गरम रक्त सीधे देवी माँ को चढ़ाऊँगा ।
पहला बोला - माँ स्त्री का रक्त स्वीकार न करेगी ।
एक और बोला - मैं इसका मांस अपने दांतों से नोचूँगा ।
एक बोला - मैं तो इसकी हड्डियां का चूरन अपने शरीर पर लगाऊँगा ।
रीमा अपने सोने की जगह आयो, ख़ुद को डर के मारे कंबल में छिपा लिया। सूरज सीधे आसमान में था, दोपहर होने को थी अभी रीमा को भूख लग रही थी, उसने सूरज की बढ़ती गर्मी से से बचने के लिए कंबल को हटा दिया और कमर में लपेट लिया । ख़ुद को ज़्यादा सुरक्षित करने के रीमा हलके से उठी और ऊपर से नग्न अपने सुडौल उन्नत गोरे स्तनों को उछालती हुई अंदर की तरफ़ झाड़ियों में गुम हो गई । सारे आदम उस पर कड़ी निगाह बनाये हुए थे । रीमा जब निश्चिंत हो गई की वो नदी पार करके इधर नहीं आ रहे तो हिम्मत जुटाकर कुछ देर बाद झाड़ी हटाकर रीमा बाहर निकली । उसके हाथ में एक डलियाँ थी, एक आदम चिल्लाया - ह्युआउउउउउउउ ।
दूसरे ने उसके मुँह पर हाथ रखा - चुप बेवक़ूफ़ ।

रीमा उद्दासी और चिंता दोनों से घिरी हुई थी लेकिन पेट की भूख का क्या करे । वो डरी हुई तो थी लेकिन अगर कुछ नहीं खाएगी तो भी तो मर जाएगी और खाने का जुगाड़ करने के चक्कर में भी मारी जा सकती है । मौत का ख़तरा दोनों तरफ़ से था । फिर भी नदी के दूसरे छोर पर मौजूद ख़तरे से अनभिज्ञ वो नदी के छिछले हिस्से से नदी दो पार करने लगी । लेकिन कंबल तो उसने किनारे पर छोड़ दिया ताकि भीगे ना । वो पानी में बस कमर तक घुसी ही थी, उसका पानी की शीतलता से कुछ देर के लिए मन भटक गया । नदी के साथ वो भी नदी बन कर बहने लगी ।

कभी डुबकी लगाती , कभी तैरती और कभी ख़ुद के जिस्म को निहारती, सारी चिंता कुछ देर के लिए हिरण हो गई । वो भूल गई की वो कहाँ है किस हाल में । प्रकृति के बीच बिलकुल प्राकृतिक अवस्था में उसका वो जल क्रीड़ा का स्वाँग, ऐसे दृश्यों के लिए देवता भी तरसते है । कहते है प्रकृति और स्त्री बहुत क़रीब है, जब भी स्त्री प्रकृति के क़रीब होती है तो वो और भी स्वछंद हो जाती है । लेकिन ये क्रीड़ा कार्यक्रम ज़्यादा नहीं चला । उसकी भूख ने उसको यथार्थ में लौटाया । फिर से वही मायूसी भय चिंता और शोक मन में भर गया । भारी मन से बाहर निकली और दुबारा नदी में घुसने से पहले उसने कंबल टोकरी में रखकर सिर पर बांध लिया था ताकि भीगने न पाये ।

जिसे तैसे उनसे नदी पार करी, गुलाबी बदन, पानी में भीगा हुआ और उस पर पड़ती सूरज की तेज रोशनी, रीमा के बदन पर उभरी पानी की बुंदों को सितारों की तरह चमका रही थी । लेकिन जब जीवन मरण का प्रश्न हो तो सौंदर्य और काम वासना के विचार मन में आते ही कहाँ है । उसने नदी से निकलते ही टोकरी से कंबल निकालकर अपने नग्न कटि भाग पर लपेट लिया, वरना अगर इस अवस्था में उसे मनुष्य तो छोड़ो अगर कोई जीव भी जंगल में देख लेता तो तुरंत काम ग्रसित हो जाता ।स्त्री का सौंदर्य है ही ऐसी चीज ऊपर से कोई सफ़ेद गुलाबी बदन लिए, उन्नत छाती, भारी नितंब और कटाव लिए शरीर की मल्लिका हो तो कहना ही क्या । रीमा सतर्क कदमों से आगे की तरफ़ बढ़ी तभी उसे कुछ दूर पर कुछ आहट हुई, उसके कान सतर्क हो गये, उसके कदम ठिठक गये । उसे लगा कोई जानवर है, उसने जैसे ही उधर नज़र घुमायी एक आदम तेज़ी से उछल कर झाड़ी से बाहर आ गया । असल में वो कुछ जल्दी ही जोश में बाहर आ गया । दूसरे आदम ने माथा पीट लिया ।

उसकी शक्ल सूरत देख रीमा का खून सुख गया, उसका चेहरा डर से पीला पड़ गया, वो ज़ोर से चीखी जिससे नदी के किनारे का जंगल गूंज उठा । वो आदम तेज़ी से रीमा की तरफ़ लपका, रीमा का डर हिम्मत में बदल गया, उसने तेज़ी से हाथ में पकड़ी डलिया आदम की तरफ़ फेंकी और उल्टा नदी की तरफ़ भागी । आदम ने भागती रीमा पर भाले का निशाना साधा और फेंका । रीमा की क़िस्मत अच्छी थी की उसका दाहिना पैर रेत पर फिसला और वो दाहिनी तरफ़ को गिरते गिरते बची । भाला रीमा के बायें हाथ के ऊपरी हिस्से में कंधे के नीचे एक हल्की खरोंच बनाता हुआ रेत में जा धँसा । रीमा ज़ोर से चीखी और तेज़ी से नदी में छलांग लगा दी । बाक़ी आदम भी तेज़ी से बाहर निकल आये और अपने धनुष से रीमा का निशाना साधने लगे । सारे तीर पानी में गप गप करके घुस गये । कुछ देर बाद रीमा नदी के बहाव के साथ कुछ आगे बहती हुई दिखायी दी । लेकिन वो रीमा नहीं थी उसका सिर्फ़ कंबल था, मतलब रीमा ने उन आदमों को बेवकूफ बनाने के लिए वो कंबल अपने बदन से खोल दिया था । रीमा की हिम्मत और उसके दिमाग़ की दाद देनी पड़ेगी । इतनी भयंकर स्थिति में तो बड़े बड़े लड़ाके विवेक शून्य हो जाते है । रीमा कंबल खोल कर बिलकुल नंग्न हो गई थी उसके लिए पानी का प्रतिरोध करना आसान हो गया था, वो पानी के बहाव के विपरीत दिशा में पानी के अंदर के तैरने लगी । ये तो अच्छा हो की कॉलेज के दिनों में उसने तैराकी का एक कोर्स कर लिया था जो उसकी जान बचाने के काम आ रहा था ।

आदमों ने जैसे है कंबल देखा उन्होंने तेज़ी से उस पर तीर चला दिया और तेज़ी से उसी तरफ़ भागने लगे । पानी के बहाव के साथ कंबल भी तेज़ी से आगे जा रहा था । आदम भी तेज़ी से भागने लगे । एक आदम का पैर नदी के पानी को छू गया उसके पैर में तेज जलन होने लगी वो वही रुक गया ये देख बाक़ी आदम पानी से दूरी बनाकर भागने लगे । कंबल के सहारे भागते भागते काफ़ी आगे निकल गये, एक आदम वही अपने पैर को पकड़ कर तड़पता रहा, फिर उठकर तेज़ी से जंगल की तरफ़ भागा । पता नहीं कौन सी बनावट थी इन आदमों की जो ये नदी के पानी के संपर्क में आते ही इनका शरीर जलन से बुरी तरह तड़प उठता था फिर उन्हें कई दिनों तक एक लेप लगाकर मिटी में दबे रहना पड़ता था । इधर रीमा अपनी जान बचाने को हाथ पाँव चला रही थी वो पानी के बहाव की ख़िलाफ़ किधर जा रही है इसका कोई पता पता नहीं था, कभी इधर पलट रही कभी उधर पलट रही, कभी इधर को हाथ पाँव मारती कभी उधर को, लेकिन किसी तरह से हाथ पाँव चलाती हुई एक किनारे पर पहुँची ।

उसकी साँसे तेज चल रही थी कुछ पानी मुँह में भी चला गया था और एक दो जगह वो पत्थर से टकरा भी गई लेकिन वो जानलेवा नहीं थी । उसके साथ में लगी खंरोच से खून के लालिमा झलकने लगी थी । पानी से भीगी पूरी तरह से नंगी रीमा ने हाँफती साँसो से सर घुमाकर दोनों तरफ़ देखा और रेत में सर रखकर अपनी साँसे क़ाबू करने लगी । उसको रोना आ रहा था लेकिन रो नहीं सकती थी । कुछ देर बाद धीरे से उठकर एक पेड़ के नीचे पड़े पत्थर से ओट लगाकर बैठ गई । समझ नहीं आ रहा था क्या करे, किस मुसीबत से निकलती है किस मुसीबत में फँस जाती है ।

इधर वो आदम कंबल का पीछा करते करते काफ़ी दूर तक नदी के किनारे आगे निकल गये लेकिन कोई भी नदी में घुसकर उस कंबल को निकाल कर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया । इधर जब दूसरा आदम पानी की जलन से तड़पता हुआ उस बूढ़े आदम के पास पहुँचा तो वो और ज़्यादा क्रोधित हो हो गया । उसे उसकी मूर्खता पर बहुत क्रोध आ रहा था लेकिन धीरे धीरे उसने सारी कहानी सुना दी । बूढ़ा आदम ने अपना भाला और दंड उठाया और नदी के किनारे को चल दिया । उसके साथ कबीले के २० और आदम हो लिए ।
जब वो किनारे पर पहुँचा तो रीमा हालतों से थक कर उसकी पत्थर के टेक लेकर हल्की नीद में सोयी हुई थी । सारे आदम भौचक थे, एक घनघोर जंगल, जहां आदमखोरों के आतंक की कहानियाँ मशहूर थी वहाँ एक मादा मनुष्य, वो भी पूरी तरह निवस्त्र, किसी को इन हालतों में नीद कैसे आ सकती है । इससे पहले वो बूढ़ा आदम रीमा की तरफ़ बढ़ता, उनके साथ आये आदम हुहूहूहुहुहूह करने लगे ।

रीमा की नीद टूट गई । उसने अपने से कुछ दूरी पर आदमों की भीड़ देखी ।
रीमा चिल्लायी - आदमखोर और इतना कहकर तेज़ी से पानी में कूद गई । उसके पीछे एक आदम तेज़ी से लपका लेकिन पानी में पहला पैर पड़ते ही वो जलन की गहरी पीड़ा से दोहरा होकर पीछे हट गया । रीमा ने देखा उसके पीछे जो आदम भागा था वो अपना पैर पकड़कर दर्द से कराह रहा है । उसने पीछे हटने को पानी में तेज़ी से छपाक मारी तो नदी के किनारे खड़े सारे आदम पीछे हट गये । और तेज़ी से रीमा पर तीर तान दिये ।रीमा को सामने मौत नज़र आ गई, डर आया और फिर हिम्मत भी, रीमा समझ गई ये पानी में नहीं घुस सकते है । अब रीमा की जान में जान आयी हालाँकि उनकी भयानक शक्लें देख अभी भी रीमा डर से काँप रही थी, उनसे दूर जाना चाहती थी लेकिन उसकी तरफ़ कुछ ने तीर ने निशाना साध रखा। रीमा समझ गई अब सब ख़त्म । ये मुझे मार देगें और फिर मेरा मांस भून कर खा जाएँगें । हाय मैं ऐसी मौत मरूँगी ऐसा कभी सपने में भी नहीं सोचा था । रीमा के शरीर पर कपड़े का कोई निशान नहीं था ख़ुद को गले तक पानी में डुबोए वो २० आदमखोर जानवरो से अपनी ज़िंदगी बचाने की जद्दोजहद में थी ।

कौन सी दुनिया में आ गई थी, क्या वो सच में पृथ्वी पर ही है, न यहाँ बिजली है न मोबाइल आई टीवी । बस जंगल है और ये, ये कौन लोग है, लगते तो इंसान जैसे है लेकिन ये है कौन और मेरे को क्यों मारना चाहते है ।

रीमा सोच रही थी जब मरना ही है तो नदी में डूब कर मर जाऊँ वैसे भी अस्थियाँ तो नदी को ही आनी है, इन दरिंदों के हाँथो इस मांस हड्डी की दुर्गति क्यों करवाना और फिर ये ज़िंदा तो छोड़गे नहीं । इस समय उसके अंदर क्या चल रहा है ये समझ पाना ख़ुद उसके लिए बहुत मुश्किल था । वो सामने ख़ूँख़ार आदमों को देखकर भयभीत थी, उन्होंने उसके ऊपर तीर तान रखे थे, मतलब एक हरकत हुई नहीं और सारे तीर उसके गुलाबी बदन में धँसे होंगे । क्याँ करूँ क्या करूँ कुछ समझ नहीं आ रहा था । इसी बीच रीमा पानी की एक लहर में थोड़ा सा हिली, उसका बदन भी और अभी तक उसका जो शरीर गले के नीचे पानी में था उसकी एक झलक उन आदमों को मिली, आदम की नज़र रीमा के बायें हाथ पर लगे भाले की खरोंच के निशान पर पड़ी, उसको ऐसा लगा जैसे रीमा की हाथ पर रज रक्त मुक्ति का निशान बना है । इन आदमों की परंपरा में अगर किसी आदम को स्त्री के रक्त से जीवन मुक्ति मिलती है तो उसे ये रज रक्त मुक्ति बोलते है । रज रक्त मुक्ति का निशान ऐसा होता है जिसमे एक स्त्री के शरीर लाल रक्त के साथ मुक्त होता दिखायी देता है ।रीमा के घाव के चारो और रक्त निकलने और सूखने से काला निशान बन गया था और बीच में लालिमा थी तो उस बूढ़े को ये आभास हुआ की ये रज रक्त मुक्ति का निशान है ।

वो ये आवाज़ में कुछ गरजा जो रीमा को समझ नहीं आया । लेकिन सबके तीर नीचे हो गये । बूढ़ा आगे बढ़ा तो रीमा भी नदी के पानी के एक कदम पीछे हटी और बूढ़े की तरफ़ पानी उछाल दिया ।
बूढ़ा आदम - मूर्ख क्यों मृत्यु को आवाहन दे रही है ।
रीमा को उसकी भराई आवाज़ से सिर्फ़ मृत्यु समझ आया । इसी बीच रीमा नदी में अपने पैर टिकाने को सीधी हुई तो लहरों ने खेल कर दिया और रीमा के नाभि के ऊपर वाले भाग से आँख मिचौली खेल कर चली गई । रीमा के पानी में भीगे गुलाबी बदन के उन्नत नुकीली उठी गुलाबी मख़मली छातियों का हाहाकारी यौवन देख कुछ आदमों की भाव भंगिमाएँ बदल गई ।

एक बोला - मुक्ति ।
बूढ़ा आदम - धाप दु हिड उर्यूअउउउ भप मूर्ख ना' छिले ।
सभी आदम गंभीर हो गये । बूढ़ा आदम आगे बढ़ा और नदी के किनारे पानी की धारा से पहले खड़े होकर उनसे एक हाथ रीमा की तरफ़ बढ़ाया, जैसे वो उसे नदी से निकलना चाहता हो । रीमा दहशत और आश्चर्य से उसे देख रही थी । उसने ऊपर से नीचे तक कोई कपड़ा नहीं पहना था । उसके लंबे बाल एक दूसरे में चिपक कर जटाए बना रहे थे । चमड़ी बिलकुल सूखी हुई स्याह रंग की, ऐसा लगता था जैसे शरीर में खून हो हो नहीं । गले में कुछ हड़ियो की माला और हाथ में एक दंड और भाला । इस पूरे कांड में अभी तक रीमा ने जो नहीं देखा था वो की इन बिना खून वाले आदमखोर आदमों के लिंग सामान्य से बड़े थे । उसके हाहाकारी उठे हुए नंग्न वक्ष स्थल को देखकर भी एक दो को छोड़कर किसी की भी भाव भंगिमा नहीं बदली । ऐसा लगता था की वो स्त्री के यौवन के भावों और अनुभवों से अपरिचित थे या वो उस वासनाओं के पड़ाव से काफ़ी आगे निकल गये थे ।

बूढ़े आदम ने एक बार और रीमा को अपनी तरफ़ आने का इशारा किया । रीमा टस से मस न हुई, उसने बूढ़े आदम को देखा और फिर उसके पीछे खड़ी उसकी फ़ौज को, जो उसके एक इशारे पर उसके शरीर को तीरो से छलनी कर देगी ।
बूढ़े आदम ने रीमा ने दुविधा को समझने की कोशिश की और अपने आदमियों को और पीछे जाने का इशारा किया ।
बूढ़ा आदम - कौन हो तुम और यहाँ इस घनघोर जंगल में, बिना कपड़ों के नग्न क्या कर रही हो ।
रीमा - तुम लोग कौन हो ।

बूढ़ा आदम - ये इलाक़ा में अंग्रेज सरकार ने किसी को भी आने को मना किया है । अंतिम बार एक स्त्री इधर आयी थी, मुझे लगा वो हमारे लिए आयी है (अपने लिंग को हिलाते हुए) लेकिन वो तो व्यर्थ ही अपनी मृत्यु के मुँह में चली आयी। हमारी तपस्या में उसका कोई मूल्य ही नहीं था और हमारा समय भी ख़राब किया और फिर उसका मांस यहाँ के जंगली जानवरों ने बड़े प्रेम से खाया था ।
रीमा - अंग्रेज सरकार, कैसी तपस्या ।
बूढ़ा आदम - तुम अंग्रेज सरकार को नहीं जानती, कहाँ से आयी हो ।
रीमा - शहर से ।
बूढ़ा आदम - वहाँ का शासन कौन चलाता है ।
रीमा - तुम लोग मुझे मार के खा जावोगे है न ।
बूढ़ा आदम - तुम स्वयं मृत्यु के मुँह में आयी हो, यहाँ जो भी आया उसकी मृत्यु निश्चित है, जब अंग्रेज सरकार ने मना किया है तो क्यों आयी इधर, और तुमारे वस्त्र किधर है, एक तो तुम निषिद्ध जगल में घूम रही हो ऊपर से निर्वस्त्र । क्या बाहर ऐसा ही जीवन है ।
रीमा - बाहर जीवन , नहीं अग्रेज सरकार को बहुत पहले चली गई ।
बूढ़ा आदम - किस राजा का शासन है वहाँ ।
रीमा - तुम हो कौन और मैं बस भटक गई हूँ, मुझे मत मारो प्लीज़ , मैं जानभूझ कर यहाँ नहीं आयी हो । क़िस्मत की मारी बस कैसे एक मुसीबत से बचते पड़ते दूसरी मुसीबत में फँस जाती हूँ ।

रीमा - मैं यहाँ से चली जाऊँगी और फिर कभी वापस नहीं आऊँगी ।
इतना कहकर रीमा ख़ुद को आगे की तरफ़ लायी और जैसे ही वो आगे को बढ़ने लगी , पानी का आवरण उसके बदन पर से उतरने लगा और उसके उजले गुलाबी मांसल कंधे उजागर होने लगे । उसको भारी उरोजों से झुकी छातियाँ नुमाया हो गई , एक पल को वो पाई में संतुलन बनाने को ठिठक गई । फिर नीचे की तरफ़ देखा और रीमा के हाहाकारी गुलाबी गोलाकार बड़े बड़े उरोजों और उस पर विराजमान उन्नत नुकीली चोटियों नुमाया हो रही थी । रीमा थोड़ा झुक गई और उसके आधे उरोज पानी में डूब गये । आदमों में कुछ इतने से ही वासना ग्रस्त हो गये लेकिन बाक़ी की भाव भंगिमा नहीं बदली ।

इधर सबका ध्यान पहले वाले आदमों पर चला गया जो कल रात को रीमा को दूढ़ने निकले थे वे आदम वापस आ गये, वो कंबल नहीं ला पाये और फल चुराने के लिए रीमा को ज़िम्मेदार बताया । ये जानकार बूढ़ा आदम क्रोधित हो गया ।
बूढ़ा आदम - तुमने देवी साधना में विघ्न डाला है तुम्हें मृत्यु ही मिलेगी । पकड़ लो इस मादा को ।
रीमा गिड़गिड़ायी - मैंने जानबूझकर नहीं किया, मुझे बहुत भूख लगी थी, नहीं खाती तो भूख से मर जाती ।
बूढ़ा आदम - मृत्यु ही तो मुक्ति है उससे क्यों भयभीत हो ।
रीमा - मैं कुछ भी करने को तैयार हो लेकिन मुझे मारो मत ।
बूढ़ा आदम - मृत्यु से इतना भय, हमारी जिस देवी साधना को भंग किया है पता है हम वो साधना क्यों करते है, क्या चाहिए हमे,
मृत्यु चाहिए, ले चलो इसे, हमारी मुक्ति के राह में आने वाले हर किसी को मृत्यु ही मिलेगी ।
रीमा - मैंने कुछ भी जानभूझ कर नहीं किया है मुझे मत मारो, तुम जो कहोगे मैं करने को तैयार हूँ ।
बूढ़ा आदम पलटा - जो भी मैं कहूँगा करोगी ।
रीमा - हाँ हाँ करूँगी , बस मुझे मारना मत ।
बूढ़ा आदम - तो ठीक है ख़ुद को देवी को समर्पित कर दो ।
रीमा - हाँ जो कहोगे कर दूँगी बस मेरी जान बख्श दो ।
बूढ़ा आदम - अपनी बात से पीछे मत हटाना ।
रीमा - नहीं हटूँगी ।

बूढ़ा आदम - पानी से बाहर आ जावो, हमारा प्रवेश वर्जित है इसमें ।
रीमा - नहीं तुम लोग मुझे मार दोगे ।
बूढ़ा आदम - मर्ज़ी तुमारी, ये सब तुमारी भाषा नहीं समझते, पानी से बाहर आवों नहीं तो ये वैसे भी तुम्हें मार देगें ।
रीमा धीरे से आगे की तरफ़ बढ़ी, लेकिन इतनी देर में पहली बार उसे स्त्री लज्जा का अहसास हुआ, वो तो पूरी तरह नंगी है, अभी तक तो नदी ने उसके गुलाबी जिस्म पर आवरण डाल रखा था लेकिन पानी से निकलते ही वो तो सबके सामने नंगी हो जाएगी ।
रीमा - मुझे कपड़े चाहिए, मैं इतने लोगो के सामने नंग्न, मुझे लाज आती है ।
बूढ़े आदम ने इशारा किया और एक आदम दो बड़े बड़े पत्ते तोड़ लाया । जंगल में यही वस्त्र है लपेट लो ।
आदम पानी में जा नहीं सकते थे इसलिए रीमा को ही बाहर आना पड़ा, लेकिन वो दुविधा में थी, कैसे पानी के बाहर निकले, इतनी निगाहे और सब की सब उसी के गुलाबी बदन पर चिपकी हुई। नदी के लहरों में ख़ुद को बड़ी मुश्किल से संतुलित करते हुए उसने अपने दोनों हाथो से उन्नत गुलाबी उरोजों की नुकीली पहाड़ियाँ बमुश्किल ढकी और और आगे बढ़ने लगी । पहली बार वो मन ही मन अपने बड़े बड़े उन्नत स्तनों के छोटे होने की तमन्ना कर रही थी । जिन बड़े बड़े मम्मो पर हो फूली नहीं समाती थी, जिनके कारण उसके आस पास ही औरते उससे जलन खाती थी आज वो सोच रही थी काश ये छोटे होते तो शायद इनको ढकने को एक हाथ ही काफ़ी था । रीमा का मादक मांसल जिस्म शमशान में भी लोगों के तम्मनाये जगा दे थे ऐसे हुस्न की मल्लिका थी /

पानी में चलते हुए धीरे धीरे उसके कदम आगे बढ़ रहे थे और उसका गुलाबी बदन पानी के नीले आवरण को छोड़ नुमाया होने लगा था, जैसे कभी लहर के कारण उसके कदम लड़खड़ाते और वो ख़ुद को संतुलित करती उसके हाथ हिल जाते और उसका ख़ज़ाने की एक झलक आदमों को मिल जाती और वो बस उसे देखे जा रहे थे और देखे जा रहे थे, ऐसा लग रहा था जैसे आँखो से ही चोद डालेंगें । नदी से बाहर निकलने तक के चार कदम भी सीधा पहाड़ चढ़ना जैसे लग रहे थे । रीमा ने धीरे से एक हाथ से दोनों उरोजो की नुकीली चोटियों को ढका और हाथ को कसकर छाती पर चिपका लिया ।

दूसरे हाथ को झट से अपने गुलाबी त्रिकोण पर लगा लिया । अब रीमा नंगी भी लेकिन उसके नंगे चुतड़ो के अलावा कुछ भी देख पाना मुश्किल था । हालाँकि जब औरत आपके सामने इस हद तक नंगी हो तो कल्पना करने को बहुत कम रह जाता है । रीमा झेपती शर्माती और सहमी सी आगे बढ़ी । उसका दिल जोरो से धड़क रहा था न जाने क्या होगा लेकिन कम से कम इतने सारे में लोगो में एक बूढ़ा था जिसकी नियत सही थी । पानी से बाहर आते आते रीमा के जिस्म का हर गुलाबी अंग नुमाया हो चुका था । एक भावहीन आदम ने रीमा को दो पत्ते आगे बढ़ा दिया ।

रीमा ने पत्ते लेने के लिए एक हाथ आगे बढ़ाया और जिस गुलाबी त्रिकोण की सिर्फ़ झलक मिल रही थी अब वो असल रूप में प्रकट था । आधे से ज़्यादा आदम की नजरे उसके जाँघो के गुलाबी चूत त्रिकोण पर ही टिकी थी
वो त्रिकोण जिसे हर सामान्य युवा मानव देखने और भोगने को आतुर है, जबकि उसका जन्म ही यही ये होता है । आदमी का चूत त्रिकोण का आकर्षण असल में उसके अस्तित्व से जुड़ा है इसलिए ये कभी ख़त्म नहीं हो सकता ।

रीमा अपने स्त्री लज्जा बोध को दिखाती पत्ते लपेट रही थी जो उसके भारी नितंबों पर नाकाफ़ी थी लेकिन और कोई चारा भी तो नहीं था । उन आदमों में वासना का भाव जाग्रत हो रहा था ये बात उस बूढ़े के लिए संतोषजनक और चिंतित करने दोनों तरफ़ से थी । इसकी दुविधा उसके चेहरे पर देखी जा सकती है । तभी एक आदम ने बढ़कर रीमा के बाये स्तन को मसल दिया, रीमा ने पत्ते छोड़ उसे मुक्का रसीद कर दिया और उसका भाला छीन लिया, इतना देखते ही बाक़ी आदम भी आक्रामक हो गये । रीमा ने झट से बूढ़े आदम की गर्दन पर भाला रख दिया ।

बूढ़ा आदम घूमा - ये क्या मूर्खता है, मृत्यु का भय नहीं ।
रीमा - अगर जरा भी हिले तो भाला गर्दन के पार होगा ।
बूढ़ा आदम ज़ोर से हँसा - हा हा हा मृत्यु , मृत्यु का भय दिखा रही हो वो भी हमको ।
रीमा को कुछ समझ न आया ये हंस क्यों रहा, पत्ते पता नहीं कहाँ गये , पूरा बदन नंगा, उसने एक बूढ़े आदमी पर भाला तान रखा है और उसके चारो ओर २० लोगो ने तीर से उस पर निशाना साध रखा । एक आदम आगे बढ़ा तो रीमा ने भाले पर ज़ोर बढ़ा दिया ।
बूढ़े आदम को अपने गले में दर्द का अहसास हुआ और एक बूँद रक्त की निकल आयी । ये कैसे संभव है, मैं तो रक्तहीन हूँ, त्वचा की संवेदना न्यून है फिर मुझे भाले की नोक से दर्द का अहसास हुआ और रक्त भी निकला । कुछ ठीक नहीं है, कुछ तो है जो मैं सुलझा नहीं पा रहा हूँ ।
बूढ़ा आदम अपनी मूल भाषा में - ठहरो ।

सभी अपनी अपनी जगह ठिठक गये । फिर उसने सबको पीछे हटने को कहा, एक बार में न सुनने पर वो दूसरी बार चिल्लाया । उसने रीमा को घूर कर देखा - कौन हो तुम ।
रीमा को लगा ये दांव काम कर गया - वो पानी की तरफ़ बढ़ने लगी, उसे पता ही नहीं था की वो २० आदमों के सामने सिर से लेकर पैर तक नंगी है । उसी के साथ साथ उसने बूढ़े को धमकाया - मेरे साथ साथ चलो वरना बुरा होगा ।
बूढ़ा आदम - तुम जैसा कहोगी वैसा ही करूँगा लेकिन मेरे प्रश्न का उत्तर दो , कौन हो तुम ।
रीमा - नदी के पानी में पहुँच गई, बूढ़ा भी बिना अपने शरीर की जलन की परवाह किए बिना उसके साथ नदी में चलता चला गया । पानी के संपर्क में आते ही उसको भयंकर पीड़ा होने लगी। उसको पीड़ा देख एक बार को रीमा का कलेजा काँप गया लेकिन करती भी क्या ।
रीमा - इनसे कहो हथियार फेंक दे ।
बूढ़ा आदम ने अपने लोगो से हथियार फेंकने को कह दिया - वे कर्तव्य विमूढ़ से उसके आदेश का पालन करने को विवश थे ।
बूढ़ा आदम - कौन हो तुम देवी ।

रीमा को अजीब लगा - ये मेरे को देवी क्यों कह रहा है, रीमा को लगा यही सही मौक़ा है बूढ़ा पानी के कारण जलन से मरा जा रहा है, उसने बूढ़े को लात मारी और भाला फेंक पानी में डुबकी लगा दी । बूढ़ा सर से पैर तक जलन का ताबूत बन गया लेकिन वो उसी पानी में खड़ा हुआ और उसने अपने कमर में बंधी एक बांस की छोटी नली निकाली और रीमा जिस पानी की धारा में लुप्त हुई थी उसी को गौर से देखता रहा और फिर उसने निशाना साध कर फूंक मारी । पानी के अंदर बहाव के साथ आगे को जाती रीमा की गर्दन में एक सुई जैसा चुभने का अहसास हुआ और इधर बूढ़ा धड़ाम से पानी में ही गिर पड़ा । उसके साथ के आदम बूढ़े को निकालने के लिए पानी में कूद पड़े, शरीर उनका भी जलता था लेकिन और करते भी क्या । बूढ़े को जैसे ही वो पानी से बाहर निकालने लगे वो कुछ बुदबुदाया और बाक़ी आदम आगे नदी की धारा की तरफ़ बढ़े । कुछ ही देर में उन्हें रीमा का पता चल गया और वो उसी का निशाना लगाकर उसको पानी से खींच कर बाहर ले आये ।

रीमा अर्ध मूर्छित अवस्था में थी और पानी से बाहर आते ही पूरी तरह बेहोश हो गई । उसके हाथ पाँव बांधकर उसको एक लकड़ी में लटकाकर आदम अपनी गुफा की और चल पड़े । शायद रीमा का अंत अब निकट आ गया था । पानी से विचलित बाक़ी आदम भी जैसे तैसे पीछे पीछे चलने लगे ।
बूढ़े आदम ने सबको सख़्त हिदायत दी की पूजा से पहले उस स्त्री के पास कोई नहीं जाएगा ।
तीन दिन की बेहोशी के बाद रीमा ने अपने आप को एक गुफा में पाया, उसके पैर और हाथ दोनों लताओ से बंधे थे ।

इधर रोहित सिक्युरिटी और वन विभाग शिकारी कुत्तो के साथ नदी के दूसरी तरफ़ की ख़ाक छानने लगे । तीन दिन खोजने के बाद रीमा का कंबल नदी के एक किनारे पर मिला । उस आदमी ने अपने कंबल को तुरंत पहचान लिया । अब रोहित की आँखों तले अंधेरा छाने लगा । इधर जंगल घूमते घूमते रोहित को नदी के दूसरी तरफ़ के सारे किसे भी सुनने को मिल गया थे इसलिए उधर जाने की तो कोई उम्मीद भी न थी । रोहित पूरी तरह टूट चुका था उसने अब माँ लिया था की रीमा शायद अब जीवित नहीं रही । वो शायद अब कभी नहीं लौटेगी। बस उसका रोना ही बाक़ी था । किसी तरह ख़ुद को सँभाले टूटे दिल के साथ वापस घर की ओर चल दिया ।

इधर रीमा को नियमित समय पर खाना मिलता और सारी सेवा हो रही थी लेकिन न तो उसके हाथ पाँव खोले गये और न ही उसको कही बाहर जाने की अनुमति थी । एक जंगली पत्तो की परत से उसका बदन ढका गया था । बाक़ी जो भी आदम पानी के प्रभाव में आये थे वो सारे इस समय मिट्टी स्नान कर रहे थे । रीमा इतना तो समझ गई थी इन सभी आदमों की उम्र अलग अलग है और जो कम उम्र के है उनका उसको देखने का नज़रिया अलग है बाक़ी उम्रदराज़ लोगो से । ऐसा लगता है उम्रदराज़ लोगो में न कोई भावना है न कोई संवेदना है । एक दिन रीमा ने एक आदम को अपना फल खाने को दिया लेकिन उसने लेने से मना कर दिया । तीन दिन बाद बूढ़ा आदम वापस आया । जिस दिन पूर्ण चंद्रमा होगा उस दिन पूजा है और फिर हम तुमारे रज रक्त की बलि देगें ।

रीमा - मुझे मारने से क्या मिलेगा ।
बूढ़ा आदम - अगर मृत्यु आवश्यक हुई तो वो भी करेगें ।
रीमा - लेकिन मुझे बिना मारे अगर तुमारा काम हो जाये तो ।
बूढ़ा आदम - मुक्ति इतनी आसान नहीं है ।
रीमा - मुक्ति तुम्हें चाहिए फिर मुझे क्यों मारना है ख़ुद को मारो ।
बूढ़ा आदम - तुम ही मुक्ति द्वार हो सकती हो, अब अगर तुमारे रज रक्त की बलि देवी ने स्वीकार कर ली और हेम मुक्ति दे दी तो हम तुम्हें नहीं मारेजें ।
रीमा को कुछ समझ नहीं आया । अब तक उसका डर भी काफ़ी हद तक निकल गया था । बूढ़ा आदम चलने को हुआ तो रीमा बोली - मुझे अगर यहाँ घूमने को मिल जाये, मैं यहाँ पड़े पड़े बोर हो जाती हूँ ।

बूढ़ा आदम - साधना इतनी आसान नहीं ।
रीमा - तो मुझे साधना कछ में ही बेज दो ।
बूढ़े आदम ने अपने एक युवा से कुछ मूल भाषा में कहा और चला गया ।
अगले दिन से रीमा को दो अलग अलग जगह पर आदम अपनी उपस्थिति में टहलाते थे । जिनमे से एक युवा आदम रीमा पर ज़्यादा ही आसक्त था । रीमा की सेवा में कोई कमी नहीं थी जैसा बकरे की बलि देने से पहले खिलाया पिलाया जाता है वैसे ही रीमा को भी सब कुछ खाने को उपलब्ध था । बस बाहर अकेले जाने की आज़ादी नहीं थी ।
अगले कुछ दिनो में रीमा ने उन आदम लोगो के बारे में काफ़ी कुछ जाना, लेकिन जितना वो जानती उतना ही वो रहस्यमयी प्रतीत होते । पहली बात जो उनसे जानी की ये आदमखोर नहीं है, असल में ये भोजन नहीं करते है, निद्रा भी इनकी न के बराबर है और ज़्यादातर साधना और तपस्या में लीन रहते है और इनकी साधना करने का कारण मुक्ति है । इन्हें मुक्ति चाहिए, सबको मुक्ति चाहिए । सब बस मरना चाहते है । लेकिन क्यों ये एक बड़ा सवाल था और इसका जवाब अभी रीमा के पास नहीं था । उसको ये तो पता चल गया था की अगर इनको मुक्ति न मिली तो ये ज़रूर रीमा को मार डालेगे, तो रीमा को ये तो समझ आ चुका था की बचने का एक ही रास्ता है वो है मुक्ति लेकिन कैसे । रीमा को उनकी साधना के तरीक़े अजीब लगते थे, ढेर सारी हड्डियाँ, जानवरो की बलि और रक्त को अग्नि में डालना और पता नहीं क्या क्या लेकिन एक बार जो उसे समझ आयी, यहाँ कामनाओ का कोई मूल्य नहीं है, सभी ऐसा लगता है जैसे वैरागी है । जबसे यहाँ आयी है उसके मन में भी सांसारिक विचार नहीं आये, कामना, भय, चिंता सब जैसे दूर हो गया हो सिर्फ़ उस मृत्यु के विचार को छोड़कर । उसे बस वही बात कभी कभार परेशान करती अन्यथा वो यहाँ गहरी मानसिक शांति में थी ।

यहाँ आकर उसे समझ आया की उसके नंग्न शरीर को देखकर भी ज़्यादातर आदमों की भाव भंगिमाये क्यों नहीं बदली । क्योंकि वे साधना रत होकर अब इससे ऊपर जा चुके थे जहां शरीर का आकर्षण शायद उन्हें प्रभावित नहीं करता था । बस कुछ थे जो शायद अभी इस सिद्धि से दूर थे और उनका मन अभी भी चंचल था । उन्हीं चंचल मन वाले आदम में से एक आदम रीमा की सेवा में लगा था । उसके आँखों में रीमा के लिए आकर्षण साफ़ नज़र आता था वो रीमा को निवस्त्र देखने की यथा संभव कोशिश भी करता और रीमा का शक सही था, एक दिन उसने उसी आदम को अपना लिंग मसलते देख लिया, पहले तो वो वहाँ से जाना चाहती थी लेकिन आँड़ लेकर उसने देखा की उसके पहने हुए पत्तों को सूंघकर वो अपना लिंग मसल रहा है, मतलब ये वासना मुक्त नहीं है लेकिन बड़ी कोशिश के बाद भी उसका लिंग में तनाव नहीं आया और कुछ देर बाद एक हल्का सफ़ेद द्रव्य निकला और वो शांत हो गया ।
रीमा का दिमाग़ घूम गया, ये क्या माजरा है, इनके लिंगों में कठोरता नहीं आती लेकिन स्खलन होता है । वैसे अच्छा है इनके लिंक कठोर नहीं होते नहीं तो ये तो स्त्रियों की योनि ही फाड़ डालते, रीमा ने जीतने भी आदम देखे थे सबके निर्जीव लिंग भी रोहित से दोगुने थे । वो सोच रही थी कौन से जीव है कौन सी मनुष्य की प्रजाति है न कुछ खाते है न सोते है और बाहर की दुनिया में इनके बारे में कितनी ग़लत अवधारणा फैली है की ये आदमखोर है ।

बहत से विचारों में घूमते घामते रीमा ख़ुद पर आ गई, मेरा क्या होगा । क्या ये मुझे मार डालेगे, अभी तो बहुत खिला पिला रहे है । लेकिन मारने से पहले मुझे ये पता करना होगा इनको मुक्ति क्यों चाहिए और ये सब ऐसे क्यों है, इनकी चमड़ी में कोई रौनक़ नहीं, शरीर हड्डियों का ढाँचा है लेकिन बल इतना की कुंतल भर का पत्थर अकेले उठा ले, ये है तो कोई मानव प्रजाति की ही शाखा लेकिन क्या है ये पता लगाना होगा, शायद मरने की नौबत न आये और मैं बच जाऊँ । वो आदम जब वहाँ से चला गया तो रीमा ने चुपके तो वो पत्ता जिस पर वो अपना वीर्य निकाल कर गया था उसको उठाकर छुपा दिया और बूढ़े आदम को दिखाने के लिए सही समय का इंतज़ार करने लगी ।

एक दो दिन और बीतते है लेकिन उस आदम की हरकत रीमा के लिए बदलती जा रही थी । अब वो रीमा को किसी न किसी बहाने स्पर्श करता था । रीमा चाहकर भी ज़्यादा कुछ कर नहीं सकती थी । उसकी भयानक शक्लों से ही अब उसे डर नहीं लगता क्या ये कम बड़ी बात थी । उसी दिन जब वो रीमा के भोजन की डालियाँ वापस ले जा रहा था तो उसने इशारा किया । उसने अपने लिंग को हाथ में पकड़कर रीमा को पकड़ने को कहाँ । रीमा पीछे हट गई । उसको भी जाना था इसलिए वो भी वहाँ से चला गया लेकिन उसका मन में जो कामनाये उमड़ रही थी वो तो ऐसे शांत नहीं होने वाली थी । वो रात में वापस आता है, रीमा तब तक सो चुकी थी, इसलिए वो रीमा को जगाता है और बड़े भी अनुनयी आँखों से अपना लिंग पकड़कर रीमा के हाथ में रखने लगता है । रीमा नीद के बोझ से लदी थी जब तक उसे समझ आता तब तक वो अपना फुट भर का लिंग रीमा के हाथ में रख चुका था, जिसे रीमा एक झटके में झटक देती है और ज़ोर से चिल्लाने को होती है इससे पहले वो रीमा का मुँह बंद कर देता है और रीमा की चीख मुँह में ही घुट जाती है । वो एक हाथ में बरछी लेकर रीमा को मारने की धमकी देता है, अगर रीमा चिल्लायी तो वो मार देगा । उसी तेज़ी से वो बरछी रीमा के गले पर लगाकर रीमा के मुँह में पास पड़े पत्ते भरकर उसका मुँह बांध देता है । फिर हाथ और पैर भी बांध देता है । रीमा के शरीर के पत्ते तार तार हो गये, उसे ये भी नहीं पता था की स्त्री के मैथुन कैसे करते है । रति क्रिया के ज्ञान से शायद वो अनभिज्ञ था । उसने रीमा को पलट दिया और उसके सबसे ज़्यादा मांसल हिस्से यानी उसके चुतड़ो पर अपना मूर्छित लिंग रगड़ने लगा जिसकी मूर्छा शायद ही दूर हो ।उसके लिंग रगड़ते रगड़ते रीमा के चुताड़ो की दरार में आ गया और फिर वो मांस का निर्जीव लोथड़ा उसकी चुतड़ो की दरार में अपनी घिसाई करने लगा ।

रीमा भयभीत हो गई, उनके लिंग आम आदमी से बिलकुल अलग थे, एक तो वो साइज में बड़े थे ऊपर से उनकी त्वचा भी वैसे ही सुखी सुखी, जैसे सुखी नरम लकड़ी, रीमा को ऐसा लग रहा था जैसे कोई रबड़ का सूखा डंडा उसके ऊपर रगड़ रहा हो । लेकिन रीमा निर्जीव सी नहीं पड़ी थी इसलिए रीमा के प्रतिरोध को भी उसे बार बार क़ाबू करना पड़ता था । रीमा के जिस्म की गर्मी का असर कहे या रीमा के शरीर का स्पर्श या रीमा के शरीर के घर्षण से हुए परमाणुओं के आदान प्रदान, उस आदम के लिंग में हल्की फुलकी कठोरता आने लगी थी । जैसे ही उसे अहसास हुआ की उसका लिंग कठोर हो रहा है , उसका जोश दोगुना हो गया, अब रीमा टस से मस नहीं हो सकती है । दुगनी घर्षण से वो रीमा के मांसल चुतड़ो पर अपना मुर्दा लिंग रगड़ने लगा । रीमा के जिस्म पर इतना दबाव था की उसका दम घुटने को आया, उसका मुँह पहले से ही बंद था और अब तो नाक से सांस लेना भी दूभर था ऊपर से उस आदम की बदबू, रीमा के लिए सब सा सब जानलेवा था, रीमा से अपनी पूरी ताक़त से ख़ुद को उसकी गिरफ़्त से छुड़ाने की कोशिश की और पैर फटके और इसी नूरा कुश्ती में उसका लिंग रीमा की पिछली गुलाबी सुरंग के मुहाने से टकराया । रीमा चीखी लेकिन वो चीख उसकी मुँह से न निकल सकी और आँखों से लालिमा और आंसू बनकर बह निकली । पहली टकराहट रीमा का उसके चंगुल से निकलने के प्रतिरोध में हुई थी और शायद इस क्षण ने उसे एक नया मंत्र दे दिया, उसका अर्ध तनाव वाला लिंग ने रीमा ने पिछले द्वार पर ज़ोरदार दस्तक दी । रीमा भीषण चीख से चीखी ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके चूतड़ फाड़ दिये हो, उसका मूसल खुरदुरा लिंग रीमा की गुलाबी गहराइयो में धँस गया और फिर जो हुआ तो चमत्कार से कम नहीं था, रीमा की चीख के आंसू अभी बस निकले ही थे की वो आदम भी चीख़ा और ज़ोर से चीख़ा । फिर पतझड़ शुरू हो गया । रीमा का दर्द एक सामान्य दर्द में बदल गया, उसने लिंग बाहर निकाल लिया और रीमा के चुतड़ो को सरोबार कर दिया।

रीमा के ऊपर से आदम लुढ़क गया और ज़ोर से खड़ा हो गया । वो अलग अलग मुद्रा में नृत्य करने लगा, रीमा अभी हुई नूरा कुश्ती से ज़मीन पर पस्त पड़ी थी । उसमे इतनी हिम्मत नहीं थी की वो आदम से आँख मिला सके, आख़िर उसने अपने पौरुष बल से उसका बलात्कार जो कर डाला था । रीमा की हिम्मत टूट चुकी थी, और शरीर भी, आख़िर एक स्त्री का शरीर इस दानव से कैसे लड़ता, वो अपने स्त्री होने दीनता पर रोने को थी, तभी उस आदम ने नाचते नाचते रीमा के पीछे बंधे हाथ खोल दिये । रीमा के आंसू, बेबसी, लाचारी सब एक साथ उठे झट से उसने अपने मुँह में को खोला और ज़ोर से चिल्लायी और फिर अपने पैर खोले । आदम को रीमा के चिल्लाने से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा । पड़ता भी क्यों, उसके लिंग में अजीब सा परिवर्तन आ गया था, उसका बाक़ी शरीर अभी भी उसकी काली रूखी त्वचा का था लेकिन लिंग का न केवल आकर सामान्य हो गया बल्कि अभी हुए स्खलन के बाद भी उसका तनाव ऐसा था, रक्त से भरा, रक्तिम रंगत लिए कठोर लिंग ।

उसके इस विजय का जुलूस तो अब रीमा निकालने वाली थी, अपने स्त्रीत्व को इस तरह लूटते पिटते देख, अपमानित होते देख उसने झट से पास पड़े एक त्रिशूल को उठा लिया, उस आदम के पीछे भागी और आदम आगे आगे और वो पीछे पीछे । आगे चलकर रीमा ने एक तलवार नुमा हथियार भी उठा लिया । इस समय रीमा का रौद्र रूप देख कोई नहीं कह सकता था की ये रीमा बेचारी वासना की मारी एक अबला नारी है । उसका एक ही लक्ष्य था इस आदम का सर और लिंग दोनों उसके शरीर से अलग करना । बलात् संभोग के कारण उसका चेहरा और आँखें हो पहले से ही लाल थी और बाक़ी कमी ग़ुस्से ने पूरी कर दी । गुफ़ावो में शोर सुनकर बाक़ी आदम भी अपनी साधना से जग गये, इसी बीच वही आदम जिसने रीमा का बलात् गुदा भंजन कर दिया था उसने एक हड्डियों की बनी माला रीमा के गले में डाल दी, इधर उसने रीमा के गले में माला डाली और उधर रीमा से तेज़ी से अपना दाहिना हाथ चलाया और आदम का सर धड़ से अलग हो गया । वो आदम माला पहनाने के बाद रीमा पर नीली भस्म डालने लगा । एक तरफ़ आदम का गिरता सर, उसके धड़ से निकलती रक्त की कुछ बूँदे, और रीमा के एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे में रक्त रंजित तलवार, उसके रक्त की बूँदे रीमा के स्तन और अग्र बाग पर भी गिरी लेकिन वो उस नीली भभूत से पूरी तरह नहा गई । उसने दूसरे वार से उसका लिंग भी अलग कर दिया ।

ये सब जहां हुआ वही इस आदमों की कुल देवी की उपासना होती थी और वही पर एक आदम का मस्तक धड़ से अलग हो गया ।

आदमों ने ये देखा तो तेजी से सभी शस्त्र लेकर देवी की मूर्ति की तरफ़ बढ़े । उनके चेहरे वैसे भी भयानक थे अभी तो वो और भी भयानक लग रहे थे । सभी आदम तेज़ी से रीमा की तरफ़ बढ़े, रीमा चढ़कर तेज़ी से देवी के आसन की तरफ़ बढ़ गई । देवी का ऐसा ऐसा अपमान, एक स्त्री पूरी तरह से नग्न होकर देवी स्थान पर चढ़ जाये । सारे आदमों को त्योरियाँ तन गई । एक ही शब्द गूजने लगा - मृत्यु , मृत्यु मृत्यु ।
रीमा को अलग अब अंत निकट है, तभी एक आदम से रीमा पर भाला फेंका तो रीमा ने भी अपना त्रिशूल को फेंक दिया और हाथ में पकड़े आदम के सर को देवी की मूर्ति के आगे बने अंग्निकुण्ड की तरफ़ फेकने वाली थी । तभी बूढ़ा आदम आ गया ।
वो ज़ोर से चीखा - ये क्या किया तुमने, देवी स्थल को अपवित्र कर दिया ।
रीमा ने आदम के लिंग की तरफ़ इशारा करके - उधर देखो ।
इसने मेरे साथ बलात् काम किया है, क्या दंड है इसका, मृत्यु नहीं तो और क्या, उसके हंसते हुए सर को लहरा कर रीमा बोली ।
बूढ़ा आदम - मृत्यु, इसे मृत्यु नहीं आएगी, हम सब मृत्यु की ही तो राह देख रहे है मूर्ख स्त्री । ये क्या किया तुमने ।
तभी बाक़ी आदम चिल्ला उठे - मृत्यु मृत्यु मृत्यु । इसी के साथ जैसे वे देवी मंच की तरफ़ बढ़ने को हुए, तभी रीमा ने पीछे देवी के हथों में लगा त्रिशूल खींच लिया, और फिर आकाश में तेज बिजली कड़की, एकदम से बहुत तेज आँधी आ गई । सभी आदमों की आँखें बंद होने को हो गई, और देवी मंच पर खड़ी रीमा के बाल हवा में लहराने लगे । जिस हाथ में तलवार और आदम का सर पकड़े थी, वो एक की जगह दो दिखने लगे, पीछे आदमों की कुल देवी की प्रतिमा के आगे खड़ी रीमा की छवि ऐसी बनी की सभी चकरा गये । ऐसा लगा सच में देवी अपने रौद्र रूप में प्रकट हो गयी हो | लहराती जटाए, हाथ में कटा मुंड, हाथो में शस्त्र, रक्तिम आँखें और क्रोध से भरा चेहरा ।

बहु बहु भुजाये , शश्त्रो से लैस, अग्नि उगलते रंक्त रंजित नेत्र, रक्त को प्यासी जिव्हा, क्रोध से तमतमाता चेहरा उसे लगा जैसे सीधे कुल देवी ही अपने असली रौद्र रूप में प्रकट हो गयी हो | सबको देवी की मूर्ति के आगे नंग्न खाड़ी रीमा ऐसी ही दिखाई दे रही थी |
सभी घुटनों के बल बैठ गए, सभी ने हाथ जोड़ लिए, सभी के सर झुक गये । रीमा का डर से कांपता, अपनी आत्मरक्षा के लिए हत्या को तंत्पर और डर और भय से पीली पड़ी उसकी गुलाबी चमड़ी घनघोर आश्चर्य में पड़ गयी | ये आदमखोर जो मेरे प्राण लेने तो तत्पर थे अब उसके सामने हाथ क्यों जोड़ रहे है |
बूढ़ा आदम - ही जगत जननी, मुक्ति देवी, मुक्ति . . . आप ही निर्माता हो हो आप ही विनाशक हो, आप ही सृजन कर्ता हो आप ही मुक्तिदाता हो | मुक्ति दो हमें देवी मुक्ति दो | आप ही हमें इस श्राप से मुक्त कर सकती हो | हमारे पापों को अब माफ़ कर दो | हमें इन अनंत काल की कष्टों से मुक्त कर दो | हम अपनी दिव्य शक्तियों से, अपने दिव्य रज के पान से हमें हमारी इन्द्रियां वापस कर दो, हमे जीवन मृत्यु के चक्र में लौटा दो, ताकि हम मुक्त हो सके | हमें मृत्यु दे दो माई, हमें मृत्यु दे दो देवी |

उन सब आदमों के लिए लिए वो उनकी कुल देवी थी जो अस्त्रों शस्त्र से लैस अपने प्राकृतिक रूप में सभी पापियों को मुक्ति देने निकल पड़ी है जिनके क्रोध की ज्वाला में सभी चर अचराचर जीव भस्म हो कर मुक्ति पा जाएँगें | वो ऐसी भयानक अग्नि की ज्वाला प्रज्वल्लित करेगी की जिसमे सब नष्ट हो जायेगा | ये फल फूल पौधे नदी नाले, ये सारी प्रक्रति सब भस्म होकर राख हो जायेगा ऐसी असीमित उर्जा और शक्ति का साकार स्वरुप थी देवी, जो उन्हें नजर आ रही थी | नर मुंडो से खेलने वाली, रक्त का जलपान करने वाली, हड्डियों का आभूषण पहनने वाली, देवताओं मनुष्यों किन्नरों गन्धर्वो रीछो और असुरों का संहार करके प्रलय लाने वाली, जिनके क्रोध की ज्वाला से कला चक्र भी विचलित हो जाता है उनके सामने मनुष्य क्या देवता भी अपना सर नवाते है | ऐसी महा शक्ति को नमन कर उनसे मुक्ति की कामना करना तो सौभाग्यशाली के जीवन में होता है |

रीमा जितना डरी हुई थी उतनी ही हैरान थी बाकि आदम उसके चरणों में पड़े मुक्ति मुक्ति चिल्ला रहे थे | उसे समझ न आया क्या करे, वो वहां से भाग निकलने को हुई लेकिन उसका दिमाग चकरा गया शायद वहां तेज हवा के कारण हवन कुंड से उठते धुए के करना हुआ होगा । जैसे ही वो धुएँ को पार कर आगे मूर्ति के पास आयी रीमा को यक़ीन यकीन नहीं हुआ उसके सामने एक देवी प्रकट हुई | रीमा हैरान विस्मित फैली आँखों से देख रही | उसने एक बारगी आंखे बंद की फिर खोली | सामने सच में आदि शक्ति देवी स्वयं प्रकट थी | पता नहीं ये कौन से नशे का असर था या सच था या सपना था लेकिन जो कुछ भी था वो रीमा को सामने साफ़ साफ़ दिख रहा था । रीमा का मन बार बार ये मानने का यक़ीन नहीं करता था फिर जो आँखो के सामने है, प्रत्यक्ष है उसे कैसे झुठला दे । उसने मनोविज्ञान पढ़ा था और उसे ये भी मालूम था की व्यक्ति जिस बारे में ज़्यादा सोचता है अकसर वो उसके सामने प्रकट हो जाता है या मन उसी छवि को अंदर से गढ़कर इतना मज़बूत बना देता है की कल्पना भी यथार्थ लगने लगती है । रीमा से पिछले कई दिनों से जिस तरह की घटनायें हुई उसके बाद रीमा के कुछ भी असंभव नहीं था । फिर भी ये सच नहीं हो सकता, मेरे मन की कोई कोरी कल्पना है जो मेरे मन में उठे प्रश्नों का उत्तर दे रही है ।

प्रकट हुए देवी बोली - मुक्ति दे दो इन्हें, बहुत कष्ट सहे इन सब ने | अब इनकी मुक्ति का समय है |
रीमाकी घिघ्घी बंध गयी - मै मै . . |
कुछ चीजे हमारी कल्पना से परे होती है, अप्रकट होती है, अद्रश्य होती है लेकिन होती है | इस संसार में बहुत सी अद्रश्य उर्जाये है बस कुछ ही उन्हें महसूस कर पाते है और कुछ ही उन्हें संभाल पाते है | वो ये उर्जाये ही है जो मनुष्य से असंभव काम करवा लेती है | तुमारा मानव शःरीर सीमित उर्जा का स्थान है लेकिन तुम इस असीमित उर्जा का आवाहन कर इस कार्य को पूर्ण करो | काल तुम्हे इसे सहन करने की शक्ति देगा |
रीमा उस शक्ति, या महा शक्ति के लावण्य आत्मीयता और सौंदर्य में खोयी मंत्र मुग्ध सी - काल . . . |
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