Update 01


प्रस्तुत कहानी के सभी पात्र एवं घटनाक्रम काल्पनिक है। यदि किसी पात्र और घटना का किसी भी प्रकार से किसी वास्तविकता से संबंध पाया जाता है तो इसे मात्र एक संयोग कहा जायेगा। इस कहानी के माध्यम से मेरा एक लेखक के तौर पर किसी जाति , धर्म या सम्प्रदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने का कोई उद्देश्य नहीं है अपितु इस कहानी के माध्यम से मैं एक लेखक के तौर पर आप सभी पाठकों का अपनी कहानी के माध्यम से मनोरंजन करने की मंशा रखता हूँ। प्रस्तुत कहानी में पेश किए गए चित्र गूगल से लिये गए है जिनका सम्पूर्ण श्रेय गूगल को जाता है। आशा करता हूँ आपको कहानी पसन्द आएगी।

बड़ी सुख शांति से कट रहे जीवन में एक ऐसा तूफान आया कि घर परिवार और सारी सुख शांति गर्मी से भाप बन कर उड़ गई। कुछ समझ ही नही आ रहा था कि इस तूफान को रोक जा सकता था या ये तूफान खुद हमारा ही चुनाव था।

सरिता:

25 साल की नव विवाहिता खूबसूरत योवन से परिपूर्ण । मॉडर्न होने के साथ साथ संस्कारी बहु।

राज:

25 साल का एक लड़का मॉडर्न लेकिन संस्कारी। पढ़ने में होशियार था इस लिए लंदन से एम बी ए करके अपने पिता का बिज़नेस संभाल रहा था।

राज और सरिता दोनों बनारस के है लेकिन बिज़नेस के सिलसिले में दोनों पिछले 2 साल से दिल्ली रह रहे है।

सरिता के परिवार में चार सदस्य है। सरिता की माँ सरला सरिता के पिता जगमोहन सरिता की छोटी बहन रीता।

वहीं राज के परिवार में सदस्य संख्या थोड़ी ज्यादा है। राज के परिवार में राज की माँ चाँदनी ,

राज के बड़े भैया सुरेश

और उनकी पत्नी श्रीमति चंचल

और राज की छोटी बहन पूजा

और आरती।

सब कुछ सही चल रहा था। हंसी मजाक चारों तरफ खुशियां ही खुशियां । बस राज के पिता नहीं होने से घर मे थोड़ी सी मायुशी थी लेकिन वो सब भी राज की पत्नी सरिता के आने के बाद कहीं गुम हो गयी थी।

राज के बड़े भाई सुरेश का विवाह राज से कुछ तीन साल पहले हुआ था। इसलिए राज की माँ थोड़ा सा परेशान रहने लगी । क्योंकि अब सुरेश के विवाह को करीब पांच साल होने को आये है और चाँदनी अभी तक अपने बड़े बेटे से पोते पोती की खुशियों की गुहार लगा रही है। चाँदनी ने कई बार चंचल से भी कहा कि अब तो मुझे पोते पोती के दर्शन कर लेने दो बड़ी बहू।

दरअसल जब चंचल विवाह करके घर आई थी तो उसने सुरेश से कहा था कि वो शादी के पांच सालों तक कोई बच्चा नही चाहती। अपनी सास की अब पांच साल के बाद कि गयी मांग चंचल के लिए भी नाजायज नहीं थी। लेकिन चंचल करे भी तो क्या करे । पिछले पांच सालों से चंचल गर्भ निरोधक गोलियाँ खा रही थी। लेकिन पिछले तीन चार महीनों से उसने वो भी बंद कर दी थी। सुरेश के सारे प्रयाश असफल हो रहे थे। चंचल को बच्चा नही हो पा रहा था। उसका एक सबसे बड़ा कारण ये था कि सुरेश एक तो काम मे बहुत व्यस्त रहता था दूसरा गर्भनिरोधक के चलते चंचल के गर्भ मैं भी शिथिलता आ गयी थी जो कि दवाओं से चंचल ने दूर कर लिया लेकिन अब सुरेश उस मात्रा में वीर्य नहीं दे पा रहा था जिस से बच्चा ठहर सके।

धीरे धीरे परिवार में मायूसी छाने लगी थी। संस्कारी घर होने के कारण चाँदनी चंचल और सुरेश को दूसरे विवाह के लिए मजबूर भी नही कर सकती थी। इसलिए उसने सब कुछ ऊपरवाले के भरोसे छोड़ दिया।

वहीं राज अपनी पत्नी सरिता के साथ दिल्ली रह रहा था। इन दोनों भाइयों ने अपने पिता के बिज़नेस के दो भाग बना लिए थे । एक बनारस में संभाल रहा था तो दूसरा दिल्ली में उसकी नींव डाल रहा था ।

जब राज ने सरिता से बच्चे के बारे में पूछा तो सरिता ने शर्मा कर कहा कि दीदी (जेठानी चंचल) ने भी तो पांच साल का परहेज किया है तो मुझे भी पांच साल दो न। राज सरिता की बात पर मुस्कुरा उठा लेकिन कुछ कहा नहीं।

जब राज ने सरिता से बच्चे के बारे में पूछा तो सरिता ने शर्मा कर कहा कि दीदी (जेठानी चंचल) ने भी तो पांच साल का परहेज किया है तो मुझे भी पांच साल दो न। राज सरिता की बात पर मुस्कुरा उठा।

अब आगे.

राज भली भांति जानता था कि सरिता को बच्चे से कोई परहेज नही है लेकिन फिलहाल ये मेरे साथ जीवन और जवानी दोनो का आनन्द लेना चाहती है। और फिर राज खुद भी नहीं चाहता था कि इतनी जल्दी घर गृहस्थी से बच्चों में उलझ जाए।

वहीं दूसरी और चाँदनी कई बाबाओं के आश्रम के चक्कर लगा रही थी। कभी कोई बाबा तो कभी कोई बाबा ,कभी किसी आश्रम से प्रसाद और कभी किसी आश्रम से कोई उपाय। चंचल इन सब से परेशान हो चुकी थी।

चंचल: (मन ही मन) अब सासु माँ को कौन समझाए की बच्चा प्रसाद और उपायों से नही ताबड़ तोड़ चुदाई और वीर्य से होता है। जितने उपाय में कर रही हूं यदि डॉक्टर को दिखाने का उपाय सुरेश कर ले तो सासु माँ की हर इच्छा पूरी हो जाये।

चाँदनी: चंचल किन सोचों में गुम हों। जैसा बाबा ने कहा है वैसा ही करना देखना जल्द ही तुम्हारी गौद में इस घर का वारिश किलकारियां मारने लगेगा।

चंचल ने मुस्कान के साथ मुह बनाते हुए चाँदनी के कहे अनुसार उपाय पूरा किया। लेकिन पिछले छ: सात महीनों के उपायों के बावजूद भी चंचल को उल्टी नही हुई तो चाँदनी उदास होने लगी।

एक दिन ऐसे ही चाँदनी बाहर हॉल में बैठे-बैठे भगवान से अपने घर के चिराग के लिए प्रार्थना कर रही थी कि कोई साधु चाँदनी के घर के दरवाजे के पास आकर जोर से चिल्लाता है।

साधु:

अलख निरंजन। बम भोले शिव शम्भू. अरे कोई है घर में साधु को भिक्षा दे दो। भगवान तुम्हारे हर मनोरथ पूरे करे। अलख निरंजन।

चाँदनी साधु की आवाज सुनकर जल्दी से दरवाजे तक भागी- भागी जाती है और साधु को अंदर आने का निमंत्रण देती है लेकिन साधु चाँदनी के प्रस्ताव को अस्वीकार कर देता है।

चाँदनी: क्या हुआ बाबा? घर मे पधारिये।

साधु: देवी हम आपका सत्कार स्वीकार नहीं कर सकते। हम ब्राह्मण है। केवल पांच घर मे भिक्षा मांग कर खाते है। किंतु किसी का सत्कार नहीं लेते।

चाँदनी: ठीक है बाबा आपके तप और संकल्प को भन्ग करने का तो मैं विचार भी नहीं कर सकती। अच्छा तो आप यहीं रुकिए मैं खाने के लिए लाती हूँ।

चाँदनी रसोई घर में जाकर घी से चुपड़ी रोटियां सब्जी और कुछ मिठाईयां लाकर साधु को देती हूं।

साधु: देवी ये तो बहुत ज्यादा है मेरे घर मे केवल हम चार प्राणी है जिनके लिए ये बहुत है।

चाँदनी: बाबा मेरे घर में भी ये खाना ज्यादा है। आप अपने बच्चों को ये खाना देंगे तो मैंरे यहां अन्न का अनादर भी नही होगा और फिर मेरे कोई पोता नही है तो उसी के लिए में ये धर्म कर्म भी करना चाहती हूँ।
खुश किस्मती से वो साधु एक महान आत्मा थे। उन्होंने चाँदनी के चेहरे पर उसका भविष्य जान लिया था जिससे वो थोड़े चिंतित थे लेकिन फिर भी उन्होंने चाँदनी से इशारे में पूछा।

साधु: देवी आपको पोता चाहिए या घर का वारिश।

चाँदनी साधु की बात समझ नहीं सकी। और चाँदनी ने कहा बाबा पोता होगा तो वो ही वारिश होगा ना।

साधु ने तीन बार पूछा और ये भी बोला कि देवी विचार करके बताओ तुम्हे जो चाहिए वो अवश्य मिलेगा मेरे इस भोजन के मूल्य के रूप में लेकिन. .

(चाँदनी महात्मा की बात काटते हुए)

चाँदनी: नहीं महाराज मुझे तो बस पोता चाहिए जो मेरे पति के नाम को आगे बढ़ाए। हमारे वंश के नाम को आगे बढ़ाए।

साधु: तथास्तु देवी किन्तु आपको अपने पोते की प्राप्ति उस समय होगी जब आप अपने घर मे नहीं होंगी।

चाँदनी: अर्थात महाराज । आप कहना क्या चाहते है। मेरे घर मे नहीं होने पोते का क्या संबंध?

साधु: देवी आपने हमे भोजन उस वक़्त प्रदान किया है जब आपके घर मे कोई नहीं था केवल आप ही थी। हमने आपके घर मे किसी और के होने का आभास तक नहीं किया। और अगर कोई है भी तो आपका पोता ऐसी अवस्था मे होगा जिसके भान घर के किसी सदस्य को नही होगा।

साधु: देवी आपको अब तीर्थ यात्रा पर जाना चाहिए । चारों धामों की यात्रा। एक माह तक एक धाम पर रुकना। और उनसे पौत्र मांगना। और याद रहे इन चार महीनों में केवल अपनी छोटी वधू से ही बात करना अन्य किसी भी पारिवारिक सदस्य से मत करना वरना परिणाम की तुम स्वयं जिम्मेदार रहोगी। ईस्वर ने चाहा तो चार संतान होंगी।

चाँदनी बाबा की बातों को सोच रही थी और समझ रही थी लेकिन जब कुछ समझ नही आया तो बाबा को पूछने के लिए गर्दन उठा कर देखा तो बाबा जा चुके थे। चाँदनी घर के बाहर आकर भी ढूंढा लेकिन बाबा कहीं भी नज़र नही आए।

चाँदनी बाबा की बातों को सोच रही थी और समझ रही थी लेकिन जब कुछ समझ नही आया तो बाबा को पूछने के लिए गर्दन उठा कर देखा तो बाबा जा चुके थे। चाँदनी घर के बाहर आकर भी ढूंढा लेकिन बाबा कहीं भी नज़र नही आए।

अब आगे. . .

चाँदनी : (मन ही मन) है ईस्वर ये बाबा का आशीर्वाद था या शाप। कहीं बाबा किसी बात का बुरा तो नहीं मान गए। नहीं- नहीं बाबा ने तो तो आशीर्वाद ही दिया है। लेकिन मेरे यहाँ नही होने से ही पोता होगा। नहीं चार संतान होंगी। मतलब मुझे तो कुछ भी समझ नहीं आ रहा। खेर जो भी हो कम से कम हमारा वंश तो आगे बढ़ सकेगा ना।

तभी घर के अंदर से चंचल आती है।

चंचल: माँ जी बधाई हो। आपको बहुत बहुत बधाई हो।

चाँदनी:

अरे अरे पगली पैर तो जमीन पर रख। ऐसा क्या मिल गया जिसकी बधाई देते हुए और पगलाए जा रही हो।

चंचल: माँ जी सुरेश को बिज़नेस में बहुत फायदा हुआ है। उनका बनारस में प्रॉफिट सैंतीस करोड़ पैंसठ लाख तक हुआ है। जिस से दिल्ली में राज हमारे बिज़नेस को और भी मजबूती से चला सकता है। और दूसरी बात सुरेश ने बनारस के बिज़नेस का नया मालिक मुझे बना दिया है क्योंकि हमारे बिज़नेस पार्टनर हमारे बिज़नेस को आपसी सम्मति से एक नया रूप दे रहे है। जिसके मालिक सुरेश होंगे। ये बिज़नेस का हमारा दूसरा हेड आफिस होगा जो दुबई में होगा। अब माँ जी ना तो मुझे कहीं पर जॉब ढूंढने की ज़रूरत होगी ना ही कोई प्रॉब्लम। मैं अब खुद सुरेश की जगह आफिस में जाउंगी।

चाँदनी ने जब ये खुश खबरी सुनी तो खुशी से झूम उठी। चाँदनी ने तुरंत चंचल को गले से लगा लिया।

चाँदनी : ( मन ही मन) बाबा के आ जाने से कितनी सारी खुशियाँ एक साथ हमारे घर मे आयी है। ज़रूर बाबा का कहा हर वचन सच साबित होगा। मुझे अगर पोता चाहिए तो जल्द से जल्द तीर्थ यात्रा पर निकलना होगा। इस से पहले की सुरेश विदेश यात्रा पर निकल पड़े। सुरेश अगर विदेश चला गया तो पोता कैसे होगा। फिर पता नही वो कब आये। और फिर मैं भी तो और ज्यादा इंतजार नही कर सकती । मैं आज ही सुरेश से बात करूँगी।

चंचल चाँदनी को गले लगा कर दूर करती है और बोलती है।

चंचल: माँ जी मैं अभी ये खुश खबरी सरिता और राज को भी देती हूं।

चाँदनी: चंचल के गाल पर प्यार से हाथ फेरते हुए) हाँ बेटा ये तो सच मे खुशखबरी है। जाओ उन्हें जल्दी से फ़ोन करके खुशखबरी सुना दो। और हां अगर हो सके तो सरिता को कुछ दिनों के लिए यहां बुला लो।

चंचल तुरंत अपने कमरे में जाति है और सरिता को फ़ोन मिला देती है। सरिता और चंचल में बात होने लगती है। दोनों खुशी से झूम रही थी।

चंचल:

अच्छा सुनो सरिता! वो माँ जी ने तुम्हे यहां बनारस बुलाया है।

सरिता:

मुझे? पर क्यों?

चंचल: पर क्यों? लगता है राज के घर मे जल्दी घर बना लिया बन्नो। तो क्या अपनी दीदी के पास भी नहीं आओगी।

सरिता: नहीं नही दीदी ऐसी बात नही है। आप तो जिठानी है मेरी। लेकिन राज कैसे आएंगे मेरे साथ? वो तो बिज़नेस. . .

चंचल: पगली इसीलिए तो सिर्फ तुझे बुलाया है। अब जल्दी से ट्रेन में बैठ और आज।
सरिता: लेकिन दीदी.
चंचल: लेकिन वेकीन कुछ नहीं तू जल्दी आज बस।
सरिता : हा हा हा जी दीदी। बिल्कुल मैं करती हूँ राज से बात और फिर आपको बताती हूँ।

चंचल: अच्छा ठीक है। और सुन कुछ दिनों की कसर निकाल कर आना। यहां राज के बिना रहना पड़ेगा।

सरिता: (लजाते , शर्माते) धत्त दीदी.

चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।

सरिता : जी दीदी बाय. .

दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।

चंचल: (हंसते हुए) चल रखती हूँ फ़ोन जल्दी आना और हाँ ध्यान से आना। अपना ख्याल रखना।

सरिता : जी दीदी बाय. .
दोनों अपने अपने हाथ मे फ़ोन लिए कुछ सोचती है और फिर मुस्कुराकर अपने अपने काम मे लग जाती है। वहीं दूसरी और चाँदनी अपनी तीर्थ यात्रा के लिए सामान जमाने लगती है। चाँदनी की तीर्थ यात्रा की तैयारी जोर शोर में थी।
पूरा परिवार खुशियों से झूम रहा था लेकिन ये खुशियां उस हवा की तरह थी। जो तूफान का संकेत देती है। पहले हल्की हल्की चलती है फिर अचानक से इतनी तेज आती है कि सब कुछ बर्बाद कर देती है। इस बात का एहसास अभी तक पूरे घर में किसी को भी नहीं था। चलता भी कैसे सब कुछ बहोत आराम से खुशी खुशी हो रहा था।

अब आगे. . .

चाँदनी ये भली भांति जानती थी कि उसके बड़े बेटे यानी कि सुरेश को ये तन्त्र-मन्त्र और बाबाओं पर शुरू से ही भरोसा और विश्वास कम था। तो चाँदनी ये सीधे सीधे तो सुरेश को बोल नहीं सकती थी कि वो तीर्थ यात्रा पर एक बाबा के कहने पर जा रही है जिन्होंने आस्वासन दिया है कि उनके तीर्थ यात्रा पूरी होने पर ही चाँदनी के घर मे पोता होगा जो उनके वंश को आगे बढ़ाएगा।

इसलिए चाँदनी के लिए समस्या ये नही थी कि सुरेश से बोलकर तीर्थ यात्रा पर जाए। वैसे सुरेश चाँदनी का बड़ा ही आज्ञाकारी बेटा है। यदि चाँदनी उसे तीर्थ यात्रा के लिए बोले तो वो खुद उन्हें तीर्थ यात्रा करवा लाये। लेकिन यदि वो ऐसा करेगा तो पोता कैसे होगा? इसलिए चाँदनी चाहती थी कि बाबा और उनकी बात सुरेश से छिपी रहे और वो अकेले तीर्थ यात्रा पर भी निकल सके। चाँदनी इसी बात पर परेशान थी। यहाँ तक कि चाँदनी ये बात न तो सुरेश को बोल सकती थी और ना ही चंचल को। तभी चाँदनी के मन मे ख्याल आया कि जब भी बात करनी हो इस विषय पर तो अपनी छोटी बहू से पूछना। चाँदनी के लिए अब केवल और केवल सरिता ही एक मात्र ज़रिया रह चुकी थी।

चाँदनी चंचल के कमरे को नॉक करके चंचल से बोलती है कि वो उनकी बात सरिता से करवाये।

चंचल तुरंत अपनी सास के कहे अनुसार सरिता को फ़ोन लगा देती है। चाँदनी फ़ोन लेकर अपने कमरे में चली जाती है और दरवाजा अंदर से बंद करके अपनी छोटी बहू सरिता से बात करने लगती है।

चाँदनी:

हेलो बहू! कैसी हो? सब कुशल से तो है ना।

सरिता:

माँ जी प्रणाम !जी माँ जी सब कुशल से तो है ?आप कैसी है?

चाँदनी: क्या बताऊँ बहू थोड़ी सी परेशान हूँ!

सरिता: परेशान? इतनी बड़ी खुशी का मौका है सासु माँ और आप परेशान हो? लेकिन क्यूँ?

चाँदनी: चुप कर ! तू भी न कुछ भी सोच लेती है। सुरेश की तरक्की के लिए तो में बहुत खुश हूँ। लेकिन मैं इस लिए परेशान हूँ क्योंकि मैं तीर्थ यात्रा पर जाना चाहती हूँ। लेकिन मैं सुरेश या राज में से किसी को लेकर नहीं जाना चाहती और चंचल सुरेश का यहां बनारस में काम संभालेगी तो कम से कम तुम ही तो रहोगी घर और रहने के लिए।

सरिता: इसमे परेशानई क्या है? आप खुद भी तो जाकर आ सकती है ना माँ जी!

चाँदनी: अरे पगली जाने को तो मैं धरती के सात चक्कर काट ने जा सकती हूँ। लेकिन ये सुरेश है ना ये मुझे अकेले कहीं जाने ही नहीं देता। पता नही मुझे तीर्थ यात्रा पर भी जाने देगा कि नहीं। इसलिए सोचा कि तेरी मदद ले लूँ। लेकिन तू तो कुछ समझ ही नहीं रही!

सरिता: वह तो ये बात है मतलब आपकी परेशानी कुछ भी नही है बस इतनी सी है कि आपके साथ जाने वाला कोई चाहिए ताकि जेठ जी को आपको अकेले भेजने में कोई तकलीफ ना हो। यही ना?

चाँदनी: हाँ! यही है। लेकिन ये छोटी सी नहीं बहुत बड़ी समस्या है।

सरिता: मा जी आप मेरी मम्मी से बात क्यों नही करती? दरअसल क्या है ना कि मेरी मम्मी और पापा दोनो मेरी शादी हो जाने के बाद तीर्थ यात्रा पर जाना चाहते थे। लेकिन उनको वो मौका कभी लगा ही नहीं। तो आप अगर उनको अपने साथ ले जाएगी तो सारी समस्या का हल अपने आप ही हो जाएगा।

चाँदनी: सच्च बहू! क्या ये हो सकता है?

सरिता: रुकिये माँ जी ! मैं खुद उन्हें आपके साथ जाने को बोल देती हूँ।

चाँदनी: थैंक यू बेटा ! अब तेरी मदद से मेरी तीर्थ यात्रा ज़रूर सफ़ल होगी।

सरिता चाँदनी की बातें सुनकर शर्मा जाती है।

सरिता: क्या माँ जी आप भी ना। रुकिये मैं मम्मी पापा स बात करती हूँ
चाँदनी और सरिता का फ़ोन काट जाता है। करीब पंद्रह मिनट बाद सरिता का कॉल आता है जिसमे सरिता चाँदनी को बोलती है कि
सरिता: हेलो माँ जी! मुबारक़ हो मम्मी और पापा कल ही अपना सामान लेकर अपने बनारस वाले घर आ रहे है। और कल मैं भी बनारस पहुंच जाउंगी। आज रात को ट्रेन में बैठ जाउंगी। हो सका तो मैं भी जेठ जी को समझाने का प्रयास कर लूँगी।

चाँदनी: थैंक यू बेटा अब तू जल्दी से घर आज बस। तूने तो मेरी सारी परेशानियां ही दूर कर दी। भगवान ने मुझे दो बहुएं दी है दोनों की दोनों ऐसे है कि मुझे लगता है जैसे पिछले जन्म के चारों तीर्थों का पुण्य मुझे इस जन्म में बहुओं के रूप में मिला है।

सरिता शर्मा जाती है। कुछ देर इधर उधर की बातें होती है और फिर फ़ोन काट देते है। उधर राज आज घर जल्दी आ गया था। अभी दोपहर के 3 ही बजे होंगे मुश्किल से और राज घर पर । ये तो सरिता के लिए भी सरप्राइज था।

चाँदनी: थैंक यू बेटा अब तू जल्दी से घर आज बस। तूने तो मेरी सारी परेशानियां ही दूर कर दी। भगवान ने मुझे दो बहुएं दी है दोनों की दोनों ऐसे है कि मुझे लगता है जैसे पिछले जन्म के चारों तीर्थों का पुण्य मुझे इस जन्म में बहुओं के रूप में मिला है।

सरिता शर्मा जाती है। कुछ देर इधर उधर की बातें होती है और फिर फ़ोन काट देते है। उधर राज आज घर जल्दी आ गया था। अभी दोपहर के 3 ही बजे होंगे मुश्किल से और राज घर पर । ये तो सरिता के लिए भी सरप्राइज था।

अब आगे. .

सरिता दरवाजे को खोलते ही जैसे ही राज को सामने पाती एकदम से चोंक जाती है। सरिता के लिए एक बहुत बड़ा सरप्राइज था। हो भी क्यों नहीं जो आदमी अपने काम को ज्यादा महत्व देता हो वो आज काम से जल्दी कैसे? कोई गवर्मेंट जॉब तो है नही की हाफ डे था और घर लौट आये।

सरिता: अरे आप? इस वक़्त? यहां? कैसे?

राज: अरे कब ? क्यूँ? कहां? कैसे? बाद में पूछना पहले मुझे अंदर तो आने दो। किसी पराये मर्द की तरह मुझे बाहर ही सारे क्वेश्चन पूछ लोगों क्या?

सरिता को अपनी भूल का एहसास होता है कि उसने राज को सरप्राइज के चक्कर मे अंदर आने को भी नहीं कहा।

सरिता:

ओह सॉरी सॉरी सॉरी ( शर्मिंदा होते हुए) आईये। मैं पानी लाती हूँ।

राज: अरे यार छोड़ो ये फालतू की फॉर्मेलिटी

( राज इतना बोलकर सरिता के हाथ को पकड़ कर अपनी और खींचता है और अपने सीने से लगा लेता है।

सरिता: आउच. क्या कर रहे हो कोई देख लेगा।

(राज जल्दी से सरिता को छोड़ ते हुए)

राज: यहां ? अपने घर मे? यहां कौन देखेगा?

सरिता: इश्ssssssss ( बच्चों की तरह सरिता राज की तरफ जीभ निकालते हुए ) जब मालूम है घर में कोई नहीं देखेगा तो फिर छोड़ा क्यों?

राज: क्या? मतलब मेरे साथ ही नाटक?

सरिता राज की तरफ जीभ निकाल कर भागने लगती है। वहीं राज भी सरिता की मासूमियत और नादानी पर खुद भी बच्चा हो जाता है और सरिता के पीछे भागने लगता है। लेकिन सरिता तो पल भर में राज के पास से उड़न छू हो जाती है। पतली बपखाती कमर, हिरनी सी चाल , कजरारी आंखें, मलमली होंठ, दूध से रंग अप्सराओं सा योवन इतनी जल्दी हाथ भी कैसे आता । आखिर में राज थक कर गिरने का नाटक करते हुए नीचे गिर जाता है। सरिता राज को गिरता देख कर जल्दी से राज की तरफ भागती है और राज तुरंत सरिता को लपक कर गले लगा लेता है।

सरिता :

अरे अरे गिर जाओगे! आपको कहीं लगी तो नहीं?

राज: ( सरिता की आंखों में देखते हुए) अब तो मैंने तुम्हें पकड़ लिया! अब तो नही जाने दूंगा।

सरिता राज की चालाकी अब समझ जाती है। सरिता अपनी नाजुक कलाईयों से राज के सीने में मारते हुए बोलती है।

सरिता: चीटिंग, चीटिंग की आपने वरना आप मुझे नही पकड़ पाते।

राज: अच्छा भला क्या चीटिंग की मैंने?

सरिता: नाटक किया आपने? अगर आप गिरने का नाटक नही करते तो आप मुझे पकड़ ही नही पाते।

राज एक पल की प्यार भरी मुस्कुराहट के साथ सरिता की आंखों में देखते हुए बोलता है।

राज: अच्छा ऐसी बात है तो लो छोड़ दिया तुम्हे! ( राज अपनी बाहों के घेरे को सरिता की कमर से ढीला कर देता है।) जाओ जहां जाना चाहती हो! लेकिन मेरी बाहों से निकलने के लिए पहले नाटक तो तुमने किया था याद है ना "कोई देख लेगा"। (हंसते हुए)

अब सरिता राज की आंखों में प्यार से देखते हुए राज की कमर को जकड़ लेती है।

सरिता:

ना तो मैं आपको छोडूंगी ना आपको छोड़ने दूंगी। चुपचाप पकड़ लो मुझे।

राज एक बार फिर से सरिता को अपनी बाहों में जकड़ लेता है और सरिता की आंखों में देखते हुए सरिता पर झुकता चला जाता है। जैसे जैसे राज सरिता पर झुकता जाता है वैसे वैसे सरिता की आंखें मदहोश होते हुए बन्द होती जाती है और होंठ। किसी कली की तरह ! जैसे कोई कली खिल रही हो। ठीक उसी तरह सरिता के होंठ फड़फड़ाते हुए खुलने लगते है। और राज के होंठ होले होल सरिता की गर्म साँसों को महसूस करते हुए सरिता के होंठों से जा मिलते है।

दोनों इतना मादक किश कर रहे थे कि रति और काम देव भी इस समय होते तो रति क्रिया में लीन हो जाते। लग भग दो या ढाई मिनेट तक चले किश को दरवाजे की एक बेल ने तोड़ा। अगर ये दरवाजे की बेल ना बजती तो शायद दोनों युगों युगों तक एक दूसरे में लीन रहते।

दरवाजे की बेल बजते ही दोनों हड़बड़ाते हुए एक दूसरे से अलग हुए । सरिता जैसे ही हड़बड़ा कर दरवाजे की तरफ जाने लगी तो सरिता का मंगलसूत्र राज की शर्ट के बटन मैं उलझ गया। सरिता तुरंत मंगल सूत्र को सुलझानें में लग गयी जिसे सुलझाने में करीब 2-3 मिनट लग गए। और राज अपनी जगह खड़े खड़े सरिता को मुस्कुराते हुए देखता रहा।

मंगल सूत्र के निकलते ही सरिता जल्दी से दरवाजा खोलती है। दरवाजा खुलते ही सरिता सामने देखती है कि वहां पर फरिहा और दो तीन लड़कियां खड़ी है। दर असल सरिता के पड़ोस में ही गर्ल्स पी जी है जहां कई सारी लड़कियां रहती है। उनमें से फरिहा काफी पुरानी लड़की है। फरिहा यहां राज और सरिता के आने से पहले से है। फरिहा पी. एच्. डी. कर रही है। इसलिए राज और सरिता फरिहा को अच्छी तरह से जानती है। फरिहा की शादी को तीन साल हो गए। खेर ये सब बाद में फिलहाल उसके आने के कारण को जान ले।

सरिता: फरिहा ? तुम यहाँ? इस वक़्त?

फरिहा: (शैतानी मुस्कुराहट के साथ) क्यूँ दीदी गलत टाइम पर आ गयी क्या?

सरिता: ( झेंपते हुए) अरे नही नहीं ऐसी कोई बात नहीं।

फरिहा: ( सरिता के कान के पास आते हुए) लेकिन दीदी आपके इन नाजुक होंटों के पास मैं फैली हुई लिपस्टिक तो कुछ और ही बोल रही हूं।

सरिता: (तुरंत साड़ी के पल्लू से अपने होंटों को साफ करते हुए) अरे नही कुछ नहीं ये तो बस ऐसे ही

फरिहा: (सरिता को छेड़ते हुए) अरे बताओ ना दीदी प्रॉमिस हम किसी से नहीं कहेंगी। भैया परेशान करने के मूड में है क्या? चाहो तो हम बाद में आ जाते है?

सरिता: धत्त बेशर्म ( मजाक में फरिहा के कंधे पर मारते हुए) फालतू की बात छोड़ और ये बता कैसे आना हुआ?

फरिहा: ओह हो तो अब हमें जल्दी से भगाने की फिराक में हो आप? अच्छा तो ठीक है। हम तो आपसे थोड़ी सी चीनी और दूध लेने आये थे। दर असल हमारे एग्जाम है। और बाहर दुकान बंद है। और अगर दूर भी गए तो शाम को 5 बजे पहले दूध शायद ही किसी के पास मिले इस लिए आप से लेने आ गये।

सरिता: अच्छा किया। रुको मैं लाती हूँ।

करीब पांच मिनट बाद सरिता फरिहा को एक दूध का पैकेट और थोड़ी सी चीनी देकर विदा कर देती है। फरिहा के जाने के बाद सरिता मन ही मन मुस्कुराते हुए फरिहा की छेड़खानी को याद करती है।

सरिता: पागल,

राज: (ठीक सरिता के पीछे धीरे धीरे आ रहा होता है) क्या कहा? पागल? अरे भाई अब तो हमे सब पागल ही कहेंगे । महोबत मैं कौनसा इंसान समझदार होता है।

सरिताbanana सरिता तुरंत पीछे पलट जाती है)अरे नहीं नहीं आपको नही वो तो मैं उस फरिहा को खेर जाने दो ये सब लेकिन आपने अभी तक ये नहीं बताया कि आज आप जल्दी कैसे?

राज : अरे बात ही खुशी की थी तो जल्दी आना ही था। दर असल मेरे पास कुछ देर पहले सुरेश भैया का कॉल आया था। उन्होंने बिज़नेस मैं हुए प्रॉफिट और हमारे बिज़नेस मैं होने वाली हेल्प के बारे में बताया तो तुमसे मिलकर बताने का दिल किया सो आ गया। और वैसे भी मैं कौनसा गवर्नमेंट जॉब मैं हूँ जो अपनी मर्जी से आ जा भी नहीं सकता।

सरिता: जी ऐसा तो मैंने नहीं कहा बस आपका जल्दी आना थोड़ा सा मेरे लिए सरप्राइज सा था।

राज : अच्छा जी।

सरिता : जी. और हां एक बात और माँ जी और चंचल दीदी का कॉल आया था। दोनों ने मुझे आज ही बुलाया है। तो शाम की ट्रेन कर ली मैंने।

राज: हम्म मुझे सुरेश भैया ने भी बोला था कि कुछ दिन के लिए तुम्हे चंचल के साथ रहने दूँ।

सरिता : वो क्यों?

राज: क्यों की सुरेश भैया अपने बिज़नेस को अपने पार्टनर्स के साथ फॉरेन मैं ले जाएंगे। और उनके पार्टनर्स आज रात को फॉरेन जा रहे है और वो भैया को भी साथ ले जा रहे है। जिसके लिए उन्होंने भैया का टिकट बिना भैया को बताए ही बुक करवा लिया ।

सरिता : व्हाट? तो क्या इस बात का अभी तक माँ जी और चंचल दीदी दोनों को पता नहीं।

राज: हाँ अभी तक तो नहीं है। यार तुम तो जानती हो बाबाओं के चक्कर ने माँ को साइको बना दिया है। जब देखो तब आज दिन सही नहीं, अभी मुहूर्त नहीं वगैरा वगैरा। और फिर मुहूर्त और इन सब मैं कोई भी इंसान इतना अच्छा मौका थोड़े ही छोड़ सकता है।

सरिता: (थोड़ा सोचते हुए) हाँ ये भी ठीक है लेकिन फिर भी कम से कम चंचल दीदी को तो?
राज : (सरिता की बात काटते हुए) अब कोई लेकिन वेकीन नहीं। तुम भी ये बात माँ और भाभी को नहीं बताओगी। भैया अपने मन से बताये तो अच्छा है और नहीं बताये तो ये भी उन पर छोड़ दो। हम दोनों अच्छे से जानते है भैया माँ और भाभी दोनो को बहुत चाहते है। अगर वो नही बात रहें है तो सोचो कितनी बड़ी मुश्किल में होंगे।

सरिता : ओके बाबा, खुश, अब इतना स्ट्रेस में मत रहो! आप बिलकुल भी अच्छे नहीं लगते स्ट्रेस में।

राज: अच्छा , तो फिर मेरा स्ट्रेस दूर कर दो ना।

सरिता : मैं कैसे दूर करूँगी आपका स्ट्रेस ? ( सोचते हुए)

राज : ( सरिता को बाहों में लेते हुए) मेरी जान मेरे साथ आज शाम तक डेट पर चलकर। जब तक तुम्हारी ट्रैन नहीं आती तब तक तुम्हारी खुशबू मैं अपने आप में बसा लेना चाहता हूँ।

सरिता : (राज को बाहों में जकड़ते हुए) अच्छा तो शादी के बाद भी जनाब को डेट पर जाना है। अपनी ही बीवी को गर्लफ्रैंड की तरह घुमाना है। ह्म्म्म तो जनाब आप छोड़ेंगे तभी तो तैयार हो पाऊंगी ना डेट के लिए।
राज: ना दिल नही कर रहा

सरिता : तो ठीक है शाम तक ऐसे ही रहते है।

राज: तुम ना नहीं सुधरोगी ( सरिता को बाहों के बंधन से मुक्त करते हुए) जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ। और हां कॉलेज गर्ल टाइप बनना। मेरा मतलब साड़ी मत पहनना वेस्टर्न कुछ पहनना । आज मैं मेरी बीवी और गर्लफ्रैंड दोनों से मिलना चाहता हूं।

सरिता शर्माते हुए टॉवल उठा कर चली जाती है।

वहीं दूसरी और सुरेश बेहद परेशान था। सुरेश को समझ नही आ रहा था कि क्या करे और क्या ना करे। सुरेश इतना परेशान था कि उसे आफिस में ही इमरजेंसी के लिए डॉक्टर को बुलाना पड़ गया।
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