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उसकी 'आह हहह ... ओह्ह ... ममम ...' से पूरा घर गूंज रहा था।

उसे ऐसा मज़ा आज तक नहीं आया था।

विकास से शालिनी को बस लंड मिला था।

सेक्स उसे आज बाप से मिला।

विकास नौसिखिया है और पापा ने जवानी में जाने कितनी चूतें चटकाई होंगी।

बेटी की तड़प और उसके कांपते पैरों को सहारा देते हुए दीनानाथ ने शालिनी की जांघें सहलाई और पूछा- मज़ा आ रहा है मेरी राजकुमारी?

"हाँ पापा, बहुत मज़ा आ रहा है ... आई लव यू पापा!"

"आई लव यू टू मेरी गुड़िया!" कहकर दीनानाथ ने वापस अमृत कलश से होंठ सटाये और रसपान करने लगा।

इस बार उसने शालिनी का दाहिना पैर उठा कर बेड के सिरहाने रख दिया और टांगों के बीच से निकल कर आगे से चूत चाटने लगा।

अब दीनानाथ का सिर शालिनी के आगे था जिस पर वो बीच बीच में हाथ फिरा देती थी।

साथ ही वो अपने खुद के जिस्म में सुलगती लगातार अपने निप्पल मींजने में लगी थी।

चूतड़ों को सहलाते पापा ने चूत चाट चाट कर बेटी की हालत खराब कर दी थी।

दीनानाथ कभी होंठों से दाने को मसलता तो कभी दांतों से काटता ... जीभ जितनी लंबी जा सके उसे चूत में घुसाकर जीभ से चूत चुदाई कर रहा था।

अबकी बार दीनानाथ ने अपने हाथ के अंगूठे से शालिनी की गांड का छेद रगड़ना चालू कर दिया।

चूत और गांड पर एक साथ होने वाले हमलों से शालिनी की नींव हिल गयी, उसके पैर थर थर काँपने लगे।

बेटी को संभलता न देख दीनानाथ ने उसे चूतड़ और चूत के बल पर ही उठा लिया और अपने सामने बेड पर पटक दिया।

दीनानाथ का मुँह अब भी चूत चाट रहा था लेकिन अंगूठा गांड के अंदर घुस चुका था।

शालिनी ने दोनों हाथों से दीनानाथ के बाल जकड़ लिए और पूरी ताकत से उसे अपनी चूत में दबाने लगी।

मानो वो अपने बाप को अपनी चूत में समा लेना चाहती हो।

जीभ और अंगूठा लगातार अंदर बाहर चलने की वजह से शालिनी संभल न सकी और एक के बाद एक पिचकारियां मारते हुए अपने बाप को पूरा भिगो दिया।

जितना रस दीनानाथ पी सकता था उतना पी गया बाकी चेहरे गले और छाती पर फैला पड़ा था।

कुछ देर में शालिनी का सांस जुड़ा तो उसने देखा पापा सामने बैठे इसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रहे हैं।

5 मिनट पहले शर्म लिहाज़ फेंक कर बाप के मुँह पर चूत घिसने वाली बेटी अब शर्मा रही थी।

कुछ देर पहले का सीन याद कर शालिनी ने मुस्कुराते हुए मुँह फेर लिया।

लेकिन दीनानाथ ने चुटकी लेते हुए कहा- इन छोटी संतरे की फांकों में में इतना रस निकलेगा, सोचा नहीं था!

शालिनी कुछ नहीं बोली, बस बाप की तरफ देख कर मुस्कुरा दी।

दीनानाथ फिर बोला- और तुझ छोटे से पटाखे में इतनी आग होगी, वो भी नहीं मालूम था।

"आपका ही खून है पापा, और चिंगारी भी आपने ही लगाई थी।" इतना कहते हुए शालिनी उठी और लपक कर अपने पापा से लिपट गयी।

शालिनी के चूचे बाप की भीगी छाती पर घिस रहे थे चेहरे से टपकते अपने चूत के रस को चाट चाट के साफ करने लगी।

बेटी का स्खलन देख कर दीनानाथ का लंड फिर से खड़ा हो चुका था।

गोद में बैठी शालिनी की गांड पर जब लंड ने दस्तक दी तो वो उछल गयी, फिर उसे गांड की दरार में सेट करके वापस बैठ गयी और दीनानाथ को जहाँ तहाँ चूमने लगी।

बेटी की गांड की गर्मी सीधे अपने लंड पर महसूस करते हुए दीनानाथ ने शालिनी के कान में पूछा- तैयार हो बेटी?

"आपके लिए हमेशा पापा!"

"आई लव यू मेरी रानी!"

"आई लव यू टू मेरी माँ के पति!" बोल कर शालिनी खिलखिला के हँस दी।

इसी खेल में दीनानाथ ने शालिनी को हल्का सा उठा कर लंड सेट किया और वापस शालिनी को नीचे दबा दिया।

दीनानाथ का मोटा लंड शालिनी की मासूम चूत को चीरता हुआ आधा अंदर घुस गया।

शालिनी दर्द से दोहरी हो गयी।

उसकी चीख इतनी तेज थी कि अगर पड़ोसियों तक भी आवाज़ गयी हो तो बड़ी बात नहीं है।

बिना हिले जुले दीनानाथ अपनी जगह रुक गया और उछल कर भागती शालिनी को भी कंधों से पकड़ कर उसी पोजीशन में जाम कर दिया।

शालिनी कहीं हिल नहीं पा रही थी और बाप के कंधे पर गाल रख के रो रही थी।

एक हाथ से दीनानाथ ने उसके चूचे सहलाना चालू किया और होंठों में शालिनी के कान की लटकन को पकड़ कर चूसने लगा।

दीनानाथ के कान चूसते ही शालिनी को गुदगुदी हुई और बदन में एक लहर सी दौड़ गयी।

उसने बाप से कान छुड़ाने के लिए अपना सिर दूसरे कंधे पर रखा तो दीनानाथ ने दूसरे कान को होंठों में भर लिया।

समय के साथ कुछ दर्द कम हुआ और कुछ दीनानाथ की हरकतों ने शालिनी के जिस्म में मस्ती जगा दी।

इसी बीच मौका देख के दीनानाथ ने एक और धक्का लगाया और लंड सीधा बच्चादानी से टकराया।

दीनानाथ का लंड जड़ तक शालिनी के अंदर घुस चुका था।

यह देखकर दीनानाथ ने शालिनी को बेड पर लिटाया और खुद उसके ऊपर आ गया।

2 मिनट के ब्रेक के बाद दीनानाथ ने शालिनी के होंठों को चूसते हुए हल्के धक्के देने चालू किये।

थोड़ी देर बाद उसने महसूस किया कि शालिनी भी नीचे से धक्कों का जवाब देने लगी थी।

दीनानाथ ने अपनी स्पीड बढ़ते हुए पूछा- अब ठीक लग रहा है मेरी जान को?

"हाँ पापा, अब ठीक है।"

"दर्द तो नहीं हो रहा?"

"हल्का हो रहा है ... लेकिन मज़ा ज्यादा रहा है।" कहते हुए शालिनी ने दीनानाथ के होंठों में अपनी जीभ घुसाते हुए उसकी कमर पर अपनी टांगें लपेट दी।

दीनानाथ शालिनी की जीभ चूसते हुए हर धक्के में शालिनी की बच्चेदानी हिला रहा था।

शालिनी जैसे सातवें आसमान पर उड़ रही थी। शालिनी का छोटा जिस्म बाप के बड़े लंड से ऐसे कूटा जा रहा था जैसे ओखली में सरसों का दाना!

दीनानाथ की चौड़ी छाती के नीचे शालिनी के चूचे मसले जा रहे थे और पतली नाज़ुक जाँघों के बीच फ़ौलादी लौड़े की चोट लगातार पड़ रही थी।

इतनी देर तक लगातार ठुकवाने के बाद शालिनी चरमसीमा पर आ चुकी थी, उसकी आंखें चढ़ने लगी और हाथ पैर अकड़ने लगे।

शालिनी की हालत देख दीनानाथ ने भी रफ्तार बढ़ा दी और धकाधक पेलने लगा।

पूरा कमरा शालिनी की सिसकारियों से भरा हुआ था।

तभी दीनानाथ की कमर में नाखून गड़ाती हुई शालिनी झड़ने लगी।

झड़ते समय भी दीनानाथ रुका नहीं, बेटी की चूत से फव्वारा चलता रहा और बाप धकापेल चोदता रहा।

पूरी तरह निचुड़ जाने के बाद शालिनी बेदम सी दीनानाथ के नीचे पड़ी उसे निहार रही थी।

चूत में पड़ने वाले धक्कों को एन्जॉय करने तक का दम नहीं बचा था।

अब दीनानाथ रुक गया।

उसका माल अभी निकला नहीं था। लन्ड अब भी स्टील की रॉड सा सख्त था और चूत में ही पड़ा था।

बस धक्के रुक गए थे।

शालिनी की खस्ता हालत पर तरस खा कर दीनानाथ ने ब्रेक लेने का फैसला किया और कुछ बातें करने लगा।

"बेटी तू अपने उस बॉयफ्रेंड के साथ सेक्स करती है ना?"

इस वक़्त ऐसा सवाल सुन कर शालिनी को आश्चर्य हुआ।

सीधा जवाब ने देकर 'ऐसा क्यों पूछा आपने?' बोल कर सवाल टाल दिया।

"दरअसल मैं अक्सर सोच करता था कि मेरी लाडो कुंवारी होगी, आज जब तूने खुद को मुझे सौंपा तो मन में सील तोड़ने की खुशी थी। लेकिन तेरी सील तो पहले से टूटी हुई है।" इतना कहकर दीनानाथ ने मुँह लटका लिया।

बच्चों की तरह उदास होते अपने बाप पर शालिनी को प्यार आ गया, उसने दीनानाथ के गालों पर हाथ फिराते हुए कहा- मुझे मालूम नहीं था कि एक दिन आएगा जब मेरी ज़िंदगी का बेस्ट सेक्स अपने पापा के साथ मिलेगा। अगर ऐसा मालूम होता तो आपके लिए बचा लेती। मेरी सील पैक न होने से क्या आपको बुरा लगा?

"बुरा तो नहीं लेकिन हाँ थोड़ी निराशा तो हुई थी, लेकिन कोई बात नहीं। एक और रास्ता है।"

"कैसा रास्ता?"

"वो रास्ता जिससे सील तोड़ने का सौभाग्य तेरे पापा को मिल सकता है। बोल देगी ये मौका तू अपने पापा को?"

"मैं आपके लिए जान भी दे सकती हूँ पापा, आप बस कहिए क्या करना है।"

"अच्छा ये बता, कभी मुँह और चूत के अलावा कही और लंड लिया है?"

लंड चूत जैसे शब्द अपने पापा से सुन कर शालिनी शर्मा गयी- कहीं और मतलब? कहाँ?

"अरे बाबा, गांड मरवाई है कभी? पीछे के छेद में घुसवाया है?"

ये सुनते ही डर और आश्चर्य के भाव शालिनी के चेहरे पर बिखर गए।

शालिनी समझ गयी थी कि दीनानाथ अब उसकी गांड मरना चाहता था।

यही वो रास्ता था जिसकी सील पैक होने की दीनानाथ को उम्मीद थी और वो सही भी था।

शालिनी बड़े ही असमंजस में फंस चुकी थी।

सील पैक न होते हुए भी सील तुड़वाने जैसा दर्द झेला था उसने!

बाप का लौड़ा जो इतना फ़ौलादी था।

अब उसी फ़ौलादी लौड़े को गांड में लेने की हिम्मत नहीं थी उसकी!

"बोल न मेरी जान, देगी अपने पापा को ये मौका?" दीनानाथ ने फिर वही सवाल पूछा और शालिनी की चूत में हल्के हल्के धक्के देने चालू कर दिए।

सवाल सुन कर शालिनी का चेहरा उतर गया और घंटे भर से चुद कर सूज चुकी चूत पर वापस लंड के धक्के भी दर्द कर रहे थे।

चेहरे पर दर्द की लकीरों के बीच डर के मारे उससे कोई जवाब देते न बना।

लेकिन बेटी की अवस्था बाप भली भांति समझ गया था।

दीनानाथ ने बेटी के माथे को चूमते हुए उसे सांत्वना दी- चिंता मत कर मेरी रानी, आज नहीं चोदूंगा तेरी गांड। बस भविष्य में ये गिफ्ट अपने पापा को ही देगी ये वादा कर दे।

इतना सुनते ही शालिनी मुस्कुरा दी और पापा की गर्दन से लिपट कर होंठ चूसने लगी।

वह दीनानाथ को पलट कर नीचे किया और खुद ऊपर आ गयी।

अब शालिनी दीनानाथ के ऊपर सीधी बैठ कर लौड़े पर उछल रही थी, हर झटके के साथ उसके उछलते चूचे दीनानाथ को पागल कर रहे थे।

दीनानाथ ने दोनों हाथों से चूचे पकड़ लिए और पागलों की तरह दबाने, खींचने लगा।

बाप के लंड पर उछलती शालिनी अपने बाप को खुश देखकर बहुत खुश थी।

वो ख्यालों में ऐसी खोई थी कि दीनानाथ के धक्कों से तालमेल नहीं बिठा पा रही थी।

दीनानाथ पूरे जोश में चोद रहा था लेकिन ऊपर बैठी शालिनी बस बाप के चेहरे को देख कर मुस्कुराए जा रही थी।

इस अव्यवस्था से झुंझलाए दीनानाथ ने एक झटके में शालिनी को बेड पर पटक कर घोड़ी बना दिया और खुद उसके पीछे जाकर पोजीशन ले ली।

शालिनी ने गर्दन घुमा कर पीछे देखा तो दीनानाथ निशाने पर अपना लौड़ा सेट कर के फायर करने की तैयारी में था।

दीनानाथ ने भरे हाथ का एक तमाचा शालिनी के चूतड़ पर मारा और एक झटके पूरा लंड ठोक दिया।

इस अचानक हमले से शालिनी की सीत्कार निकल गयी और बैलेंस डगमगा गया।

हाथों का सपोर्ट खत्म कर बिटिया रानी अब मुँह के बल डॉगी स्टाइल में चुद रही थी।

शालिनी का चेहरा बेड पर था और घुटनों के बल गांड उठा के चुदवा रही थी।

बीच में चूचे ऐसे झूल रहे थे जैसे किसी बाग में पके फल!

दीनानाथ कभी हाथ बढ़ा कर चूचे भींच देता तो कभी चूतड़ों पर चांटे चटका देता।

वो पूरे जोश में शालिनी की चूत में लंड अंदर बाहर कर रहा था।

हर धक्के के साथ दीनानाथ की झूलती गोटियां शालिनी की जाँघों से टकरा कर मधुर संगीत बना रही थी।

चट चट की तेज आवाज कमरे में गूंज रही थी जिसमें शालिनी की चीखें घुल कर माहौल को और भी कामुक बना रही थी।

दीनानाथ पूरे जोश में अपनी बेटी को ठोक रहा था।

कुछ ही देर में दीनानाथ का लन्ड फूलने लगा, अब वो जल्दी ही झड़ने वाला था।

उसने झट से शालिनी को पलटा और चटाई की तरह अपने नीचे बिछा कर उसपे लेट गया। दोनों हाथों से पूरी जान लगा कर शालिनी के चूचे ऐंठ दिए और चूत में तेज तेज़ ओर गहरे धक्के लगाने लगा।

बाप के वहशीपन के निशान बेटी के पूरे जिस्म पर दिख रहे थे लेकिन फिलहाल उसकी चिंता किसी को नहीं थी।

शालिनी का जोश भी चरम पर था और वो अपने बाप की छाती की चिपक कर झड़ने लगी।

साथ ही दीनानाथ ने लंबे धक्के लगाते हुए अपनी बेटी की चूत को अपने वीर्य से सराबोर कर दिया।

गर्भाशय की गहराई में गर्म वीर्य की तराई से जैसे स्वर्ग का आनंद मिल गया हो।

आँखें मूंद कर दोनों एक दूसरे से लिपटे पड़े रहे रहे।

बाप बेटी की चुदाई के अंतिम पलों का आनंद वो खोना नहीं चाहते थे।

दीनानाथ खुश था कि उसने जिस रूप में अपनी बेटी को चाहा आज उसी रूप में वो उसकी बांहों में लिपटी पड़ी है।

शालिनी खुश थी कि पापा के अकेलेपन में वो अपनी माँ की कमी पूरी कर पाई जिस वजह से उसके पापा खुश थे।

थोड़ी देर में दीनानाथ का लंड सिकुड़ कर खुद ही चूत से बाहर सरक आया।

दीनानाथ ने शालिनी के होंठों को चूमते हुए पूछा- शालिनी, मेरी बेटी, मेरी जान। प्यार से क्या बुलाऊँ मैं तुझे?

"आपका जो मन करे बुलाइये पापा ... बस बुलाते रहिये। अपने से दूर मत रहने देना अब मुझे कभी!"

"कभी नहीं मेरी जान, कभी भी नहीं ... क्यों न तू मुझसे शादी कर ले बेटी?"

यह सुनते ही शालिनी चौंकी और दीनानाथ से अलग होकर बैठ गयी।

उसने उठने की कोशिश की लेकिन शालिनी से उठा नहीं गया।

चूत सूज के पाव बन चुकी थी और अंदरूनी जांघें भी सूजकर लाल हो गईं थी।

"पापा, मुझे बाथरूम जाना है। उठा नहीं जा रहा!"

"कोई बात नहीं, मैं उठा कर ले जाऊंगा अपनी रानी बिटिया को।"

दीनानाथ ने शालिनी को गोद में उठाया और बाथरूम में लाकर कमोड पर बिठा दिया।

मूतने के बाद शालिनी ने दोबारा अपने बाप की तरफ हाथ फैला दिए।

दीनानाथ उसे उठा कर वापस बेड पर लाया और फिर से वही सफल दोहराया।

"बोल बेटा, शादी करेगी मुझसे?"

"नहीं!"

"नहीं? क्यों नहीं मेरी जान? क्या तू अपने पापा से प्यार नहीं करती?"

"करती हूँ पापा, बहुत प्यार करती हूँ। दुनिया में किसी भी चीज़ से ज्यादा प्यार करती हूँ। लेकिन आपसे शादी नहीं करूंगी।"

दीनानाथ कुछ नहीं बोला, बस सवालिया आंखों से अपनी बेटी के बेबाक जवाबी चेहरे को घूरता रहा।

पापा की जिज्ञासा शांत न होती देख शालिनी ने फिर बोला- देखिए पापा, मैं आपके लिए मम्मी की कमी पूरी करना चाहती हूँ। मम्मी के लिए उनके पति का प्यार महसूस करना चाहती हूँ। लेकिन उनका हक़ कभी नहीं लूंगी। आपसे शादी करने का हक़ सिर्फ माँ का था। मैं ये नहीं करूंगी।

"लेकिन बेटा, अब ये जो हमारे बीच है वो क्या है। इस रिश्ते को क्या नाम दोगी?"

शालिनी कुतिया की तरह चारों पैरों पर उठी और दीनानाथ के नज़दीक जाकर बोली- इस घर के बाहर मैं पहले की तरह आपकी बेटी हूँ।

बात अधूरी सी महसूस करके दीनानाथ ने पूछा- और घर के अंदर?

शालिनी मुस्कुराई और दीनानाथ की गर्दन के नीचे हाथ लगाकर उसका सिर उठाते हुए अपने चूचों में घुसाते हुए बोली- आप की रखैल!

दीनानाथ बेटी के जवाब के बारे में सोचते हुए बेटी के चूचे चूसने लगा और इसी तरह बाप बेटी की चुदाई का अगला राउंड चालू हो गया।
The End.​
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