Update 02


राज: तुम ना नहीं सुधरोगी ( सरिता को बाहों के बंधन से मुक्त करते हुए) जाओ और जल्दी से तैयार हो जाओ। और हां कॉलेज गर्ल टाइप बनना। मेरा मतलब साड़ी मत पहनना वेस्टर्न कुछ पहनना । आज मैं मेरी बीवी और गर्लफ्रैंड दोनों से मिलना चाहता हूं।

सरिता शर्माते हुए टॉवल उठा कर चली जाती है।

वहीं दूसरी और सुरेश बेहद परेशान था। सुरेश को समझ नही आ रहा था कि क्या करे और क्या ना करे। सुरेश इतना परेशान था कि उसे आफिस में ही इमरजेंसी के लिए डॉक्टर को बुलाना पड़ गया।

अब आगे. .

करीब आधे घंटे बाद सरिता एक सलवार सूट मैं बाथरूम से बाहर आती है। राज उस वक़्त हॉल में बैठा बैठा कोई मैगजीन पढ़ रहा था। सरिता बिना राज को डिस्टर्ब किये चुप चाप अपने रूम में चली जाती है और तैयार होने लगती है।

तैयार होते हुए सरिता बार बार राज के बारे में सोचते हुए मुस्कुरा रही थी। सरिता सोच रही कि वो कितनी लकी है जो इतना प्यार करने वाला पति उसके नसीब में है।

सरिता राज की इच्छा के अनुसार एक वेस्टर्न ड्रेस निकालती है। दरअसल बनारस में तो साड़ी के अलावा सरिता सलवार सूट पहन सकती थी लेकिन वेस्टर्न ड्रेस वहां सख्त मना थी। लेकिन यहां दिल्ली में राज ने खुद सरिता को कहा था कि वेस्टर्न ड्रेस पहना करो। तुम्हारा पति एक बिज़नेस मैन है। अगर किसी पार्टी में हम साथ चले तो उस पार्टी की रौनक सिर्फ और सिर्फ तुम ही लगो। इस लिए सरिता ने काफी सारे महंगे और अच्छे हॉट सेक्सी वेस्टर्न ड्रेसेस ले रखे थे। उनमें से आज एक सरिता ने सेलेक्ट करके पहन लिया।

जैसे ही सरिता अपने कमरे से तैयार होकर बाहर आई तो राज की नज़र पहले सरिता पर पड़ी।नज़र क्या पड़ी राज तो सरिता को देखते ही रह गया। वेस्टर्न ड्रेस में सरिता सच में कोई कॉलेज गर्ल लग रही थी। किसी भी तरीके से कोई ये नही कह सकता था कि सरिता की शादी 2 साल पहले हो चुकी हो। राज को इस तरह से घूरते देख सरिता शर्माते हुए राज से बोलती है.

सरिता:-

ऐसे क्या देख रहे हो? प्लीज न ऐसे मत देखो मुझे शर्म आती है।

राज सरिता की आवाज सुनकर अपने ख्वाबों से बाहर आता है।

राज: देख रहा हूँ मेरी पत्नी अभी तक आयी नहीं। वैसे आप कुछ लेंगी ठंडा गर्म कुछ। आप बैठिये मैडम मैं ऊनी पत्नी को बुला कर लाता हूँ. (सरिता को आवाज देते हुए) सरिताssss सरिता तुम्हारी कोई दोस्त आयी हुई हैं।

राज ऐसा बोलते हुए नाटक करता हुआ सरिता के पास से बैडरूम मैं जाने लगता है। तभी सरिता वहां खड़े खड़े राज का हाथ पकड़ कर उसे रोक लेती है और बोलती है.

सरिता: युsssss. . तुम ना ज्यादा नाटक नही कर रहे। ऐसे बेहवे कर रहे हो जैसे मुझे पहचानते ही नहीं। अगर ऐसा है तो रुको मैं वापस जा कर चेंज करके आती हूँ।

इस बार सरिता बेडरूम की और जाने लगती है लेकिन जो हाथ कुछ देर पहले सरिता ने पकड़ा था राज उसी हाथ से सरिता को पकड़ कर अपनी और खींचता है जिस से सरिता एकदम से राज के सीने से लग जाती है।

राज: (होल से सरिता के कान में) ऐसे खूबसूरत लम्हे मेरी नज़रों से छीन लेने का अधिकार मैंने उस ऊपर वाले को भी नहीं दिया। फिर तुम तो मेरी जान हो।

सरिता राज की बात सुन कर मुस्कुरा देती है।

सरिता: फिर ये नाटक क्यों किया?

राज: क्योंकि मैं जिस सरिता को थोड़ी देर पहले मिला था वो मेरी पत्नी थी। लेकिन अभी जिसको मैंने देखा है वो मेरी पत्नी नहीं बल्कि कोई बला की खूबसूरत परी है जिसे मैं पटाना चाहता हूँ। प्रोपोज़ करके अपनी गर्लफ्रैंड बनाना चाहता हूँ। उसके साथ डेट पर चलना चाहता हूँ।

राज इतना बोलकर अपने घुटनों पर बैठ कर सरिता से बोलता है।

राज: क्या आप मेरे साथ डेट पर चलेंगी।

सरिता: नहीं

राज: (चोंकते हुए) क्यूँ?

सरिता : मैं जिसके साथ डेट पर जाउंगी वो भी तो कॉलेज का लड़का होना चाहिए ना मैं किसी बिज़नेस मैन के साथ डेट पर क्यों जाऊं। मुझे पैसे कमाने वाला नही बल्कि मेरा बॉयफ्रेंड चाहिए।

राज : अच्छा जी ये बात है तो रुको 10 मिनट में आया।

राज तुरंत अपने कमरे में जा कर तैयार हो जाता है। एक जीन्स और शर्ट ऊपर डेनिम जैकेट एक दम जैसे कॉलेज स्टूडेंट्स हो।

इस बार इम्प्रेस होने की बारी सरिता की थी।

राज: क्या अब आप मेरे साथ डेट पर चलेंगी।

सरिता: ऑफकोर्स चलूंगी बाबा. .

दोनों हंसते हुए अपनी गाड़ी से शहर के पास ही के टूरिस्ट प्लेस पर चले जाते है। जहां पर बहुत से कपल थे।

दोनों एक दूसरे के हाथ में हाथ डाले टूरिस्ट प्लेस घूम रहे थे।

एक अच्छे से रेस्टॉरेंट मैं जा कर खाना खाते है।

फिर वापस आते वक्त एक खूबसूरत से प्लेस पर फोटोशूट होता देख दोनों रुक जाते है। राज सरिता को बोलता है चलो अपना भी एक फोटो तो बनता है। सरिता मुस्कुराते हुए राज के साथ चल देती है।

राज कैमेरा मैन से बात करके सरिता को गले लगाते हुए फ़ोटो खींचता है। ठीक उसी समय राज अपने पॉकेट से एक रिंग निकाल कर कैमरा मैन को दिखाते हुए पूछता है कैसी है।

कैमरा मैन इशारों में बताता है कि बहुत खूबसूरत है। और उसी सीन की फ़ोटो कैप्चर कर लेता है। उसके बाद राज घुटनों पर बैठ कर सरिता को प्रोपोज़ करता है। और सरिता से जीवन भर का साथ निभाने का पूछता है।

सरिता खुशी खुशी वो रिंग ले लेती है। लेकिन दोनों की ये खुशिया बस आज इतनी ही थी। क्यों कि सरिता के मोबाइल में एक अलार्म बज पड़ता है जिसे देख कर सरिता और राज दोनों मायूस हों जाते है क्योंकि अब जुदाई की घफी आ गयी थी। सरिता की ट्रेन का समय हो चला था।

राज सरिता को किस करता है और उसे तुरंत गाड़ी में बिठा कर घर और घर से सामान उठा कर रेलवे स्टेशन ले जाता है। जहां सरिता को रेल में बिठा कर राज सरिता को विदा करता है।

अब कहानी के दूसरी और चलते है।

सुरेश : डॉक्टर, आखिर प्रॉब्लम क्या है? ये मेरे साथ आज ही हुआ है।

डॉक्टर: देखिए सर मैं डॉक्टर हुन भगवान नहीं। इस चीज का मैं क्या दुनिया में कोई भी इलाज नहीं है। केवल और केवल आप ही खुद को ठीक कर सकते है।
सुरेश: मैं पर कैसे?

डॉक्टर: आपको क्या प्रोब्लेम है? कोई टेंशन है? किसी बात से परेशान है? कोई अन नेसेसरी स्ट्रेस है? जिसके कारण से आपको एक दौरा पड़ा था। साधारण भाषा में कहूँ तो ये घबराहट का दौरा था। जिसके कारण से आपकी दिल की धड़कने बाद गयी और आपको दिल के दौरे जैसा अनुभव हुआ।

सुरेश: ओके डॉक्टर! मैं समझ गया। आप जा सकते है। फिलहाल के लिए मुझे कुछ मेडिसिन दे दे।

डॉक्टर कुछ दवाईयां लिख कर सुरेश को दे देता है। सुरेश तुरंत अपने चपरासी को बोलकर दवा मंगवाता है और ले लेता है।

दर असल सुरेज़ह को इस बात से परेशानी थी कि अगर वो अपनी मां को बताता है की वो एक महीने के लिए फॉरेन टूर पर जा रहा है तो उसकी माँ उसे इजाजत नहीं देगी। और ये प्रॉफिट सिर्फ और सिर्फ अपने पार्टनर्स के कारण मिला है । उन्होंने तो टिकट तक करवा ली। अब उन्हें माना करना उन्हें नाराज करने जैसा होगा। इसलिए सुरेश बहुत टेंशन मैं था।

शाम होते होते सुरेश ने निर्णय लिया कि आज मैं मां की नही बल्कि मा मेरी सुनेंगी । सुरेश खुद को मेंटली तैयार करके घर के लिए निकल चुका था।

वहीं घर पर चाँदनी ने भी निर्णय कर लिया था कि आज वो सुरेज़ह की नहीं सुनेंगी बिल्कुल भी नहीं। आज सीधे सीधे वो अपना निर्णय सुरेश को सुनाएंगी और उसे इसे मानना पड़ेगा।

शाम होते होते सुरेश ने निर्णय लिया कि आज मैं मां की नही बल्कि माँ मेरी सुनेंगी । सुरेश खुद को मेंटली तैयार करके घर के लिए निकल चुका था।

वहीं घर पर चाँदनी ने भी निर्णय कर लिया था कि आज वो सुरेश की नहीं सुनेंगी, बिल्कुल भी नहीं। आज सीधे सीधे वो अपना निर्णय सुरेश को सुनाएंगी और उसे इसे मानना पड़ेगा।

अब आगे. . .

देर शाम को सुरेश घर पहुंचा। सुरेश थोड़ा असमंजस में ज़रूर था इसलिए हिम्मत जुटा कर सुरेश ने डोर बेल बजा दी। डोर बेल के बजते ही चांदनी और चंचल दोनों को एहसास हो गया था कि सुरेश घर आया होगा। चंचल दौड़ते हुए दरवाजे तक गयींऔर दरवाजा खोल दिया। चंचल अपनी सास का लिहाज करते हुए रुक गयी वरना तो चंचल की एक्साइटमेंट से लग रहा था कि वो वही सुरेश को अपने चुम्बनों से भिगो देती। लेकिन चंचल ने खुद पर काबू पाते हुए सुरेश को अंदर बुलाया और खुद किचन में चली गयी।

चांदनी: आओ बेटा मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। बड़ी खास बात है। इसलिए मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी ।

सुरेश: माँ मुझे भी आपसे कुछ बात करनी थी अगर आप. .

चांदनी: (सुरेश की बात को काटते हुए) आज तू सिर्फ मेरी सुनेगा। घर का बड़ा बेटा है तू इस लिए मैंने तुझे किसी काम से नही रोका। हमेशा अपनी माँ कि सेवा मैं लगा रहता है। इसलिए आज सिर्फ मेरी सुनेगा और बीच में कुछ नहीं बोलेगा।

सुरेश: लेकिन माँ मेरी बात तो. .

चांदनी: बस बहुत हो गया अब चुप चाप सुनो। मैं कल सुबह जल्दी यहां से तीर्थ यात्रा पर निकल जाउंगी। मुझे मालूम था तू मेरे साथ जाने की जिद करेगा लेकिन फिर ये बिज़नेस कौन संभालेगा? और फिर मेरे प्रति तुम्हारा प्रेम और चिंता में इनसे भी बे फ़िक़्र नहीं हूँ। सो मैंने छोटी बहू की मम्मी यानी कि मेरी समधन से भी बात की तो वो भी तैयार हो गयी तीर्थ यात्रा के लिए। इस लिए तुझे मेरी फ़िक़्र करने की ज़रूरत नहीं है। और हां ये बात मैं शिर्फ़ तुझे बात रही हूँ इसके बारे में मुझे और कुछ नहीं सुनना।

सुरेशbananaमन ही मन) अगर माँ सुबह तीर्थ यात्रा पर निकल रही है मेरे बिना तो फिर मुझे उन्हें ये बताने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी कि में एक महीने के लिए विदेश यात्रा पर जा रहा हूँ। लेकिन ये कैसे पता करूँ की माँ तीर्थ यात्रा से कब तक आएंगी। बातों बातों में ही माँ से ये निकलवा लेता हूँ।

सुरेश: लेकिन माँ ऐसे कैसे आप अकेले. . और फिर हफ्ते आध हफ्ते की ही तो बात है इसमें कौनसा बिज़नेस का नुकसान होगा। मैं चलता हूँ ना आपके साथ।

चांदनी: तुझे सुनता कम है क्या? या फिर तू समझता नही है? अभी बताया तो है मैंने की मेरे साथ मेरी समधन और समधि जी भी जा रहे है। और तुझे किसने बोल दिया तीर्थ हफ्ते गया दो हफ्ते में हो जाएगा। मुझे वहां कम से कम एकबमहीन तो लगेगा ही और उसमें भी दस पन्द्रह दिन ऊपर हो सकते है।

सुरेश : (मन ही मन खुश होते हुए) अरे वाह मतलब माँ भी एक महीने के लिए जा रही है। मतलब मैं चुपचाप जाकर आ भी जाऊंगा। फिर बाद में मैं माँ को बता भी दूंगा की मुझे उनके जाने के बाद अर्जेंट विदेश निकलना पड़ा।

सुरेश: (उदासी का नाटक करते हुए) ठीक है माँ। जब तुमने मुझसे पहले ही सब कुछ सोच कर निर्णय ले लिया तो बताओ मैं और क्या कर सकता हूँ?

चांदनी: (मुस्कुराते हुए) अपनी मां की बात मान और बिज़नेस और बहु दोनो का ध्यान रख।

तभी चंचल पानी का गिलास और खाना लेकर आ जाती है । खाने की टेबल पर इधर उधर की बात होती रहती है। और इसी बीच सुरेश को ये भी पता चलता है कि सरिता को उसकी माँ ने भी बनारस आने के लिए बोला है। जिस का मतलब ये है कि अगर वो भविष्य में अपनी माँ को अपनी विदेश यात्रा के विषय मे ना भी बताए तो उन्हें कभी पता ही नही चल पाएगा।

खाना खाने के बाद सभी अपने अपने कमरे में चले जाते हैं। चंचल सुरेश के बेडरूम में घुसते ही उसे अपनी नाजुक बाहों में जकड़ लेती है। और अपने नाजुक से होंठ सुरेश के होंठों के नज़दीक ले जाकर. .

चंचल: क्या बात है हीरो। धीरे धीरे अमीर बनने की दौड़ में लंबी रेस का घोड़ा बनते जा रहे हो।

सुरेश भी चंचल की इस बात पर मुस्कुरा पड़ता है।

सुरेश: ( चंचल को गौद मैं उठाते हुए) जिसकी पत्नी महारानी हो उसे तो राजा बनना ही पड़ेगा ना जान।

दोनों अपनी मीठी मीठी बातों और शैतानियों मैं खोकर गले लग जाते है और हँसने लगते है।

सुरेश और चंचल का करीब 30 से 40 मिनट तक मिलान समारोह चलता रहता है। जिसकी हल्की हल्की आवाजें चाँदनी को भी सुनाई पड़ती है।

चाँदनी तो चाहती भी यही है कि दोनों बेटे बहु इतनी रास लीला करें कि उनके घर में किलकारियां गूंज उठें। बड़ी मुश्किल से चाँदनी अपने बेटे बहु से अपना ध्यान हटा कर नींद के आगोश में चली गयी।

सुबह करीब 4 -4. 30 बजे. .

ठक ठक ठक. . (दरवाजे पर नॉक)

चाँदनी: सुरेश ओ सुरेश.

चाँदनी की आवाज और दरवाजे पर हुई नॉक से चंचल की नींद खुल गयी। चंचल हड़बड़ा कर उठती है और दरवाजे की तरफ दौड़ती है लेकिन आधे रास्ते मे ही रुक जाती है। दरअसल चंचल रात को सुरेश के साथ काम क्रीड़ा करते करते थक कर सो गई थी। तबसे लेकर अब तक उसके बदन पर एक भी कपड़ा नहीं था। चंचल ने सुरेश की तरफ नज़र उठाकर देखा तो सुरेश नींद के आगोश में था। चंचल ने तुरंत अपने कपड़े ढूंढे जो कि वास्तव इस वक़्त मिल पाना मुश्किल था। कुछ कपड़े सुरेश के नीचे दबे थे तो कुछ बिस्तर के इर्द गिर्द बिखरे थे। चंचल ने तुरंत अपनी कबड़ की और रुख किया और एक सलवार और सूट निकल कर पहन लिया। फिर चाँदनी को आवाज देते हुए. .

चंचल: आयी माँ जी.

चंचल दरवाजा खोलने से पहले सुरेश को उठा कर बाहर चाँदनी के होने की खबर देती है। जिसे सुनकर सुरेश तुरंत नग्न हालत में ही बाथरूम में भाग जाता है।

चंचल दरवाजा खोलती है तो सामने चाँदनी खड़ी मिलती है।

चंचल: जी मां जी

चाँदनी: अरे क्या जी माँ जी? सुरेश कहाँ है? उसे कहो मुझे तुरंत ट्रैन मैं बिठा कर आये। मैं लाते हो रही हूं भाई।

तभी सुरेश बाथरूम से तैयार होकर आता है। दरअसल सुरेश के रात के कुर्ते पाजामे बाथरूम में थे जिनको वो सोते समय पहनता था। तो उन्हें ही पहन कर सुरेश बाहर आ गया।

सुरेश: हां माँ बस अभी चलते है।

सुरेश एक कॉल करता है और चंचल को चाय के लिए बोल देता है। चंचल किचन में जाकर चाय बनाने लगती है। तब तक सुरेश अपने आफिस सूट मैं तैयार होकर बाहर आ जाता है। चंचल चाय सुरेश की और बढ़ाते हुए।

चंचल चाँदनी से:- माँ जी आप इस तरह तैयार होकर इतनी सुबह. ?

चाँदनी: हाँ बेटा मैं तीर्थ यात्रा पर जा रही हूँ। तुम्हारी देवरानी की माँ और पापा के साथ।

चंचल: लेकिन माँ यूँ अचानक. . और फिर सुरेश भी तो आज.

तभी सुरेश बीच मे बोल पड़ता है.

सुरेश: हाँ चंचल मैंने भी माँ को बोला था कि मैं चल लेता हूँ साथ लेकिन माँ तैयार ही नही हुई।

चंचल: हाँ वो सब तो सही है लेकिन आप तो.

सुरेश तुरंत चाय का कप खाली करके नीचे रखते हुए।

सुरेश: चलो माँ देर हो रही है। गाड़ी आ गयी। और चंचल तुम ज़रा मेरा नाश्ता भी बना दो आज कुछ काम के सिलसिले में जल्दी जाना है।

सुरेश इतना बोलकर चाँदनी और उसके सामान के साथ घर के बाहर आ जाता है। सुरेश और चाँदनी गाड़ी में बैठ रेल यात्रा की और बढ़ जाते है।

वहीं दूसरी और चंचल को सुरेश का व्यवहार और दिनों से कुछ अलग और अजीब लगता है। ऐसा लगता है जैसे सुरेश कुछ छिपा रहा हो।

चंचल सुरेश को कॉल करके वार्निंग देते हुए बोल देती है कि माँ जी को ट्रैन मैं बिठाते ही घर आएं। क्योंकि उसे सुरेश से बहुत से बातों को जान ना था।

सुरेश भी चंचल की अधीरता को समझ जाता है। सुरेश जानता था कि ये बात उसकी मां चाँदनी से तो छिपा सकता है लेकिन अपनी पत्नी चंचल से छिपा पाना उसके बस की बात नहीं। सुरेश चाँदनी को ट्रेन में बिठा कर घर की और रुख कर लेता है।

जैसे ही सुरेश घर पहुंचता है चंचल सुरेश पर अपने ढेर सारे सवालों को लेकर बिखर पड़ती है। सुरेश बड़े ही प्यार से चंचल को कुरसिंपर बिठा कर अपनी मजबूरी बताता है और बताता ही कि उसे किन हालात में अपनी मां से उसकी विदेश यात्रा छिपानी पड़ी है। और इस राज में वो चंचल को अपना भागीदार बना ता है।

चंचल अछि तरह से जानती थी कि सुरेश अगर अपनी माँ चाँदनी से इतनी बड़ी बात छिपा रहा है तो ज़रूर उसकी ये मजबूरी रही होगी।

करीब 7. 30 या 8 बजे सुरेश अपना सामान जमा कर एयरपोर्ट पहुंच जाता है जहां से सुरेश आने एक महीने के तौर टूर पर निकल जाता है।

चंचल अकेली घर पर बोते हो रही थी कि तभी करीब 11. 30 के करीब दरवाजे पर नॉक होता है। चंचल चौंक जाती है कि आखिर इस वक़्त कौन है। चंचल दरवाजा खोल कर देखती है तो ये कोई और नहीं बल्कि उसकी देवरानी सरिता थी। चंचल सरिता को देख कर बेहद खुश होती है। दोनों एक दूसरे को गले लगती है और घर मे आ जाती है।

करीब 7. 30 या 8 बजे सुरेश अपना सामान जमा कर एयरपोर्ट पहुंच जाता है जहां से सुरेश आने एक महीने के तौर टूर पर निकल जाता है।

चंचल अकेली घर पर बोते हो रही थी कि तभी करीब 11. 30 के करीब दरवाजे पर नॉक होता है। चंचल चौंक जाती है कि आखिर इस वक़्त कौन है। चंचल दरवाजा खोल कर देखती है तो ये कोई और नहीं बल्कि उसकी देवरानी सरिता थी। चंचल सरिता को देख कर बेहद खुश होती है। दोनों एक दूसरे को गले लगती है और घर मे आ जाती है।

अब आगे. .

चंचल और सरिता जहाँ दोनो एक तरफ एक दूसरे से एक लंबे समय बाद मिल कर खुश हो रही थी वहीं उनके पति ग़म और टेंशन मैं खोये जा रहे थे। दरअसल सुरेश को इस बात का बहुत पछतावा हो रहा था कि वो आज पहली बार अपनी माँ चाँदनी से झूठ बोल कर इतनी दूर जा रहा था जिसके लिए उसका मन कतई तैयार नही हो पा रहा था। और राज इसलिए दुखी हो रहा था क्योंकि रोज रात को जब वो थक कर घर आता था तो अपनी प्यारी पत्नी का चेहरा देखते ही उसकी थकान दूर हो जाती थी। राज और सरिता दोनों एक दूसरे को बहुत प्यार जो करते थे ।

चंचल और सरिता दोनों काफी देर तक बात करती रही। लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि बातों बातों में रात के 9 बज गए तब चंचल के मन में ख्याल आया।

चंचल :- (मन ही मन) है राम मैंने तो अभी तक सरिता को खाने के लिए पूछा ही नहीं। ऊपर से बातों बातों में और अकेले पन के ग़म में मुझे दिन में भूख नहीं लगी और अभी तक मैंने खाना भी नहीँ पकाया । अब अगर सरिता को खाने के लिए पूछ भी लिया तो उसे खिलाऊंगी क्या?

लेकिन शायद सरिता को चंचल के मनोभावों का अनुमान लग चुका था।

सरिता: दीदी? आपने अभी तक खाना तो नहीं बनाया ना।

चंचल : (एकदम से चौंकते हुए) क्या ? खाना? ओह सॉरी यार मैं तो भूल ही गयी। सच कहूँ सरिता आज पहली बार मैं घर मे सुरेश और माँ जी के बिना थी तो अकेलेपन में मुझे भूख नहीं लगी और मैंने खाना नहीं बनाया। सारी यार। चल मैं अभी खाना बना लेती हूँ। तू तो थकी हुई है इतनी दूर से सफर करके आयी है तू बैठ मैं बस 10 मिनट में आयी।( चंचल उठ कर जाने लगती है तभी)

सरिता: (चंचल का हाथ पकड़ कर) दीदी. . रुको तो. अच्छा सुनो क्यों ना आज हम बाहर से खाना खा ले। देखो आप और मैं ही है घर में तीसरा कोई है नहीं तो खाना बनाना छोड़ो ना कहीं बाहर घूम कर आते है। और वैसे भी मेरा दिल भी बदल जायेगा। अचानक से यहाँ आना मुझे नयेपन का एहसास करा रहा है जिसकी वजह से मेरा दिल नहीं लग रहा।

चंचल: (रुकते हुए) क्यूँ ? क्या तेरा दिल नही था मेरे पास आने का?

सरिता : नहीं दीदी ऐसा बिल्कुल नहीं है लेकिन जैसे आप वैसे मैं.

चंचल : क्या मतलब?

सरिता: वो दीदी क्या है ना आज से पहले मैं कभी भी राज के बिना अकेली नहीं रही। हर वक़्त हर जगह वो मेरे साथ रहते थे।

चंचल: ओहssssssss तो ऐसा कहो ना कि पतिदेव की याद सात रही है।

सरिता : धत्तsss ऐसा कुछ नहीं है।

चंचल: अच्छा अच्छा ठीक है अब इतने भी लाल गाल मत करो। देखो तो टमाटर जैसे लाल हो गये। चल तो फिर बाहर खाना खाते है। अच्छा सुन तुझे तो ड्राइव करना आता है ना?

सरिता : (झेंपते हुए) दीदी ड्राइव करना? एक्चुली दीदी कभी ज़रूरत नहीं पड़ी हमेशा तो राज ड्राइव करते थे? और घर पर भीssss उम्मsss पाप या ड्राइवर साथ होता था तो ड्राइव करना सिखा नहीं।

चंचल: ओह नो यार. ड्राइव करना तो मुझे भी नही आता। एक्चुली मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही है। और फिर पहले मैंने ड्राइव सिखने की कोशिश की थी लेकिन माँ जी ने मना कर दिया।

सरिता : क्यूँ माँ जी ने क्यों?

चंचल : अरे यार उनके संस्कार। तू तो सब जानती है। यहां तक कि उन्होंने नौकर तक नहीं रखे घर में। उल्टा शादी के बाद मुझे खाना बनाना सिखाने लग गयी और अब देखो मैं उनकी ट्रेंड कुक हूँ। एक दम संस्कारी बहु।

सरिता : दीदी राज ने भी घर के काम के लिए वहां नौकर नही रखे। हर बार बोलते है यार तेरे हाथ का खाना फिर नसीब नहीं होगा। नौकर ही बना देगा। और नौकर से खाना बनवाने से बेटर तो मैं बाहर होटल में खा कर आ जाया करूँगा।

चंचल : यार वैसे तो माँ जी के विचार गलत नहीं है लेकिन अब हमारी कंपनी नेशनल नहीं बल्कि इंटर नेशनल कंपनी बनने जा रही है। तो अब हमें घर उसी के हिसाब से चलना होगा ना। अपना स्टेटस भी बरकरार रखना होगा।

सरिता : जी दीदी लेकिन माँ जी को समझायेगा कौन?

चंचल : वो मैं कर लुंगी बस एक ही प्रॉब्लम है।

सरिता : वो क्या दीदी?

चंचल: बच्चा।

सरिता: बच्चा?

चंचल: हाँ , बच्चा! हमारी सास को इस घर का चिराग चाहिए । मेरे खयाल से इसी के लिए वो तीर्थ यात्रा पर गयी होंगी। वरना अचानक तीर्थ जाने का प्लान, ऊपर से सुरेश को भी नही लेकर गयी।

सरिता: नहीं दीदी तीर्थ मेरे ख्याल से इस कारण से नही होगा। हो भी सकता है हो। अब कौन जाने माँ जी के दिमाग मे क्या चल रहा है?

चंचल: हाँ यार सो तो है । अच्छा चल जाने दे ये सब तो अभी अपन खाना खाने चलते है।

सरिता : वैसे दीदी एक बात बोलू मैंने आपसे कुछ झूट बोलै है?

चंचल: (चोंकते हुए) क्या? झूट और तुमने? मैं नही मानती । अच्छा चल बता क्या झूट बोलै है?

सरिता: वो दीदी मुझे कार चलानी आती है।

चंचल: क्याsssss? सच में? लेकिन तुमने सीखी कहाँ? और फिर इसके लिए झूट क्यूँ बोला?

सरिता: दीदी वो क्या है ना कॉलेज में एक लड़का था रघु. . उसका पूरा नाम तो मुझे आज तक पता नहीं चला। वो मेरे फ्रेंड सर्किल मैं था । तो उसने मुझे कार चलाना सीखा दिया था। जब हम फाइनल ईयर में थे तब उसके पापा की डैथ हो गयो थी। उसके बात वो कभी मिला नही।

चंचल: अच्छा हुआ तूने बता दिया। वरना तो टैक्सी से चलते। चल तू सुरेश की कार चला और कोई मस्त से रेस्टोरेंट में ले चल।

सरिता: लेकिन दीदी मैं तो यहां किसी जगह को जानती ही नही।

चंचल: रुक एक मिनट कुछ दिनों पहले सुरेश मुझे कहीं घुमाने लेकर गए थे। उसका कार्ड है मेरे पास वहीं चलते है।

चंचल वो कार्ड लेकर सरिता के पास आती है और सरिता को कार्ड दिखाती है। चंच और सरिता उसका प्रॉपर एड्रेस देखती है तो चंचल को पता चल जाता है कि ये ज्यादा दूर नहीं है बल्कि घर से 2 किलोमीटर दूर ही है । दोनों बहनें तैयार वो कर रेस्टॉरेंट की और बढ़ जाती है।

जैसे ही दोनों पार्किंग में कार पार्क करके उतरती है और रेस्टॉरेंट की और बढ़ती है तब एक आदमी उस रेस्टॉरेंट से बाहर आ रहा होता है। वो आदमी रेस्टॉरेंट में सरिता और चंचल को अंदर आते देख कर वही रुक जाता है। सरिता और चंचल दोनो आपस मे बात करते हुए अंदर जा रही थी इसलिए उन्होंने उसे नोटिस नही किया।

सरिता और चंचल दोनो जा कर एक टेबल पर बैठ गयी। और खाने का आर्डर करने लगी। तभी वो आदमी वहां से जल्दी से बाहर निकल गया। वो आदमी कुछ सोचता रहा । फिर मुस्कुराते हुए वहां से चला गया।

थोड़ी देर बाद चंचल और सरिता खाना खा कर रेस्टॉरेंट से घर की और जाने लगी। जब सरिता कार निकाल कर ड्राइव करते हुए चंचल के साथ जा रही थी। उस वक़्त भी एक पेड़ के पीछे से चिप कर कोई उन्हें देख रहा था।वो कोई और नहीं बल्कि वही व्यक्ति था जो उन्हें रेस्टॉरेंट में भी देख कर चोंक पड़ा था।
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